जीएसटी के कारण भारत में उद्योग-धन्धे चौपट हो रहे हैं

अरुण जेटली
अरुण जेटली

जल्दी के विवाह, यानि “कनपट्टी” में सिन्दूर

भारत में जीएसटी (गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स) की शुरुआत एक जुलाई 2017 से हुई है और यह देश भर में लागू है। 122वां संविधान संशोधन विधेयक पास होने के बाद इसे लागू किया गया है। जीएसटी के संचालन के लिए जीएसटी कौंसिल बनाई गई है। केंद्रीय वित्त मंत्री इसके चेयरमैन हैं। शुरू में जीएसटी को, “एक देश, एक टैक्स” कहा गया था पर इसमें केंद्र और राज्य सरकार के लिए आधा-आधा टैक्स वसूला जाता है और शून्य से लेकर 28 प्रतिशत तक की पांच दरें हैं। 0.25 प्रतिशत और 3 प्रतिशत की विशेष दर सिर्फ दो आयटम रफ डायमंड (अनगढ़ हीरे) और सोने के लिए हैं। पेट्रेलियम उत्पाद और भूसंपदा अभी तक जीएसटी से मुक्त हैं और यह सब “एक देश, एक टैक्स”; के दावे का मजाक उड़ाने के लिए पर्याप्त हैं।

असल में जीएसटी को बगैर तैयारी के जल्दबाजी में थोप दिया गया है। इसके पक्ष में तर्क यह है कि तैयारी के चक्कर में पड़ने पर आदर्श स्थिति आती ही नहीं और लागू होना टलता रहता। दूसरी ओर, इस कारण उद्योग धंधे चौपट हो रहे हैं। इसका असर देश की अर्थव्यवस्था के साथ सामान्य व्यक्ति के जीवन यापन पर पड़ेगा जो पहले से ही बहुत अच्छी स्थिति में नहीं था। लागू करने से पहले आवश्यक तैयारी नहीं करने का ही नतीजा है कि टैक्स की दर बार-बार बदल रही है। इससे बाजार में अराजकता की स्थिति है। ग्राहकों को टैक्स में छूट का लाभ नहीं मिलता और बेईमान व्यापारी लाभ कमा रहे हैं। टैक्स रिटर्न फाइल करने की अवधि और दायरे में आने वाले उद्यमी सब बदले गए। बदले जाते रहे। इसलिए स्थिरता नहीं आई, वसूली कम हुई। और इसके अलग नुकसान हैं।

वैसे तो जीएसटी एक उलझी हुई प्रक्रिया है और इसे सोच समझ कर लागू किया जाना चाहिए था। ऐसा नहीं करके पूरे देश को जीएसटी की प्रयोगशाला बना दिया गया है और उसका नुकसान सारे देश को उठाना पड़ेगा। यह सब एक अच्छे पोर्टल और सॉफ्टवेयर से अपेक्षाकृत रूप से बहुत आसानी से हो सकता था। पर इसके लिए अच्छे सॉफ्टवेयर का विकास करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए था। अभी हालत यह है कि अकाउंटिंग के काम करने वाले खुश हैं कि उन्हें काम और पैसे मिल रहे हैं पर देर-सबेर जब सॉफ्टवेयर बन जाएगा तो ये बेरोजगार हो जाएंगे। हालांकि, ऐसे लोग भी महानगरों में ही हैं छोटे शहरों में काम जानने वालों की भारी कमी है। इससे व्यापारी चाहकर भी टैक्स नहीं दे सकते, रिटर्न दाखिल करने की मुश्किल प्रक्रिया पूरी नहीं कर पाएंगे और परेशान किए जाएंगे या कारोबार छोड़कर रिटर्न दाखिल करने के लिए परेशान रहेंगे। कर आधार बढ़ाने के लिए जीएसटी में ज्यादा से ज्यादा उद्योग-धंधों और पेशों को कर दायरे में लाने की कोशिश की गई है ताकि टैक्स की दर कम की जा सके। पर टैक्स इतनी ज्यादा रखी गई वह गुजरात चुनाव से पहले और अभी तक कम की जा रही है।

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कायदे से पहले बड़े कारोबारियों को जीएसटी के दायरे में लिया जाता और फिर धीरे-धीरे छोटे कारोबारियों को शामिल करते जाते। साथ-साथ टैक्स दर में कमी होती रहती तो लोगों को लाभ सामने दिख रहा होता औऱ नकारात्मक प्रचार जैसी कोई स्थिति बनती ही नहीं। इसमें कोई शक नहीं है कि टैक्स का मामला बड़े कारोबारी को तो मानना ही है और उन्हें आवश्यक उपाय करने हैं। अगर शुरुआत बड़े कारोबारियों से की जाती तो शोर कम होता और अच्छी प्रतिक्रिया व व्यावहारिक परेशानियों से संबंधित जानकारी मिलती जिसके आधार पर संशोधन किए जा सकते थे। लेकिन यह सब नहीं किया गया। औऱ मांग के अनुसार टैक्स की दर बढ़ाई-घटाई जा रही है, सुविधाओं या अनुपालन में छूट दी जा रही है। इससे कारोबार को अलग परेशानी है और उन्हें रोज
कीमतें बदलने से लेकर मशीनों की प्रोग्रामिंग, पुराने स्टॉक की कीमत में परिवर्तन जैसे काम बेकार करने पड़ रहे हैं।

जीएसटी कंप्यूटर औऱ इंटरनेट आधारित टैक्स प्रणाली है। इसमें कागज भरने और जमा करने की कोई व्यवस्था नहीं है। इसलिए इसके प्रावधान ऐसे हैं जो बिना कंप्यूटर या अच्छे सॉफ्टवेयर की उपलब्धता के मुश्किल लगते हैं। दूसरी ओर, हमारे यहां बहुत सारे कारोबारी ना तो पढ़े लिखे हैं और ना ही कंप्यूटर पर काम करते हैं। इसलिए, जीएसटी लागू होते ही कइयों के लिए कंप्यूटर खरीदना, चलाना जानना या कंप्यूटर जानने वाले की सेवा लेना आवश्यक हो गया है। ऑनलाइन रिटर्न फाइल करने के लिए अंग्रेजी आना भी जरूरी है। इस तरह जीएसटी लागू होने से अकाउंटिंग सॉफ्टवेयर में निवेश करना भी जरूरी है। इससे पूंजी की आवश्यकता बढ़ गई है, टैक्स जमा करवाकर रीफंड लेने के नियम का अनुपालन करने से पूंजी फंस गई है। इससे कारोबार
या व्यवसाय महंगा हो गया। देश भर में निर्बाध विद्युत आपूर्ति और ब्रॉडबैंड जैसी बुनियादी जरूरतें सुनिश्चित नहीं है तो मुश्किलें आनी ही थीं।

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आम कारोबारी और व्यवसायी इन झंझटों में ना फंसें इसीलिए नियम है कि प्रतिवर्ष एक निश्चित राशि से कम का कारोबार करने वालों के लिए टैक्स पंजीकरण आवश्यक नहीं है। पर जीएसटी में कई मामलों में यह छूट प्रभावी नहीं है और बहुत मामूली कारोबार या व्यवसाय करने वाले के लिए भी जीएसटी पंजीकरण अनिवार्य है। ऐसे छोटे व्यवसायी अगर जीएसटी पंजीकरण न कराएं तो नियमानुसार पंजीकृत कारोबारी इनसे काम नहीं करा सकते (फिलहाल इसमें छूट दी गई पर कई दूसरी शर्तों और देर-सबेर छूट वापस लिए जाने पर) छोटे कारोबारों का बंद होना तय है। इसे जीएसटी नामक व्यापक लाभ के लिए आवश्यक माना गया है पर इस बात का कोई अनुमान नहीं है कि ऐसे कितने कारोबार या व्यवसायी इससे प्रभावित होकर कारोबार बंद करने को मजबूर होंगे। इसके अनुपात में जीएसटी लागू करने का लाभ कितना है। जीएसटी का लाभ यही बताया गया है कि पुरानी व्यवस्था में किसी उत्पाद के निर्माण में लगने वाले कच्चे माल, मूल्यवर्धन, पैकिंग आदि पर अलग- अलग टैक्स लगता है और टैक्स पर टैक्स लगने से कीमत बढ़ जाती है। इसलिए, जीएसटी में इनपुट ट्रैक्स क्रेडिट की व्यवस्था है। इस व्यवस्था का दुरुपयोग ना हो यह सुनिश्चित करने के लिए हर चीज का सबूत चाहिए और उसका मिलान होने के बाद ही छूट मिलेगी। इसलिए नियम मुश्किल भरे हैं और परेशान करने वाले लगते हैं।

इसलिए होना यह चाहिए था कि सभी संबंधित पक्षों को पहले नियम बताए जाते फिर उन्हें उनका मकसद बताया जाता और इसे आसान करने का तरीका सुझाने के लिए कहा जाता। अगर यह सब किया जाता तो नियम आसान बनने के साथ-साथ जनता को यकीन होता कि जो नियम हैं वो जरूरी हैं और व्यापक भलाई के लिए हैं। हालांकि, अभी भी, जीएसटी लागू करने की पूरी प्रक्रिया इस बात पर केंद्रित है कि कारोबारी और जनता टैक्स चोरी करती है। इसमें टैक्स वसूलने के तंत्र को एकदम छोड़ दिया गया है। निचले स्तर के बाबू से ले कर मंत्री तक सब ईमानदार तो हैं ही। उनपर किसी नजर-निगरानी की आवश्यकता नहीं है। सब कुछ कारोबारी साबित करे। जीएसटी के अलोकप्रिय होने का कारण यह गलत मान्यता भी है। इस कारण जीएसटी में बहुत सारी खामियां हैं। इन्हें दूर करना होगा। इसलिए, जीएसटी से लाभ क्या होगा यह तो भविष्य की बात है मूलभूत समस्या, बनी रहेगी।

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जीएसटी में ग्राहक को जानना एक महत्वपूर्ण पहलू है। खासकर मोटी खरीदारी या नियमित सेवा देने वालों को। मकसद स्पष्ट है – जरूरत पड़ने पर उससे धन का स्रोत पूछा जा सके। फर्जी खर्चे न दिखाए जा सकें। इसी क्रम में सोने की खरीदारी करने वाले ग्राहकों के आयकर का स्थायी खाता संख्या लेना दुकानदारों के लिए आवश्यक कर दिया गया था। दुकानदारों का कहना है कि इससे बिक्री कम हो गई है। और सरकार ने कारोबारियों के दबाव में दो लाख तक की खरीद पर स्थायी खाता संख्या की बाध्यता खत्म कर दी। यह राशि बहुत बड़ी है और पति-पत्नी मिलकर हर साल दो-दो यानी चार लाख का सोना आयकर का स्रोत बताये बगैर खरीद सकते हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि देश का बहुत सारा काला पैसा इस तरह सोने में खप जाएगा जो नोटबंदी जैसे उपायों से भी पकड़ में नहीं आएगा। सरकार का यह कदम भ्रष्टाचार और कालाधन खत्म करने के सरकार के दावे की हवा निकाल देगा। इससे सरकार की मजबूरी का पता चलता है और यह भी कि वह चुनाव जीतने के लिए कुछ भी करने को तैयार है।

अगर ऐसा है तो बाकी सब कुछ दिखावा, प्रचार है, व्यर्थ है। कभी भी बदल जाएगा, खत्म हो जाएगा। जीएसटी का एक और खतरनाक हिस्सा है ई-वे बिल। इसका अनुपालन भी काफी मुश्किल है। इसे टाल दिया गया गया था। पर अब लागू करने की तारीख करीब है कारोबारी कहते हैं मुश्किल है और सरकार इसे लागू करने पर आमादा है। इसकी कई परेशानियों के विस्तार में न जाकर यहां यही कहूंगा कि इसमें एक नियम है कि कोई सामान किस गाड़ी से जा रहा है उसका नंबर भी लिखा रहे। सुनने में यह वाजिब भी लगता है। पर ट्रांसपोर्टर कई बार अपना सामान एक स्थान तक एक गाड़ी से और फिर दूसरी गाड़ी से भेजते हैं। यह व्यावहारिक जरूरत है। हर बार नंबर बदलना या गाड़ी न बदलना व्यावहारिक तौर पर कितना मुश्किल है इसकी कल्पना की जा सकती है। ऐसे नियम ना माने जा सकते हैं और ना इसके लिए काम रुकेगा – ऐसे में आप समझ सकते हैं कि ऐसे नियमों से चोरी और भ्रष्टाचार ही बढ़ेगा। कीमतें बढ़ेंगी।

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