कोई तो है जो मगध साम्राज्य में “नेपथ्य” से पाटलिपुत्र बिल्डर के मालिक का “नट-बोल्ट” कस रहा है

पाटलिपुत्र बिल्डर के मालिक अनिल कुमार (बीच) में

पटना : सरकार ‘सरकार’ होती हैं। व्याकरण में ‘सरकार’ शब्द को भले ‘सजीव’ नहीं माना जाए – ‘निर्जीव’ ही समझते आये हैं समाज के संभ्रात लोग बाग़ – लेकिन जिस दिन उस सरकार के अधीन कार्यरत महामानव, चाहे ‘अधिकारी’ हों या ‘राजनेता’ अपने-अपने ‘पुरुषत्व पर आ जाते हैं, तब पाटलिपुत्र बिल्डर के प्रबंध निदेशक अनिल कुमार जैसे लोगों को कानून के गिरफ़्त में नट-बोल्ट से कस दिया जाता है। अनिल कुमार, जो अब तक पटना के कोतवाली पुलिस या बिहार के खाकी वर्दीधारियों को दूर-दूर तक नहीं दिखाई दे रहे थे, अचानक दौड़ते-कूदते-फानते दिखाई दे रहे हैं। लगता है प्रदेश में कोई तो नेपथ्य में है जो पाटलिपुत्र बिल्डर के मालिक का नट-बोल्ट कस रहा है। 

अनिल कुमार कानून के सिकंजे में कैसे आये यह तो प्रदेश के बड़े-बड़े राजनीतिक विशेषज्ञ, आर्थिक सलाहकार बताएँगे; लेकिन यह बात तो पक्का है कि जीएसटी नहीं जमा करने के कारण इनकी गिरफ्तारी नहीं हुई है। लगता है अनिल कुमार शहर में रहने वाले भोले-भाले ‘बुजुर्गों’ को “बूढ़े” समझ बैठे। शायद वे नहीं पहचान पाए उन महारथियों को जिनकी तूती सत्रहवीं शताब्दी से मगध में बोली आती जा रही है, उन्हें “अंडरएस्टिमेट” नहीं करें। खैर, समय है और समय तो कोशी की धार जैसा अपना रास्ता बदलते रहता है। कभी दरिद्रों के घर तो कभी धनाढ्यों के घर। 

यह अलग बात है की दरभंगा के अंतिम राजा महाराजधिराज सर कामेश्वर सिंह द्वारा बिहार के लोगों को मुख में आवाज देने हेतु स्थापित आर्यावर्त-इण्डियन नेशन अखबार के सैकड़ों कर्मचारियों, हज़ारों परिवार के सदस्यों के पसीने की कमाई को बिना डकार लिए हजम करने वाला पाटलिपुत्र बिल्डर के मालिक में मन में उन कर्मचारियों के प्रति न कोई ‘वेदना’ है और ना ही ‘संवेदना’ । हो भी कैसे? समयांतराल संस्थान के मालिक बनने वाले भी तो “संवेदनशील” नहीं रहे कर्मचारियों के प्रति। वे न तो भूख से होने वाली पीड़ा को समझते और न दवा के अभाव में मृत्यु को प्राप्त करने वाले हतास लोगों और उनके परिवारों की पीड़ा को । अगर ऐसा होता तो पटना के कोतवाली थाना के अधिकारी, पटना के शीर्ष पुलिस अधिकारी, सरकारी विभाग के हुकुम की सहायता से, प्रदेश के मुखिया की मदद से थाना में दर्ज, न्यायलय द्वारा पारित आदेश और कुर्की जब्ती कर पाटलिपुत्र बिल्डर के स्वामी को डाकबंगला चौराहे पर ले आते वर्षों पहले – लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 

लेकिन बिहार सरकार की बात, केंद्र सरकार की बात अलग है। अनिल कुमार तनिक “हैंकरी” दिखाए, तत्काल गिरफ्तार हुए, न्यायालय में पेशगी हुई और न्यायिक रिमांड पर फुलबारी जेल में दाखिला लिए। सरकार के ख़जाने की बात थी। खजाने में ‘अपेक्षा’ से कम राशि का आगमन हुआ, पाटलिपुत्र बिल्डर के प्रबंध निदेशक के गर्दन पर सरकार की हाथ पहुँच गई। लेकिन वही हाथ मुद्दत से अनिल कुमार के गर्दन तक नहीं पहुंची थी जहाँ तक दी न्यूजपेपर्स एंड पब्लिकेशंन लिमिटेड के सैकड़ों-हज़ारों हतास, निरीह, निर्धन कर्मचारियों के अर्जित राशियों का सवाल है, जिसे अनिल कुमार ने पचा लिया है। 

सूत्रों के अनुसार अनिल कुमार के खिलाफ चल रहे करोड़ों रुपये हेराफेरी करने का मामला प्रवर्तन निदेशालय के आर्थिक अपराध ईकाई को सौंपा गया था। जांच प्रारम्भ हुई और अनिल सिंह के खिलाफ पटना के विभिन्न थानों में 10 से अधिक मामले दर्ज मिली। यह भी जानकारी हुई कि 2014 से 2016 के बीच निदेशक पर पैसे हड़परने के 6 से अधिक मामले दर्ज हो चुके है, करीब 10 करोड़ का घोटाला भी किया है। वैसे सूत्रों के अनुसार अगर अनिल सिंह के सारे आपराधिक मामले की गंभीरता से जांच की तो कई जांच अधिकारी पर भी गाज गिर सकती है। वर्ष 2015 में स्थानीय प्राधिकार क्षेत्र भोजपुर-बक्सर से एमएलसी का निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले अनिल सिंह ने 18 जून 2015 को दिए गए अपने चुनावी शपथ पत्र में कई्र गलत जानकारियां चुनाव आयोग को तो दी ही कई तथ्य और सत्य को भी छुपाया है। शपथ पत्र में अनिल सिंह ने तब अपने उपर कुल 14 आपराधिक मामले दर्ज होने का शपथ दायर किया। इनमें चार मामले का विवरण तो है बाकी 10 मामलों में न तो कांड संख्या, न ही थाना का नाम और नही किसी कंप्लेंट केस का पूर्ण ब्योरा है। जबकि सत्यता यह है कि अनिल सिंह पर इससे अधिक और कई अन्य गंभीर मामले हैं जिन्हें शपथ पत्र में छुपाया गया।

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सूत्रों के अनुसार, यह कहा जा रहा है कि अनिल सिंह जीएसटी नियम के लागु होने के बाद से अभी तक एक भी राशि इस लेखा के तहत सरकारी खजाने में नहीं जमा किया है। यह भी कहा जा रहा है कि उनके द्वारा संचालित व्यवसायों में केत्रों से/ सेवा लेने वालों से  जीएसटी की वसूली तो होती है, परन्तु सर्कार को मिलने वाली राशि नहीं मिल पाती है।  यानी ‘टैक्स’ की चोरी और रह राशि कोई 7.5 करोड़ तक हो सकती है। पैसे लेने के क्रम में दस्तावेजों में वे इस मद का इंट्री तो होता था, लेकिन दिखाई कहीं नहीं देता था। 
 
उधर, एक खबर यह भी है कि “आर्यन” टीवी चैनल के मालिक भी अनिल सिंह ही हैं। पाटलिपुत्र बिल्डर सहित कई कंपनियां भी है इनके नाम से। कुछ दिन पहले आर्यन टीवी पर एक खबर चला  ‘नीतीश का मीडिया मंत्र।’ आधे घंटे तक प्रसारित होने वाले इस समाचार में नीतीश और उनकी सरकार की जमकर बखिया उधेड़ी गई। राजनीतिक विशेषज्ञों को यह बात अब तक समझ नहीं आया है कि आखिर कल तक प्रदेश के मुख्यमंत्री के करीबी माने जानेवाले अनिल सिंह को अचानक नीतीश का मीडिया मंत्र के जाप की जरुरत क्यों पड़ ? 

एक खबर के अनुसार, पटना में एक पुराने व्यवसायी हैं डी पी साबू। जयपुर के रहने वाले डीपी साबू बिहार के सबसे पुराने व्यवसायी माने जाते हैं। पटना के एक्जीविशन रोड में होटल रिपब्लिक और लॉली सेन एंड कंपनी के नाम से डीपी साबू की महेन्द्रा की एजेंसी हुआ करती थी। लालू-राबड़ी शासन काल में दबंग नेताओं से उबे डीपी साबू ने महेन्द्रा की एजेंसी बंद कर दी। इनकी एजेंसी के बगल में ही डीपी साबू का साबू कांपलेक्स नाम से एक अपार्टमेंट है आज से कुछ वर्ष पूर्व पाटलिपुत्र बिल्डर के मालिक अनिल सिंह ने साबू कांपलेक्स में तीन फ्लोर बनाने के लिए डीपी साबू से एग्रीमेंट किया जिसके एवज में उसे डीपी साबू को एक भारी भरकम राशि देनी थी। इसके अलावा अनिल सिंह ने इसी काम्पलेक्स में अपना कार्यालय खोलने के लिए डीपी साबू से किराए पर एक फ्लैट लिया। एग्रीमेंट के अनुसार डीपी साबू को पहली किश्त के रुप में पांच-पांच लाख के दो चेक दिए दोनों चेक डिजानर हो गए। जब डीपी साबू ने उसपर दबाब डाला तो उसने उनका वह फ्लैट भी कब्जा कर लिया जिसे उसने अपने कार्यालय के लिए किराए पर लिया था। बाद में उस फ्लैट को भी अनिल सिंह ने किराए पर लगा दिया। सरकारी जात से आने वाले अनिल सिंह के विरुद्ध डीपी साबू ने मुख्यमंत्री से लेकर डीजीपी तक गुहार लगाया पर अनिल सिंह के विरुद्ध कभी कार्रवाई नहीं हुई। कहा जाता है कि अनिल सिंह के टीवी चैनल को सरकारी विज्ञापन नहीं मिल रहा है, वे सरकार के खिलाफ हो गए। दस वर्ष पूर्व तक अनिल सिंह के पास क्या था और आज क्या है और कहां व कैसे है इसकी अगर जांच हों तो बहुत बातें सामने आएगी। 

बहरहाल, पटना समाहरणालय से न्यायालय नीलाम पत्र प्राधिकारी-सह-जिला पंचायत राज पदाधिकारी के कार्यालय से ज्ञापांक संख्या 193 दिनांक 16-9-2020 को बिहार के पुलिस महानिदेशक को, पटना के वरीय पुलिस अधीक्षक को और थाना अध्यक्ष, कोतवाली को “अतिसंवेदनशील”पताखे के तहत एक पत्र प्रेषित किया जाता था । पत्र का विषय था पाटलिपुत्रा  बिल्डर्स प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक की गिरफ्तारी और कुर्क वारंट का क्रियान्वयन।

पत्र में लिखा जाता है “विदित हो कि इस न्यायालय द्वारा लगातार स्मरित किया जाता रहा है, परन्तु थानाध्यक्ष प्रतिवेदन देने  असमर्थ रहे हैं।  जिससे उक्त वाद में प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। जिसके कारण क्षुब्ध होकर लेनदार की ओर से सुनील कुमार झा के द्वारा भारत सरकार के केंद्रीय कृत लोक शिकायत निवारण एवं अनुश्रवण व्यवस्था के अधीन प्राप्त आवेदन इस न्यायालय को कार्रवाई हेतु प्राप्त हुयी है।  जिसमें न्यायालय को उक्त मामले की जानकारी विधिवत अभिलेखों का कार्रवाई से सम्बंधित प्रतिवेदन भेजना है। अतः अनुरूष है कि उक्त मामले में इस न्यायालय से निर्गत वारंट को शीघ्र कार्यान्वयन प्रतिवेदन हेतु सम्बंधित पुलिस पदाधिकारी को आदेश देने की कृपा की जाए ताकि देनदार की राशि वसूली की जा सके एवं भारत सरकार के  केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण एवं अनुश्रवण व्यवस्था को प्रतिवेदन समर्पित किया जा सके।

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लेकिन सवाल लगभग साढ़े पांच करोड़ से भी ऊपर है। अब इतनी बड़ी राशि की वसूली, वह भी पटना के फ़्रेज़र रोड के बीचोबीच महाराजा दरभंगा की ऐतिहासिक”करारनामे के अनुसार बिकी हुयी संपत्ति आर्यावर्त – इण्डियन नेशन – मिथिला मिहिर समाचार पात्र/पत्रिका समूह के प्रकाशक दी न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशन्स लिमिटेड”के कर्मचारियों द्वारा, जिसकी स्थिति सन 1998 में हर्मेश मल्होत्रा द्वारा निर्देशितगोविंदा, रवीना टंडन, कादरखान, जॉनी लिवर, असरानी और प्रेम चोपड़ा द्वारा अभिनीत”दूल्हे राजा” के डायलॉग   ‘नंगा नहाएगा क्या और निचोड़ेगा क्या’जैसा है।  ऐसी स्थिति में कागज़ पर जारी फरमान का हश्र ऐसा ही होता है। कोई नौमहीने में अभी तक पटना के कोतवाली पुलिस द्वारा नीलाम वाद संख्या 728 / 2017 कामगार हितचन्द्र झा एवं अन्य कुर्क वारणतम एवं गिरफ्तारी का क्रियान्वयन नहीं हो पाया। पटना पुलिस को मेसर्स पाटलिपुत्रा बिल्डर्स के निदेशक अनिल कुमार को गिरफ्तार करना है और उनकी संपत्ति को को कुर्क करना है ताकि करारनामे के अनुसार बंद दी न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशन लिमिटेड के कर्मचारियों का बकाया भुगतान किया जा सके। 

इससे पहले, एन एंड पी कर्मचारी यूनियन द्वारा पटना के वरीय पुलिस अधीक्षक को लिखा गया यह पत्र एक और ज्वलंत दृष्टान्त है।

यूनियन ने विषय में लिखा है: अनिल कुमार, प्रबंध निदेशक, पाटलिपुत्र बिल्डर्स लिमिटेड, महाराजा कॉम्प्लेक्स, फ़्रेज़र रोड, पटना के काली-करतूतों एवं धोखाधड़ी के सम्बन्ध  में।”

पत्र में लिखा गया है कि: “उक्त बिल्डर एवं  एन एंड पी कर्मचारी यूनियन और प्रबंधन के बीच एक त्रिपक्षिति समझौता हुआ जिसमें कर्मचारियों का वेतन, ग्रेच्युटी एवं बोनस आदि के बकाया रकम 8.50 करोड़ बिल्डर देनदार है।
पूर्ण भुगतान होने तक उक्त संपत्ति कर्मचारी के नाम सुरक्षित / गिरवी है जो समझौता के पैरा न० 2, 9 एवं 12 में उल्लिखित है। बिल्डर आंशिक भुगतान करने के बाद 4 पोस्ट-डेटेड चेक, जो कुल 5.82 करोड़ का जारी किया लेकिन षड्यंत्र एवं धोखाधड़ी  के तहत पैसा भुगतान नहीं किया। इस सम्बन्ध में यूनियन द्वारा श्रम विभाग, नीलम पत्र पदाधिकारी, पटना एवं माननीय पटना उच्च न्यायालय में काफी दिनों से मुकदमा लड़ रहा है,और बिल्डर के विरुद्ध जब्ती-कुर्की एवं वारंट भी जारी हो चूका है, लेकिन  बिल्डर  अपने धन-बल एवं आर्यन न्यूज चैनेल के बल पर मामला दबाने में सक्षम रहा है।”

आर्यावर्तइण्डियननेशन(डॉट)कॉम से बात करते हुए हितचन्द्र झा कहते हैं: विगत 18 वर्षों में कंपनी के कर्मचारी यूनियन के अनेकानेक नेताओं से लेकर, बिहार पत्रकार यूनियनों के नेताओ तक सबों ने करारनामे के अनुसार 8.50 करोड़ रुपये खरीदार से लेकर, एक-एक कर्मचारियों को एक-एक बकाया रूपया का भुगतान करना चाहता था। समयांतराल, अनेकानेक लोग, चाहे श्रमिकों के तरफ से आवाज उठा रहे हों या पत्रकारों के तरफ से, इस आंदोलन से अपनी दूरी बनाते गए। यह  दूरियां  क्यों  बनी,  किस परिस्थितियों में वे अपने को कर्मचारियों के हितों के लिए लड़ाई छोड़कर अलग हो गए, यह तो वही जानते हैं। इन वर्षों में अनेकानेक परिवार के मुखिया, परिवार के सदस्य मृत्यु को प्राप्त किये। अनेकानेक परिवार टूट गया। लेकिन लोगों ने मुड़कर पूछा भी नहीं। दी न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशन / भू स्वामी तो एक बार भी पलटकर नहीं देखा उन मजदूरों को जो जिसने दरभंगा राज के लिए, महाराजाओं के लिए, इस संस्थान के अध्यक्ष-सह-प्रबंध निदेशक दिवंगत शुभेश्वर सिंह के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिए।”

हितचन्द्र झा आगे कहते हैं: ” परन्तु आज मैं अपने कुछ साथियों के साथ इस लड़ाई को जारी रखे हुए हैं।  जब तक हम जीवित रहेंगे तब तक हमारी कोशिश होगी कि कर्मचारियों का बकाया राशि प्राप्त हो जाय।  करारनामे के अनुसार जो राशि तय थी – चाहे बैंक का हो अथवा कर्मचारियों का – उसमें से महज तीन करोड़ रुपये के आसपास क्रेता कंपनी ने भुगतान किया है।

सेवा में,

थानाध्यक्ष महोदय,
थाना कोतवाली, जिला पटना।

महाशय,

सेवा में निवेदन है की:

हम दी न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशंस मिलिटेड, फ़्रेज़र रोड, पटना का दिनांक 15-09-2202 तक निदेशक (डाइरेक्टर) एवं कार्यकारी सचिव थे। इस कंपनी के द्वारा हिंदी दैनिक समाचार पात्र आर्यावर्त तथा अंग्रेजी दैनिक इण्डियन नेशन का प्रकाशन किया जाता था। कंपनी की आर्थिक हालत बहुत ख़राब हो जाने के कारण कंपनी अपना काम बंद कर दी।  आपसी समझौता के तहत दिनांक 15 – 09 – 2002 को हम लोगों के साथ साथ सभी कर्मचारी कंपनी को इस्तीफा दे दिए।

कर्मचारी का कानूनी बकाया राशि भुगतान के लिए दी न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशंस मिलिटेड एवं डेवेलपर्स कंपनी जिसका नाम पाटलिपुत्र बिल्डर्स प्राइवेट लिमिटेड, महाराजा कामेश्वर कॉम्प्लेक्स, फ़्रेज़र रोड पटना तथा जिसके मालिक अनिल कुमार, पिता स्वर्गीय छट्ठु चौधरी है, एक डेवलपमेंट अग्रीमेंट दिनांक 31 – 03 – 2002 को संपन्न हुआ तथा डेवलपमेंट अग्रीमेंट के आलोक में एक त्रिपक्षीय समझौता दिनांक 10-09-2002 को हुआ।

त्रिपक्षीय समझौते के अनुसार कर्मचारी की बकाया राशि की पूर्ण भुगतान होने तक कंपनी के 45 प्रतिशत बिल्ट अप एरिया को बेचा नहीं जायेगा और उसे सेक्युरिटी के रूप में कर्मचारियों के नाम सुरक्षित रखा जायेगा।

डेवेलपर अनिल कुमार द्वारा एक जाली कागज़ बनाया गया कीदी न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशंस मिलिटेड के निदेशक मंडल की दिनांक 24 -12-2004 कोएक बैठक हुयी जिसमें प्रस्ताव पारित कर अनिल कुमार का ऑफिस, फ्लेट, दूकान बेचने केलिए अधिकृत किया गया तथा इस निर्णय प्रस्ताव सम्बन्धी अधिकार पत्र को भूतपूर्व कार्यवाहक सचिव द्वारा तैयार किया गया है एवं इस जाली अधिकार पात्र के आधार पर अनिल कुमार द्वारा बेईमानी कर ऑफिस, दूकान, फ्लेट आदि बेच दिया गया एवं गरीब कर्मचारिओं का वेतन आदि माध का बकाया रकम अनिल कुमार द्वारा गबन कर लिया गया।

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हम कंपनी के निदेशक एवं कार्य वाहक सचिव अपने अपने पदों से  अन्य कर्मचारियों की तरह दिनक 10-09-2002  को त्रिपक्षीय समझौते के आलोक में त्याग पात्र दे दिए थे। मैं कार्यवाहक सचिव त्याग पात्र के बाद बोर्ड ऑफ़ डाइरेक्टर (दी न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशंस मिलिटेड) का ओरिजिनल मिनट बुक अनिल नंदन सिंह, डाइरेक्टर इंचार्ज को  सौंप दिया।

मैं सर्वनारायण दास, भूतपूर्व निदेशक उक्त कथित बोर्ड ऑफ़ डिरेक्टर की बैठक के विषय में न कोई जानकारी थी, और न उपथित थे।

उक्त त्रिपक्षीय समझौता में वर्णित है की कर्मचारी द्वारा अपनी बकाया राशि की प्रथम क़िस्त प्राप्त के बाद इस्तीफा दे दी जाएगी,तदनुकूल प्रथम क़िस्त प्राप्ति के बाद डिजनक 15-09-2002 को सभी कर्मचारियों द्वाराकंपनी को त्यागपत्र दे दी गयी थी।

त्रिपक्षीय समझौता में वर्णित है की दी न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशंस मिलिटेड केनाम एक नया बैंक खाता खोला जायेगा, तदनुकूल पी एन बी बोरिंग रोड शाखा पटना में खाता नंबर 2910002100024908 खोला गया , साथ ही, अनिल कुमार द्वारा रकम की चार पोस्ट डेटेड चेक दी जाएगी जो उक्त खाते में जमा होगी और कम्चारी की भुगतान होगी।

निवेदन यह है की वास्तव में अनिल कुमार द्वारा चार पोस्ट डेटेड चेक (कुल 5. 82 करोड़ ) दी न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशंस मिलिटेड के नाम कर्मचारियों के भुगतान हेतु जारी किया गया जो निम्न प्रकार है (IDBI Bank, KashiPalace, Dak Bungalow Road, Ptna, cheque No 26444/26445/26446 and 26447 Dated:07 04 2003 Amount: Rs 1,47,00,000 each

तथा तत्कालीन यूनियन के प्रधान सचिव दिग्विजय कुमार सिन्हा, पिता – मोती लाल सिंह, सकीं बड़हिया आश्रम, शिव मार्किट लें, शेखपुरा, थान शास्त्री नगर, जिला पटना को दिया गया तथा वह चेक षड्यंत्र के तहत न बैंक में जमा हुआ और न कर्मचारियों को भुगतान हुआ।

इस तरह चार झूठा पोस्ट डेटेड चेक जारी कर अनिल कुमार सभी कर्मचारियों को धोखा देकर उनसे त्याग पात्र प्राप्त कर लिया और इस तरह उनके द्वारा गरीब कर्मचारियों की पसीने की कमाई करोड़ों की राशि गबन कर लिया गया।

इन तथ्यों से स्पष्ट है कि अनिल कुमार का शुरू से ही बेईमानी का इरादा था। अब अनिल कुमार का कहना है की वे कर्मचारियों को सीधे तौर पर प्रत्यक्ष भुगतान किये, जिस भुगतान की जांच माननीय उच्च न्यायालय के आदेश पर महालेखाकार, बिहार पटना द्वारा वर्तमान में की जा रही है।  जानकारी मिली है कि अनिल कुमार द्वारा समर्पित मनी रिसिप्ट रजिस्टर पर कर्मचारियों का जाली हस्ताक्षर है।

महालेखाकार के अंकेक्षक एवं कर्मचारियों के बिच इन मुद्दों पर बातचीत हुई एवं पता चला की धोखाधड़ी एवं जालसाजी का मामला की जांच उनके द्वारा नहीं की जा सकती। जाली हस्ताक्षर या बनाबटी दस्तावेज की जांच पड़ताल  पुलिस का काम है और यह पुलिस ही करसकती है।

मैं (भूतपूर्व कार्यवाहक सचिव) वर्षों से स्पाइनल कॉर्ड की बिमारी से पीड़ित होनेके कारण घर में सिमित हूँ। वर्ष 2006 में लम्बर 4 और 5 का ऑपरेशन करना पड़ा था। मैं60 प्रतिशत विकलांग हूँ। हमारा लाखों बकाया राशि की अनिल कुमार द्वारा बेईमानी करली गई। अनेक कर्मचारी दवा के आभाव में तथा अनेक राशन के आभाव में मर गए। कुछकर्मचारी श्रम विभाग, माननीय उच्च न्यायालय, पी एफ कार्यालय आदि में वर्षों सेचक्कर लगा रहे हैं, परिणाम स्वरुप मजबूर होकर हमे आज सहस करना पड़ा है।

अतः प्रार्थना है कि गहरा 419 420 467 468 471 406 /34 आईपीसी एवं अन्य धरोपण के तहत एफ आई आर दर्ज कर अपराधियों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करने की कृपा की जाय।

आपका विश्वासी

1. सर्व नारायण दास
भूतपूर्व निदेशक
साकिन मिथिला कॉलोनी,
नासिरगंज थाना
दानापुर जिला पटना

2. मदन मोहन आचार्य
भूतपूर्व कार्यवाहक सचिव
मिथिला कालोनी
रोड नंबर 5
उत्तरी पटेल नगर
थाना पाटलिपुत्र
पटना -24
दिनांक6-4-2014

गवाह:
हितचन्द्र झा
दिनेश्वर झा
शिवशंकर आचार्य
चंद्रशेखर झा
संजय कुमार झा
शिवनाथ विश्वकर्मा

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