पार्श्ववर्ती प्रवेश (लेटरल एंट्री) : रुक्मणी रुक्मणी, शादी के बाद क्या क्या हुआ – कौन हारा कौन जीता, खिड़की मे से देखो ज़रा …”  

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

नॉर्थ ब्लॉक (नई दिल्ली): आज से 32-वर्ष पहले लेखिका सुजाता की कहानी पर मणिरत्नम के निर्देशन में  एक सिनेमा बना था जो 15 अगस्त, 1992 को भारत के छवि गृहों में आया था। नाम था ‘रोजा’ और इस सिनेमा में संतोष सिवन और मधुबाला मुख्य भूमिका में थे। इस सिनेमा में संगीत दिया था ए आर रहमान। आर्थिक कमाई की बात छोड़ दें तो इस फिल्म से मणिरत्नम और रहमान साहब को एक नई पहचान मिली। दोनों के झोली में अनेकानेक सम्मान आये। यह सिनेमा पहले तमिल में बनी, फिर हिंदी में। इस सिनेमा में एक मधुर गीत था जिसे शब्दबद्ध किये थे पीके मिश्रा और गाये थे बाबा सहगल तथा श्वेता शेट्टी।

गीत के बोल थे:  “रुक्मणी रुक्मणी, शादी के बाद क्या क्या हुआ – कौन हारा कौन जीता, खिड़की मे से देखो ज़रा …”  

श्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में सम्मानित राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रधानमंत्री कार्यालय और कार्मिक, लोक शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय राज्यमंत्री  डॉ. जितेंद्र सिंह द्वारा संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष को पार्श्व प्रवेश (लेटरल एंट्री) के तहत 45 वरिष्ठ अधिकारियों की नियुक्ति के लिए जारी विज्ञापन को तत्काल प्रभाव से रद्द करने का अनुरोध पढ़कर रोजा सिनेमा का यह गीत होठों पर आ गया। चार दिन पहले विज्ञापन का निकलना और चार दिन बाद उसे निरस्त कर देना – किसकी जीत अथवा किसकी हार मानी जाएगी यह 140 करोड़ मतदाताओं का प्रश्न है।

भारत के संसद में सत्तारूढ़ पार्टी और विपक्ष में महज 59 अंकों का फासला है। सत्तारूढ़ एनडीए के पास 543 कुर्सियों में एक ओर जहाँ 293 कुर्सियां हैं, वहीँ इंडिया गठबंधन के पास 234 कुर्सियां हैं। अन्य के पास 17 कुर्सियां हैं। विगत दस वर्षों का भारत का राजनीतिक इतिहास, विशेषकर सरकारी स्तर पर लिए गए फैसले के मद्देनजर इस बात को कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि पार्श्व प्रवेश (लेटरल एंट्री) के तहत संघ लोक सेवा आयोग द्वारा जिन 45 वरिष्ठ अधिकारियों की नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया गया था, उसकी जानकारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नहीं हो, अथवा उनके अनुशंसा के बिना आयोग को प्रेषित किया गया हो। पार्श्व प्रवेश भर्ती विज्ञापन के महज 96-घंटे के अंदर केंद्र सरकार द्वारा वापस लेना किसकी जीत अथवा किसकी हार मानी जाएगी यह 140 करोड़ मतदाताओं का प्रश्न है।

संघ लोक सेवा आयोग की अध्यक्ष श्रीमती प्रीति सूडान को लिखे गए पत्र में डॉ. जितेंद्र सिंह, राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक लोक शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय ने लिखा है: “It is important that the Constitutional mandate towards social justice is upheld so that the deserving candidates from marginalized communities get their rightful representation in the government services. Since these position have been treated as specialized and designated as single-cadre posts, there has been no provision for reservation in these appointments. This aspect needs to be reviewed and reformed in the context of the Hon’ble Prime Minister’s focus on ensuring social justice. Hence, I urge the UPSC to cancel the advertisement for lateral entry recruitment issued on 17.8.2024. This step would be a significant advance in the pursuit of social justice and empowerment.”
 

राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रधानमंत्री कार्यालय और कार्मिक, लोक शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय राज्यमंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह

सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री, उनके मंत्रिमंडल के लोगों को इस निर्णय से पहले, यानी विज्ञापन निर्गत करने के पहले इन बातों का ज्ञान नहीं हुआ, जो विज्ञापन निकलने के चार दिन बाद हुआ! अपने पत्र में जितेंद्र सिंह ने कहा, ‘हमारी सरकार का प्रयास प्रक्रिया को संस्थागत रूप से संचालित, पारदर्शी और खुला बनाने का रहा है। प्रधानमंत्री का दृढ़ विश्वास है कि पार्श्व प्रवेश की प्रक्रिया को हमारे संविधान में निहित समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के साथ जोड़ा जाना चाहिए, विशेष रूप से आरक्षण के प्रावधानों के संबंध में। प्रधानमंत्री के लिए सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण हमारे सामाजिक न्याय ढांचे की आधारशिला है, जिसका उद्देश्य ऐतिहासिक अन्याय को दूर करना और समावेशिता को बढ़ावा देना है।’

पत्र में कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सार्वजनिक सेवा में आरक्षण के हिमायती हैं और हमारी सरकार सामाजिक न्याय को मजबूत करने को लेकर प्रतिबद्ध है, इसलिए हम आपसे अनुरोध करते हैं कि उन रिक्त स्थान की भर्ती सम्बन्धी विज्ञापन को रद्द कर दिया जाए।पत्र में लिखा गया कि : “It is well known that, as principle, lateral entry was endorsed by the Second Administrative Reforms Committee which was constituted in 2005, chaired by Shri Veerappa Moily. The recommendation of the Sixth pay Commission in 2013 were also in the same direction. However, both before and after that there have been many high profile cases of lateral entrants. Under earlier governments, posts as important as that of Secretary in various ministries, leadership of UIDAI etc.,have been given to lateral entrants without following any process of reservation. Further, it is well known that the members of the famous National Advisory Council used to run a super-bureaucracy that controlled the Prime Minister;’s Office.”

पूरा विपक्ष लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती के विरोध में खड़ा था। विपक्ष ने इसे सत्तारूढ़ बीजेपी की मनमानी बताते हुए ‘संविधान का उल्लंघन’ करार दिया। अखिलेश यादव ने इस फैसले के खिलाफ दो अक्टूबर से प्रदर्शन करने की चेतावनी भी दी। कांग्रेस ने कहा कि केंद्र में ‘लेटरल एंट्री’ के माध्यम से भर्ती अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों को आरक्षण से दूर रखने की सरकार की साजिश है। कांग्रेस ने आरोप भी लगाया कि सोची समझी साजिश के तहत बीजेपी जानबूझकर नौकरियों में ऐसे भर्ती कर रही है, ताकि आरक्षण से अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ावर्ग को दूर रखा जा सके। इस तरह की कार्रवाई से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण खुलेआम छीना जा रहा है। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री संघ लोक सेवा आयोग के बजाय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के माध्यम से लोक सेवकों की भर्ती करके संविधान पर हमला कर रहे हैं।

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आश्चर्य की बात तो यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में सहयोगी और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने भी इस तरह से सरकारी पदों पर नियुक्तियों के किसी भी कदम की आलोचना की और कहा कि वह केंद्र के समक्ष यह मुद्दा उठाएंगे। उन्होंने कहा कि “किसी भी सरकारी नियुक्ति में आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए। इसमें कोई किंतु-परंतु नहीं है। निजी क्षेत्र में आरक्षण नहीं है और अगर सरकारी पदों पर भी यह लागू नहीं किया जाता है तो यह जानकारी मेरे लिए चिंता का विषय है।” 

सरकार का तर्क है कि पार्श्ववर्ती प्रवेश के तहत उच्च पदों पर नियुक्ति कोई पहली बार नहीं की जा रही हैं, बल्कि इस प्रकार की नियुक्ति पूर्व में भी की जाती रही है। अंतर केवल इतना है कि इस बार इन नियुक्तियों के लिये आवेदन आमंत्रित किये गए हैं। दूसरी ओर इस प्रकार की नियुक्तियों का विरोध करने वालों का कहना है कि इससे संघ लोक सेवा आयोग एक असहाय संस्था बनकर रह जाएगी और आरक्षण व्यवस्था को भी नुकसान पहुँचेगा। सरकार का कहना है कि ऐसा करने से विकास की नई अवधारणा से नौकरशाही खुद को सीधे तौर पर जोड़ सकेगी। इसी प्रकार कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकार नौकरशाही में सुधार करके काम करने की प्रक्रिया को सरल बनाना चाहती है, तो उसका विरोध नहीं होना चाहिये। 

निजी क्षेत्र से संयुक्त सचिवों की सीधी भर्ती ऐसा ही एक कदम है, क्योंकि निजी क्षेत्र में दक्षता और पारदर्शिता की मदद से ही कोई कामयाब हो सकता है, जबकि सरकारी तंत्र के लिये ऐसा होना आवश्यक नहीं। इसमें कोई दो राय नहीं कि नौकरशाही में सुधार की आवश्यकता है, लेकिन ऐसा करने से पहले इसे राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त करने की भी आवश्यकता है। देश में संयुक्त सचिव के कुल 341 पद हैं, जिनमें से 249 पदों पर IAS अधिकारी ही नियुक्त होते हैं तथा शेष 92 पदों पर विशेषज्ञों की नियुक्ति की जाती है, जो गैर-IAS भी होते हैं। लेकिन इसके लिए अब तक किसी तरह का विज्ञापन जारी नहीं किया जाता था और सरकार इन पदों पर नियुक्तियां कर देती थी। 

जुलाई 2017 में सरकार ने नौकरशाही में देश की सबसे प्रतिष्ठित मानी जाने वाली सिविल सेवाओं में परीक्षा के माध्यम से नियुक्ति के अलावा अन्य क्षेत्रों अर्थात पार्श्ववर्ती प्रवेश से प्रवेश का प्रावधान पर विचार करने की बात कही थी। सरकार चाहती है कि निजी क्षेत्र के अनुभवी उच्चाधिकारियों को विभिन्न विभागों में उपसचिव, निदेशक और संयुक्त सचिव स्तर के पदों पर नियुक्त किया जाए। इसके लगभग एक वर्ष बाद केंद्र सरकार ने पार्श्ववर्ती प्रवेश की अधिसूचना जारी करते हुए पदों के लिये आवेदन आमंत्रित किये थे। इसके अलावा, नीति आयोग ने एक रिपोर्ट में कहा था कि यह जरूरी है कि पार्श्ववर्ती प्रवेश के तहत विशेषज्ञों को मुख्यधारा में शामिल किया जाए। इसका उद्देश्य नौकरशाही को गति देने के लिये निजी क्षेत्र से विशेषज्ञों की तलाश करना था। जिसके तहत सबसे पहले विभिन्न विभागों में संयुक्त सचिव के 9 पदों के लिये निजी क्षेत्र के आवेदकों को चुना गया है जिसमें अंबर दुबे (नागरिक उड्डयन), अरुण गोयल (वाणिज्य), राजीव सक्सेना (आर्थिक मामले), सुजीत कुमार बाजपेयी (पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन), सौरभ मिश्रा (वित्तीय सेवाएँ), दिनेश दयानंद जगदाले (नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा), सुमन प्रसाद सिंह (सड़क परिवहन और राजमार्ग), भूषण कुमार (शिपिंग) और काकोली घोष (कृषि, सहयोग और किसान कल्याण) शामिल हैं। कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय को इन पदों के लिये 6077 आवेदन मिले थे। 

संघ लोक सेवा आयोग ने पार्श्ववर्ती प्रवेश के जरिए सीधे 𝟒𝟓 संयुक्त सचिव, उप-सचिव और निदेशक स्तर की नौकरियां निकाली है जिनमें 10 संयुक्त सचिव और 35 निदेशक/उप सचिव के पद शामिल थी । शुरुआत में सरकार 10 मंत्रालयों, मसलन, राजस्व विभाग, वित्तीय सेवा विभाग, आर्थिक कार्य विभाग, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय, जहाजरानी मंत्रालय, नागर विमानन मंत्रालय, पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में विशेषज्ञ संयुक्त सचिवों को नियुक्त करने की बात थी।  

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इन पदों पर आवेदन के लिये न्यूनतम आयु सीमा 40 वर्ष रखी गई थी, जबकि अधिकतम आयु सीमा तय नहीं की गई थी। इनका वेतन केंद्र सरकार के अंतर्गत काम करने वाले संयुक्त सचिव के समान बनाया गया था तथा अन्य सुविधाएं भी उसी अनुरूप मिलने की बात की गई थी। सभी नियुक्त लोगों को सर्विस रूल के तहत काम करना था । इस प्रकार संघ लोक सेवा आयोग से नियुक्त होने वाले संयुक्त सचिवों का कार्यकाल उनकी कार्य-निष्पादन क्षमता के अनुसार 3 से 5 साल का था । केवल अन्तर्वीक्षा के आधार पर इनका चयन होना था तथा मंत्रिमंडल सचिव की अध्यक्षता में बनने वाली कमेटी उनका इंटरव्यू लेती । योग्यता के अनुसार सामान्य ग्रेजुएट और किसी सरकारी, सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई, विश्वविद्यालय के अलावा किसी निजी कंपनी में 15 साल का अनुभव निर्धारित किया गया था। 

ज्ञातव्य हो कि आज़ादी के चार साल बाद सं 1951 में प्रशासन की कार्यशैली पर एन.डी. गोरेवाला की रिपोर्ट ‘लोक प्रशासन पर प्रतिवेदन’ नाम से आई। रिपोर्ट के अनुसार कोई भी लोकतंत्र स्पष्ट, कुशल और निष्पक्ष प्रशासन के अभाव में सफल नियोजन नहीं कर सकता। इस रिपोर्ट में अनेक उपयोगी सुझाव थे, लेकिन क्रियान्वयन नहीं हुआ। 1952 में केंद्र ने प्रशासनिक सुधारों पर विचार करने के लिए अमेरिकी विशेषज्ञ पॉल एपिलबी की नियुक्ति की। उन्होंने ‘भारत में लोक प्रशासन सर्वेक्षण का प्रतिवेदन’ प्रस्तुत किया। इस रिपोर्ट में भी अनेक महत्त्वपूर्ण सुझाव थे, लेकिन जड़ता जस-की-तस बनी रही। स्वाधीनता के 19 वर्ष बाद 1966 में पहला प्रशासनिक सुधार आयोग बना, जिसने 1970 अपनी अंतिम रिपोर्ट पेश की।इसके लगभग 30 वर्ष बाद 2005 में दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन किया गया था। नौकरशाही में पार्श्ववर्ती प्रवेश का पहला प्रस्ताव 2005 में आया था; लेकिन तब इसे सिरे से खारिज कर दिया गया। 

इसके बाद 2010 में दूसरी प्रशासनिक सुधार रिपोर्ट में भी इसकी अनुशंसा की गई थी, लेकिन इसे आगे बढ़ाने में समस्याएँ आने पर सरकार ने इससे हाथ खींच लिये। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में इसकी संभावना तलाशने के लिये एक कमेटी बनाई, जिसने अपनी रिपोर्ट में इस प्रस्ताव पर आगे बढ़ने की अनुशंसा की। नौकरशाही के बीच इस प्रस्ताव पर विरोध और आशंका दोनों रही थी, जिस कारण इसे लागू करने में विलंब हुआ। अंतत: पहले प्रस्ताव में आंशिक बदलाव कर इसे लागू कर दिया गया। पहले के प्रस्ताव के अनुसार सचिव स्तर के पद पर भी पार्श्ववर्ती प्रवेश की अनुशंसा की गई थी, लेकिन वरिष्ठ नौकरशाही के विरोध के कारण अभी संयुक्त सचिव के पद पर ही इसकी पहल की गई है। 

देश का नौकरशाही इतिहास इस बात का गवाह है कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एक अर्थशास्त्री थे और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर थे। उन्हें 1971 में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के तौर पर नियुक्त किया गया था और उन्होंने सिविल सेवा की परीक्षा नहीं दी थी। उन्हें 1972 में वित्त मंत्रालय का मुख्य आर्थिक सलाहकार भी बनाया गया था और यह पद भी संयुक्त सचिव स्तर का ही होता है। इसी प्रकार मनमोहन सिंह ने बतौर प्रधानमंत्री रघुराम राजन को अपना मुख्य आर्थिक सलाहकार नियुक्त किया था और वे भी संघ लोक सेवा आयोग से चुनकर नहीं आए थे, लेकिन संयुक्त सचिव के स्तर तक पहुँच गए थे और बाद में रिज़र्व बैंक के गवर्नर बनाए गए थे। 

वित्त मंत्रालय में संयुक्त सचिव तथा योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया के अलावा शंकर आचार्य, राकेश मोहन, अरविंद विरमानी और अशोक देसाई ने भी पार्श्ववर्ती प्रवेश के माध्यम से सरकार में जगह पाए थे । जगदीश भगवती, विजय जोशी और टी.एन. श्रीनिवासन ने भी इसी प्रकार सरकार को अपनी सेवाएँ दी। इनके अलावा योगिंदर अलग, विजय केलकर, नीतिन देसाई, सुखमॉय चक्रवर्ती जैसे न जाने कितने नाम हैं, जिन्हें लैटरल एंट्री के ज़रिये सरकार में उच्च पदों पर काम करने का मौका मिला।राज्य स्तर पर देखें तो शशांक शेखर सिंह इसका सबसे बड़ा उदाहरण रहे हैं, जो 2007 से 2012 के बीच उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के समय राज्य के कैबिनेट सचिव थे और IAS अधिकारी होने के बजाय एक पायलट थे। 

इन्फोसिस के प्रमुख कर्त्ता-धर्त्ताओं में एक नंदन निलेकणी भी इसी प्रकार आधार कार्ड जारी करने वाली संवैधानिक संस्था UIDAI के चेयरमैन नियुक्त किये गए थे। इसी प्रकार बिमल जालान ICICI के बोर्ड मेंबर थे जिन्हें सरकार में पार्श्ववर्ती प्रवेश मिली और वह रिज़र्व बैंक के गवर्नर बने। रिज़र्व बैंक के वर्तमान गवर्नर उर्जित पटेल भी पार्श्ववर्ती प्रवेश से इस पद पर आए हैं। पूर्व में इंदिरा गांधी ने मंतोश सोंधी की भारी उद्योग में उच्च पद पर बहाली की थी। इससे पहले वह अशोक लेलैंड और बोकारो स्टील प्लांट में सेवा दे चुके थे तथा उन्होंने ही चेन्नई में हैवी व्हीकल फैक्ट्री की स्थापना की थी। NTPC के संस्थापक चेयरमैन डी.वी. कपूर ऊर्जा मंत्रालय में सचिव बने थे। BSES के CMD आर.वी. शाही भी 2002-07 तक ऊर्जा सचिव रहे। 

लाल बहादुर शास्त्री ने डॉ. वर्गीज़ कुरियन को NDBB का चेयरमैन नियुक्त किया था, जो तब खेड़ा डिस्ट्रिक्ट कोआपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर यूनियन के संस्थापक थे। हिंदुस्तान लीवर के चेयरमैन प्रकाश टंडन को स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन का प्रमुख बनाया गया था। केरल स्टेट इलेक्ट्रॉनिक्स डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के चेयरमैन के.पी.पी. नांबियार को राजीव गांधी ने इलेक्ट्रॉनिक्स विभाग की ज़िम्मेवारी सौंपी थी। इसी प्रकार उन्होंने सैम पित्रौदा को भी कई अहम ज़िम्मेदारियाँ सौंपी थी।जगदीश भगवती, विजय जोशी ने भी इसी प्रकार सरकार को अपनी सेवाएँ दीं। 

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देश में प्रशासनिक सुधारों की अनुशंसा करने के लिये अब तक दो प्रशासनिक सुधार आयोगों का गठन किया जा चुका है।सर्वप्रथम इस आयोग की स्थापना 5 जनवरी, 1966 को की गई थी और तब मोरारजी देसाई को इसका अध्यक्ष बनाया गया था। मार्च 1967 में मोरारजी देसाई देश के उपप्रधानमंत्री बन गए, तो के. हनुमंतैया को इसका अध्यक्ष बनाया गया।इस आयोग का काम यह देखना था कि देश में नौकरशाही को किस तरह से और बेहतर बनाया जा सकता है। तब इस आयोग ने अलग-अलग विभागों के लिये 20 रिपोर्ट तैयार की थी, जिसमें 537 बड़े सुझाव थे। सुझावों पर अमल करने की रिपोर्ट नवंबर 1977 में संसद के पटल पर रखी गई थी। तब से लेकर 2005 तक देश की नौकरशाही इसी आयोग की सिफारिशों के आधार पर चलती रही। 

सिविल सेवा रिव्यू कमेटी के अध्यक्ष योगेन्द्र अलघ ने 2002 में अपनी रिपोर्ट में पार्श्ववर्ती प्रवेश का सुझाव देते हुए कहा था कि जब अधिकारियों को लगता है कि उनका प्रतियोगी आने वाला है तो उनके अंदर भी ऊर्जा आती है उनमें भी नया जोश आता है। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि अमेरिका में स्थायी सिविल सर्वेंट और मिड करियर प्रोफेशनल्स का चलन है। वहाँ पर इनकी सेवा ली जाती है। हमारे देश में भी अंतरिक्ष, विज्ञान तथा तकनीक, बायोटेक्नोलोजी, इलेक्ट्रॉनिक्स ऐसे विभाग हैं, जहाँ पर इनकी सेवा ली जाती है; लेकिन इसका विस्तार करने की ज़रूरत है तथा अन्य विभागों में भी इनकी सेवा ली जा सकती है। इसके अलावा समिति ने सिफारिश की थी कि जितने भी प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति होती है, उन्हें कम-से-कम तीन साल के लिये किसी निजी कंपनी में काम करने के लिये भेजा जाना चाहिए, ताकि वे निजी कंपनी में काम करने के तौर-तरीके सीखे और फिर उसे ब्यूरोक्रेसी में भी लागू करें, लेकिन सरकार ने इस सिफारिश को नकार दिया। 

इसके बाद 5 अगस्त, 2005 को वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन किया गया। इस आयोग को केंद्र सरकार को प्रत्येक स्तर पर देश के लिये एक सक्रिय, प्रतिक्रियाशिल, जवाबदेह और अच्छा प्रशासन चलाने के दौरान आ रही कठिनाइयों की समीक्षा करने और उसका समाधान खोजने की जिम्मेदारी दी गई थी। इसके अलावा इस आयोग को भारत सरकार के केंद्रीय ढाँचे, शासन में नैतिकता, अधिकारियों को भर्ती करने की प्रक्रिया को चलाया जाने वाला प्रशासन, ई-प्रशासन, संकट प्रबंधन और आपदा प्रबंधन के बारे में भी रिपोर्ट तैयार करने का काम सौंपा गया था। इस प्रशासनिक आयोग ने अपनी रिपोर्ट में भारतीय नौकरशाही में भारी फेरबदल की संभावना की बात कही थी। इसने सुझाव दिया था कि संयुक्त सचिव के स्तर पर विशेषज्ञों की नियुक्ति की जाएँ तथा इन्हें बिना परीक्षा पास किये केवल इंटरव्यू के माध्यम से इस पद पर लाया जा सकता है। 

सरकार यह मानती है कि विगत 30-40 वर्षों में कई बार उच्चाधिकारियों की नियुक्ति इस प्रकार पार्श्ववर्ती प्रवेश से की गई है और अनुभव कोई बुरा नहीं रहा। विशेषज्ञों का मानना है कि अधिकारियों के चयन का अधिकार संघ लोक सेवा आयोग को ही होना चाहिये।पार्श्ववर्ती प्रवेश की प्रक्रिया से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल सकता है। केंद्र सरकार की तुलना में भारत के राज्यों में भ्रष्टाचार अधिक है और यदि किसी को उत्तरदायी ठहराए बिना किसी पद पर नियुक्त कर दिया जाता है तो उस पर अनुशासनात्मक नियंत्रण रखना कठिन हो जाएगा। 

ऐसा करने से उनकी ज़िम्मेदारी निर्धारित की जा सकती है और उनके कार्य की समीक्षा भी हो सकती है। इस प्रकार की नियुक्तियाँ उन्हीं हालातों में की जानी चाहिये, जब किसी उच्च सेवा के तहत किसी कार्य विशेष को करने के लिये विशेषज्ञ उपलब्ध न हों। इस प्रकार की सीधी नियुक्तियों की प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिये तथा उसमें किसी प्रकार के भाई-भतीजावाद का स्थान का पर कार्यकाल निश्चित होना चाहिये, क्योंकि इन्हें नीतियाँ बनाने से लेकर उन्हें लागू करने की प्रक्रिया में लंबे समय तक काम करना होता है। 

यह सरकारी नौकरी तीन सालों के लिए ‘ठेका-पट्टा’ के आधार पर होगी। संयुक्त सचिव पद पर 15 साल, निदेशक के लिए 10 साल और उप-सचिव के लिए 7 साल का कार्य अनुभव माँगा गया है। वहीं, पदों के हिसाब से शैक्षणिक योग्यता भी निर्धारित की गई है। इसके लिए राज्य सरकार या केंद्र शासित प्रदेश में इसके समकक्ष पदों पर सरकारी नौकरी करने वाले अफसर आवेदन कर सकते हैं। इसके अलावा लोक उद्यमों, स्वायत्त निकायों, वैधानिक संगठनों, विश्वविद्यालय,  मान्यता प्राप्त शोष संस्थान, निजी संस्थान, बहुराष्ट्रीय संस्थान में कार्यरत लोग भी इन पदों के लिए आवेदन कर सकते हैं। 

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