पुरुष होते हुए भी बच्चा बाबू “बिहार के सबरी” थे, सीता के गाँव से लेकर रेणु के गाँव तक के लोगों को गंगा पार कराते थे, जहाज का वजन देखकर 

बच्चा बाबू का जहाज

बहुत याद आ रहे हैं बच्चा बाबू, उनका जहाज, गंगा नदी, महेन्दू घाट, पहलेजा घाट। विगत दिनों जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनारस में एमवी गंगा विलास क्रूज को हरी झंडी दिखाकर यात्रा प्रारम्भ कराये, पटना के महेन्द्रू घाट से पहलेजा घाट और भागलपुर में बरारी से सुल्तानगंज और गंगा के कई स्थानों पर इस पार से उस पार आवागमन करने वाला उनका पानी वाला जहाज बहुत याद आ रहा है। अगर बच्चा बाबू उस दिन जानते कि आने वाले समय में देश, प्रदेश के राजनीतिक नेता गण मतदाताओं के मतों को अपनी-अपनी झोली में डलबाने के लिए, अपने हितैषी व्यापारियों को लाभ दिलाने के लिए गंगा नदी के पानी को भी दो फांक में बाँट कर भोजनालय, मदिरालय आदि उपलब्ध कराएँगे, रेस्तरां बनबायेंगे तो बच्चा बाबू में किस बात की किल्लत थी – वे भी चला सकते थे। वे तो पुरुष होते हुए भी बिहार के लिए “सबरी” थे जो उत्तर बिहार और सीता की जन्मभूमि जनकपुर – मिथिलांचल से आने वाले प्रत्येक महिला-पुरुष को गंगा पार कर मगध और अयोध्या की ओर यात्रा करने के लिए उन्मुख करते थे। 

तत्कालीन नेता लोग भी ‘कमाने के फिराक’ में गोरख धंधा करना प्रारम्भ कर ही दिए थे। बिहार में “माफिया” शब्द का अभ्युदय हो गया था। ‘सहकारिता माफिया’, ‘कोयला माफिया’, ‘बालू माफिया’, ‘शिक्षा माफिया’ तत्कालीन राजनीतिक व्यवस्था के तथाकथित सफेदपोश लोगों के सहयोग से अविभाजित बिहार में, खासकर मगध में सर उठाने लगे थे। यह अलग बात थी की बिहार ही नहीं, भारतीय आर्थिक बाजार में विदेशी मुद्राएं, मसलन ‘डालर’, ‘पाउंड्स’ का गर्दन भारतीय मुद्राओं के सामने साढ़े-सात डिग्री और उससे भी कम उठ पाता था। 

बात साठ और सत्तर की दशक के बीच का है। पटना के डाकबंगला चौराहे पर अमेरिका का एक डॉलर प्राप्त करने के लिए साढ़े-सात रुपया देते थे लोग बाग़ । उससे पहले तो और भी कम। जब अमेरिका के डालर का मूल्य भारतीय मौद्रिक और आर्थिक बाजार में उतना कम था तो अमेरिका के लोगों का क्या कीमत होगा, आप अंदाजा लगा लें। यही कारण है कि उन दिनों बिहार क्या, भारत के किसी भी राज्य से भारतीयों का अमेरिका या विदेश जाने की बात, रहने की बात सोचने वालों की संख्या भी कम ही थी। उधर जैसे जैसे भारतीय आर्थिक बाजार में अमेरिका का डॉलर का मूल्य बढ़ता गया, भारत के लोगों की मानसिकता और भारतीय मुद्रा का मोल भी लुढ़कता गया, गिरता गया। आज जिस परिवार के लोग अमेरिका, लन्दन, फ़्रांस में रहते हैं वह परिवार समाज में “संभ्रांत” माना जाता है। यह लोगों की सोच है। खैर। 

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उन दिनों प्रदेश के मुख्यमंत्री के साथ-साथ घुटना कद के नेता से आदम कद के नेता तक, कागज पर छपे गांधी की तस्वीर वाले रंग बिरंगे कागज से अपने-अपने विधान सभा क्षेत्रों में, लोकसभा क्षेत्रों में खेत खलिहान से लेकर शहरों में, मेट्रोपोलिटन, कॉस्मोपॉलिटन शहरों में अट्टालिकाएं खरीदना प्रारम्भ कर दिए थे। हाँ, उन दिनों ‘मॉल’ के बारे में सोच जागृत नहीं हुआ था, अतः दूकान खरीदकर आत्म संतुष्टि करना प्रारम्भ कर दिए थे। काश बच्चा बाबू को कोई ज्ञान दिया होता कि बच्चा बाबू यह एक महत्वपूर्ण व्यवसाय हो सकता है। शनिच्चर और इतबार  को कम से कम पटना से भागलपुर तक बिहार के रईसों को गंगा में स्नान के साथ साथ स्वादिष्ट व्यंजन परोस कर गांधीजी को बटोरा जा सकता है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि इस बात का ज्ञान न मगध वाले दे सके, न मिथिला वाले दे सके और न ही बाढ़-बरहिया-मोकामा-बख्तियारपुर के रास्ते क्यूल-भागलपुर में रहने वाले ही। 

बच्चा बाबू का जहाज

महेंद्रू घाट से मेरा ताल्लुक साठ के दशक के उत्तरार्ध से रहा जब बाबूजी के साथ नित्य महेन्द्रू घाट जाया करते थे। बाबूजी उन दिनों पटना के नोवेल्टी एंड कंपनी प्रकाशक और पुस्तक विक्रेता की दूकान में एक कर्मी थे। उत्तर बिहार के किसी भी पुस्तक विक्रेता की दुकानों में किताबों की उपलब्धि का एक मात्र रास्ता था महेंद्रू घाट के रास्ते बच्चा बाबू का जहाज था।  बाबूजी नित्य किताबों का बंडल लेकर यहाँ पार्सल करने आते थे। बहुत बड़ा अथवा अधिक बण्डल होने पर तो रिक्सा पर आते थे, लेकिन बीस-पच्चीस किलो का बण्डल बाबूजी अपने कंधे पर उठाकर लाते थे। वैसे उन दिनों नोवेल्टी से महेन्द्रू घाट का किराया 20 पैसे से 25 पैसा होता था, लेकिन उस पच्चीस पैसे की कीमत हम लोगों की जिंदगी को संवारने के लिए बहुत महत्वपूर्ण था। 

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बाबूजी मेहनतकश थे। वे हमेशा चाहते थे कि मेहनत से जितना भी द्रव्य एकत्रित हो सके, करें ताकि अपने बाल-बच्चों को दो वक्त की रोटी देने में कोई तकलीफ नहीं हो। नोवेल्टी से महेंद्रू घाट पहुँचते बाबूजी कृष्ण जैसा ज्ञान देते रहते थे और मैं अर्जुन की तरह सुनता रहता था, ग्राह्य करता रहता था। मैं उनके पीछे-पीछे उनके कुर्ता अथवा धोती का एक खूंट पकड़े ब्रह्माण्ड द्वारा जमीन पर खींची जाने वाली रेखाओं पर चलना सीख रहे थे। वे हमेशा पढ़ने के पक्षधर थे। आज तो जैसे अमरीका के लोगों को भारत के लोग टकटकी निगाह से 180 डिग्री कोण पर देखते हैं, भारतीय बाज़ार में एक डालर प्राप्त करने के लिए भारत के लोगों को 81.78 रुपये देने पड़ते हैं। 

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार दीपक कोचगवे कहते हैं: “70 के दशक से मैंने भी बच्चा बाबू के लोकप्रिय जहाज का आनंद उठाया है। पूर्णिया अपनी दीदी के यहां से पटना जब भी आना होता था तब पहलेजा घाट पर स्टीमर पर सवार होकर महेंद्रु घाट उतरता था और पटना पहुंच जाता था। यह सिलसिला काफी दिनों तक चलता। उस समय गांधी सेतु का निर्माण शुरू हुआ था और  यात्रियों के लिए यह महत्वपूर्ण साधन था। जब मेरा नाता भागलपुर से हुआ तब भी उस पार से आने का साधन बच्चा बाबू का जहाज था। पूर्णिया से पहले बस से नवगछिया बस से और फिर वहां से छोटी लाइन की रेल गाड़ी से लत्तीपुर होते हुए घाट पर पहुंच कर बरारी घाट पहुंच जाता था। यह जहाज काफी लोकप्रिय था। वाहनों को लादने के लिए नंबर लगाया जाता था। भागलपुर में यह सेवा विक्रमशिला सेतु बनने तक जारी रहा। यह जहाज नेपाल एवं सीमांचल के लोगों को भागलपुर से जोड़ता था। व्यापारियों के लिए यह जहाज काफी लोकप्रिय था। सन् 2000 तक इस जहाज की तूती बोलती थी। इस जहाज में दो ट्रक,चार-पांच चारपहिया, मवेशी तथा अनाज लाद दिए जाते थे। मैंने इस जहाज का खूब आनंद लिया है।”

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एमवी गंगा विलास

बहरहाल, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी विगत 13 जनवरी को वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से वाराणसी में दुनिया के सबसे लम्बे रिवर क्रूज-एमवी गंगा विलास को झंडी दिखाकर रवाना किया और टेंट सिटी का उद्घाटन किया ।उन्होंने 1000 करोड़ रुपये से अधिक की कई अन्य अंतर्देशीय जलमार्ग परियोजनाओं का उद्घाटन औरशिलान्यास भी किया। रिवर क्रूज टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री के प्रयास के अनुरूप, इस सेवा के लॉन्च के साथ रिवर क्रूज की विशाल अप्रयुक्त क्षमता का लाभ मिलना शुरू हो जाएगा और यह भारत के लिए रिवर क्रूज टूरिज्म के एक नए युग का सूत्रपात करेगी। 

उन्होंने कहा कि काशी से डिब्रूगढ़ तक के सबसे लंबे रिवर क्रूज को आज झंडी दिखाई जा रही है, जो विश्वपर्यटन मानचित्र पर उत्तर भारत के पर्यटन स्थलों को सामने लाएगा । प्रत्येक भारतीय के जीवन में गंगा नदी की केंद्रीय भूमिका के बारे में चर्चा करते हुए, उन्होंने कहा कि गंगा जी हमारे लिए सिर्फ एक जलधारा भर नहीं है, बल्कि यह प्राचीन काल से हमारे महान भारत की तपस्या की साक्षी हैं। उन्होंने कहा कि भारत की स्थिति परिस्थिति कैसी भी रही हों, मां गंगे ने हमेशा कोटि-कोटि भारतीयों को पोषित किया है, प्रेरित किया है। मोदी ने कहा कि स्वतंत्रता के की अवधि में गंगा किनारे के आस-पास के क्षेत्र में विकास पिछड़ गया, जिससे इस क्षेत्र से आबादी का भारी पलायन हुआ।

‘अर्थ गंगा’ में जिन राज्यों से गंगा गुजरती है, वहां आर्थिक गतिशीलता का वातावरण बनाने के लिए कदम उठाए गए हैं। 

उन्होंने कहा कि “आज भारत के पास सब कुछ है और आपकी कल्पना से परे भी बहुत कुछ है। भारत को केवल दिल से अनुभव किया जा सकता है क्योंकि देश ने क्षेत्र या धर्म, पंथ या देश के बावजूद सभी का खुले दिल से स्वागत किया है और दुनिया के सभी हिस्सों से पर्यटकों का स्वागत किया है। आध्यात्मिकता में रुचि रखने वालों के लिए काशी, बोधगया, विक्रमशिला, पटना साहिब और माजुली जैसे गंतव्यों को कवर किया जाएगा, एक बहुराष्ट्रीय क्रूज अनुभव की तलाश करने वाले पर्यटकों को बांग्लादेश में ढाका से होकर जाने का अवसर मिलेगा और जो भारत की प्राकृतिक विविधता को देखना चाहते हैं, उनके लिए यह सुंदरबन और असम के जंगलों से होकर गुजरेगा।

यह क्रूज 25 विभिन्न नदी धाराओं से होकर गुजरेगा। उन्होंने यह भी कहा कि “कोई भी इस क्रूज पर भारत की विरासत और इसकी आधुनिकता के असाधारण समामेलन को देख सकता है, जहां देश के युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे, वहीँ विदेशी पर्यटकों के लिए तो यह आकर्षण होगा ही, देश के भी जो पर्यटक पहले ऐसे अनुभवों के लिए विदेश जाते थे, वे पूर्वी-उत्तर भारत का रुक कर पाएंगे। एमवी गंगा विलास उत्तर प्रदेश के वाराणसी से अपनी यात्रा शुरू करते हुए 51 दिनों में लगभग 3,200 किलोमीटर की यात्रा करके भारत और बांग्लादेश में 27 नदी प्रणालियों को पार करते हुए बांग्लादेश के रास्ते असम के डिब्रूगढ़ तक पहुंचेगा। 

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