नीतीश बाबू ! एक बार ‘गोलघर’ को पृष्ठभूमि में रखकर अपनी तस्वीर ‘ट्वीट’ करें, पर्यटक बिहार की ओर दौड़ जायेंगे

नीतीश बाबू ! एक बार गोलघर को पृष्ठभूमि में रखकर अपनी तस्वीर 'ट्वीट' करें, पर्यटक बिहार की ओर दौड़ जायेंगे

नई दिल्ली  : नीतीश बाबू !! दिल्ली मेट्रो डब्बा को प्रदेश के पुरातत्वों की तस्वीरों से लपेटने से बेहतर है गोलघर को पृष्ठभूमि में रखकर खुद सेल्फी ट्वीट करें।  यकीन मानिये लन्दन, अमेरिका, जर्मनी, जापान, ऑस्ट्रेलिआ, ब्राज़ील, कनाडा, फिजी, फ़्रांस, मलेसिया, मौरीसस, न्यूजीलैंड, पोलैंड, सिंगापूर, सऊदी अरब के राष्ट्राध्यक्षों की तरह, राजनेताओं की तरह – आप और बिहार का पर्यटन आसमान पर चढ़ जायेगा। अन्यथा दिल्ली मेट्रो पच्चीस लाख+ रुपये प्रतिमाह, प्रति ट्रेन वसूल कर प्रदेश के खजाने को दीन से दरिद्र बना देगा। क्योंकि आपके प्रदेश के 12 करोड़ लोगों में 95 से अधिक फीसदी लोग पटना का गोलघर भी नहीं देखा है । आप तो बिहार के अनेक शहरों को “स्मार्ट” शहरों की श्रेणी में डाल दिए हैं, लेकिन …. । 

विगत दिनों दिल्ली मेट्रो का डब्बा बिहार पर्यटन के आवरण से ढंका दिखा। कैमूर पहाड़ से लेकर महाबोधि मंदिर की तस्वीरें दिखीं। आम तौर पर दिल्ली का कोई भी कोना ऐसा नहीं होगा जहाँ बिहार के लोग नहीं रहते हों। उनका दिल्ली में रहना शौकिया भी हो सकता है और मज़बूरी भी। औसतन सैकड़े 100 व्यक्तियों में 80 फीसदी लोग दिल्ली में मज़बूरी में रहते हैं। उनका मानना है कि अगर उनके प्रदेश में रोजी, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ, खेती-बारी, बाजार-विपरण का उचित व्यवस्था होता, तो कभी वे बक्सर से आगे नहीं निकलते। कभी गंगा पार नहीं करते। गंगा पार करना ही होता तो मुजफ्फरपुर जाकर लीची खाते। लेकिन परदादा से लेकर बाबूजी तक सभी यही कहते रहे – सब ठीक हो जायेगा। काश सच में ऐसा होता। 

बिहार के पहली विधान सभा से लेकर नीतीश बाबू वाले विधान सभा तक, यानी श्री कृष्णा सिन्हा, दीप नारायण सिंह, बिनोदानंद झा, कृष्ण बल्लभ सहाय, महामाया प्रसाद सिन्हा , सतीश प्रसाद सिंह, बी पी मंडल, भोला पासवान शास्त्री, हरिहर सिंह, दारोगा प्रसाद राय, कर्पूरी ठाकुर, केदार पांडेय, अब्दुल गफूर, जगन्नाथ मिश्र, राम सुन्दर दास, चंद्र शेखर सिंह, बिंदेश्वरी दुबे, भागवत झा आज़ाद, सत्येंद्र नारायण सिन्हा, लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी, जीतन राम मांझी और नीतीश कुमार – सभी महानुभाव भी तो बिहार के ऐतिहासिक ‘मानव पुरात्तव’ की ही गिनती में रहे – कुछ हैं तो कुछ कूच कर गए। अगर ये सभी बिहार के महामानव ‘ऐतिहासिक पुरात्तव’ नहीं होते, प्रदेश में अपना स्थान, नाम, गरिमा अलग नहीं रखते, तो सन 1950 में बिहार के करीब  29,085,017 आवाम से लेकर आज के करीब 128,458,570 लोग, इन्हें पटना के डाकबंगला चौराहा से उठाकर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर क्यों चिपकाते? बहुत उम्मीद थी प्रदेश के मतदाताओं को इन ऐतिहासिक मानव पुरातत्वों से । वे इस उम्मीद से इन महानुभावों को प्रदेश का राजनीतिक और प्रशासनिक नेतृत्व हस्तगत कराये की उनके जीते जी प्रदेश का बेहतरीन विकास होगा। 

दिल्ली मेट्रो ट्रेन के डब्बों पर बिहार पर्यटन का विज्ञापन 

राजा जनक की नगरी से लेकर शेरशाह सूरी के मकबरा तक, गौतम बुद्ध की नगरी बोध गया से लेकर नालंदा  की ऐतिहासिक विश्वविद्यालय तक, पटना के गोलघर से लेकर मधुबनी के राजनगर तक, पावापुरी के जैन मंदिर से पार्श्वनाथ के महावीर मंदिर तक, खेत से खलिहान तक, कोर्ट-कचहरी से विद्यालय-महाविद्यालय-विश्वविद्यालय तक – चतुर्दिक विकास होगा। बिहार में राम राज्य स्थापित होगा। ‘सकारात्मक’ रूप में बिहार का दृष्टान्त विश्व के पटल पर दिया जायेगा। लोग बाग़ बिहार का नाम सुनते ही चुम्बक के उत्तरी-दक्षिणी ध्रुवों की तरह आकर्षित होंगे मगध की राजधानी सहित बिहार की भूमि को देखने के लिए । लेकिन श्री कृष्णा सिंह से लेकर कर्पूरी ठाकुर के रास्ते, लालू प्रसाद-राबड़ी देवी को याद करते सम्मानित नीतीश कुमार के वर्तमान कार्यकाल तक विकास की रेखाएं उसी तरह धूमिल होती दिखती हैं, जिस तरह नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेषों पर मुद्दत से जमी काई । हाँ, उपरोक्त ऐतिहासिक महामानवों में कुछेक को अपवाद स्वरुप छोड़कर, शेष ‘मानवीय पुरातत्वों’ की तुलना भारत के धनाढ्यों के धनाढ्य से ही किया जा सकता है। दुर्भाग्यवश प्रदेश के मतदाताओं ने विगत 72 सालों से अपनी उंगलियों में रोशनाई लगाकर चुनाव में उन्हें चुनते आये, नेता बनाते आये, मुख्यमंत्री बनाते आये – लेकिन विकास की रेखाएं बिहार के मतदाताओं के घरों तक नहीं पहुंचा। चाहे दिल्ली के रेसकोर्स रोड का नाम कल्याण मार्ग रख दिया जाय या फिर पटना के मजहरुल हक़ रोड को फ़्रेज़र रोड कहें या फिर बेली रोड को जवाहरलाल नेहरू मार्ग या फिर बैंक रोड को बी पी कोइराला मार्ग।  

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आंकड़ों के अनुसार देश में तकरीबन 3645 ऐतिहासिक पुरातत्व और धरोहर हैं। अगर औसतन भारतीयों से पूछा जाय की वे अपने ही राज्य में स्थित न्यूनतम 10 ऐतिहासिक पुरातत्व और धरोहरों का नाम बताएं, तो उम्मीद है वे पांच अथवा छठे नाम बताते-बताते दम तोड़ देंगे। वजह यह है कि उन्हें उन ऐतिहासिक पुरातत्व और धरोहरों में कोई दिलचस्पी नहीं है (अपवाद छोडकर्) यदि इन आंकड़ों का विश्लेषण करें तो देश के सम्पूर्ण क्षेत्रफल में औसतन प्रत्येक 892 किलोमीटर पर एक न एक ऐतिहासिक पुरातत्व और धरोहर है। इनमें सबसे अधिक 743 ऐतिहासिक पुरातत्व और धरोहर उत्तर प्रदेश में हैं, यानी उत्तर प्रदेश के 324 प्रति किलोमीटर क्षेत्रफल पर एक न एक ऐतिहासिक पुरातत्व और धरोहर है। 

दिल्ली मेट्रो ट्रेन के डब्बों पर बिहार पर्यटन का विज्ञापन 

उत्तर प्रदेश के बाद दूसरा स्थान कर्नाटक का है जहाँ 506 ऐतिहासिक पुरातत्व और धरोहर हैं। तीसरा स्थान तमिलनाडु का है जहाँ 413 ऐतिहासिक पुरातत्व और धरोहर हैं। पांचवा स्थान गुजरात (293 ऐतिहासिक पुरातत्व और धरोहर); छठा स्थान मध्य प्रदेश (292 ऐतिहासिक पुरातत्व और धरोहर); सातवां स्थान महाराष्ट्र (285 ऐतिहासिक पुरातत्व और धरोहर), आठवां स्थान राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली जहाँ 174 ऐतिहासिक पुरातत्व और धरोहर हैं। भौगोलिक क्षेत्रफल के दृष्टि से राजस्थान बहुत बड़ा भूभाग है, लेकिन यहाँ 162 ऐतिहासिक पुरातत्व और धरोहर हैं। पश्चिम बंगाल में 136 ऐतिहासिक पुरातत्व और धरोहर; आंध्र प्रदेश में 129 ऐतिहासिक पुरातत्व और धरोहर; हरियाणा में 91 ऐतिहासिक पुरातत्व और धरोहर; ओडिशा में 79 ऐतिहासिक पुरातत्व और धरोहर; बिहार में 70 ऐतिहासिक पुरातत्व और धरोहर; जम्मू-कश्मीर में 56 ऐतिहासिक पुरातत्व और धरोहर; असम में 55 ऐतिहासिक पुरातत्व और धरोहर; छत्तीसगढ़ में 47 ऐतिहासिक पुरातत्व और धरोहर; उत्तराखंड में 42 ऐतिहासिक पुरातत्व और धरोहर; हिमाचल प्रदेश में 40 ऐतिहासिक पुरातत्व और धरोहर; पंजाब में 33 ऐतिहासिक पुरातत्व और धरोहर; केरल में 27 ऐतिहासिक पुरातत्व और धरोहर; गोवा में 21 ऐतिहासिक पुरातत्व और धरोहर; झारखण्ड में 13 ऐतिहासिक पुरातत्व और धरोहर हैं और अंत में दमन-दीव में 12 ऐतिहासिक पुरातत्व और धरोहर स्थित हैं। औसतन वैसे ऐतिहासिक पुरातत्वों को छोड़कर, जो “दुधारू गाय” है, देश के हज़ारों-हज़ार पुरातत्वों की स्थिति, “सोचनीय” ही नहीं, “निंदनीय” भी है। 

लेकिन आजकल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में रहने वाले बिहारी भाई लोग बहुत खुश हैं। उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं है। कहते थकते नहीं कि दिल्ली मेट्रो बिहार स्थित ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों का प्रचार-प्रसार कर रही है। ताकि उन पर्यटन स्थानों से रूबरू होने के लिए लोग बाग़ बिहार की ओर उन्मुख हों। आजकल दिल्ली में रहने वाले बिहारी भाई लोग बहुत खुश हैं। उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं है। कहते थकते नहीं कि दिल्ली मेट्रो बिहार स्थित ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों का प्रचार-प्रसार कर रही है। ताकि उन पर्यटन स्थानों से रूबरू होने के लिए लोग बाग़ बिहार की ओर उन्मुख हों। आंकड़े बताते हैं कि बिहार में शिक्षा और रोजगार की बदतर  स्थिति के कारण लगभग 20,000 लोग नित्य बक्सर और गोरखपुर पार कर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में अवतरित होते हैं। यानी दिल्ली की आवादी नित्य 20000 बढ़ती है। ऐसा माना जाता है कि इन सांजख्य में श्रमिकों की संख्या सर्वाधिक है। अब नीतीश कुमार क्या, आने वाले समय में दर्जनों, सैकड़ों सम्मानित मुख्यमंत्रीगण दिल्ली मेट्रो क्या अमेरिकन, फ़्रांस, जर्मनी, जापान के मित्रों ट्रेनों में, मुंबई में, कलकत्ता में, लखनऊ में चलने वाली मेट्रो ट्रेनों में गोलघर, बोधा गया, राजगीर की तस्वीरों की, लिट्टी-चोखा की, मालपुआ की तस्वीरों का आवरण क्यों न बना दें, इससे प्रदेश में पर्यटन सेवा अधिक नहीं हो सकती हैं। 

बोधगया में नया बुद्ध

सांख्यिकी के अनुसार दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (डी एम आर सी) अपनी कुल ट्रेनों की संख्या में सिर्फ दस प्रतिशत ट्रेनों को लाल-पीला-हरा-काला-ब्लू रंगों की रंगबिरंगी तस्वीरों के साथ ढँक सकती है। कोरोना से पूर्व तक डी एम आर सी और इसके विज्ञापन एजेंसी विज्ञापन दाताओं से एक ट्रेन (चाहे उसमें छः कोच हो या आठ) के सभी कोचों को विज्ञापनों से ढंकने के लिए 25,00,000 रुपये एक माह के लिए लेती है। अब अगर चार ट्रेनों के कोचों को विज्ञापनों से ढंकती हैं बिहार सरकार, तो इसका अर्थ यह हुआ कि बिहार सरकार के खजाने से प्रतिमाह एक करोड़ रुपये निकलकर डी एम आर सी के खजाने में जमा होती है। अर्थात बिहारी मुद्राएं दिल्ली की ओर पर्यटन करती है। 

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बहरहाल, विगत दिनों फेसबुक पर एक पोस्ट किया था और लोगों से कहा था कि वे “किरया” (कसम) खा कर कहेंगे की ‘आप में से कोई इंटरनेट पर, सोशल मीडिया पर किसी भी व्यक्ति को, परिवार को, महिला को, पुरुष को, बच्चा को, बच्ची को, मंत्री को, संत्री को, अधिकारी को, चपरासी को, डाक्टर को, मरीज को, रिक्शावाला को, ऑटोवाला को, टमटम वाला को, साईकिल वाला को, लाखों-करोड़ों रुपये वाला चार-पहिया वाहन के स्वामी को, स्वामिनी को, पैदल चलने वालों को पटना के गोलघर को पृष्ठभूमि में रखकर सेल्फी लेते देखे हैं? आप लिए हैं?” फेसबुक पर राजीव रंजन कुशवाहा को छोड़कर जबाब नगण्य था।

वैशाली में अशोक स्तम्भ

लेकिन अरविन्द कुमार झा लिखे कि “बिहारी जब बिहार में सफर करता है, बस, ट्रेन, हवाई जहाज, रिक्शा, टमटम या अपनी गाड़ी में चार पहिया वाहन, बाइक, साइकिल पर वह सड़क, परिचालन और सफ़र के सामान्य नियमों की ऐसी तैसी करते चलता है। वह बिहारी कोई नेता, अफसर, ग्रामीण, शहरी, पढ़ा लिखा या अनपढ़, गरीब या अमीर हो सामान्य कायदे कानून को मानना अपनी तौहीन समझता है। वही बिहारी चाहे वह किसी तबका या हैसियत का हो, अनपढ़, गरीब या अमीर, पढ़ा लिखा हो, नेता, अफसर या व्यापारी हो जब बिहार के बाहर जाता है तो सड़क और सफ़र के छोटे से छोटे कायदे कानून का पालन करता है। साफ है कि बिहार में बिहारी उज्जढ , गंवार और बेहूदगी का प्रतिमान है और बाहर वही बिहारी दब्बू और इंफिरियरिटी कोम्प्लेक्स से ग्रस्त। यहां की हर कीमती से कीमती वस्तु उसे दोयम दर्जे की लगती है और बाहर की दोयम दर्जे की वस्तु भी उसे अलभ्य और बेशकीमती लगती है। यही बिहारी मानसिकता है।”

बिहार के पर्यटन पर सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र कुमार अपने ब्लॉग पर लिखते हैं कि भारत में पर्यटन के लिए बहुत सारे प्रसिद्ध स्थान हैं। देश का हर एक क्षेत्र सांस्कृतिक और प्राकृतिक विविधताओं से भरपूर है। इनमें बिहार एक ऐसा राज्य है, जिसका पर्यटन के लिहाज से अंतरराष्ट्रीय महत्व बहुत ज्यादा है। अभी कुछ समय पहले ही बिहार की राजधानी पटना में एक विशाल राज्य संग्रहालय का उद्घाटन किया गया है। जिसके माध्यम से बिहार के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व को और भी व्यापक तरीके से समझने में मदद मिल सकती है। पर्यटन उद्योग का देश के आर्थिक विकास में बहुत बड़ा योगदान रहा है। साथ ही पर्यटन उद्योग का रोजगार सृजन में भी बहुत बड़ा योगदान रहा है। बीते दो वर्षों में महामारी के कारण पर्यटन स्थलों को बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है। देश भर में फैली कोरोना महामारी का सबसे ज्यादा असर पर्यटन उद्योग को ही हुआ है।  एक अनुमान के अनुसार महामारी के कारण बिहार में पर्यटन उद्योग को 10 हजार करोड़ का नुकसान हुआ है।  

नालंदा का अवशेष

भारत का राज्य बिहार अपनी प्राचीन धरोहर के लिए भी जाना जाता है। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से बिहार उन महत्वपूर्ण जगहों में से एक है जहां आज भी काफी पुराने अतीत से जुड़े कई प्राचीन अवशेषों को देखा जा सकता है। बिहार का नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया का पहला और सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय है। बिहार ही वह ऐतिहासिक जगह है जहां भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। दुनियाभर में फैले बौद्ध धर्म की जड़े बिहार से ही शुरू हुई हैं। केवल यही नहीं ऐसी बहुत सी ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है बिहार में जो बिहार के गौरवपूर्ण इतिहास की गवाही देते हैं जरुरत है तो बस इनके वास्तविक मूल्यों को पहचानने की।  बिहार में पर्यटन का विकास करके बिहार के गौरवपूर्ण और प्राचीन इतिहास को फिर से जीवित किया जा सकता है। सरकार को इन प्राचीन धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों का संरक्षण करके यहाँ पर्यटन को बढ़ावा देना चाहिए। बिहार सरकार को इसके लिए प्रमोट करना चाहिए जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को बिहार के प्राचीन इतिहास और यहां की धरोहरों के बारे में जानकारी मिले। पर्यटन को बढ़ावा देकर बिहार में विकास की दर भी बढ़ेगी।  

उत्तर बिहार को विकसित करके यहां पर्यटकों को आकर्षित किया जा सकता है। उत्तर बिहार के जिला सीतामढ़ी माता सीता की जन्मभूमि है यहां पर स्थित हलेश्वर स्थान और माँ जानकी मंदिर अपनी प्राचीन इतिहास के लिए प्रसिद्ध है। हजारों श्रद्धालु यहां माता के दर्शन के लिए आते हैं।  इसके अलावा गया जिला बिहार के महत्वपूर्ण तीर्थस्थानों में से एक है। पितृपक्ष के अवसर पर यहाँ हर साल देशभर से लाखों श्रद्धालु पिंडदान के लिये आते हैं। सरकार को इन धार्मिक स्थलों को संरक्षित करना चाहिए जिससे साल दर साल यहां पर्यटकों की संख्या बढ़ती रहे।  बिहार में कई प्राचीन और ऐतिहासिक धरोहरें हैं जैसे की नालंदा, राजनगर का नौलखा महल, शेरशाह का मकबरा आदि। प्राचीन स्थल विश्व विरासत स्थलों की क्षमता रखते है। इन धरोहर की संरचना को बनाये रखते हुए ऐतिहासिक इमारतों को परिवर्तित इमारतों के साथ स्पेशल हेरिटेज जोन के रूप में विकसित किया जा सकता है। बिहार के हथकरघा और हस्तशिल्प के विकास के लिए शिल्पग्राम और हस्तशिल्प बाजार viksit किया जाना चाहिए जिससे यहां पर्यटकों की पहुंच हो सके।  

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राजगीर में नीतीश

बिहार में सालाना दो करोड़ देसी पर्यटक तथा दस लाख विदेशी पर्यटक आते हैं। बोधगया के लिए जो विदेशी पर्यटक आते हैं, पर्यटन विभाग को उन्हें बिहार के दूसरे धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहर के प्रति आकर्षित करना चाहिए। उनके लिए बेहतर परिवहन, होटल एवं लोकल गाइड, टूर गाइड की सुविधा मुहैया करानी चाहिए। पर्यटकों की सुविधा के लिए लोकल गाइड को बेहतर से बेहतर जानकारी के लिए ट्रेनिंग दी जानी चाहिए। बोधगया में हर साल तीन से चार लाख विदेशी पर्यटक आते हैं।  पर्यटकों के लिए बिहार में बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराई जानी चाहिए। उनके लिए यातायात को सुविधाजनक बनाने के लिए सड़के तथा परिवहनों का विशेषकर ध्यान रखा जाना चाहिए। साथ ही बैंक और एटीएम की सुविधा हर गाँव में होनी चाहिए।  

इसी तरह बिहार में फ़ूड प्रोसेसिंग बिज़नेस शुरू करके अच्छी कमाई की जा सकती है। बिहार में आने वाले टूरिस्ट यहाँ के बने नेचुरल फ़ूड आइटम्स को खाना और खरीदना पसंद करेंगे। ये तो हम सभी जानते हैं की बिहार का मुजफ्फरपुर अपनी शाही लीची के लिए मशहूर है साथ ही कई जिले अपने आम उत्पादन मखाना उत्पादन के लिए भी मशहूर हैं। ऐसे में जो भी पर्यटक बिहार घूमने आयंगे वे यहां की विश्वप्रसिद्ध शाही लीची का स्वाद लेना जरूर चाहेंगे। इसके अलावा लीची या मखाना फ़ूड प्रोसेसिंग बिज़नेस शुरू करके भी राज्य को बहुत फ़ायदा होगा। यहां आने वाले पर्यटक बिहार में उत्पादन होने वाले खाद्य पदार्थ तथा यहां बनने वाली चीज़े जैसे की रेशम की साड़ी और मुजफ्फरपुर में बनने वाले लहठी को जरूर खरीदना चाहेंगे इससे ना सिर्फ कारोबारियों का फ़ायदा होगा बल्कि स्टेट जीडीपी बहुत फ़ायदा होगा।  सोनपुर का मेला विश्वभर में प्रसिद्ध है साथ ही यहां की छठ पर्व, सौराठ सभा, राजगीर महोत्सव केवल भारत ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यटकों को आकर्षित करने की क्षमता रखते हैं।  

इसी तरह बिहार के व्यंजन और खाद्य पदार्थ विश्वभर में निर्यात किये जाते हैं। यहाँ के पारंपरिक व्यंजन को बढ़ावा देकर विश्व स्तर पर इन्हे पहचान दिलाई जा सकती है। सरकार को यहाँ फ़ूड फेस्टिवल जैसे आयोजन शुरू करने चाहिए। फूड फेस्टिवल के माध्यम से राज्य के व्यंजन जैसे- खाजा, लाई, बेलग्रामी, तिलकुट, लिट्टी-चोखा, सत्तु और मखाना के उत्पाद आर्थिक अवसर उत्पन्न कर सकते हैं। 

बिहारवॉव(डॉट)कॉम के एक रिपोर्ट के अनुसार रिपोर्ट के मुताबिक विदेशी सैलानियों को भाने वाले 10 राज्यों की सूची में बिहार शुमार हो गया है। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा विदेशी पर्यटक रुख कर रहे हैं। टोटल विदेशी पर्यटकों में 17.6 फ़ीसदी संख्या अकेले महाराष्ट्र में आने वालों की है। दूसरे नंबर पर तमिलनाडु है, जहां 17.1 फीसदी विदेशी पर्यटक आ रहे हैं। सूची में तीसरा नाम उत्तर प्रदेश का है, जहां 12.4 फ़ीसदी विदेशी सैलानी आ रहे हैं। बिहार में विदेशी पर्यटकों के आने वाली संख्या 4.3 फीसद है। टॉप-10 में बिहार नौवें नंबर पर है। दसवें नंबर पर गोवा है जहां पर्यटकों की संख्या महज 4.2 फीसद है।

फेसबुक पर बिभूतिनाथ झा लिखते हैं: जब गोलघर का क्रेज था, तो सेल्फी का यंत्र ही नहीं था। जबकि आनंद कुमार जी के अनुसार “ना ही लिए हैं और ना ही किसी को भी देखे हैं, ईमानदारी पूर्वक बता रहे हैं और पटना जाने का मौका मिला तो अबकी बार 101% सेल्फी लुंगा ही।”

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