समय दूर नहीं है जब भारत सरकार का आम बजट सरकारी कर्मचारियों, नेताओं के निमित्त ‘खास बजट’ पेश किया जायेगा

श्री उद्धव ठाकरे, पूर्व-मुख्यमंत्री

मुंबई/नई दिल्ली: समय दूर नहीं है जब भारत सरकार का आम बजट सरकारी कर्मचारियों, नेताओं के निमित्त ‘खास बजट’ पेश किया जायेगा – विश्वास नहीं होता है तो पढ़िए और स्वयं भी अन्वेषण कीजिये – अब अगर पियाज और टमाटर 250/- रुपये किलो बाजार में मिलता हैं तो छटपटाहट क्यों? 

श्री उद्धव ठाकरे बहुत प्रसन्न हैं। और प्रसन्न इसलिए हैं कि उन्हें जीवन पर्यन्त पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में ‘पेंशन’ मिलता रहेगा। एक बार संसद सदस्य बन गए तो सोना पर सुहागा, पेंशन संसद वाला भी मिलने लगेगा। उद्धव ठाकरे एक दृष्टान्त हैं। वजह यह है कि भारत में विगत वर्षों तक, आगे भी, भारत सरकार पेंशन के मद पर 4,000,000,000,000+ रुपये प्रतिवर्ष खर्च करती हैं जो भारत के सभी विधान सभाओं, राज्य सभा, लोक सभा, विधान परिषद आदि के सदस्य रहे और किसी गली कूची की सरकारी कार्यालयों से लेकर राष्ट्रपति भवन कार्यालय में सेवा अर्पित किये हैं । श्री उद्धव ठाकरे साहब का नाम भी महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में सूचीबद्ध हो गया – यानी वे भी अब पेंशन के हकदार हो गए। 

सनद रहे – अगर भारत में भूतपूर्व-सांसदों से लेकर अवकाश-प्राप्त सरकारी शौचालय में मैला साफ करने वाले सफाई कर्मचारी तक, दोनों में “समानता” को आंकें, तो एक जबरदस्त समानता है; चाहे वे किसी भी जाति, धर्म, सम्प्रदाय के हों – दोनों भारत सरकार और राज्य सरकारी खजाने से प्रतिमाह पेंशन लेते हैं। आपको सहज “हज़म” भले न हों क्योंकि आपने कभी अपने के अलावे दूसरों (अपने परिवार-परिजनों सहित) का भी भला हो, सोचा ही नहीं। भारत सरकार के ख़जाने से  सन 1991 से 2018 वित्तीय वर्ष तक 4,000,000,000,000+ न्यूनतम रुपये सिर्फ, और सिर्फ, सरकारी-सेवा अवकाश-प्राप्त महानुभावों के पेंशन पर खर्च किया गया है। यह राशि छोटी नहीं है !!

यह तो सरकारी अवकाश-प्राप्त मुलाजिमों और सांसदों की बात है। अगर विभिन्न सरकारों द्वारा घोषित विभिन्न-प्रकार की पेन्शन-योजनाओं, चाहे प्रधान मंत्री के नाम पर हो, या किसी वृद्ध व्यक्ति के निमित्त या बीमार भारतीय के निमित्त या विधवाओं के निमित्त – बहुत बड़ा, यानि बहुत बड़ा “स्कैम” है। खासकर भारत ऐसे आर्थिक-रूप से कमजोर देश, जहाँ प्रत्येक घंटे बड़े-बड़े अधिकारियों, सफेदपोश नेताओं, समाज के दबगों, कारपोरेट घरानों के मालिकों / मालकिनों की मिली-भगत से कोई-न-कोई मौद्रिक-स्कैम होता आ है, चाहे बैंक स्कैम हो या बारूद-स्कैम; उसी देश में सरकारी खजाने से प्रत्येक वर्ष भूतपूर्व-सांसदों पर कुल 840 करोड़ रुपये और सरकारी अवकाशप्राप्त मुलाजिमों को 1.68 लाख करोड़ “पेंशन के रूप में” भुगतान होता है।
 
यदि पेंशन योजनाओं की शुरूआती तारीखों से इन अवकाश-प्राप्त सांसदों और सरकारी मुलाजिमों को देय पेंशन राशि की गणना की जाय तो, सम्भवतः भारत ही नहीं, विश्व के गणितज्ञ और सांख्यिकी बनाने वाले, सांख्यिकी एकत्रित करने वाले इस कार्य को नहीं कर पाएंगे – वैसे भी “इस अनुत्पादक” राशि, जो किसी राष्ट्र के लिए “एसेट्स” नहीं है, और ना ही होगा, समय अंतराल इन राशियों में “कमी” होने के सम्भावना भी नहीं है – राष्ट्र के निर्माण में दीमक जैसा है, जो उस समय की पीढ़ी के युवक-युवतियों के जीवन-निर्माण के अवसरों को छीनती ही नहीं, बल्कि अपने-अपने पैरों तले अपने परिवार के सदस्यों, परिजनों का भविष्य भी रौंदती है । नेता तो चाहेंगे ही की मतदाताओं के सामने  “रोटी” फेंक दें, शासन की गद्दी पर बैठे रहें – लेकिन कभी आपने सोचा क्या सही है या क्या गलत ? शायद नहीं।  

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आज़ादी के विगत 75 -सालों में जिस तरह प्रति-वर्ष गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, शिप्रा, गोदावरी, कावेरी, कृष्णा, ब्रह्मपुत्र, अलकनंदा, भागीरथी, सरयू, चम्बल, बेतबा, सिंध, काली, घाघरा, चिनाव, गंडक, ताप्ती, पेरियार, तीस्ता और अन्य भारतीय नदियों में पानी के अनवरत बहाव का हम सदुपयोग नहीं सके; भूतपूर्व- सांसदों और अवकाश-प्राप्त सरकारी मुजाजिमों पर भी “अनुत्पादक राशि” खर्च कर उन्हें राष्ट्र का पैरासाईट बनाते चले गए – महज अपनी-अपनी राजनीति लिए, वोट-बैंक के लिए। 

आश्चर्य तो तब होता है जब सन 1994 में केन्द्रीय सरकारी क्षेत्र में कुल “ऑर्गेनाइज्ड वर्कफोर्स” जो 12.4 फीसदी था, सन 2012 में घटकर महज़ 8.5 फीसदी हो गया, और 2020 में दो फीसदी और कम।  सन 2014 में 14 लाख आर्म्ड फ़ोर्स के साथ केंद्रीय सरकारती क्षेत्र में 47 लाख कर्मचारी थे, जिसमे मिलियरी 30 %, रेलवे 28 % – सन 2006 और 2014 के बीच केंद्र सरकार के सभी क्षेत्रों में मुलाजिमों  की  संख्या में बृद्धि हुयी, सिवाय गृह-मंत्रालय  कार्य करने वाले मुलाजिमों को छोड़कर, जिसमें पारा-मिलिट्री फ़ोर्स भी सम्मिलित हैं। 

यदि आंकड़ों को देखा जाय तो भारत में केंद्रीय सरकारी क्षेत्र में कार्य करने वाले कर्मचारियों से अधिक अवकाश-प्राप्त कर्मचारी हैं, जो अपने कार्यकाल में सरकार द्वारा प्रदत्त सभी सुविधाओं का लाभ तो उठाये ही, तनखाह भी लिए; साथ अवकाश प्राप्त करने के बाद जीवन पर्यन्त सरकारी कोष से प्रत्येक माह पेंशन भी लेते हैं – लेकिन उत्पादकता पर किसी ने कभी भी कोई प्रश्न नहीं किया। 

सवाल यह है कि इन भूतपूर्व-सांसदों को,  सरकारी मुलाजिमों को मिलने वाली पेंशन राशि का इस्तेमाल यदि देश में बड़े पैमाने पर उद्योगों को स्थापित करने, स्वास्थ सुविधा हेतु आधुनिक उपकरणों से  युक्त अस्पताल खोलने  में, या सरकारी क्षेत्रों में शैक्षिक-व्यवस्था को मजबूत बनाने  की दिशा में इस्तेमाल किया गया होता, या किया जाय तो आज की पीढ़ी को ही नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी उत्तम शैशणिक वातावरण,  स्वास्थ व्यवस्था उपलब्ध होगा। 

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वजह यह है कि निजी क्षेत्रों में आज जो भी सुविधाएँ उपलब्ध हैं वह इसलिए की सरकार, सरकार के लोग, सरकारी अधिकारी, उद्योपति, कॉर्पोरेट, बिचौलियों के ‘मिली-भगत’ के कारण ही है। अन्यथा सरकारी क्षेत्रों की यह दशा नहीं होती। देश को लूटने में सिर्फ राजनेतागणं ही नहीं, उनके कार्यरत चमचे / अधिकारी ही नहीं, उनके ब्रोकर ही नहीं हैं।  भारत का एक विशाल समुदाय इस कार्य में लगा है जो राष्ट्र की नींव को खोखला कर रहा है –  यानि अवकाश के बाद पेंशन लेने वाले भी हैं अन्यथा  4,000,000,000,000+ रुपये उन्हें पेंशन देने में खर्च किया गया होता, किया जाता –  इसलिए की वे सरकारी नौकरी में थे ?

यह सहज पच्य नहीं है कि भारत में इन 52 लाख पेंशन-भोक्तओं के लिए तक़रीबन चार दर्जन से अधिक एसोसिएशन्स / यूनियन्स / संगठन कार्य  करते हैं। अगर राजनीतिक दृष्टि से अवलोकन करें तो इन 52 लाख + मतदाताओं के लिए बहुत ही मसक्कत करती है राजनीतिक पार्टियां, और बाद में सत्ता में आने पर सरकार। 

जरा दूसरे  पक्ष भी निहारिये – आंकड़ों अनुसार देश में केंद्रीय सरकार के विभिन्न संस्थानों, विभागों के अधीन कोई 7.47 लाख नौकरियाँ रिक्त हैं। सबसे अधिक राजस्व विभाग में है। राजस्व विभाग में कुल अनुशंसित स्थानों में कोई 45 फीसदी स्थान रिक्त हैं। इतना ही नहीं, भारतीय रेल में कोई 2,50,000 स्थान रिक्त पड़े हैं। लेकिन उन्हें क्या?

अभी हाल  में  ही, महाराष्ट्र सरकार यह चिंता दिखाई की सन 2010-2011 में जहाँ अपने 19 लाख कर्मचारियों के वेतन और पेंशन राशि में उसे 51 632 करोड़ रुपये खर्च होते थे, 2020-2021 वित्तीय वर्ष में इस राशि में 202 . 4 फीसदी की वृद्धि होकर यह 1,55,940 करोड़ हो गयी है – जो चिंताजनक है। यह स्थिति सिर्फ महाराष्ट्र की ही नहीं है, बल्कि  राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के कोषागारों का है। 

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पिछले दिनों भारतीय रेल यह आंकने की   मुहीम चलाई की वास्तव में रेलवे द्वारा दी जाने वाली पेंशन राशि में भोक्ता जीवित हैं अथवा नहीं, विशेषकर जो 80 और 100 के उम्र के हैं ? इसलिए रेलवे ने सभी वेलफेयर इंस्पेक्टरों को पेंशन प्राप्त  करने वाले कर्मचारियों के घर-घर भेजना प्रारम्भ की। वजह था – पैसों की कमी। रेलवे में कोई 13,75,483 अवकाश प्राप्त कर्मचारी हैं जिनपर रेलवे, यानि सरकार, प्रत्येक वर्ष 8000 करोड़ पेंशन राशि पर खर्च करती हैं। आपको सुखद आश्चर्य होगा को भारतीय रेल में आज 2,86,000 कर्मचारी ऐसे हैं जो 80 और 100 वर्ष के बीच के  और सरकारी पेंशन का मजा ले रहे हैं। 

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