बनारस: आप माने या नहीं। लेकिन बनारस का सराय हरहा का वह तीन-तल्ला मकान का छत, दीवारें और भारत रत्न शहनाई उस्ताद की ऐतिहासिक शहनाई गवाह है कि वरिष्ठ अधिवक्ता और तत्कालीन कांग्रेस के नेता, मंत्री कपिल सिब्बल आज से सोलह वर्ष पूर्व बनारस के रास्ते उत्तर प्रदेश के हो गए थे। उत्तर प्रदेश के संसदीय क्षेत्र से आम चुनाव जीतकर भले भारत के संसद में नहीं आये थे, लेकिन भारत के करोड़ों लोगों का, खासकर जिन्हे संगीत से प्रेम है, जो गंगा जमुनी तहजीब की बात करते हैं, देश में एकता की बात करते हैं – दिल जीत लिए थे।
दो दशक पूर्व देश का कमान तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के हाथ में था। मुरली मनोहर जोशी बनारस के सांसद थे और उस्ताद बिस्मिल्लाह खान अपने जीवन के अंतिम वसंत में वाजपेयी जी से मदद की गुहार किये। फिर क्या था। लखनऊ से दिल्ली तक के पत्रकारों ने अख़बारों को रंग दिए। टीवी पर बिस्मिल्लाह खान की बातें आसमान में छेद करने लगी। बनारस के पत्रकार बंधु-बांधव कुछ क्षुब्ध थे, कुछ हैरान थे अख़बारों में पढ़कर, टीवी में वक्ताओं को सुनकर। फिर बिस्मिल्लाह खान के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया और कुछ आर्थिक मदद की गयी।
देश के संगीतज्ञ हैरान थे। शहनाई बजाकर कमाए धन को ‘मदद’ कहा जा रहा था। लिखा जा रहा था। लोग कह रहे थे ‘यह तो पारिश्रमिक है शहनाई बजाने के लिए ….. फिर मदद की बात कैसे हो रही है। आवाज घरों में, बैठकी में बंद था। एक पत्रकार के रूप में, बिस्मिल्लाह खान का बिहार और दरभंगा से सम्बन्ध होने के कारण, एक भारतीय होने के कारण और उससे भी अधिक जिसने लाल किले से भारत की स्वतंत्रता को सं 1947 में अभिनन्दन किये थे – कुछ करूँ। मुझे अपनी आर्थिक औकात मालूम था। भारत को आज़ाद होने के 59 साल बाद शायद अधिवक्ता-सह-राजनेता कपिल सिब्बल पहला व्यक्ति थे जो फाल्गुन की समाप्ति के साथ शहनाई सम्राट उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के जन्मदिन के अवसर पर उनके ह्रदय में चैती गुनगुनाये थे – वह भी तीन किलो चांदी की शहनाई से। इतना ही नहीं, आजीवन हाथ पकड़े रहने का वादा भी था। बिस्मिल्लाह खान प्रसन्न थे। आखों से अश्रुपात हो रहा था।
शहनाई उस्ताद अश्रुपूरित आँखों से सिब्बल साहब को बधाई दिए थे। चांदनी चौक की गली में स्थित एक स्वर्णकार ने उस ऐतिहासिक चांदी की शहनाई को गढ़ा था। तारीख था 25 मार्च और स्थान था बनारस का सराय हरहा स्थित बिस्मिल्लाह खान के कमरे के बाहर का हिस्सा। स्थानीय लोगों का, पत्रकारों का, लेखकों का, छायाकारों का खचाखच भीड़ और उस भीड़ में चमचमाता चांदी की वह शहनाई और बिस्मिल्लाह खान का चमकता चेहरा। कपिल सिब्बल तो उत्तर प्रदेश का उसी दिन हो गए थे जब उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की दिल्ली के इण्डिया गेट पर शहनाई बजने की इक्षा को कार्यरूप देने के लिए हमारे प्रयास को जी भरकर मदद किये।
बहरहाल, विगत दिनों जब कांग्रेस नेतृत्व को लेकर राजनीतिक गरमाहट गरमा-गरम हो रही थी, अनेकानेक बार उन्हें लिखा था: “या तो कांग्रेस का नेतृत्व संभालें या फिर कांग्रेस को अंतिम नमस्कार करें।” आज वह भी साफ़ हो गया और कपिल सिब्बल ‘पूर्व कांग्रेस नेता’ हो गए। वे दस दिन पहले कांग्रेस पार्टी के सांसद के रूप में राज्य सभा से इस्तीफा दे चुके और आज उत्तर प्रदेश के समाजवादी पार्टी के पूर्ण समर्थन में एक निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में राज्य सभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल किया है। नामांकन के समय समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ साथ पार्टी के प्रमुख महासचिव रामगोपाल यादव तथा अन्य वरिष्ठ नेता मौजूद थे।
नामांकन दाखिल करने के बाद सिब्बल ने स्पष्ट किया “मैंने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नामांकन भरा है और मैं अखिलेश जी का धन्यवाद करता हूं कि उन्होंने हमें समर्थन दिया है।” सिब्बल ने यह भी बताया कि वह पिछली 16 मई को ही कांग्रेस से इस्तीफा दे चुके हैं और अब वह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नहीं हैं। उत्तर प्रदेश की 11 राज्यसभा सीटों के लिए नामांकन की प्रक्रिया मंगलवार को शुरू हुई है। इस चुनाव के लिए मतदान आगामी 10 जून को होगा। प्रदेश की 403 सदस्यीय विधानसभा में सपा के 111 सदस्य हैं और वह तीन उम्मीदवारों को आसानी से राज्यसभा भेज सकती है। पार्टी ने फिलहाल सिब्बल को अपना समर्थित प्रत्याशी घोषित किया है। बाकी दो सीटों पर अपने उम्मीदवारों को लेकर सपा ने अभी खुलासा नहीं किया है।
सिब्बल ने कहा “हम विपक्ष में रह कर एक गठबंधन बनाना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि 2024 में ऐसा माहौल बने कि मोदी सरकार की जो खामियां हैं उन्हें जनता तक पहुंचाया जाए।” सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सिब्बल को समर्थन देने के औचित्य का जिक्र करते हुए कहा “कपिल सिब्बल देश के जाने माने अधिवक्ता हैं। वह लोकसभा में या राज्यसभा में रहे हों, उन्होंने बातों को अच्छी तरह रखा है। हमें उम्मीद है कि देश में जो बड़े-बड़े सवाल हैं… जैसे… आज देश किस रास्ते पर है, महंगाई रुक नहीं रही है और चीन लगातार हमारी सीमाओं पर आगे बढ़ता जा रहा है… इन तमाम बड़े-बड़े सवालों पर कपिल सिब्बल समाजवादी पार्टी के और अपने विचारों को आगे रखेंगे।” गौरतलब है कि सिब्बल को सपा की ओर से राज्यसभा प्रत्याशी बनाए जाने की अटकलें मंगलवार से ही लगाई जा रही थीं। हालांकि पार्टी ने इसकी पुष्टि नहीं की थी।
सिब्बल ने, भ्रष्टाचार तथा अनेक अन्य आरोपों में लगभग 27 महीने तक सीतापुर जेल में बंद रहे सपा के वरिष्ठ नेता एवं विधायक आजम खां को उच्चतम न्यायालय से जमानत दिलवाने में उनके वकील के तौर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। खां अपने प्रति कथित बेरुखी को लेकर सपा नेतृत्व से नाराज हैं। माना जा रहा है कि सिब्बल को समर्थन देकर इस नाराजगी को दूर करने की कोशिश की गई है। सिब्बल के अतिरिक्त करीब दो दर्जन कांग्रेसी नेता पार्टी के नेतृत्व में आमूल परिवर्तन चाहते थे। यह अलग बात है कि कांग्रेस के वर्तमान नेता, जो पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं, उनका न तो मत से और ना ही मतदाताओं से कोई सीधा नाता है।