अरे वियाह है हो…..वियाह है हो….वियाह है हो… कृष्णा मेमोरियल हौल में, साल था सन 1973 

लोकनायक (हो गए थे उस समय) जय प्रकाश नारायण और नितीश कुमार। तस्वीर: कृष्ण मुरारी किशन (अब दिवंगत) और सौजन्य दी टेलीग्राफ 

उस दिन शुक्रवार था और तारीख 22 फरवरी, साल 1973 था। देश में कदमकुआं वाले लालाजी यानि सम्मानित जयप्रकाश नारायण वाला क्रान्ति का बिगुल बज चुका था। जेन्ने-तन्ने गली-कुचियों में शंखनाद हो रहा था – इन्दिरा हटाओ – देश बचाओ। हम लोग उन दिनों पटना कालेज के सामने ननकू जी की गली के कोने पर स्थित मकान में किराया पर रहते थे। बाईस रूपया प्रतिमाह कमरा का किराया और 3/- रुपये प्रति बल्ब (40 वाट) मालिक माकन लेते थे।

मालिक मकान की भी एक पान की दूकान थी गली के नुक्कड़ से कोई दस कदम बाएं तरफ। सुवह आठ बजता था की दूकान से चूना वाला चकाचक वर्तन से टन-टन की आवाज घर तक आता था। मालिक मकान और उनके पुत्रों का वह “टनटनाहट” भी अपना-अपना अलग-अलग होता था, जो इशारे का कार्य भी करता था, सन्देश-वाहन का भी काम करता था, घर वालों के लिए। खैर। 

मैं उस समय नवमीं कक्षा में टी के घोष अकादमी में पढता था। जिस दिन 18 मार्च 1974 को जयप्रकाश नारायण का पटना कालेज के सामने से क्रांति की शुरुआत हुयी थी, पटना सिटी में गोली काण्ड हुआ था, उस दिन मैं माध्यमिक परीक्षा (दसवीं) का अंतिम पत्र लिखने एफ एन एस एकेडमी, गुलजारबाग गया था। जब तक परीक्षा समाप्त हुई थी, गुलजारबाग रेलवे लाईन पर, गलियों में, सड़कों पर लाशों का ढ़ेर लग गया था। उधर, घर पर मेरी माँ के साथ साथ, मोहल्ले की महिलाओं का आँचल भी भींग रहा था। सभी चिंतित थे, आखिर अब तक आया क्यों नहीं? उन दिनों तो न मैं जानता था और न वे, न मेरी माँ की यह बच्चा तो किसी और के आखों का आंसू पोछेगा जीवन में, फिर चिंता क्यों? 

बात गुलजारबाग की आयी तो याद आ गए अपने ज़माने के मूर्धन्य पत्रकार श्री जुगनू शारदेय जी। श्री जुग्नूजी हमारे गुरुदेव श्री दुर्गानाथ झा (अब दिवंगत), जो उस समय पटना से प्रकाशित दी इण्डियन नेशन अखबार में उप-मुख्य संवाददाता थे, उनके अभिन्न मित्र थे। उन दिनों, आज की तरह, अंग्रेजी-हिन्दी भाषा में पत्रकारों का विभाजन नहीं होता था। क्योंकि दोनों भाषाओँ के पत्रकारों को अपनी-अपनी औकात मालूम होता था। वैसे भी हिन्दी भाषा के सामने अंग्रेज तो ठहर नहीं सके, अंग्रेजी कैसे ठहर पायेगी। परन्तु, उस ज़माने में भी “भड़ुए” होते थे समाज में, पत्रकारिता में; आज तो भरे-परे हैं भड़ुए। श्री जुगनू शारदेय विगत दिनों गुलजारबाग के एक वृद्धाश्रम में रह रहे थे, अर्थाभाव के कारण। जीवन में कभी शब्दों का सौदा नहीं किये, इसलिए आज यह हाल है। खैर। 

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उन दिनों जय प्रकाश नारायण के क्रांतिकारी समूह में अन्य बिहारी नेताओं के अलावे नितीश कुमार भी थे। और तो सभी “कला संकाय” के छात्र थे, नितीश कुमार शायद एकलौता नेता थे जो विज्ञान संकाय के थे और उसमें भी यांत्रिक। वे पटना विश्वविद्यालय के इंजीनियरिंग कालेज के छात्र थे। यह कालेज जहाँ पटना साइंस कालेज का पूर्वी दीवार समाप्त होता है, वहीँ से प्रारम्भ होता है इस महाविद्यालय का परिसर। बेहतरीन कालेज। इस कालेज के बाद गंगा किनारे से कुछ क्षेत्र छोड़कर पटना लॉ कालेज, पटना विश्वविद्यालय का अनेकानेक छात्रावास, निजी छात्रावास और फिर अध्यापकों, प्राध्यापकों के लिए आवासीय परिसर रानीघाट का इलाका। 

उस समय श्री जुगनू शारदेय जी बिहार के उत्कृष्ट लेखक थे। जो भी उन्हें देखता था आँख फाड़-फाड़ कर देखता था और उनकी लेखनी को भी उसी तरह आँख फाड़-फाड़ कर पढता था। उन दिनों नितीश कुमार के वियाह के बारे में स्थानीय अख़बारों में, मसलन आर्यावर्त, इण्डियन नेशन, सर्चलाईट, प्रदीप, जनशक्ति, कौमी आवाज इत्यादि, खबर छपने लगी – छात्र नेता नितीश कुमार वियाह करने जा रहे हैं वह भी बिना तिलक (दहेज़) के …….. यानी, एक अलग क्रांति। उन दिनों अगर कोई छात्र अथवा छात्रा अपने विश्वविद्यालय के किसी से भी नजरें इनायत करता था, समझ लीजिये पूरे गाँव को पता चल जाता था। वजह था – बहुत सम्मानित होता था प्रेम सम्बन्ध। वैसे समाज में उन दिनों भी ऐसी क्रांति को दबाने वाले लोग होते ही थे, लेकिन जो जीत गया वह सिकंदर। और नितीश कुमार सिकंदर ही रहे। 

श्री जुगनू शारदेय उस समय धर्मयुग में थे। उन्होंने नितीश कुमार का एक अन्तर्वीक्षा किये। कहानी प्रकाशित हुआ। इस सम्पूर्ण व्याख्यान को श्री अशोक कुमार शर्मा ने बेहतरीन तरीके से प्रस्तुत किया है। नीतीश कुमार का विवाह एक क्रांतिकारी उत्सव था। शादी के पहले नीतीश कुमार ने एक साहसिक फैसला लिया था। तात्कालीन सामाजिक व्यवस्था में इसकी खूब चर्चा हुई। इसके बाद ‘धर्मयुग’ के लिए जुगनू शारदेय ने नीतीश कुमार का इंटरव्यू किया। धर्मयुग में नीतीश का इंटरव्यू प्रकाशित हुआ। इस इंटरव्यू में नीतीश ने तार्किक तरीके से सधे हुए अंदाज में दहेज प्रथा का विरोध किया था। 

प्रतिष्ठित साहित्यकार फणीश्वर नाथ रेणु यह इंटरव्यू पढ़ कर बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने जुगनू शारदेय को फोन कर कहा कि मैं नीतीश जैसा ही दामाद चाहता हूं। ये 1973 से कुछ पहले की बात है। नीतीश इंजीनियिंग के आखिरी साल में थे। वे होस्टल नम्बर में एक में रहते थे। तब वे एक छात्र नेता के रूप में वे मशहूर होने लगे थे। नीतीश की राजनीतिक सक्रियता से उनके पिता वैद्यराज रामलखन सिंह थोड़े चिंतित रहने लगे। रामलखन सिंह ने राजनीति की पथरीली राह देखी थी। वे भी कांग्रेस के नेता थे। 1957 के दूसरे विधानसभा चुनाव में जोड़तोड़ की वजह से उनका टिकट कट गया था। अगर वे वैद्य न होते तो जीवन का निर्वाह मुश्किल हो जाता। रामलखन प्रसाद सिंह जब नीतीश से मिलने होस्टल जाते तो उनसे मुलाकात ही नहीं होती। नीतीश कहीं सभा या बैठक कर रहे होते। तब उन्होंने नीतीश को शादी के बंधन में बांधने का फैसला कर लिया।

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रामलखन सिंह ने नीतीश की शादी तय कर दी। वे नालंदा जिले के कल्याण बिगहा के रहने वाले थे लेकिन बख्तियारपुर में आयुर्वेदिक दवाखाना चलाते थे। उन्होंने नजदीक के गांव सियोदा के रहने वाले कृष्णनंदन सिन्हा की पु्त्री मंजू सिन्हा से नीतीश की शादी तय कर दी। कृष्णनंदन सिन्हा सरकारी स्कूल के हेडमास्टर थे। उनकी पुत्री मंजू सिन्हा उस समय पटना विश्वविद्यालय के मगध महिला कॉलेज नें स्नातक की पढ़ाई कर रहीं थीं। उस दौर में किसी गांव की लड़की का पटना में पढ़ना बहुत बड़ी बात थी। कृष्णनंदन सिन्हा प्रतिष्ठित शिक्षक थे। वे भी दामाद के रूप में इंजीनियर नीतीश को देख कर खुश थे। नीतीश शुरू में शादी के लिए राजी नहीं हुए। पिता ने बहुत दबाव बनाया तो वे मान गये। 

इस बीच नीतीश को कहीं से पता चला कि उनके पिता ने दहेज में 22 हजार रुपये लिये हैं, तो वे भड़क गये। पिता से बात करने के लिए उतावले हो गये। वे अपने पिता का बहुत लिहाज करते थे। उनसे सीधे बात करने की हिम्मत नहीं हो रही थी। अपनी बात रखने के लिए उन्होंने अपने इंजीनियर दोस्त नरेन्द्र सिंह को साथ चलने के लिए कहा। रात में किराये पर एक टैक्सी लेकर पटना से बख्तियारपुर पहुंचे। नीतीश की जेब में टैक्सी का किराया देने के लिए पैसा नहीं था। पिता नीतीश को टैक्सी से आया देख कर हैरान हो गये। नीतीश ड्राइवर को पिता से पैसा लेने का इशारा कर के घर के अंदर दाखिल हो गये। नरेन्द्र सिंह, रामलखन सिंह के पास बैठ गये। नीतीश वहां नहीं थे। नरेन्द्र सिंह ने रामलखन सिंह को बताया कि नीतीश दहेज के खिलाफ हैं। न कोई उपहार लिया जाएगा, न कोई लेनदेन होगा। भोजभात, पूजापाठ कुछ नहीं होगा। बिना चमक दमक के कोर्ट मैरेज होगी। रामलखन सिंह नरेन्द्र सिंह की बातें सुन कर आवाक रहे गये। उन्होंने कहा कि लगन की रकम ले कर लौटाना शिष्टाचार के खिलाफ होगा। उन्होंने तो राजी खुशी ये पैसा दिया है। नरेन्द्र सिंह रामलखन सिंह की बात लेकर दूसरे कमरे में नीतीश के पास पहुंचे। नीतीश ने कहा कि अगर ऐसा है तो ये शादी नहीं होगी।

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अंत में पिता को झुकना पड़ा। रामलखन सिंह ने दहेज की रकम लौटा दी। नीतीश भी थोड़ा नरम हुए और कोर्ट मैरेज की जिद छोड़ दी। पटना में गांधी मैदान के पास लाला लाजपत राय कम्यूनिटी हॉल में नीतीश और मंजू सिन्हा की बेहद सादगी के साथ शादी हुई। न मंत्र पढ़े गये, न भोज हुआ। इंजीनियरिंग कॉलेज के बहुत से छात्र बसों में भर कर वहां पहुंचे थे। नीतीश ने सिर्फ उनके लिए अल्पाहार का इंतजाम किया था। इसके बाद नीतीश की छवि उसूल पर चलने वाले नौजवान की बन गयी। छात्र आंदोलन में भी नीतीश का कद बढ़ गया।

बहरहाल, आज बिहार के राजनीतिक क्षेत्र में समाज के लोगबाग, राजनीति के लल्लू-पंगु नितीश कुमार के तरफ ऊँगली उठाता है। उठना भी चाहिए। क्योंकि अगर ऊँगली नहीं उठी तो क्रांति समाप्त हो जाएगी। लेकिन लोगों को एक बार उसी ऊँगली को अपने तरफ भी मोड़कर खुद को देखना चाहिए, अपने बारे में सोचना चाहिए, यह भी सोचना चाहिए की वे प्रदेश को कितना लूटे हैं, सरकारी खजाने की राशि जो जनता के लिए खर्च होनी थे, वह उनके तिजोड़ी में कैसे पहुँच गयी। बिहार के पत्रकारों को, चाहे वे बिहार में पत्रकारिता करते हों या दिल्ली में, अपनी पेशा को स्वहित में बेचकर, राजनीति में शरण लेनी चाहिए या नहीं, या भी सोचना चाहिए। आर्यावर्तइण्डियननेशन.कॉम यह जानता है कि आने वाले समय में बिहार के लोग, दिल्ली से बिहार में आयातित नेतालोग, बम्बई-मद्रास से आयातित व्यापारीगण “बनिया” के संग हाथ मिलाकर सत्ता पलटने वाली है – लेकिन नितीश कुमार को कोई फर्क नहीं पड़ेगा, यह सच है।

नमन आपको श्रीमती मंजू सिन्हा जी। आपके बहाने आपके पति का जय हो। आपके पति बहुत बेहतरीन आदमी हैं। आदमी बहुत “खड़ूस” है, यह भी सच है, उनकी भी कुछ “कमजोरियां” हैं, यह भी सच है – लेकिन लुटेरा नहीं है अन्य मुख्य मंत्रियों जैसा । श्रीमती मंजू सिन्हा जी, ईश्वर आपको अपने शरण में स्थान अवश्य दिए होंगे। 

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