संसद मार्ग पर चर्चा है: क्या ‘दंतहीन’ नीतीश कुमार, जिनके मुख से ‘शब्द फिसल रहे हैं’, ‘शारीरिक भाषा लुढ़क रही है’, राजनीतिक संन्यास तो नहीं ले रहे हैं?

क्यों ऐसे बोलते हैं नीतीश जी ? शाब्दिक भाषा और शारीरिक भाषा पर नियंत्रण होना आवश्यक है। का करें 'दांत ही नहीं है... और बीमारी भी

नई दिल्ली / पटना : दिल्ली के जंतर मंतर से पटना के गांधी मैदान तक बिहार के लोगों का यही मानना है कि जिस प्रदेश का मुखिया प्रदेश की महिलाओं का सम्मान नहीं कर सकते है, क्या वे वह मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गए है। कहीं वे शारीरिक रूप से बीमार तो नहीं हैं। वैसे दिल्ली में नवनिर्मित संसद भवन के साथ-साथ संसद मार्ग पर इस बात की भी चर्चा है कि आगामी वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दसवीं बार मुख्यमंत्री पद का दावेदार नहीं करेंगे। 

पिछले कुछ दिनों पूर्व  विवाहित महिला-पुरुष के संबंधों के मामले में बिहार के नीतीश कुमार जिस कदर शारीरिक भाषा को दर्शाते हुए शाब्दिक भाषा में चित्रण किया था, बिहार के निर्माण से आज तक पिछले 112 वर्षों में किसी भी नेता अथवा मुख्यमंत्री द्वारा नहीं कहा गया था। अपने निर्माण काल से लेकर आज तक बिहार 23 मुख्यमंत्रियों का कालखंड देखा है। यह अलग बात है कि अपराध और महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों में प्रदेश का स्थान सर्वोपरि है, फिर भी सार्वजनिक रूप से आज तक किसी भी मुख्यमंत्री के मुख से ऐसे शब्द नहीं निकले थे। लोगों का कहना है कि मानसिक रूप से यह ‘सोच का गर्भपात’ है। 

इतना ही नहीं, नीतीश कुमार की मानसिक विक्षिप्तता इस बात को भी बताता है कि वे बोलने के दौरान शब्दों के प्रयोग पर ध्यान नहीं दे पाते अब। वैसे उनकी आयु अभी 74 वर्ष नहीं हुआ है लेकिन किन शब्दों का कहाँ इस्तेमाल होगा, कौन से शब्द किसके लिए उपयुक्त होगा, यह निर्णय नहीं ले पाते हैं। बोलते-बोलते शारीरिक भाषा के साथ-साथ शाब्दिक भाषा भी बहक जाती है जो प्रदेश के लिए शुभ संकेत नहीं है। वैसे प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की भाषा भी बहुत अच्छी नहीं थी, तथापि वे सार्वजनिक रूप से कभी भी ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं किये, खासकर नेताओं के मामले में।

पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का दृष्टान्त देते दिल्ली के जंतर मंतर से पटना के गांधी मैदान तक इस बात की चर्चा खुलेआम है कि ‘जिस कदर एक सत्तारूढ़ मुख्यमंत्री अपने प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री को सार्वजनिक रूप से अपमानित किये, तुम-ताम कर सम्बोधित किये, यह भले नीतीश कुमार के स्वाभाव में पहले नहीं था, लेकिन समय के साथ-साथ बढ़ती उम्र, ढलता मानसिक संतुलन और आतंरिक शारीरिक बीमारी के कारण ही संभव है। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी नीतीश कुमार से न्यूनतम आठ वर्ष बड़े हैं। 

क्यों ऐसे बोलते हैं नीतीश जी ? शाब्दिक भाषा और शारीरिक भाषा पर नियंत्रण होना आवश्यक है। का करें ‘दांत ही नहीं है… और बीमारी भी

ज्ञातव्य है कि प्रदेश के पूर्व उप मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ सदस्य (अब दिवंगत) सुशील मोदी ने भी सार्वजनिक रूप से यह कहा था कि वे (सुशील मोदी) उन्हें (नीतीश कुमार) विगत पांच दशकों से अधिक समय से जानते हैं लेकिन इतना रौद्र रूप कभी नहीं देखा था। ज्ञातव्य हो कि पिछले लोकसभा चुनाव से पूर्व जेपी आंदोलन की उपज माने जाने वाले थे सुशील मोदी, जिन्होंने भाजपा को बिहार में जीवित रखा, अपनी बीमारी को सार्वजनिक करते एक्स पर लिखा था, ”मैं पिछले छह महीने से कैंसर से जंग लड़ रहा हूं। अब मुझे लगता है कि लोगों को इस बारे में बता देना चाहिए। मैं लोकसभा चुनाव में ज़्यादा कुछ नहीं कर पाऊंगा।” सुशील मोदी की मृत्यु विगत मई मध्य में 72 वर्ष की आयु में रात अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली में निधन हो गया। 

नीतीश कुमार की मानसिक दशा का चुटकी लेते लोगों का कहना है कि जनता दल की आयु अभी 21-वर्ष हुई है और 21 वर्ष की आयु में बहकना भी स्वाभाविक है। सन 1999 के आम चुनावों में कर्णाटक के के तत्कालीन मुख्यमंत्री जे एच पटेल के नेतृत्व में जनता दल का एक गुट ने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन को समर्थन दिया था। इसके बाद जनता दल दो फांक में बंटा। एच डी देवेगौड़ा के नेतृत्व में जनता दल सेकुलर अलग हो गया जबकि दूसरा शरद यादव के नेतृत्व में अस्तित्व में आया। बाद में जनता दल का शरद यादव गुट, लोकशक्ति पार्टी और समता पार्टी आपस में मिलकर 30 अक्टूबर 2003 को जनता दल (यूनाइटेड) को जन्म दिया। बाद के दिनों में जनता दल यूनाइटेड एनडीए में शामिल हो गई। 2009 के लोकसभा चुनाव में इस गठबंधन को बिहार में 32 स्थान मिली। जिनमें भाजपा को 12 सीटों पर सफलता मिली जबकि जेडीयू को 20 स्थानों पर विजय श्री मिला । वहीं 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू को 115 स्थान और भाजपा को 91 स्थान प्राप्त हुईं। इस प्रकार दोनों दलों को 243  सदस्य संख्या वाले बिहार विधानसभा में कुल 206 सीटों पर सफलती मिली और एक बार फिर से सरकार नीतीश कुमार के नेतृत्व में बन गई। 

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अब तक नीतीश कुमार भले नवमी बार प्रदेश का मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए हैं, हकीकत यह है कि स्थापना काल से अब तक जनता दल यूनाइटेड क्रमशः अपने बल पर नहीं, अपितु सांठ-गाँठ से ही प्रदेश सरकार बना पाई है। वैसे 2010 के विधानसभा चुनाव परिणाम में भाजपा को 91 स्थान मिले थे। आज 74 स्थान हैं। जबकि जनता दल यूनाइटेड को 2010 में जहाँ 115 स्थान मिले थे, आज 43 स्थान पर गठबंधन की सरकार में नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने हैं। लोगों का मानना है कि जनता दल के नेता जब शरद यादव (मृत्यु 75 वर्ष में 12 जनवरी, 2023) और जॉर्ज फर्नांडिस (मृत्यु 88 वर्ष में 29 जनवरी, 2019) के नहीं हुए, तो बिहार के मतदाताओं के क्या होंगे? संसद मार्ग पर इस बात की चर्चा है कि आगामी वर्ष अक्टूबर-नवम्बर 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव में जनता दल के मुखिया कहीं सम्पूर्णता के साथ राजनीति से संन्यास न लेने को तो नहीं सोच रहे हैं। वजह यह है कि श्री ललन सिंह काफी मुंह फुलौव्वल के बाद नीतीश के साथ मिले और पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ-साथ केंद्र में मंत्री भी बने।  

दिल्ली के सत्ता के गलियारे में अपना हस्ताक्षर कर चुके हैं लोगों का कहना है कि “मॉडिफाइएड मोदी-III मंत्रिमंडल में जाना तो संजय झाजी को था, लेकिन ललन सिंह के सामने न केवल संजय झा बौना हुए, बल्कि नीतीश कुमार भी बौना हो गए। वैसे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि अपने राजनीतिक जीवन से संन्यास लेने से पूर्व नीतीश कुमार कहीं झाजी को मुख्यमंत्री न बनाते जाएँ – भले कालखंड सप्ताह का हो, पखबाड़ा हो, महीना का हो। नीतीश कुमार झाजी का कितना कर्जदार हैं यह तो झाजी और नितीश बाबू ही जानते हैं। संजय झा अभी राज्यसभा में जनता दाल यूनाइटेड के नेता हैं। जिस दिन उनका चयन हुआ था दिल्ली के रफ़ी मार्ग पर जनतादल यूनाइटेड के नेता भले हंस रहे थे, बधाइयाँ दे रहे थे – लेकिन अंदर से कौन किता कुहर रहा था, यह दो सभी जानते हैं। 

संसद में क्या कहा गया विशेष दर्जा के बारे में

अब आइये, विशेष दर्जा की बात करने 2012 चलते हैं। अब कौन उन्हें समझाए की 2012 में प्रधानमंत्री कार्यालय में भारत के महान अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह बैठे थे और बारह वर्ष बाद आज श्री नरेंद्र मोदी जी बैठे हैं। उस वर्ष जब योजना आयोग बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की बात को ‘निरस्त’ किया था, उसके अगले दिन नीतीश कुमार फिर ‘विशेष दर्जा’ वाला राजनीतिक पत्ता राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी) के सामने फेंके थे। नीतीश कुमार के एक आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया था: “Over the past six years, we have been continuously trying to secure special category status for Bihar. The Prime Minister graciously constituted an Inter-Ministerial Group (IMG) to look into the long-standing demand of Bihar. In its report, the Group suggested that Bihar’s development deficit needs special resource support to overcome the economic and infrastructure backwardness. However, the IMG didn’t consider the issues spelt out with due seriousness and reached preordained conclusions on parameters of special status. Bihar being a land-locked and a least developed State should have prompted the IMG to adopt a different approach altogether.” 

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विशेष दर्जा की राजनीति नीतीश कुमार आज से नहीं कर रहे हैं। हालांकि चौदहवां वित्त आयोग बिहार को विशेष दर्जा देने के मुद्दे पर कानून में प्रावधान नहीं होने की बात कह खारिज कर चुका है। लेकिन जैसा लोग कह रहे थे  “मोदी है तो मुमकिन है”, लेकिन गलत सिद्ध हुए। साल 1969 में पहली बार पांचवें वित्त आयोग ने गाडगिल फॉर्मूले के आधार पर तीन राज्यों जम्मू-कश्मीर, असम और नागालैंड को विशेष राज्य का दर्जा दिया था। इसका आधार इन तीनों राज्यों का सामाजिक, आर्थिक और भौगोलिक पिछड़ापन था. विशेष राज्य का दर्जा देने का उद्देश्य इन राज्यों का पिछड़ापन दूर करना था। इसके अलावा राष्ट्रीय विकास परिषद की ओर से राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा देने को कुछ मापदंड भी बनाए गए थे। इनमें इस बात का ध्यान रखा जाता है कि किसी राज्य के संसाधन क्या हैं, वहां प्रति व्यक्ति आय कितनी है, राज्य की आमदनी का जरिया क्या है? जनजातीय आबादी, पहाड़ी या दुर्गम इलाका, जनसंख्या घनत्व, प्रतिकूल स्थान और अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास स्थित होने के कारण भी राज्यों को विशेष दर्जा दिया जा सकता है। 

विशेष श्रेणी का दर्जा (SCS) एक ऐसा दर्जा है जो किसी राज्य को उसकी विकास दर और पिछड़ेपन के आधार पर दिया जाता है। अगर कोई राज्य भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा हो, तो उसे यह दर्जा दिया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य उन राज्यों को वित्तीय और अन्य सहायता प्रदान करना है ताकि वे भी राष्ट्रीय औसत के बराबर विकास कर सकें। अनुच्छेद 371 के जरिए राज्यों के लिए विशेष प्रावधान कर, उनकी विरासत और स्थानीय लोगों के अधिकारों को बचाया जाता है। विशेष राज्य का दर्जा मिलने पर किसी राज्य को खास छूट के साथ ही खास अनुदान भी मिलता है। देश में योजना आयोग के समय तो केंद्र सरकार के कुल योजनागत खर्च का लगभग 30 फीसदी हिस्सा इन्हीं राज्यों को मिल जाता था। इस धन को खर्च करने के लिए भी विशेष राज्यों को छूट थी। यदि केंद्र से दी गई धनराशि किसी एक वित्त वर्ष में पूरी तरह से खर्च नहीं हो पाती थी तो वह अगले वित्त वर्ष के लिए जारी कर दी जाती थी। अमूमन किसी एक वित्त वर्ष में जारी राशि खर्च नहीं होने पर लैप्स हो जाती है। इसके अलावा विशेष राज्यों को कर्ज स्वैपिंग स्कीम और कर्ज राहत योजना का लाभ भी मिलता था. इन सबका उद्देश्य ऐसे राज्यों में विकास को आगे बढ़ाना होता है। 

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बिहार के लिए क़रीब 60 हज़ार करोड़ और आंध्र प्रदेश के लिए 15 हज़ार करोड़ रुपये देने का प्रावधान किया इस बजट में

लेकिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बिहार के लिए क़रीब 60 हज़ार करोड़ और आंध्र प्रदेश के लिए 15 हज़ार करोड़ रुपये देने का प्रावधान किया इस बजट में, लेकिन बिहार को विशेष दर्जा देने की बात को केंद्र सरकार निरस्त कर दी। वैसे मॉडिफाइएड-III में नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड और चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी का अहम भूमिका है। नीतीश की पार्टी जेडीयू के सांसद रामप्रीत मंडल ने लोकसभा में पूछा था कि क्या केंद्र सरकार के पास बिहार को विशेष दर्जा देने की कोई योजना है? जवाब में केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने कहा कि राष्ट्रीय विकास परिषद के पैमाने के मुताबिक बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देना संभव नहीं है। और जैसे ही यह बात बात सामने आई राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने नीतीश कुमार के इस्तीफे की मांग कर दी। 

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दिल्ली में नॉर्थ ब्लॉक में बैठे वाले बड़े-बड़े हाकिमों का मानना है कि “विशेष दर्जा देना यानी केंद्र सरकार आ बैल मुझे मार” वाली बात को चरितार्थ करेगी। उनका कहना है कि “विशेष दर्जा के नाम पर, विकास के नाम पर पैसों का दुरूपयोग होने की बात है। वैसे आज तक प्रदेश के विधायक और सांसद अपने विधायक-सांसद कोषों का भरपूर इस्तेमाल कर अपने-अपने क्षेत्रों का विकास किये होते तो शायद प्रदेश के विधानपालिका और संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं का यह हश्र नहीं होता। हकीकत तो यह है कि विशेष दर्जा के नाम पर केंद्रीय पैसों का लूट कैसे हो, मार्ग प्रशस्त किया जा रहा है।” यदि देखा जाए तो अधिकारियों की बात भी गलत नहीं है। 

उधर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार केन्द्र सरकार द्वारा प्रस्तुत किया गया बजट सकारात्मक एवं स्वागत योग्य है। इस बजट में बिहार की जरूरतों का विशेष ध्यान रखा गया है। इसके तहत बिहार के मानव संसाधन विकास एवं बुनियादी विकास पर विशेष ध्यान दिया गया है। इस बजट में बिहार की सड़क सम्पर्क परियोजनाओं, विद्युत परियोजनाओं, एयरपोर्ट, मेडिकल कॉलेजों और खेलकूद की संरचनाओं के लिये विशेष राशि का प्रावधान किया गया है। साथ ही बजट में बिहार के पर्यटन स्थलों को विकसित करने के लिये विशेष सहायता की घोषणा की गयी है। बिहार को बाढ़ से बचाव के लिये भी बजट में बड़ा ऐलान किया गया है। कोशी-मेची नदी जोड़ परियोजना, नदी प्रदूषण न्यूनीकरण और सिंचाई परियोजनाओं के लिये विशेष आर्थिक मदद देने की घोषणा की गयी है, जो स्वागत योग्य है। बिहार के लिये बजट में विशेष प्रावधान के लिये आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी एवं माननीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण जी को विशेष धन्यवाद। बजट में बिहार के लिये की गयी इन घोषणाओं से बिहार के विकास में सहयोग मिलेगा। आशा है कि आगे भी अन्य आवश्यकताओं के लिये केन्द्र सरकार इसी तरह बिहार के विकास में सहयोग करेगी।

नीतीश कुमार के मुताबिक बजट 2024 से उनकी उम्मीदें पूरी हुई है। आम बजट 2024 में बिहार के लिए विशेष राहत पैकेज का ऐलान किया गया है। नीतीश कुमार ने केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का धन्यवाद किया है। वित्त मंत्री ने बजट में बिहार में चार नए एक्सप्रेस-वे बनाने के प्रस्ताव दिए हैं। आम बजट में बिहार में सड़क प्रोजेक्ट के लिए 26 हजार करोड़ के पैकेज की घोषणा की गई। इसके अलावा 21 हजार करोड़ के पावर प्लांट का भी ऐलान किया गया। केंद्र सरकार ने पटना से पूर्णिया के बीच एक्सप्रेस-वे बनाने के लिए फंड देने का ऐलान किया है। इसके अलावा बक्सर से भागलपुर के बीच हाईवे बनाया जाएगा। साथ ही बोधगया से राजगीर, वैशाली होते हुए दरभंगा तक हाईवे बनेगा। बक्सर में गंगा नदी पर दो लेन का एक पुल भी बनाया जाएगा। केंद्र सरकार बिहार में कई एयरपोर्ट, मेडिकल कॉलेज और स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर की स्थापना करेगी। पीरपैंती में 2,400 मेगावाट का पावर प्लांट स्थापित किया जाएगा।

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