पाण्डेजी का सन्ताप लग गया नितीश बाबू को नहीं तो ठंढी की शुरुआत में ही 71 से सुटुक कर 43 नहीं होते !!!

संभल कर नितीश जी, बैठकर बात करें, आप देश के प्रधान मंत्रीजी से बात कर रहे हैं। फोटो: इक्नोमिक्स टाइम्स के सौजन्य से   
संभल कर नितीश जी, बैठकर बात करें, आप देश के प्रधान मंत्रीजी से बात कर रहे हैं। फोटो: इक्नोमिक्स टाइम्स के सौजन्य से   

‘बक्सर’ वनाम ‘मगध’ युद्ध में कौन हेक्टर मुर्नो थे या कौन मीर कासिम? कौन शौजा-उद -दौला थे या कौन शाह आलम – II – यह तो समय बताएगा, लेकिन लोग माने या नहीं, एक बात तो तय है कि बक्सर के एक ब्राह्मण के संताप से नितीश कुमार का जनता दल (युनाइटेड) सुख गया। नहीं तो अपने ही प्रदेश में 71 की संख्या सुटुक कर 43 नहीं होती। इसलिए कहते हैं ब्राह्मण चाहे गंगा-पार के हों या सरयू-पार के, जेनऊ-धारक हों अथवा कंठी-धारक उन्हें “दुःखी” नहीं करें। आज भी सन्ताप लगने में ब्राह्मणों का सन्ताप अन्य वर्णों के संताप से सबसे ऊपर (सिर्फ दो को छोड़कर: एक: महिला का संताप/आंसू  और दो: बच्चे का संताप/आंसू) है। वैसे नितीश बाबू को महिलाओं का भी संताप लगा है अगर सांख्यिकी को देखें। खैर। एक कहानी सुनिए।   

वैसे पच्चीस साल पहले की बात है लेकिन आज भी बिहारी अधिकारियों के मामले में एकदम 48-कैरेट सही है, और आने वाले दिनों में भी ‘टनाटन’ रहेगा। 

मार्च 23, 1995 की रात थी और स्थान था दिल्ली के कनॉट प्लेस इलाका । इस इलाके में चार-पहिया पर चलने वाले, दौड़ने वाले बिहारी बंधू-बांधव शायद नहीं समझ पाएँ, लेकिन जो शरीर से ‘पैदल’ चलते हैं (मष्तिष्क से नहीं) वे इस इलाके के भौगोलिक गली-कूचियों को भलीभांति जानते होंगे। रात का कोई बारह बजने वाला था। मैं अपने दफ्तर में (इण्डियन एक्सप्रेस) में रात्रिकालीन पाली में था। आम-तौर पर अपने लगभग सभी सहकर्मियों के लिए रात्रिकालीन पाली मैं ही करता था, क्योंकि जो डॉ हरिवंशराय बच्चन साहेब द्वारा सं 1936 में लिखित ‘मधुशाला’ में विस्वास करते हैं, उन्हें सूर्यास्त के बाद आठ बजते-बजते दिल्ली प्रेस क्लब में अपनी उपस्थिति दर्ज करने का ‘तलब’ होने लगता था। उसके सामने तो सभी मित्र ही होते थे। कोई भी दुश्मन नहीं, कोई हैकरी नहीं, कोई एटीच्यूड नहीं। बसर्ते दिल्ली पुलिस के तत्कालीन आयुक्त बिहारी बाबू निखिल कुमार जैसा पुलिस अधिकारी नहीं हो। 

उस रात कनॉट प्लेस क्षेत्र में जबरदस्त नाला ब्लास्ट हुआ था। मंदिर मार्ग, पांचकुहियाँ रोड, कनाट प्लेस आउटर सर्किल, शिवाजी स्टेडियम इत्यादि इलाके की सड़कें दो फांक फट गयी थी। घटना रात में हुयी थी, इसलिए हताहतों की संख्या नहीं थी। उस दिन से एक दिन पहले हमारे अखबार के प्रथम पृष्ठ पर एक कहानी प्रकाशित हुयी थी। विषय था – कैसे दिल्ली पुलिसकर्मी, मंदिर मार्ग थाने के लोग श्रद्धानन्द मार्ग स्थित वेश्यावृति इलाके से, कोठों से नित्य पैसे वसूलती है। कुछ अपने लिए, कुछ ऊपर वालों के लिए। कहानी में सिर्फ वेश्याओं की संख्या, कोठों की संख्या, ग्राहकों की संख्या, वेश्याओं की औसतन आमदनी नित्य की और फिर पुलिस को मिलने वाली राशि।  सांख्यिकी का खेल था कहानी में। वृतान्त से प्रकाशित हुआ था। लेख एक मित्र के साथ प्रकाशित हुआ था। उस रात हम सभी वहां उपस्थित थे घटना देखने, कहानी लिखने के लिए। 

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बस, भूखे को भोजन दिख गया। मंदिर मार्ग थाना के अधिकारियों की नजर हमलोगों पर आ टिकी। चोर-उचक्के-बदमास जैसा झपट्टा मारे, जिप्सी में ठूंसे और जानवर जैसा पीट-पीट कर लहू-लहुआन कर दिए। हम सभी चिल्लाते रहे की अखबार से हैं – लेकिन एक पुलिसकर्मी को अपने अधिकारी के कान में कहते सुना था: “हुज़ूर, यही दोनों है जिसने लिखा है कहानी।” खैर, थाना आये।  तत्कालीन मित्र गृहमंत्री के सहयोग से दफ्तर भी पहुंचे और मंत्रीजी खुलकर छूट दे दिए प्रातः संकरण की कहानी लिखने के लिए – ब्लो एंड ब्लो एकाउंट। 

अभी तक दफ्तर में बिहारी बाबू निखिल कुमार अपने कनिष्ठ अधिकारीयों के साथ आ गए थे। कहते हैं: “झाजी, नहीं पहचान पाया।  गलती हो गयी (तीन पुलिस वालों के विरुद्ध कार्रवाई होनी थी), सुवह देख लेंगे।” 

हमारे दफ्तर के रिपोर्टिंग रूम में खचाखच भीड़ लग गयी थी। मैं सहज शब्दों में बिहारी बाबू को कहा: ‘मैं भी आपको एक चांटा रसीद देता हूँ। क्योंकि मैं भी आपको नहीं पहचान पाया हूँ की आप दिल्ली पुलिस के आयुक्त हैं। अभी वर्दी में भी नहीं है।” यह सुनकर महाशय तक्षण ‘विदक’ गए और झट-पट निकल गए।  कोई 15 मिनट बाद मंदिर मार्ग पुलिस थाने के तीन अधिकारी सस्पेंड हो गए। दूसरे दिन खबर प्रथम पृष्ठ पर छपी। 

यह है बिहारी अधिकारियों का ‘एटीच्यूड’ – बाद में बिहारी बाबू निखिल कुमार भी भारत के राजनीतिक मानचित्र पर दिखे।  कभी सांसद बने तो कभी कुछ और। ऐसे ही कुछ एटीच्यूड से शायद बिहार के तत्कालीन डी जी पी बाबू गुप्तेश्वर पांडेय जी भी ग्रसित हो गए। उन्हें भी राजनीति में ढुकने के लिए कीड़ा काटने लगा। जोश में आ गए और होश खो बैठे। 

वैसे कुछ समय पहले जम्मू कश्मीर के निवासी और साल 2010 बैच के IAS टॉपर शाह फैसल ने राजनीति में उतरने का फैसला किये थे।  यूपी के मेरठ में इनकम टैक्स (IT) विभाग की प्रिंसिपल कमिश्नर प्रीता हरित ने 20 मार्च 2019 को नौकरी से इस्तीफ़ा देकर कांग्रेस ज्वाइन किया था। ओडिशा की IAS अधिकारी अपराजिता सारंगी ने अपने पद से इस्तीफा देकर बीजेपी का दामन थाम लिया था। बिहार की रहने वाली अपराजिता 1994 बैच की IAS थीं। वे पांच साल तक केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर रहने के बाद स्वेच्छा से अवकाश के लिए आवेदन किया था।  अपराजिता को भारतीय प्रशासनिक सेवा से रिटायर होने में 11 साल बाकी थे। 

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने साल 1963 में भारतीय विदेश सेवा (IFS) ज्वाइन किया था और 1989 में राजनीति में आने के लिए अय्यर ने स्वेच्छा से अवकाश ले लिया था। मानव संसाधन राज्यमंत्री सत्यपाल सिंह महाराष्ट्र कैडर के 1980 बैच के IPS अधिकारी थे।  साल 2014 में उन्होंने मुंबई पुलिस आयुक्त के पद से इस्तीफा दे दिया और बीजेपी में शामिल हो गए। दिल्ली के मुख्य मंत्री और आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने साल 1992 में इंडियन रेवेन्यू सर्विस ज्वाइन किया था। कुछ साल बाद पद से इस्तीफा देकर आर टी आई के लिए काम करने लगे और फिर राजनीति में। 2005 बैच के भा प्र से अधिकारी ओ पी चौधरी ने अगस्त 2018 में पद से इस्तीफा दे दिया था।  वे रायपुर के कलेक्टर का पद छोड़कर भ ज पा में  शामिल हुए थे।

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सुनने में आया की किसी ने बाबू गुप्तेश्वर पांडेजी का कान फुक दिया की बिहार की वर्तमान राजनीतिक स्थिति में “नितीश कुमार के अलावे पढ़ा-लिखा कोई भी नहीं है। इसलिए आप यदि राजनीति में आते हैं तो बिहार का काया-कल्प हो जायेगा। 

बाबू गुप्तेश्वर पांडेजी - चलो सुहाना भरम तो टूटा 
बाबू गुप्तेश्वर पांडेजी – चलो सुहाना भरम तो टूटा 

गुप्तेश्वर पांडेय 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। 31 जनवरी 2019 को उन्हें बिहार का डीजीपी बनाया गया था। उनका कार्यकाल पूरा होने में करीब 5 महीने का वक्त बचा हुआ है.राज्य के पुलिस महानिदेशक के रूप में गुप्तेश्वर पांडेय का कार्यकाल 28 फरवरी 2021 को पूरा होने वाला है। अब उनको कौन समझाता की “पढ़ल-लिखल आदमी की जरुरत नहीं है नितीश बाबू को।”  ऐसा पहली बार नहीं था जब पांडे जी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा जागी हो । इससे पहले भी उन्होंने 2009 में लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा दिया था । तब वे बक्सर सीट पर भाजपा उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ना चाहते थे । लेकिन टिकट नहीं मिला तो उन्होंने अपने इस्तीफे की अर्जी वापस ले ली ।  

लेकिन अंत में क्या हुआ? लोक सभा वाला खाली सीट भी भर गया। विधान सभा का चुनाव भी हो गया। नितीश जी की संख्या गोलघर से लुढकर गाँधी मैदान में पहुँच गया। गंगा किनारे-किनारे कमल फूल भी खिल गया। अब कोई नहीं कह सकता है “कीचड़ में कमल नहीं खिलता, बिहार सबसे बड़ा दृष्टान्त है।” तेजस्वी जी लालटेन लेकर अब अगिला पांच साल चलते-फिरते नजर आएंगे  ।  

पांडे बाबा सोचे होंगे एक बार सांसद या विधायक बन जायेंगे तो राजनीतिक पेंशन तो मिलेगा ही, पुलिस वाला पेंशन भी बैंक में जमा होता रहेगा और बैंक से  टन टन एस एम एस आता रहेगा। लेकिन होनी को कौन टाल सकता है। वैसे ही जैसे उपेन्द्र कुश्वाहाजी को बिहार का मुख्य मंत्री बनने का भूत सवार हुआ और दिल्ली के राजपथ को त्यागकर पटना के सर्कुलर रोड पर चिताने गिरे। 

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बाबू उपेन्द्र कुशवाहा जी 
बाबू उपेन्द्र कुशवाहा जी 

अपने को बिहार का “किंग मेकर” समझते थे। यहाँ तो “मेक-ऑवर” भी नहीं हुआ। सुनते हैं पटना साइंस कालेज के पूर्ववर्ती छात्रगण “अलबलाते” जल्दी हैं। अब अगर विज्ञानं संकाय के छात्र भी संयम, चाहे राजनीति में हो अथवा फ़िल्मी पर्दा पर, जल्दी खो देते हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट (जीडीएसएफ) बनाकर गेमचेंजर या किंगमेकर बनने का ख्वाब पालने वाले फ्रंट के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार राष्‍ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के अरमानों पर न सिर्फ जनता ने पानी फेर दिया बल्कि उनकी पार्टी को खाता तक नहीं खोलने दिया।

इस बार के विधानसभा चुनाव में गेमचेंजर या किंगमेकर बनने का ख्वाब पाले छोटे-छोटे दलों से बेमेल गठजोड़ करने वाले दिग्गजों ने नए गठबंधन जीडीएसएफ का गठन किया। रालोसपा के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने ‘गेमचेंजर’ के दावे के साथ मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा), असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल-मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) तथा तीन अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर तीसरा मोर्चा जीडीएसएफ बनाया था।  

लेकिन, कुशवाहा साहेब जैसे ही हारे, तुरंत ट्वीट करने लगे।  कहने लगे, लिखने लगे – बिहार जनादेश का हम सम्मान करते हैं । आभारी हैं उनसभी के जिन्होंने हमे संबल दिया, आभारी हैं उनसभी के जिन्होंने हमारा क्रिटिसाइज किया, आभारी हैं उनके जिन्होंने तन मन धन से हमारा साथ दिया । बिहार हित मे यूज होने वाले हर उस तिनके से लेकर तितकी तक के आभारी हैं हम जिन्होंने हमे समर्थन किया,हमारा साथ दिया । यह व्यक्तिगत अभिव्यक्ति है, न किसी से शिकायत और न ही किसी से बैर । बिहार जीतने वालों को शुभकामनाएं ।

कहते हैं हार के सौ बहाने और जीत के हजार फसाने होते हैं । इसलिए हरेक सीट पर मिली हार का अलग अलग विश्लेषण जरूर होना चाहिए । क्योंकि कई मोर्चों पर हम कमजोर साबित हुए हैं । अक्सर सीमित संसाधनों से लड़ने वाले शहीद होते रहे हैं, यह बात इतिहास में दर्ज है । बेदाग चेहरा तिलिस्मी कमाई नहीं दे सकता । क्योंकि कमाई के लिए दागदार होना पड़ता है । शिक्षा से प्रोफेसर, कुशल राजनितिज्ञ और बेदाग होने के बावजूद अगर जनता और मीडिया की नजरों में वो योग्य साबित नहीं हो पाए तो यह उनकी वजह से नहीं बल्कि हथेलियों में उभरने वाली लकीरों की वजह से भी हो सकता है ।
खैर। अब अगिला पांच बरस तक अपना-अपना मगजमारी करिये। जिसके कपार में राजयोग लिखा है, भोगेगा ही।

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