भारत में एक शहर है, जो भारत का मैनचेस्टर हैं। यह एक ऐसा शहर है जो भारत ही नहीं, विश्व के लोगों को, विशेषकर बच्चों को, जवानों को, बुजुर्गों को जीवन पर्यन्त चलायमान रखा।
अच्छा चलिए, मैं आपको इस शहर की सबसे बड़ी खासियत से वाकिफ करा देती हूँ। यह वही शहर है जहाँ महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रणी लाला लाजपत राय और शहीद करतार सिंह जैसे क्रांतिकारी जन्म लिए। जी हाँ, पंजाब का लुधियाना शहर।
लुधियाना को पंजाब का सबसे संपन्न जिला माना जाता रहा है, क्योंकि इसकी पहचान भारत के मेनचेस्टर के रूप में रही है। परन्तु, तकलीफ इस बात की है की आज न केवल यह शहर, बल्कि विश्व विख्यात एक चीज को बनाने वाले उद्योग, अपने जीवन के एक कठिन दौर से गुजर रहा हैं और इसका कारण है दूसरे देश से भारत के बाज़ार में ही नहीं, बल्कि विश्व के बाजारों में, इस सामानो को सस्ती कीमत पर बेच जा रहे हैं। परिणाम यह हो रहा है कि कई उद्योग यहाँ से जा चुके हैं या फिर कई जाने की तैयारी में हैं। औद्योगिक शहर सिकुड़ने लगा है।
आज सम्पूर्ण भारतीय बाज़ार को चीन का बाज़ार लगभग सभी मामलों में ग्रसित कर लिया है। सस्ते आयात के कारण देश के औद्योगिक नगरों का अवसान हो रहा है, अनौद्योगीकरण की आत्मघाती प्रक्रिया चालू हो गयी है, जिसके कारण बड़े पैमाने पर बेरोजगारी, विस्थापन और बदहाली फैल रही है।
विदेशी वस्तुओं के आयात पर किसी प्रकार के मात्रात्मक प्रतिबन्ध नही रहने के कारण घरेलू उत्पादन इकाईयों की घरेलू बाजार में हिस्सेदारी तेजी से घटती जा रही है। उनका उत्पादन निर्यात मोर्चे पर भी सफल नहीं हो पा रहा है, जैसा कि प्रतियोगी देशों की इकाईयाँ कर रही हैं।
जानते हैं यह उद्योग क्या है – साईकिल।
लुधियाना ऊल और साईकिल के लिए विश्व प्रसिद्द है। परन्तु आज लुधियाना का साइकिल उद्योग एक संकट से गुजर रहा है। यदि लुधियाना का यह उद्योग उजड़ जाता है तो पूरे देश के साइकिल उद्योग के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो जायेगा। आपको जानकार आश्चर्य होगा की भारत पूरे विश्व में साइकिल और उसके कल पुर्जों का सबसे बड़ा निर्माता है।
भारत में साइकिल उद्योग के जनक ओ पी मुंजाल को साईकिल उद्योग का जनक माना जाता है जो हीरो साइकिल के को-चेयरमैन थे और जिनका निधन पिछले वर्ष हुआ।
कहा जाता है की बंटवारे के बाद पाकिस्तान से पंजाब आए मुंजाल ने भाइयों समेत अमृतसर की गलियों, फुटपाथों पर साइकिल पुर्जे सप्लाई करने का काम शुरू किया। मुंजाल साहेब शहर-शहर घूमकर पुर्जों के ठेके लेते थे। आज उनकी कंपनी हीरो साइकिल का वर्तमान में टर्नओवर अरबों (2300 करोड़ रुपए ) में है। हीरो साइकिल को 1986 में दुनिया की सबसे अधिक साइकिल बनाने वाली कंपनी के रूप में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में शामिल किया गया था।
परन्तु दुर्भाग्य यह है की भारत के साइकिल बाजार में चीनी फैन्सी साइकिलों ने 25 प्रतिशत बाजार पर कब्जा कर लिया है। भारत में बनी साइकिल चीनी साइकिल के मुकाबले 30 प्रतिशत महँगी हैं। इसका कारण है चीन में साइकिल बनाने के लिये कच्चा माल या जरूरी सामान सस्ते उपलब्ध हैं।
लुधियाना का साईकिल उद्योग 60 वर्ष पुराना है। यह दुनिया भर को साईकिलें और साईकिलों के कल-पुर्जे निर्यात करता रहा है। लुधियाना में लगभग 3000 औद्योगिक इकाईयाँ हैं जो साईकिलों या साईकिल के कल-पुर्जों का निर्माण करती हैं।
चीन में साईकिल के कल-पुर्जे ज्यादातर स्वचालित मशीनों द्वारा बनाये जाते हैं। वे भारत में बने कल-पुर्जों के मुकाबले काफी सस्ते पड़ते हैं। और यही कारन है की हीरो, ईस्टमान, सफारी साईकिल्स, सदम साईकिल्स और ऐसे ही अन्य बड़े साईकिल निर्माताओं ने अभी हाल में ही चीन में अपने दफ्तर और केन्द्र खोल लिये हैं जहां से वे विकासशील देशों के बाजारों को सस्ते साईकिल पुर्जे निर्यात करेंगे।
साईकिल उद्योग की तरह ही, लुधियाना सिलाई मशीन उद्योग का भी पिछले 100 वर्षों से केन्द्र रहा है। देश की कुल सिलाई मशीन निर्माण का 75 प्रतिशत कारोबार लुधियाना में ही होता है। यह देश का सबसे बड़ा सिलाई मशीन उत्पादन केन्द्र है। परन्तु अब यह चीनी सिलाई मशीनों और उनके कल-पुर्र्जों के मुकाबले बाजार में पिछड़ रहा है। अब बड़ी रेडीमेड वस्त्र निर्माण कम्पनियों के सिलाई केन्द्रों में भी लुधियाना की बनी मशीनों के स्थान पर जगुआर, जुलसी, पैगासस् आदि नामों की आयातित सिलाई मशीनें इस्तेमाल की जा रही हैं। कढ़ाई मशीनों का भी 60 प्रतिशत बाजार चीनी कढ़ाई मशीनों के कब्जे में आ चुका है।
120 वर्ष पहले लुधियाना के कुछ उत्साही और नए विचारों से ओत-प्रोत उद्यमियों ने सिलाई मशीन निर्माण का धन्धा शुरू किया था। ये सिलाई मशीनें लाहौर तक जाती थीं। अब लुधियाना का यह गौरवपूर्ण उद्योग ताइवानी, जापानी और चीनी मशीनों के कारण अवसान के दौर में हैं।
साइकिलों की नब्बे फीसदी तक आपूर्ति लुधियाना का साइकिल उद्योग कर रहा है। लेकिन राजनीतिक पकड़ के कारण अधिकतर साइकिलों के आर्डर बड़ी निर्माता इकाइयाें के पास जा रहे हैं और छोटे तथा मंझले उद्योग को कोई पूछता नहीं है। यह अलग बात है की ये छोटे और मंझले उद्यमियों ने सरकार से बार-बार मांग कर रही है कि सरकारी आर्डर का बीस फीसदी हिस्सा माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज सेक्टर को सरकारी नीति के तहत पंद्रह फीसदी प्रेफ्रेंशियल कीमत पर दिया जाए। इससे लघु उद्योग इकाइयों में भी आर्थिक रौनक आएगी। परन्तु कौन सुनता है?
केंद्र सरकार की खरीद नीति में बीस फीसदी सामान देश के एमएसएमई सेक्टर से प्रेफ्रेंशियल कीमत पर लेने का प्रावधान है, लेकिन अधिकतर राज्य सरकारें इस नीति का अनुसरण नहीं करती। पिछले वित्त वर्ष के दौरान विभिन्न राज्य सरकारों से 22 से 25 लाख साइकिलों का आर्डर मिला था, लेकिन प्रेफ्रेंशियल नीति के तहत एमएसएमई उद्योग को कोटे में कोई आर्डर नहीं मिला।
मोगल एंड सन्स साईकिल निर्माता कम्पनी मालिक श्री अवतार सिंह भोगल का कहना है “आने वाले समय में लुधियाना में साईकिल निर्माता नहीं रहेंगे। सभी उद्योग बंद हो जायेंगे और बेरोजगारी के बारे में तो पूछिए ही नहीं।” भोगल एंड सन्स कंपनी की स्थापना सन १९३८ में इनके पिता ने किया था।
उद्यमियों का कहना है की सिर्फ़ साइकिल ही नहीं दूसरे उद्योग भी निकटवर्ती राज्य हिमाचल प्रदेश जा रहे हैं या फिर हरियाणा। एक अन्य बड़े साइकिल निर्माता साइकिल कंपनी ने अब लुधियाना की बजाय बिहार में कारख़ाना लगाने की ठान ली है और उनकी नई इकाई के लिए बिहार में काम भी शुरू हो गया है।
बहरहाल, प्राचीन पंजाब किसी जमाने में विस्तृत भारत-ईरानी क्षेत्र का हिस्सा रहा है। बाद के वर्षों में यहां मौर्य, यूनानी, शक, गुप्ता जैसी अनेक शक्तियों का उत्थान और पतन हुआ। मध्यकाल में पंजाब मुसलमानों के अधीन रहा। सबसे पहले गजनबी, मुहम्मद गौरी, गुलाम वंश, ख़िलजी वंश, तुगलक, लोधी और मुग़ल वंशों का पंजाब पर अधिकार रहा।
परन्तु, पंद्रहवीं और सोलहवीं शताब्दी में पंजाब के इतिहास ने नया मोड़ लिया।गुरुनानक देव जी की शिक्षाओं से यहां भक्ति आंदोलन ने ज़ोर पकड़ा। सिख पंथ ने एक धार्मिक और सामाजिक आंदोलन को जन्म दिया, जिसका मुख्य उद्देश्य धर्म और समाज में फैली कुरीतियों को दूर करना था।
दसवें गुरु गुरुगोविंद सिंह ने सिखों को खालसा पंथ के रूप में संगठित किया तथा एकजुट किया। उन्होंने देशभक्ति, धर्मनिरपेक्षता और मानवीय मूल्यों पर आधारित पंजाबी राज की स्थापना की। महाराजा रंजीत सिंह जी ने पंजाब को सिख साम्राज्य में बदल दिया। किंतु उनके देहांत के बाद अंदरूनी साजिशों और अंग्रेजों की चालों के कारण पूरा साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया। अंग्रेजों और सिखों के बीच दो निष्फल युद्धों के बाद 1849 में पंजाब ब्रिटिश शासन के अधीन हो गया।
स्वतंत्रता आंदोलन में गांधी जी के आगमन से बहुत पहले ही पंजाब में ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष आरंभ हो चुका था। अंग्रेजों के खिलाफ यह संघर्ष सुधारवादी आंदोलनों के रूप में प्रकट हो रहा था। सबसे पहले आत्म अनुशासन और स्वशासन में विश्वास करने वाले नामधारी संप्रदाय ने संघर्ष का बिगुल बजाया। बाद में लाला लाजपतराय ने स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाई। चाहे देश में हो या विदेश में,पंजाब स्वतंत्रता संग्राम में हर मोर्चे पर आगे रहा।
पूर्वी पंजाब की आठ रियासतों को मिलाकर नए राज्य ‘पेप्सू’ तथा पूर्वी पंजाब राज्य सघ-पटियाला का निर्माण किया गया। पटियाला को इसकी राजधानी बनाया गया। सन 1956 में पेप्सू को पंजाब में मिला दिया गया। बाद में पंजाबी सूबा आंदोलन के कारण 1966 में पंजाब से कुछ हिस्से निकालकर हरियाणा बनाया गया।