विशेष रिपोर्ट: क्या पाटलिपुत्र बिल्डर के मालिक न्यायालय में ‘चुप’ रहकर ‘अकेले’ कानून की ‘मार को सहन’ करेंगे, अपनी छवि ‘नेस्तनाबूद’ होने देंगे या मुंह खोलेंगे ?

बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी

पटना : पाटलिपुत्र बिल्डर के मालिक अनिल कुमार सिंह, जो अभी प्रवर्तन निदेशालय के गिरफ्त में ‘रिमांड’ पर हैं, इतने भी ‘सज्जन’ नहीं हैं कि वे प्रवर्तन निदेशालय, न्यायालय और कानून की मार को अकेले अपने गाल पर रसीद होने दें और अपने व्यवसाय को, समाज में अपनी छवि और प्रतिष्ठा को पटना के फ़्रेज़र रोड में सार्वजनिक रूप से नशोनाबूद होने दें। इतना ही नहीं, न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशन के द्वारा दिनांक 21 मई, 2014 को कोतवाली थाना में दर्ज प्राथमिकी और कर्मचारी तथा पत्रकार यूनियन द्वारा न्यायालय में पेश अब तक के सभी दस्तावेजों के आधार पर सभी लांछनों को स्वीकार कर लें बिना किसी हलचल के कि उस सम्पूर्ण पैसे के लें-देन में कौन-कौन लोग सम्मिलित थे, जिन्होंने सैकड़ों कर्मचरियों, उनके परिवारों के हकों को मारकर अपने-अपने कमर में पैसे लपेटे थे। स्वाभाविक है दरभंगा के लालकिले से लेकर पटना के महाराजा कॉम्प्लेक्स के पीछे बनी गगनचुम्बी ईमारत में ‘उस द्रव्य का इस्तेमाल कर’ फ्लैटों को खरीदने वालों के रास्ते, दक्षिण दिल्ली स्थित कई फ्लैटों में दरभंगा महाराज की सम्पत्तियों से लाभान्वित होने वाले महिला, पुरुष – सभी हलचल में आ गए होंगे। सवाल अब “न्यायालय” का है, सवाल अब “न्याय” का है। अब सवाल कई सौ करोड़ का है कि क्या पाटलिपुत्र बिल्डर के मालिक न्यायालय में ‘चुप’ रहकर ‘अकेले’ कानून की ‘मार को सहन’ करेंगे, अपनी छवि ‘नेस्तनाबूद’ होने देंगे या ‘सच’ बोलने के लिए मुंह खोलेंगे ? 

पाटलिपुत्र बिल्डर के मालिक अनिल कुमार तो जानते ही हैं, बस, न्यायालय को अब संतुष्ट होने का समय आ गया है ताकि सैकड़ों कर्मचारियों (कई दिवंगत भी हो गए हैं), उनके परिवारों को, अनाथ, असहाय बाल-बच्चों को पिता द्वारा अर्जित कमाई मिल सके, जीवन के अंतिम वसंत में न्याय मिल सके। उन सभी हतास कर्मचारियों, उनके परिवारों को भारतीय न्यायिक व्यवस्था पर, न्यायालय के न्यायमूर्तियों पर अटूट विस्वास है। यदि न्यायालय की वर्तमान हलचल को देखा जाय तो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि आने वाले समय में उस प्राथमिकी में जिन दो अधिकारियों का हस्ताक्षर है, वे भी अपने परिवार और समाज में अपनी छवि को बरकरार रखने के लिए “मुंह खोलेंगे” ही न्यायालय के सामने। और जब इतना सब होने को संभावित है ही, फिर दी न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशन के तत्कालीन अध्यक्ष-सह-प्रबंध निदेशक, उक्त संस्थान के सभी शेयर होल्डर्स, जिन-जिन लोगों ने फ़्रेज़र रोड स्थित उक्त संस्थान की जमीन, भवन की बिक्री में, नए भवनों के निर्माण के बाद शर्तनामा के विरुद्ध फ्लैटों की बिक्री से “अवैध तरीके से घन अर्जित” किये हैं, सबों का न्यायालय में व्यक्तिगत रूप से पंक्तिवद्ध होना स्वाभाविक है। 

अगर ऐसा नहीं होता तो विगत दिनों जिला न्यायालय के जिला न्यायाधीश न्यायमूर्ति सुनील दत्त मिश्रा के न्यायलय में दी एन एण्ड पी कर्मचारी/पत्रकार यूनियन के वर्तमान कर्ताधर्ता हितचन्द्र झा को न्यायालय में उपस्थित होने का आदेश नहीं जारी किया जाता। उन्हें यह फरमान नहीं दिया जाता कि ‘दी एन एण्ड पी के तत्कालीन पत्रकारों, गैर-पत्रकारों, कर्मचारियों के जो भी बाकी-बकियौते हैं, उसका सम्पूर्ण दस्तावेज न्यायालय के सामने प्रस्तुत किया जाए। सूत्रों के अनुसार, प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों ने पाटलिपुत्र बिल्डर के सभी बैंक खातों में ‘दी एन एण्ड पी कर्मचारी/पत्रकार’ के बकाये भुगतान से सम्बंधित सभी आदान-प्रदान से सम्बंधित दस्तावेजों को देख चुकी है। अधिकारियों ने इस बात से भी आस्वस्त कर लिया है कि शर्तमाना के अनुसार जिस तल्ले और ऊपर के फ्लैटों की बिक्री से मिलने वाली राशि कर्मचारियों के भुगतान के निमित्त था, उन फ्लैटों की बिक्री के बाद आखिर पैसा किसने लिया, किसे भुगतान किया गया अथवा नहीं। 

वैसी स्थिति में, इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकत है कि “न्याय” और “कानून” के सम्मानार्थ तथा दी न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशन के सैकड़ों असहाय कर्मचारियों और उनके परिवारों के रक्षार्थ कुमार शुभेश्वर सिंह (अब दिवंगत) के दोनों पुत्र राजेश्वर सिंह तथा कपिलेश्वर सिंह, महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह की तीसरी और अंतिम जीवित पत्नी महारानी अधिरानी कामसुन्दरी – ये सभी महाराजा की सम्पत्तियों के हिस्सेदार हैं – को अपना ऐतिहासिक निर्णय देने से पूर्व न्यायालय में उपस्थित होने का आदेश अवश्य देंगे।सन 2002 के करारनामे के अनुसार किसी भी कर्मचारी का भुगतान बकाया नहीं रह पायेगा क्योंकि आर्यावर्त-इण्डियन नेशन भूखंड पर बनने वाली अट्टालिका के द्वितीय तल्ले और उसके ऊपर निर्मित क्षेत्र में 45 फीसदी क्षेत्र, जो मालिक का हिस्सा होगा, प्रतिभूति के रूप में सुरक्षित रखा गया था/है, ताकि सभी कर्मचारियों को जीवित अथवा मरणोपरांत बकाया राशि मिल सके।” लेकिन ऐसा हुआ नहीं। 

सूत्रों के अनुसार, मनी लाॅन्ड्रिंग के मामले में गिरफ्तार किए गए पाटलिपुत्र बिल्डर लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर अनिल कुमार प्रवर्तन निदेशालय के रिमांड पर है। अनिल कुमार को ईडी ने गिरफ्तार करने के बाद 8 सितंबर को विशेष अदालत में पेश किया था, जहां से न्यायिक हिरासत में लेने के बाद उसे फुलवारी जेल भेज दिया गया था। पाटलिपुत्र बिल्डर अनिल कुमार के खिलाफ धोखाधड़ी, जालसाजी, रंगदारी, आर्म्स एक्ट, हत्या के प्रयास के करीब एक दर्जन आपराधिक मामले दर्ज हैं। उनपर अवैध तरीके से करीब 12 करोड़ 61 लाख से ज्यादा की चल-अचल संपत्ति अर्जित करने का भी आराेप है। अनिल कुमार के खिलाफ 2014 में पीएमएलए यानी कि प्रोविजन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के अंतर्गत मामला दर्ज किया था। जिसकी जांच चल रही थी। वहीं पाटलिपुत्र ग्रुप ऑफ कंपनी के मालिक और बिल्डर अनिल कुमार सिंह के खिलाफ राजधानी पटना के गांधी मैदान, कोतवाली समेत कई थानों में मामले दर्ज है। ईडी की जांच में यह भी पता चला है कि अनिल कुमार सिंह के द्वारा ब्लैक मनी का काफी रोटेशन किया गया है। 

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आर्यावर्तइण्डियननेशन(डॉट)कॉम से बात करते हितचन्द्र झा कहते हैं: “दिनांक 31 मार्च, 2002 को दी न्यूज पेपर्स एंड पालिकेशन्स लिमिटेड के प्रबंधन, पाटलिपुत्रा बिल्डर्स प्राइवेट लिमिटेड, दी एन एंड पी कर्मचारी यूनियन, बिहार पत्रकार यूनियन के अधिकारियों के साथ  “मेमोरेंडम ऑफ़ अग्रीमेंट एंड सेटलमेंट” पर हस्ताक्षर हुआ। करारनामा चार पन्नों का था। प्रबंधन के तरफ से श्री एस एन दास, जो उस दिन निदेशक थे कंपनी के, श्री दिनेश्वर झा, मैनेजर; एम एम आचार्य, एक्टिंग सेक्रेटरी; श्री सी एस झा, एकाउंट्स ऑफिसर हस्ताक्षर किये और क्रेता पाटलिपुत्रा बिल्डर्स के तरफ से कंपनी के निदेशक श्री अनिल कुमार (स्वयं) और उनके एक प्रतिनिधि श्री आनंद शर्मा। दी न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशन लिमिटेड के कर्मचारी यूनियन के तरफ से थे श्री गिरीश चंद्र झा (अध्यक्ष), दिग्विजय कुमार सिन्हा (जेनेरल सेक्रेटरी), श्री एस एन विश्वकर्मा, जॉइंट सेक्रेटरी, श्री रमेश चंद्र झा, जॉइंट सेक्रेटरी और बिहार वर्किंग जर्नलिस्ट्स यूनियन के तरफ से हस्ताक्षर करता थे श्री शिवेंद्र नारायण सिंह (प्रेसिडेंट), श्री मिथिलेश मिश्रा (एग्जीक्यूटिव) ।”

ज्ञातव्य हो कि उस करारनामे पर कहीं भी संस्थान के स्वामी / भूखंड के स्वामी दिखाई नहीं दिए। लेकिन दस्तावेजों के आधार पर उक्त संस्थान दि न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशन्स लिमिटेड के शेयरों के बंटबारे में, दरभंगा राज की महिला लाभार्थियों की संख्या पुरुषों की तुलना में अधिक थी । महारानी अधिरानी कामसुन्दरी के साथ महिला लाभार्थियों की संख्या आठ थी, जो 11200 शेयरों की मालकिन थी (मूल्य: 1120000 रुपये); जबकि पुरुष लाभार्थियों की संख्या महज पांच ही थी और वे कुल 8800 शेयरों के साथ (मूल्य: 880000 रुपये) के स्वामी थे। अगर ये महिला लाभार्थीगण चाहती तो “इतिहास” लिख देती, परन्तु “चाहत ही नहीं” जगी। क्योंकि “शिक्षा की भूख” जरुरी है समाज में बदलाव के लिए। दृष्टान्त: अनपढ़, अशिक्षित परिवार में जन्म लेने के बाद भी शिक्षा की भूख “अहिल्या” को इतिहास में “अहिल्याबाई होल्कर” के नाम से स्वर्णाक्षरों में लिख दिया। अहिल्याबाई होल्कर का जन्म 1725 में है और उनकी मृत्यु 1795 में। यानी 226 वर्ष का इतिहास आज भारत के बच्चों के मुख पर है। जबकि राज दरभंगा की महिलाओं को महाराजाधिराज की मृत्यु के महज 60 वर्ष बाद ही कोई जानता तक नहीं। 

महाराजाधिराज की मृत्यु के बाद कलकत्ता उच्च न्यायालय की देख-रेख में जो भी फेमिली सेटेलमेंट हुआ, उसमें आर्यावर्त – इण्डियन नेशन – मिथिला मिहिर पत्र-पत्रिका के प्रकाशक कंपनी दि न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशन लिमिटेड के शेयरों के लाभार्थियों में महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चैरिटेबल ट्रस्ट को अगर हटा दें, तो महारानी अधिराणी कामसुन्दरी साहब के अलावे, सात महिला लाभार्थी थी। पुरुष लाभार्थियों की संख्या महिलाओं की तुलना में कम थी। इसी फैमिली सेटलमेंट के शेड्यूल iv के अनुसार न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशन्स लिमिटेड के 100 रुपये का 5000 शेयर दरभंगा राज के रेसिडुअरी एस्टेट चैरिटेबल कार्यों के लिए अपने पास रखा। कोई 20,000 शेयर अन्य लाभान्वित होने वाले लोगों द्वारा रखा गया – मसलन: 100 रुपये मूल्य का 7000 शेयर (रुपये 7,00,000 मूल्य का) महरानीअधिरानी कामसुन्दरी साहेबा को मिला।  राजेश्वर सिंह और कपिलेशर सिंह (पुत्र: कुमार शुभेश्वर सिंह) को 7000 शेयर, यानी रुपये 7,00,000 मूल्य का इन्हे मिला। महाराजा कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट को 5000 शेयर, यानी रुपये 5,00,000 का मिला। श्रीमती कात्यायनी देवी को 100 रुपये मूल्य का 600 शेयर, यानि 60000 मूल्य का मिला। इसी तरह श्रीमती दिब्यायानी देवी को भी 100 रुपये मूल्य का 600 शेयर, यानि 60000 मूल्य का मिला। रत्नेश्वर सिंह, रामेश्वर सिंह और राजनेश्वर सिंह को 100 रुपये मूल्य का 1800 शेयर, यानि 180000 मूल्य का मिला। जबकि नेत्रायणि देवी, चेतानी देवी, अनीता देवी और सुनीता देवी को 100 रुपये मूल्य का 3000 शेयर, यानि 3,00,000 मूल्य का मिला। यह सभी शेयर उन्हें इस शर्त पर दिया गया कि वे किसी भी परिस्थिति में अपने-अपने शेयर को किसी और के हाथ नहीं हस्तांतरित करेंगे, सिवाय फैमिली सेटलमेंट के लोगों के। 

दस्तावेज के अनुसार पुरुषों की कुल शेयरों की संख्या 8800 थी (मूल्य: 880000 रुपये) जबकि महिलाओं की कुल शेयरों की संख्या 11200 जिसका मूल्य 11200000 था। दरभंगा राज के इतिहास में यह भी दर्ज किया जायेगा कि  सर कामेश्वर सिंह द्वारा अपने मृत्यु के पूर्व जो भी वसीयतनामा बनाया गया, जिन-जिन लोगों को संपत्ति का हिस्सा मिला, किसी ने भी “ह्रदय से दी न्यूजपेपर्स एंड पब्लिकेशन्स लिमिटेड द्वारा प्रकाशित आर्यावर्त-इंडियन नेशन – मिथिला मिहिर अख़बारों और पत्रिका के भविष्य को ह्रदय से नहीं स्वीकारा?  महाराजाधिराज दिनांक 1 अक्टूबर, 1962 को मृत्यु को प्राप्त हुए। वे दुर्गापूजा के अवसर पर कलकत्ता से अपने राज दरभंगा आये थे। वे अपने निवास दरभंगा हाउस, मिड्लटन स्ट्रीट, कलकत्ता से अपने रेलवे सैलून से नरगोना स्थित अपने रेलवे टर्मिनल पर कुछ दिन पूर्व उतरे थे। सभी बातें सामान्य थी उस सुवह, लेकिन क्या हुआ, कैसे हुआ, क्यों हुआ जैसे अनेकानेक कारणों के बीच अपने सूट के बाथरूम के नहाने के टब में उनका जीवंत शरीर “पार्थिव” पाए गया । सर कामेश्वर सिंह की तीन पत्नियां थीं – महारानी राज लक्ष्मी, महारानी कामेश्वरी प्रिया और महारानी कामसुंदरी। महारानी कामेश्वरी प्रिय की मृत्यु आज़ाद भारत से पूर्व और अंग्रेज भारत छोड़ो आंदोलन के समय सं 1942 में हुई। महाराजाधिराज बहुत दुःखी थे उनकी मृत्यु के बाद, जैसा लोग कहते हैं। जिस सुबह महाराजाधिराज अंतिम सांस लिए, उसके बाद उनकी दोनों पत्नियां – महारानी राजलक्षी और महारानी कामसुन्दरी दाह संस्कार में उपस्थित थी, यह भी लोग कहते हैं। महारानी राजलक्ष्मी की मृत्यु सन 1976 में, यानि महाराजा की मृत्यु के 14 वर्ष बाद हुई और महारानी कामसुन्दरी आज भी जीवित हैं महाराजा के विधवा के रूप में।

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बहरहाल, करारनाम के तीसरे पृष्ठ के अंतिम पैरा में लिखा था : “”As the security for payment of dues of employees the built up area of 45% of the owner share from second floor onwards would lein at the rate of Rs 1000/- (One thousand) per square feet in favour of total employees/workers (past  and present) against their dues amount. In case of non-payment of dues of workmen / employees  space equal to dues at rate of Rs 1000/- (One thousand) per square feet would be given to concerned employees. The space of built-up area so kept as security will be exempted proportionally as the employees get their balance dues in instalments.” और अंत में लिखा था: “All parties having read understood the contents purport of this agreement and settlement and in their full sence have put their respective signature of this document as a token of their consent and commitment in presence of witnesses for future reference and needful.”

पिछले 25 फरबरी, 2021 को न्यायालय श्रम आयुक्त बिहार-सह-अपीलीय प्राधिकार, उपादान भुगतान अधिनियम 1972 के अंतर्गत एक आदेश जारी करता है। यह आदेश इस बात का प्रमाण है कि करारनामे का पूर्णतः पालन नहीं हुआ और इस आदेश की तारीख तक भी लोगों का बकाया राशि नहीं मिला है। अनिल कुमार (निदेशक) मेसर्स पाटलिपुत्र बिल्डर्स प्राईवेट लिमिटेड, महाराजा कामेश्वर काम्प्लेक्स, फ़्रेज़र रोड, पटना के द्वारा उप-श्रमायुक्त-सह-नियंत्रक प्राधिकार, उपादान भुगतान अधिनियम, 1972 के अंतर्गत पटना द्वारा जी ए वाद संख्या 03/2012 से 124 /2012 में दिनांक 24-07-2017 को पारित आदेश के विरुद्ध एक अपील दायर किया था। इस अपील में विजय कांत राय, पिता श्री बासुदेव राय (अर्चना काम्प्लेक्स, प्रिंटिंग प्रेस, जिला सुपौल) को प्रतिवादी बनाया गया था। 

अपील के अनुसार मेसर्स न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशन लिमिटेड की वित्तीय स्थिति खराब होने के बाद प्रबंधन द्वारा मेसर्स पाटलिपुत्र बिल्डर के साथ अपनी संपत्ति के बारे में समझौता किया गया था जिसके अनुसार पब्लिकेशन के बंद होने के बाद कर्मचारियों के देनदारियों का भुगतान मेसर्स पाटलिपुत्र बिल्डर द्वारा किया जायेगा। लेकिन पब्लिकेशन के बंद होने के बाद मेसर्स पाटलिपुत्र बिल्डर द्वारा कामगारों के बकाये राशि का भुगतान नहीं किया गया। बाद में, कामगारों के आवेदन पर उपादान भुगतान अधिनियम, 1972 के तहत कार्रवाई  प्रारम्भ की गयी एवं उक्त वाद में वादी कामगार श्री हितचन्द्र झा एवं अन्य 89 (नवासी) कामगारों के पक्ष में आदेश पारित करते हुए प्रबंधन को कुल 49 32 ३४२ /- रुपया भुगतान करने का आदेश दिया गया, जिसमें श्री विजय कान्त राय से सम्बंधित वाद संख्या 66/2012 में उपादान भुगतान हेतु आदेशित राशि 15 423 /- भी शामिल है। ज्ञातब्य हो कि मेसर्स पाटलिपुत्र बिल्डर द्वारा नियमानुसार श्रमायुक्त, बिहार-सह-अपीलीय प्राधिकार के न्यायालय में अपील ना करके सीधे माननीय पटना उच्च न्यायालय में सी डब्लू जे सी  संख्या 15986/2017 दायर किया गया जिसे दिनांक 29-03-2019 को आदेश पारित करते हुए माननीय उच्च न्यायालय द्वारा उपादान भुगतान अधिनियम, 1972 की धारा – 7 (7) के अनुसार अपीलीय प्राधिकार के समक्ष अपील दायर करने के आदेश निर्गत करते हुए निष्पादित कर दिया गया था।

हितचन्द्र झा कहते हैं: “मई 21, 2014 को कोतवाली थाने में जो आवेदन दिया गया उसमें दी न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशन के तरफ से जिन दो महानुभावों ने हस्ताक्षर किये उस प्राथमिकी पर, वे सभी इस बात की प्रतीक्षा कर रहे थे कि कब वह ऐतिहासिक अवसर आए जब न्यायालय में उपस्थित होकर समस्त बातों को न्यायमूर्ति के समक्ष प्रस्तुत कर सकूँ। जीवन के अंतिम वसंत में अगर सैकड़ों, हज़ारों परिवारों को न्याय मिल जाता है तो स्वयं को धन्य पाउँगा। 

थानाध्यक्ष कोतवाली, पटना के पास दर्ज प्राथमिकी में लिखा गया है कि : “महाशय, सेवा में निवेदन है कि हम दी न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशंस मिलिटेड, फ़्रेज़र रोड, पटना का दिनांक 15-09-2202 तक निदेशक (डाइरेक्टर) एवं कार्यकारी सचिव थे। इस कंपनी के द्वारा हिंदी दैनिक समाचार पात्र आर्यावर्त तथा अंग्रेजी दैनिक इण्डियन नेशन का प्रकाशन किया जाता था।  कंपनी की आर्थिक हालत बहुत ख़राब हो जाने के कारण कंपनी अपना काम बंद कर दी।  आपसी समझौता के तहत दिनांक 15 – 09 – 2002 को हम लोगों के साथ साथ सभी कर्मचारी कंपनी को इस्तीफा दे दिए।” 

प्राथमिकी में आगे लिखा है: “कर्मचारी का कानूनी बकाया राशि भुगतान के लिए दी न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशंस मिलिटेड एवं डेवेलपर्स कंपनी जिसका नाम पाटलिपुत्र बिल्डर्स प्राइवेट लिमिटेड, महाराजा कामेश्वर कॉम्प्लेक्स, फ़्रेज़र रोड पटना तथा जिसके मालिक अनिल कुमार, पिता स्वर्गीय छट्ठु चौधरी है, एक डेवलपमेंट अग्रीमेंट दिनांक 31 – 03 – 2002 को संपन्न हुआ तथा डेवलपमेंट अग्रीमेंट के आलोक में एक त्रिपक्षीय समझौता दिनांक 10-09-2002 को हुआ। त्रिपक्षीय समझौते के अनुसार कर्मचारी की बकाया राशि की पूर्ण भुगतान होने तक कंपनी के 45 प्रतिशत बिल्ट अप एरिया को बेचा नहीं जायेगा और उसे सेक्युरिटी के रूप में कर्मचारियों के नाम सुरक्षित रखा जायेगा।”

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प्राथमिकी के अनुसार, :”डेवेलपर अनिल कुमार द्वारा एक जाली कागज़ बनाया गया की दी न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशंस मिलिटेड के निदेशक मंडल की दिनांक 24 -12-2004 को एक बैठक हुयी जिसमें प्रस्ताव पारित कर अनिल कुमार का ऑफिस, फ्लेट, दूकान बेचने के लिए अधिकृत किया गया तथा इस निर्णय प्रस्ताव सम्बन्धी अधिकार पत्र को भूतपूर्व कार्यवाहक सचिव द्वारा तैयार किया गया है एवं इस जाली अधिकार पात्र के आधार पर अनिल कुमार द्वारा बेईमानी कर ऑफिस, दूकान, फ्लेट आदि बेच दिया गया एवं गरीब कर्मचारिओं का वेतन आदि माध का बकाया रकम अनिल कुमार द्वारा गबन कर लिया गया। हम कंपनी के निदेशक एवं कार्य वाहक सचिव अपने अपने पदों से  अन्य कर्मचारियों की तरह दिनक 10-09-2002  को त्रिपक्षीय समझौते के आलोक में त्याग पात्र दे दिए थे। मैं कार्यवाहक सचिव त्याग पात्र के बाद बोर्ड ऑफ़ डाइरेक्टर (दी न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशंस मिलिटेड) का ओरिजिनल मिनट बुक अनिल नंदन सिंह, डाइरेक्टर इंचार्ज को  सौंप दिया।” 

प्राथमिकी आगे कहता है: “मैं सर्वनारायण दास, भूतपूर्व निदेशक उक्त कथित बोर्ड ऑफ़ डिरेक्टर की बैठक के विषय में न कोई जानकारी थी, और न उपथित थे। उक्त त्रिपक्षीय समझौता में वर्णित है की कर्मचारी द्वारा अपनी बकाया राशि की प्रथम क़िस्त प्राप्त के बाद इस्तीफा दे दी जाएगी, तदनुकूल प्रथम क़िस्त प्राप्ति के बाद डिजनक 15-09-2002 को सभी कर्मचारियों द्वारा कंपनी को त्यागपत्र दे दी गयी थी। त्रिपक्षीय समझौता में वर्णित है की दी न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशंस मिलिटेड के नाम एक नया बैंक खाता खोला जायेगा, तदनुकूल पी एन बी बोरिंग रोड शाखा पटना में खाता नंबर 2910002100024908 खोला गया , साथ ही, अनिल कुमार द्वारा रकम की चार पोस्ट डेटेड चेक दी जाएगी जो उक्त खाते में जमा होगी और कम्चारी की भुगतान होगी। निवेदन यह है की वास्तव में अनिल कुमार द्वारा चार पोस्ट डेटेड चेक (कुल 5. 82 करोड़ ) दी न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशंस मिलिटेड के नाम कर्मचारियों के भुगतान हेतु जारी किया गया जो निम्न प्रकार है (IDBI Bank, Kashi Palace, Dak Bungalow Road, Ptna, cheque No 26444/26445/26446 and 26447 Dated: 07 04 2003 Amount: Rs 1,47,00,000 each तथा तत्कालीन यूनियन के प्रधान सचिव दिग्विजय कुमार सिन्हा, पिता – मोती लाल सिंह, सकीं बड़हिया आश्रम, शिव मार्किट लें, शेखपुरा, थान शास्त्री नगर, जिला पटना को दिया गया तथा वह चेक षड्यंत्र के तहत न बैंक में जमा हुआ और न कर्मचारियों को भुगतान हुआ।”

प्राथमिकी के अनुसार, “इस तरह चार झूठा पोस्ट डेटेड चेक जारी कर अनिल कुमार सभी कर्मचारियों को धोखा देकर उनसे त्याग पात्र प्राप्त कर लिया और इस तरह उनके द्वारा गरीब कर्मचारियों की पसीने की कमाई करोड़ों की राशि गबन कर लिया गया। इन तथ्यों से स्पष्ट है कि अनिल कुमार का शुरू से ही बेईमानी का इरादा था। अब अनिल कुमार का कहना है की वे कर्मचारियों को सीधे तौर पर प्रत्यक्ष भुगतान किये, जिस भुगतान की जांच माननीय उच्च न्यायालय के आदेश पर महालेखाकार, बिहार पटना द्वारा वर्तमान में की जा रही है।  जानकारी मिली है कि अनिल कुमार द्वारा समर्पित मनी रिसिप्ट रजिस्टर पर कर्मचारियों का जाली हस्ताक्षर है। महालेखाकार के अंकेक्षक एवं कर्मचारियों के बिच इन मुद्दों पर बातचीत हुई एवं पता चला की धोखाधड़ी एवं जालसाजी का मामला की जांच उनके द्वारा नहीं की जा सकती। जाली हस्ताक्षर या बनाबटी दस्तावेज की जांच पड़ताल  पुलिस का काम है और यह पुलिस ही कर सकती है।”

प्राथमिकी आगे कहता है: “मैं (भूतपूर्व कार्यवाहक सचिव) वर्षों से स्पाइनल कॉर्ड की बिमारी से पीड़ित होने के कारण घर में सिमित हूँ। वर्ष 2006 में लम्बर 4 और 5 का ऑपरेशन करना पड़ा था। मैं 60 प्रतिशत विकलांग हूँ। हमारा लाखों बकाया राशि की अनिल कुमार द्वारा बेईमानी कर ली गई। अनेक कर्मचारी दवा के आभाव में तथा अनेक राशन के आभाव में मर गए। कुछ कर्मचारी श्रम विभाग, माननीय उच्च न्यायालय, पी एफ कार्यालय आदि में वर्षों से चक्कर लगा रहे हैं, परिणाम स्वरुप मजबूर होकर हमे आज सहस करना पड़ा है। अतः प्रार्थना है कि गहरा 419 420 467 468 471 406 /34 आईपीसी एवं अन्य धरोपण के तहत एफ आई आर दर्ज कर अपराधियों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करने की कृपा की जाय। 

आपका विश्वासी 

1. सर्व नारायण दास 
भूतपूर्व निदेशक 
साकिन मिथिला कॉलोनी,
नासिरगंज थाना दानापुर जिला पटना 

2. मदन मोहन आचार्य 
भूतपूर्व कार्यवाहक सचिव 
मिथिला कालोनी रोड नंबर 5  
उत्तरी पटेल नगर 
थाना पाटलिपुत्र पटना – 24 
दिनांक 6-4-2014

गवाह:
हितचन्द्र झा 
दिनेश्वर झा 
शिवशंकर आचार्य 
चंद्रशेखर झा 
संजय कुमार झा 
शिवनाथ विश्वकर्मा 

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