बिहारे के हैं केंद्रीय स्वास्थ राज्य मंत्री और बिहारे के हज़ारों मरीजों के परिवार/परिचारक ठिठुर रहे हैं दिल्ली की सड़कों पर

श्री अश्विनी कुमार चौबे, केंद्रीय स्वस्थ राज्य मंत्री : काम से अधिक भाषण और वस्त्रों की कड़क में विस्वास रखते हैं

इससे बड़ी शर्म की बात और क्या हो सकती है कि बिहार के सांसद केंद्र में स्वास्थ राज्य मन्त्री हों और उन्हीं के प्रदेश के हज़ारों, लाखों लोग उनके भी समय-काल में दिल्ली की सड़कों पर, सड़कों की सब-वे के अंदर, पेड़ के नीचे, राजधानी की तीन-चार-पांच अथवा शून्य डिग्री प्राकृतिक तापमान में हार-मांस की ठंठ को झेलते, जीवन की सांस को गिनते अपने-अपने मरीजों को शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करती हो। इतना ही नहीं, बिहार के “जेपी”, उत्तर प्रदेश के “लोहिया”, अल्मोड़ा के “पन्त” के नाम पर दिल्ली में अस्पताल भी है और सबसे बड़ी बिडंबना यह है कि बिहार, पहाड़ और उत्तर प्रदेश के मरीजों के परिवार/परिचारक इस शहर के अस्पतालों में सबसे अधिक “उपेक्षित” हैं। क्योंकि केंन्द्र के स्वस्थ मंत्रियों को, प्रदेश के मुख्य मंत्री महोदय को तो “फ़िल्टर” वाला खबर देखने, पढने, सुनने की आदत है।

इससे बिहार से पढ़ने के लिए लोग पलायित होते हैं। चिकित्सा सुविधा के लिए दूसरे राज्यों में जाते हैं। नौकरी के लिए बिहार से बाहर निकलते हैं। खेती-बारी के लिए पंजाब, महाराष्ट्र जाते हैं। अब अगर कोविड -19 के लिए बिहार के सांसदों सहित देश के सांसदों का सांसद/विधायक निधि में 2020-2021 में कटौती की जा सकती है, प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ‘एकाधिकारिक’ रूप में निर्णय ले सकते हैं; तो फिर बिहार के मुख्य मंत्री माननीय नितीश कुमार अपने राज्य के सांसदों और विधायकों से अपने प्रदेश के लोगों के कल्याणार्थ, मतदाताओं के कल्याणार्थ इतना तो कर ही सकते हैं। अदरवाईज, “से नो टू देम।”

पिछले दिनों दिल्ली को गोलबंद करने वाली सड़क रिंग रोड के दक्षिणी तट पर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के चौराहे पर कभी एम्स भवन को देख रहा था, तो कभी अकबर रोड से मन-ही-मन दूरी माप रहा था। इस स्थान पर आने से पहले एम्स और सफदरजंग अस्पताल परिसरों में, अरबिंदो मार्ग जो आई आई टी की ओर जाती है, जाने वाली सड़क पर, गलियों में, सब-वे के अन्दर चतुर्दिक चक्कर लगाया था।
दिल्ली में अगर कंधे पर एक झोला हो, बोतल में पानी हो और झोले में कुछ चबाने के लिए चना ही सही, रखा हो, तो पैदल सड़कों को-गलियों को नापने में मजा ही कुछ और है। यह आनंद और भी अधिक तब हो जाता है जब मन में यह विचार हो कि लिखना है, तो फिर बात ही क्या !

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान का चौराहा

इस स्थान पर मैं एकलौता बिहारी था, एकलौता दिल्ली वाला था, एकलौता भारतीय था जो कुछ अलग सोच रहा था। ऐसी सोच शायद बिहार के करीब 128,458,570 लोग, जिसमें विद्वान-विदुषियों से लेकर रिक्शावाला, शौचालय साफ़ करने वाला, सरकारी दफ्तर में झाड़ू लगाने वाला, कुर्सियों पर बैठने वाले बाबू, व्यवसाय करने वाले बनिया-बेकाल कभी नहीं सोचा होगा, खासकर इस स्थान पर खड़ा होकर। इतना ही नहीं, राजा जनक से लेकर विद्यापति के रास्ते अन्य गणमान्य लोगबाग भी नहीं सोचे होंगे। यह अलग बात है की कल सीता के विवाह में सभी व्यस्त थे।

इतना ही नहीं, दिल्ली के लाल कोठी में बिहार के हिस्से वाले ऊपरी और निचली सदन में बैठने वाले 40 लोक सभा और 16 राज्य सभा के सांसदों के साथ – साथ कुल 243 विधान सभा के सदसयगण भी नहीं सोचे होंगे। वैसे सम्मानित सांसद और प्रदेश के विधायकगण अपने प्रदेश की जनता के लिए भी सोचते हैं – यह तो बहुत बड़ा शोध का विषय है। खैर।

सोचने का विषय था – बिहार में चिकित्सा सुविधा तो वैसे ही दम तोड़ रही है। विगत पांच दसकों में मैं अभी नहीं सुना, पढ़ा की बिहार की चिकित्सा सुविधा देश के किसी भी राज्यों की तुलना में अब्बल है। हो भी कैसे ? यहाँ तो पेट में गैस अधिक जमा होने पर, नाक से पानी बहने पर नेता-लोग सीधा लन्दन, अमेरिका भागते हैं। अगर नहीं निकल सके तो दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, राम मनोहर लोहिया अस्पताल, जी बी पंत अस्पताल, सफदरजंग अस्पताल, लोकनायक जय प्रकाश नारायण अस्पताल में फोन से आरक्षण कर प्रवेश ले लेते हैं। उनके लिए वातानुकूलित कक्ष आरक्षित हो जाते हैं। दबा-दारु का खर्च उठाने के लिए सरकार एक पैर पर खड़ी होती ही हैं डर से ही सही – कहीं अपना समर्थन वापस न ले ले। लेकिन जो मतदाता उन महानुभावों को अपनी उँगलियों में, अपने कपार पर कालिख पोतकर पटना विधान सभा या दिल्ली के लोक सभा और राज्य सभा में जनता की आवाज उठाने के लिए भेजते हैं; उनका क्या?

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बिहार के सभी जिलों को मिलाकर प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या में मरीज और उनके सगे-सम्बन्धी दिल्ली, मुंबई, भेल्लोर, चंडीगढ़ इत्यादि शहरों में इलाज के लिए आते हैं। अब अगर अपने घर में चिकित्सा सुविधा होती तो क्यों आते? यह भी एक शोध का विषय है। इनमें अन्य शहरों के बारे में तो नहीं कह सकता, लिख सकता यहाँ – लेकिन दिल्ली के बारे में तो हवा भरकर लिख सकते हैं।

बिहार में चिकित्सा सुविधाओं की स्थिति उसी तरह है जैसे पाटलिपुत्र लोक सभा के सांसद श्री राम कृपाल यादव साहेब को माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के मंत्रिमंडल के बारे में जानकारी। श्रीमान यादव जी जैसे यह “नहीं जानते” कि देश का आतंरिक कानून-व्यवस्था का सम्पूर्ण बागडोर सम्मानित श्री अमित शाह साहेब के हाथों हैं, वे देश के “गृह मंत्री” है, और माननीय प्रधान मंत्री के दाहिना हाथ हैं, न की सम्मानित श्री राजनाथ सिंह। उसी तरह बिहार प्रदेश की चिकित्सा-व्यवस्था में लगे लोग बागों की है स्थिति है । चाहे मंत्री जी हो, संत्रीजी हो, अधिकारीगण हों, चिकित्सक हों, या अन्य महानुभावगण। अब सभी चीजों का जानकार तो माननीय श्री नितीश कुमार साहेब हो नहीं सकते या उनके इर्द-गिर्द के लोग भी “फ़िल्टर” करके जानकारियां उन्हें देते होंगे। वैसी स्थिति में प्रदेश की जनता को अपने राज्य के अस्पतालों में क्या असुविधा होती है या फिर दूसरे राज्यों में स्थित अस्पतालों में जाने पर क्या असुविधा होती है – यह नितीश जी को क्यों समझना ?

दिल्ली में बिहार के हज़ारों ही नहीं, लाखों अधिकारी पदस्थापित हैं। जंतर-मंतर से लेकर रामलीला मैदान तक नेतागिरी करते हैं नेता लोग। दिल्ली के नगर निगम से भारत के संसद तक चतुर्दिक बिहार के लोग बैठे हैं। मीडिया संस्थानों से अगर एक दिन सभी बिहारी हड़ताल पर चले जाएँ तो यकीन मानिये टीवी के शटर बंद हो जायेंगे। अख़बारों में संसद को कवर करने वाला रिपोर्टर होता है, नगर निगम को कवर करने वाला रिपोर्टर होता है। खेल को कवर करने के लिए दर्जनों रिपोर्टर होते हैं। क्राइम के लिए रिपोर्टर होते हैं। पेज-थ्री के लिए तो पूरा अखबार ही निकलता है।

लेकिन ‘मानवीय कहानियां’ लिखने के लिए औसतन समाचार पत्रों, टीवी संस्थाओं में रिपोर्टरों की किल्लत होती हैं। इस ठंठ में मैं दिल्ली के दो मुख्य अस्पतालों के आस-पास के इलाकों में भ्रमण किया – सिर्फ देखने, समझने और महसूस करने के लिए – और जो देखा, समझा, महसूस किया वह एक मनुष्य के लिए, एक समाज के लिए, एक व्यवस्था के लिए, बिहार विधान सभा, बिहार विधान परिषद्, राज्य सभा, लोक सभा में बैठे बिहार के विधायकों और बिहार के सांसदों के लिए और अंततः बिहार सरकार के लिए, बिहार के धनाढ्यों के लिए, बिहार के उद्योगपतियों के लिए, बिहार के व्यापारियों के लिए – शर्म की पराकाष्ठा थी, शर्म की पराकाष्ठा हैं। लेकिन इसे शर्म की पराकाष्ठा रहने नहीं दिया जा सकता हैं – बसर्ते।

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बिहार के “जेपी” के नाम पर दिल्ली में अस्पताल

विगत दिनों दरभंगा के दिवंगत महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह साहेब का जन्म 113 वां दिन था। बहुत ही नेक कार्य था। उक्त अवसर पर दरभंगा के रामबाग परिसर में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। चिकित्सा  शिविर का भी आयोजन था। निःशक्तता आयुक्त डॉ शिवाजी कुमार भी मुख्य अथिति थे। महाराजा के परिवार के लोग भी उपस्थित थे। उक्त अवसर पर दिव्यांगों के लिए दर्जनों ट्राइस्किल बांटा गया। यह अलग बात थी कि महाराजाधिराज अगर स्वर्गलोक  से उस दृश्य को देखे होंगे, पढ़े होंगे तो अश्रुपूरित अवश्य हो गए होंगे। कारण यह था कि दिव्यांगों को दी जाने वाली ट्राइस्किल के पीछे महाराजाधिराज के नाम का ट्रस्ट का नाम लिखा था ट्राइस्किल ‘प्रदाता के रूप में उनकी तीसरी पीढ़ी के वंशजों का नाम, वह भी अशुद्ध ।

फिर ख्याल आया की भारत का शायद ही कोई शैक्षणिक संस्था होगी (कुकुरमुत्तों जैसा निजी क्षेत्रों में पनपने वाले नहीं), या फिर उस ज़माने के शायद ही कोई राज नेता होंगे, आप माननीय मदन मोहन मालवीयजी का भी नाम ले सकते हैं, आप डॉ राजेंद्र प्रसाद का भी नाम ले सकते हैं, आप नेताजी सुभाष चंद्र बोस का भी नाम ले सकते हैं – जिन्हे हाथ बढ़ाने पर महाराजाधिराज हाथ पकडे नहीं होंगे। कहते हैं मांगने वालों का हाथ हमेशा नीचे होता है। लेकिन महाराजाधिराज कभी मांगने वालों के सम्मान को ठेस नहीं पहुँचने दिया और उन्हें कभी निराश भी नहीं होने दिया। मदद अपनी उत्कर्ष पर रहता था। महाराजाधिराज की मृत्यु 55 साल की उम्र में कोई 58 वर्ष पहले सन 1962 में हुई थी।

फिर सोचा कि आज भी महारानी साहिबा जीवित हैं जिन्हे महाराजाधिराज बहुत प्रेम करते थे । महाराजाधिराज के वंशज भी जीवित हैं। महाराजा की सम्पत्तियों के हिस्सेदार भी जीवित हैं। आज भी उनके पास उतनी सम्पत्तियाँ हैं कि एक प्रदेश स्थापित हो सकता है। फिर अगर दरभंगा राज या फिर महाराजा कामेश्वर सिंह मेमोरियल ट्रस्ट या फिर कामेश्वर सिंह कल्याणी फॉउंडेशन की अगुआई में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में एक बेहतरीन धर्मशाला का निर्माण होता, या फिर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के आस-पास के इलाकों में बन रहे आवासीय कालोनियों में, गगनचुम्बी अट्टालिकाओं में पांच-छः फ्लैटों को मिलाकर अथवा 100-150 छोटे-छोटे कमरों वाला धर्मशालानुमा स्थान बनाया जाय तो कितना बेहतर होता। इस सुविधा का उपयोग सिर्फ और सिर्फ उन्ही व्यक्तियों, परिवारों को करने दिया जाय जो अपने सगे -सम्बन्धियों को बेहतर चिकित्सा के लिए, इलाज करने के लिए बिहार के दूर-दरास्त इलाकों से अखिल भारतीय चिकित्सा संस्थान, जी बी पंत अस्पताल, राम मनोहर लोहिया अस्पताल या सफदरजंग अस्पताल या एल एन जे पी अस्पताल में आते हैं और गर्मी में, बरसात में, ठंढ में दिल्ली की सड़कों पर, पेड़ों के नीचे, सड़कों के सब-वे में जीवन यापन करते हैं।

मैं अपनी औकात जानता हूँ। लेकिन अगर आज महाराजाधिराज जीवित होते तो एक बात पक्का था, मैं अपनी बात उन तक जरूर पहुंचा देता। यह विस्वास है। आज अगर महाराजाधिराज, दरभंगा जीवित होते तो चिकित्सा के लिए बिहार से आये मरीजों के लोगबाग दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के बाहर, खुली सड़कों पर, सब-वे में, अस्पताल प्रांगण में हड्डी-पसली में लकवा मारने वाली ठंड में मर-मर कर नहीं जीते। लेकिन उनके वंशज, जो उनकी सम्पत्तियों के हकदार बने, तक पहुँचने अथवा महारानी साहिबा तक पहुँचने, अपनी बात कहने की “आर्थिक औकात” मुझमें नहीं है। सुनते हैं महाराजा तो “दीन-निरीहों, गरीबों की बात सार्वजनिक रूप से सुनते थे और उनकी समस्याओं का निदान भी करते थे । लेकिन आज की पीढ़ियां शायद उनके उन गुणों को हस्तान्तरित नहीं कर सकी।”

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इतना ही नहीं। दिल्ली सल्तनत से लेकर बिहार की भूमि तक व्यवस्था और सरकार के लोग यदि किसी योजना में “जनता की भागीदारी की कामना रखते हैं”, तो यहाँ अगर राज दरभंगा इस प्रयास की अगुआई करे, तो इस प्रयास में में बिहार सरकार से भी भागीदारी मांग सकते हैं। इसके लिए भी एक सहज उपाय है। इस प्रयास के तहत निजी क्षेत्र के लोगों की भागीदारी जो भी हो, लोगबाग जो भी दान कर सकें।

अब जरा गणित देखिये – अगर बिहार के सभी 40 लोक सभा और 16 राज्य सभा के सदस्यों को अपने-अपने संसद निधि से मात्र 50 लाख रुपये और बिहार के सभी विधायकों को अपनी निधि से 25-25 लाख रुपये इस पुनीत कार्य हेतु माँगा जाय तो कुल रकम को आप स्वयं आंकें :

56 सांसद (40 लोक सभा और १६ राज्य सभा) x 50,00,000 = 28,00,00 000/- रुपये + बिहार के 243 विधायक x 25,00,000 = 60,75,00,000/- यानि कुल 88,75,00,000/- रुपये। इतने लोगों की भागीदारी से हम न केवल एक दिल्ली सल्तनत में एक इतिहास बना सकते हैं, बल्कि भारत के अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की व्यवस्था, सरकार और मतदाताओं के लिए एक मील का पथ्थर भी बना सकते हैं जो आज की ही नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियां इस सहभागिता को स्वर्णाक्षरों में लिखेगी।

यह सेवा हम मुफ्त में नहीं देंगे बल्कि एक न्यूनतम मूल्य पर उन्हें इस सेवा का लाभ प्राप्त करने का अवसर देंगे ताकि सर्दी में, गर्मी में, बारिस में उन्हें खुले आसमान के नीचे नहीं रहना पड़े । वजह यह है कि “मुफ्त में मिली आज़ादी की कीमत भी तो लोग बाग़ नहीं जानते। कहते हैं हम तो आज़ाद भारत में जन्म लिए।”

खैर, यह सच है की आज अगर हम लोगों को बेहतर सेवा देते हैं तो लोग खर्च करने में भी कोताही नहीं करते। इस तरह से हम सैकड़ों लोगों को नियोजन भी दे सकते हैं।

बहरहाल, आर्यावर्तइण्डियननेशन.कॉम के साथ-साथ दसकों से भारतीय स्वाधीनता संग्राम के गुमनाम क्रान्तिकारियों , शहीदों के आज के जीवित वंशजों की खोज से सम्बंधित इण्डियन मार्टियर्स(डॉट)कॉम इस प्रयास का पहला “भागीदारी” करेगा – आप भी आगे आएं।

साथ ही, महाराजाधिराज दरभंगा के वंशजों से प्रार्थना करता है कि दिल्ली में महाराजाधिराज के नाम पर अगर एक न्यूनतम १००-१५० कमरे और अधिक का धर्मशाला नुमा स्थान बना देते, जिसमें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान या दिल्ली के अन्य अस्पतालों में आने वाले मरीजों के लोगों को सर छुपाने का स्थान मिल जाता, तो शायद हज़ारों-लाखों बेसहारा, निरीह, अबला, दीन, हतास, गरीब, असहाय लोगों की दुआएं उन्हें मिलती और सबसे अधिक यह सबसे बड़ा समर्पण – नमन और श्रद्धांजलि होता महाराजाधिराज दरभंगा सर कामेश्वर सिंह के प्रति।

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