कक्का यौ!! जुलुम भ गेल!!!✍मिथिला का शैक्षिक-दर 55% से ऊपर उठने में कुथ रहा है😢, मिथिला पाग के आकार को बढ़ाने का निवेदन हो रहा है😢

मधुबनी / दरभंगा / पटना / नई दिल्ली: मैथिली और मिथिला के ‘विकास’ से सम्बंधित कई वर्ष पहले गठित एक संगठन ने मिथिला के लोगों से निवेदन किया गया है कि पाग के निर्माणकर्ता पाग बनाते समय उसका आकार बढ़ाकर बनायें ताकि पहनने और पहनाने में असुविधा नहीं हो। यह बात विगत दिनों संगठन द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया। जबकि आज़ादी के 78 वर्ष बाद आज भी मिथिला का शैक्षिक दर 55 फीसदी से आगे बढ़ने पर कुथ रहा है।

कल भारत के संसद के बाहर, विजय चौक के रास्ते रायसीना हिल और प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के कार्यालय के आस-पास मिथिला क्षेत्र के कर्मचारियों का कहना था कि “उक्त संगठन द्वारा पाग के मामले में जारी प्रेस विज्ञप्ति का प्रत्येक शब्द एक गहन शोध का विषय है। उनका कहना है कि “पाग का आकार बढ़ाने पर बल देने का सीधा अर्थ यही माना जायेगा कि “मिथिला में पाग पहनने वालों का माथा (शरीर का सबसे ऊपरी हिस्सा) का आकार या तो बढ़ गया है या फिर पाग के निर्माण कर्ता पाग के महत्व को इतना महत्वहीन बना दिए हैं कि उन्हें औसतन मानव माथे का आकर का ज्ञान नहीं रहा और पाग का आकार छोटा होता गया।”

गृहमंत्रालय के सामने चबुतरे पर खड़े एक अधिकारी कहते हैं: “यौ झाजी !!! एहि बात से इंकार नै कयल जा सकैत अछि कि मिथिला के बाल-बच्चा शैक्षिक दुनिया में अव्वल अछि आ आवि रहल अछि। लेकिन इ सब बच्चा, चाहे बेटी होय अथवा बेटा, वैह अव्वल आवि रहल अछि जेकर माता-पिता अपन-अपन जीवनक निर्माण हेतु, बच्चाक जीवनक निर्माण हेतु गामक सीमा पार केलैथ।”

वे आगे कहते हैं: “अगर चेन्नई, बंगलुरु, मुंबई, अहमदाबाद, कानपुर, नागपुर, दिल्ली, भोपाल आदि शहरों में मुद्दत से रहने वाले, पढ़ाने-लिखाने वाले किसी महानुभाव की बेटी विश्व के पटल पर अपना हस्ताक्षर करती है तो दरभंगा और लहेरियासराय के जिलाधिकारी उसकी शैक्षिक योग्यता को या उसकी उपलब्धि को अपनी सांख्यिकी में नहीं जोड़ सकता है न? पाग के साथ भी वही हश्र है, जो दुखद है। मिथिला में रहने वाले, पाग पहनने वाले, पाग पहनाने वाले औसतन 90 से अधिक फीसदी लोग (अपवाद छोड़कर) पाग के रंग का महत्व, कौन किसे पहनायेगा, किस अवसर पर किस रंग का पाग पहनाया जायेगा नहीं जानते।”

हकीकत यह है, वे आगे कहते हैं: “राजनीतिक गलियारे से लेकर, आर्थिक मंडी तक सभी अपना-अपना उल्लू सीधा करने के लिए पाग को एक हथकंडा बना लिए हैं। वजह यह है कि मिथिला में पाग का सांस्कृतिक महत्व में सोच से अधिक गिरावट आया है। पाग में रंग नहीं, राजनीतिक कसीदा कारी अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। इतना ही नहीं, पाग किसके सर पर कौन रखेगा, यह अब महत्वहीन बन गया है। आज स्थिति वैसी ही है जब भारत के लोग विदेशों में अपना ठिकाना, आसियाना बना लेते हैं तो भारत के प्रति उनकी राष्ट्रभक्ति अधिक हो जाती है। जबकि वे ग्रीन-कार्ड होल्डर होते हैं। भारत की राष्ट्रीयता को दर किनार का विदेशी राष्ट्रीयता ग्रहण करते हैं। आज मिथिला, मैथिली, पाग, लोक चित्रकला सबों की हालत ऐसी ही है। सभी आज व्यापार का एक हिस्सा बन गया है। यही कारण है कि बाहर वाले लोगों के माथे के नाप के हिसाब से पाग का आकार निर्धारित करने को कहा जा रहा है। यह व्यवसाय है न कि संस्कृति और गरिमा की बात है।”

इन महानुभावों और मोहतरमा को तो आप सभी जानते ही हैं

इसका ज्वलंत दृष्टान्त राष्ट्रीय जनता दल के नेता और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और ऐतिहासिक चारा घोटाला कांड के अभियुक्त लालू प्रसाद यादव के नवमीं कक्षा पास पुत्र और उनकी अर्धांगिनी के सर पर पाग है। अगर मिथिला के लोग इन व्यक्तियों को पाग पहनाते हैं, तो इसका अर्थ सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक दुकानदारी ही माना जायेगा। क्या ये पाग पहनने के लायक है? तेजस्वी यादव और उनकी पत्नी को वैवाहिक जीवन पर बधाई देने का अनेकानेक तरीका हो सकता था परन्तु पाग पहनाकर पाग का अपमान भी किये।

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अगर उक्त संगठन के उक्त ‘प्रेस विज्ञप्ति’ के मद्दे नजर मिथिला की शैक्षिक दर को देखें – जो माथे के विस्तार का सूचक हो सकता है और बड़े आकार के पाग की जरुरत हो सकती है – तो बिहार का औसत शैक्षिक दर 63.82 फीसदी है जिसमें मिथिला क्षेत्र में शैक्षिक दर 55.18 से अधिक नहीं हैं। प्रदेश में सबसे अधिक शैक्षिक दर भोजपुरी क्षेत्र में है जहाँ औसतन शैक्षिक दर 66.19 फीसदी है। भोजपुरी क्षेत्र में रोहतास क्षेत्र में शैक्षिक दर 73.37 फीसदी है। इतना ही नहीं, मगध क्षेत्र में शैक्षिक दर मिथिला की तुलना में 9 फीसदी अधिक है, यानी 64.92 फीसदी है।

यही कारण है कि दिल्ली के राजनीतिक गलियारे में अपना हस्ताक्षर रखने वाले एक नौकरशाह कहते हैं: “पाग मिथिला का एक सम्मान है। मिथिला के प्रत्येक लोगों की इज्जत है। मिथिला का एक-एक बच्चा पाग के सांस्कृतिक गरिमा को पहले समझता था। पाग के रंगों की महत्ता को समझता था। वह यह भी समझता था कि किस रंग का पाग किस अवसर पर कौन पहनता है। पाग किसे पहनाया जाए । पाग पहनाने का शाब्दिक अर्थ और वास्तविक अर्थ क्या है। परन्तु, तकलीफ इस बात कि है कि मिथिला में अब राजनीति होती है और उस राजनीति में मिथिला का पाग धरल्ले से इस्तेमाल होता है। अन्यथा आज मिथिला पाग की यह स्थिति नहीं होती। मिथिला की संस्कृति की यह स्थिति नहीं होती।”

अधिकारी आगे कहते हैं: “मिथिला में तो करवा चौथ नहीं होता है। वहां की महिलाएं अपने पति के लिए मधुश्रावणी पूजा करती हैं। लेकिन अब देखादेखी में मिथिला में ही नहीं प्रस्तावित मिथिला राज्य निर्माण के लिए सभी 24 जिलों, मसलन अररिया, बेगूसराय, दरभंगा, कटिहार, खगड़िया, किशनगंज, मधेपुरा, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, पूर्णिया, सहरसा, समस्तीपुर, शिवहर, सीतामढ़ी, सुपौल, पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, वैशाली, लखीसराय, मुंगेर, शेखपुरा, जमुई, भागलपुर और बांका के अलावे पटना के कंकरबाग, शिवपुरी, लोहानीपुर, कदमकुआं और अन्य इलाकों सहित राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के अनेकानेक क्षत्रों में, मुंबई, कलकत्ता, चेन्नई और अन्य प्रांतों में मिथिला की महिलाएं अब करवा चौथ करती हैं। और मैथिली भाषा के स्थान पर स्थानीय भाषाओँ का प्रयोग कर ‘मैथिली भाषा” की दुकानदारी करने में तनिक भी लज्जा नहीं करते। विश्वास नहीं हो तो दिल्ली के करोलबाग स्थित दिल्ली सरकार की दारू की खरीद-बिक्री वाले कार्यालय (भवन) के निचले तल्ले में मैथिली – भोजपुरी अकादमी को ठिठुरते देख लीजिये।

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अब अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मिथिला क्षेत्र के करीब 120 विधानसभा और 12 से अधिक लोकसभा सीटों पर भारतीय जनता पार्टी का कब्ज़ा करने के लिए मैथिली और संस्कृत में भारत का संविधान छाप दिए तो क्या गलत किये? क्या समझे – सब राजनीति है। मिथिला के कितने लोग मैथिली और संस्कृत में संविधान को पढ़कर अपने अधिकार-कर्तव्य का बोध करेंगे? यह भी आने वाले दिनों में शोध का विषय होगा। वैसे मिथिला के लोग लालू प्रसाद यादव के छोटका ननकिरबा और उसकी कनिया का वैवाहिक जीवन लड्डू जैसा मीठा हो, जीवन पर्यन्त, लालू प्रसाद यादव जैसा ही उनके छोटका ननकिरबा का परिवार पढ़े, दर्जनों बच्चों का माता-पिता बने, पाग की लाज बचाये रखें – और क्या चाहिए। लोग तो यह भी कहते हैं कि अब मिथिला में पोखर कहाँ है कि प्रधानमंत्री कमल खिलाएंगे।

बहरहाल, अगर बिहार के किसी भी विद्वान-विदुषी के पास, दरभंगा राज परिवार से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से सम्बन्ध रखने वाले महानुभावों के पास ऐसी कोई तस्वीर हो जहाँ महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह, महाराजा डॉ. कामेश्वर सिंह, राजा बहादुर विशेश्वर सिंह अथवा तत्कालीन राज परिवार के गणमान्य व्यक्ति अपने प्रदेश, राज्य में आये किसी भी गणमान्य महानुभावों को “मिथिला का पाग”, “सम्मानार्थ ही सही” पहनाए हों। अगर वे “मिथिला का पाग उन आंगतुकों को नहीं पहनाए तो क्या हम समझेंगे कि उन दिनों “आगंतुकों का सम्मान नहीं होता था राज दरभंगा में, मिथिलाञ्चल में? या यह समझा जा सकता है कि दरभंगा राज अथवा उनकी नजर में “मिथिला-पाग” पहनने के लायक आगंतुक नहीं होते थे ?

आज़ादी के बाद, या यूँ कहें कि महाराजा कामेश्वर सिंह की मृत्यु तक मिथिला की संस्कृति जितनी मजबूत और सुरक्षित थी, आज नहीं है। यानि. अक्टूबर 1962 के बाद मिथिलांचल में मिथिला की संस्कृति को संरक्षित रखने वाला नहीं रहा। आज भले हम मिथिला लोक-चित्रकला को विश्व में प्रचार-प्रसार के माध्यम से फैलाएं, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि मिथिला लोक चित्रकला के कलाकार आज मृत प्राय हो गया है । समाज, सरकार अथवा मिथिलांचल के जिला प्रमुखों से इस ऐतिहासिक लोक चित्रकला को उतना संरक्षण नहीं मिलता है जितने का वह हकदार हैं। आज स्थिति ऐसी हो गयी है की मिथिलाञ्चल के लोग, विशेषकर पुरुष समुदाय, न केवल “पाग के वास्तविक महत्व” से अपरिचित हैं, बल्कि उसका सम्मान भी नहीं कर पाते हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो इस पाग को “सब धन बाईस पसेरी” जैसा सबों के माथे पर सजाकर फोटो-सेशन नहीं करते, सोसल मीडिया पर या भारत की सड़कों पर “पाग का राजनीतिकरण नहीं होने देते, नहीं करते।”

अगर मिथिलांचल के लोग, विशेषकर जो “पाग की अहमियत” समझते हैं, अपने ही घरों में, अपने ही समाज में, टोले-मुहल्लों में एक सर्वे करें की किनके – किनके घरों में “वास्तविक पाग (सफ़ेद रंग का अथवा भटमैला रंग का) है ? हाल, पीला, हरा, ब्लू, रंग बिरंगा, सतरंगी, लोक चित्रकला वाला नहीं; तो औसतन सैकड़े घरों की बात नहीं करें, हज़ार घरों में शायद दस अथवा बीस घरों में पाग की उपस्थिति दर्ज होगी। विश्वास नहीं तो हो आजमा कर देखिए। अब स्थिति यह है कि हम अपने घरों में, मिथिला के समाजों में पाग के महत्व को नहीं बता सके, वर्तमान पीढ़ी को नहीं बता सके, लेकिन देश के मुंबई, दिल्ली, कलकत्ता, चेन्नई, बंगलुरु, मंगलुरु, कानपूर, नागपुर, बराकर के अतिरिक्त देश के 718 जिलों में “पाग से अर्थ कमाने के लिए पाग का विपरण करने में जुटे हैं।”

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देवशंकर नवीन का कहना है : इसके अतिरिक्त, क्या सर्वजन मैथिलों ने आम सहमति से अपने पारंपरिक प्रतीक ‘पाग’ के स्वरूप में यह फेरबदल स्वीकार कर लिया? अब तक पाग पर किसी तरह की चित्रकारी की मान्यता नहीं थी। कहीं ऐसा तो नहीं कि बाजार की चमक-दमक ने मैथिलों के सांस्कृतिक संकेत पर अपना कब्जा बना लिया! दूसरा सवाल पाग की पारंपरिक मान्यता को लेकर है। बचपन से देखता आ रहा हूं कि अनेक शहरों में मैथिल जनता अपनी उपस्थिति दर्ज करने के लिए महाकवि विद्यापति की बरसी मनाती है। उन आयोजनों में आमंत्रित विशिष्ट जनों का पाग-डोपटा से सम्मान करते और अपने सांस्कृतिक उत्कर्ष का दावा करते हुए मैथिल आत्ममुग्ध होते हैं। गीत, कविता, चुटकुला, नाच-नौटंकी सब आयोजित करते हैं। आयोजन का नाम रहता है ‘विद्यापति स्मृति पर्व’, पर विद्यापति वहां सिरे से गायब रहते हैं। आयोजन का लक्ष्य शायद ही कहीं साहित्य और संस्कृति का उत्थान या अनुरक्षण रहता हो!

सतही मनोरंजन के अलावा वहां ऐसा कुछ भी नहीं दिखता, जिसमें ‘मैथिल’ का कोई वैशिष्ट्य सिर उठाए। ‘पाग’ जैसे सांस्कृतिक प्रतीक की अधोगति भी ऐसे अवसरों पर भली-भांति हो जाती है। दरअसल, मिथिला में ‘पाग’ का विशष्ट महत्त्व है। पर उल्लेखनीय है कि यह पूरी मिथिला का सांस्कृतिक प्रतीक नहीं है। ‘पाग’ की प्रथा मिथिला में सिर्फ ब्राह्मण और कायस्थ में है। इन जातियों के भी ‘पाग’ की संरचना में एक खास किस्म की भिन्नता होती है, जिसे बहुत आसानी से लोग नहीं देख पाते। पाग के अगले भाग में एक मोटी-सी पट्टी होती है, वहीं इसकी पहचान-भिन्नता छिपी रहती है। इससे आगे की व्याख्या यह है कि इन दो जातियों में भी सारे लोग पाग नहीं पहनते। परिवार या समाज के सम्मानित व्यक्ति इसे अपने सिर पर धारण करते हैं। यह उनके ज्ञान और सामाजिक सम्मान का सूचक है।

समय के ढ़लते बहाव में धीरे-धीरे यह प्रतीक उन सम्मानित जनों के लिए भी विशिष्ट आयोजनों-अवसरों का आडंबरधर्मी प्रतीक बन गया। संरचना के कारण इसे धारण करना बहुत कठिन है। विनीत भाव से भी इसके धारक कहीं थोड़ा झुक जाएं, तो यह सिर से गिर जाता है। मैथिली में ‘पाग गिरना’ एक मुहावरा है, जिसका अर्थ है ‘पगड़ी गिरना’, ‘इज्जत गंवाना’। लिहाजा, संशोधित परंपरा में आस्था रखने वाले आधुनिक सोच के लोगों के सामने इसने बड़ी दुविधा खड़ी कर दी है।

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