‘रंगीन’ ना सही, ‘सफ़ेद’ साड़ी ही मेरे पैसे से ‘ख़रीदकर’ पहनना, फिर आकर बताना कैसे मिली राशि? (भाग-3)

कल चमन था आज इक सहरा हुआ. देखते ही देखते ये क्या हुआ : दरभंगा में महाराजा के रामबाग पैलेस का प्रवेश द्वार 

दरभंगा / पटना : बिहार की राजधानी के कंकड़बाग क्षेत्र में रहने वाली विधवा श्रीमती राधा देवी को दी न्यूजपेपर्स एंड पब्लिकेशन्स लिमिटेड के न तो तत्कालीन मालिक, न वर्तमान मालिक और न ही कोई कर्मचारी उन्हें बताया कि उनके पति, और उनके जैसे अन्य कर्मचारी, जिन्हें संस्थान से बकाये पैसे मिलने थे/हैं, उस पैसे के विरुद्ध आर्यावर्त-इण्डियन नेशन भूखंड पर बनने वाली अट्टालिका के द्वितीय तल्ले और उसके ऊपर निर्मित क्षेत्र में 45 फीसदी क्षेत्र, जो मालिक का हिस्सा होगा, प्रतिभूति के रूप में सुरक्षित रखा गया था/है, ताकि सभी कर्मचारियों को जीवित अथवा मरणोपरांत बकाया राशि मिल सके। 

श्रीमती राधा देवी जिस दिन विधवा हुई, उनकी उम्र कोई 68 वर्ष थी। उनके पति कहते थे कि जीवन भर वे उन्हें अच्छी साड़ी नहीं खरीद कर दे सके उन्हें । वे चाहते थे कि उनके बच्चे पढ़-लिखकर बेहतर जिंदगी जियें।  हर माता-पिता यही चाहता है। कभी कभी मजाक में वे अपनी पत्नी को कह भी देते थे कि “अगर उनकी मृत्यु हो गई और कार्यालय से जो भी पैसे मिले, जब भी मिले, उस पैसे से तुम अपने लिए रंगीन साड़ी ना सही, सफ़ेद साड़ी ही सही, खरीदकर जरूर पहनना। अपनी सभी इक्षाओं को पूरा कर लेना, जितना हो सके, जो एक पति को करना होता है। मैं तुम्हे स्वर्ग से देखूंगा। जब तुम मेरे पास आओगी, फिर सम्पूर्ण वृतांत बताना आखिर कैसे पैसे मिले?” 

अपने पति की बातों को वह अपने ह्रदय के अन्तः कोने में उनकी धरोहर स्वरुप रख ली। श्रीमती राधा देवी के पति का पार्थिव शरीर बर्फ की विशाल सिल्ली पर रात भर रखा था। सुवह सूर्योदय के साथ पिघले वर्फ के पानी से छँटकर सूर्य का किरण श्रीमती राधा देवी के चेहरे को निखार रहा था, जैसे एक पति अपनी पत्नी की सुंदरता को निखरता, निहारता है। जब उनके पति का पार्थिव शरीर पटना के कंकड़बाग स्थित किराये के मकान से गंगातट की ओर उन्मुख हुआ, वे बहुत ही विश्वास के साथ अपने बच्चों को आदेश दीं कि बाबूजी का पार्थिव शरीर को उनके कार्यालय का दर्शन जरूर करा देना। शायद फिर कभी यह शरीर उस दफ्तर को नहीं देख सके।  बहुत प्यार करते थे वे अपने कार्यालय को, कार्यालय में काम करने वाले कर्मचारियों को, अधिकारीयों को, वहां की मिटटी को।”  उनकी बातों को सर्वश्रेष्ठ स्थान मिला।

श्रीमती राधा देवी ही नहीं, उनके जैसे दर्जनों, सैकड़ों आर्यावर्त-इण्डियन नेशन-मिथिला मिहिर पत्र-समूह के कामगारों की महिलाएं, विधवाएं होंगी जो अपने पति के पैसे का जीवन-पर्यन्त प्रतीक्षा की होंगी। श्रीमती राधा देवी के पति के तरह अनेकानेक महिलाओं के पति रहे होंगे, जो अपनी पत्नी के साथ मृत्यु सज्जा पर भी स्नेह-स्वरुप ही सही, अपने जीवन की कमाई को धरोहर स्वरुप कागज के पन्नों पर लिखा छोड़कर ईश्वर के पास उपस्थित हो गए होंगे। उनकी विधवाएं भी अपने-अपने मन में अपने शरीर के पार्थिव होने तक, उस अमिट इक्षाओं को जीवित रखी होंगी । परन्तु न आर्यावर्त – इण्डियन नेशन – मिथिला मिहिर पत्र समूह के मालिक, न प्रबंधन के लोग, न सैकड़ों लोगों वाला वह न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशन्स लिमिटेड कर्मचारी यूनियन के लोग/प्रतिनिधि और ना ही पत्रकार यूनियन के लोग बाग़ श्रीमती राधा देवी या उनकी जैसी अन्य महिलाओं, विधवाओं को यह बताया होगा कि ‘2002 के करारनामे के अनुसार किसी भी कर्मचारी का भुगतान बकाया नहीं रह पायेगा क्योंकि आर्यावर्त-इण्डियन नेशन भूखंड पर बनने वाली अट्टालिका के द्वितीय तल्ले और उसके ऊपर निर्मित क्षेत्र में 45 फीसदी क्षेत्र, जो मालिक का हिस्सा होगा, प्रतिभूति के रूप में सुरक्षित रखा गया था/है, ताकि सभी कर्मचारियों को जीवित अथवा मरणोपरांत बकाया राशि मिल सके।”

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लेकिन ऐसा हुआ नहीं। श्रीमती राधा देवी अपने पति की मृत्यु के बाद कोई 18 वर्ष तक विधवा रहीं, अपने पति के उस खून-पसीने की कमाई मिलने की प्रतीक्षा करती रहीं । मन में सोचती रहीं कि जब भी पैसा मिलेगा, अपने पति के आदेशानुसार, रंगीन ना सही, सफ़ेद साड़ी खरीदकर पहनूंगी। मन की कुछ अतृप इक्षाओं को पूरा करुँगी अपने पति के पैसे से।  फिर उनके पास पहुँचने के लिए अनंत यात्रा पर निकल जाउंगी। परन्तु, ऐसा हुआ नहीं। श्रीमती राधा देवी अपने पति की मृत्यु के 18 वर्ष बाद इस श्रृंखला वाली कहानी के लिखने के 11 वर्ष पहले “खाली हाथ” अपने पति के पास पहुँचने के लिए अनंत यात्रा पर निकल गयीं। उनकी पति की मृत्यु सन 1992 में हुई जबकि वे 2010 में उनके पास पहुँचने के लिए निकलीं। अंतर सिर्फ यही था कि उनके पति पटना के गुल्मी घाट पर बहती गंगा में अग्नि के माध्यम से निकले, जबकि श्रीमती राधा देवी गढ़मुक्तेश्वर में बहती गंगा में अग्नि के माध्यम से प्रवाहित हुईं। 

करारनाम के तीसरे पृष्ठ के अंतिम पैरा पढ़ें 

दिनांक 31 मार्च, 2002 को दी न्यूज पेपर्स एंड पालिकेशन्स लिमिटेड के प्रबंधन, पाटलिपुत्रा बिल्डर्स प्राइवेट लिमिटेड, दी एन एंड पी कर्मचारी यूनियन, बिहार पत्रकार यूनियन के अधिकारियों के साथ  “मेमोरेंडम ऑफ़ अग्रीमेंट एंड सेटलमेंट” पर हस्ताक्षर हुआ। करारनामा चार पन्नों का था। प्रबंधन के तरफ से श्री एस एन दास, जो उस दिन निदेशक थे कंपनी के, श्री दिनेश्वर झा, मैनेजर; एम एम आचार्य, एक्टिंग सेक्रेटरी; श्री सी एस झा, एकाउंट्स ऑफिसर हस्ताक्षर किये और क्रेता पाटलिपुत्रा बिल्डर्स के तरफ से कंपनी के निदेशक श्री अनिल कुमार (स्वयं) और उनके एक प्रतिनिधि श्री आनंद शर्मा। दी न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशन्स लिमटेड के कर्मचारी यूनियन के तरफ से थे श्री गिरीश चंद्र झा (अध्यक्ष), दिग्विजय कुमार सिन्हा (जेनेरल सेक्रेटरी), श्री एस एन विश्वकर्मा, जॉइंट सेक्रेटरी, श्री रमेश चंद्र झा, जॉइंट सेक्रेटरी और बिहार वर्किंग जर्नलिस्ट्स यूनियन के तरफ से हस्ताक्षर करता थे श्री शिवेंद्र नारायण सिंह (प्रेसिडेंट), श्री मिथिलेश मिश्रा (एग्जीक्यूटिव) । करारनामे पर कहीं भी संस्थान के स्वामी / भूखंड के स्वामी दिखाई नहीं दिए। 

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करारनाम के तीसरे पृष्ठ के अंतिम पैरा में लिखा था : “”As the security for payment of dues of employees the built up area of 45% of the owner share from second floor onwards would lein at the rate of Rs 1000/- (One thousand) per square feet in favour of total employees/workers (past  and present) against their dues amount. In case of non-payment of dues of workmen/employees space equal to dues at rate of Rs 1000/- (One thousand) per square feet would be given to concerned employees. The space of built-up area so kept as security will be exempted proportionally as the employees get their balance dues in instalments.” और अंत में लिखा था: “All parties having read understood the contents purport of this agreement and settlement and in their full sence have put their respective signature of this document as a token of their consent and commitment in presence of witnesses for future reference and needful.”

मृतक कर्मचारियों के जीवित विधवाएं संभवतः इस बात की तहकीकात करने जा रही हैं की फ़्रेज़र रोड स्थित उस भूखंड पर, जहाँ उनके पति कार्य करते थे आर्यावर्त – इण्डियन नेशन – मिथिला मिहिर पत्र समूह के कार्यालयों में, उस स्थान पर बने गगनचुम्बी अट्टालिका में “करारनामे के अनुसार” द्वितीय तल्ले से और उसके ऊपर, या उस भवन में आर्यावर्त – इण्डियन नेशन – मिथिला मिहिर के कितने कर्मचारियों का आवास/फ्लेट्स हैं जो उन दिनों प्रबंधन, कर्मचारियों या पत्रकारों के तरफ से “कर्मचारियों के हितों के लिए” लड़ रहे थे। वे सभी इस बात से भी आश्वत होना चाहती हैं कि क्या भूखंड स्वामी, यानी आर्यावर्त-इण्डियन नेशन-मिथिला मिहिर पत्र समूह के मालिक का, जिनके समयावधि में, जिनके तत्वावधान में उपरोक्त करारनामे पर प्रबंधन, कर्मचारी युनियन या पत्रकार युनियन के लोगों ने “उपरोक्त पैरा सहित करारनामे पर हस्ताक्षर किये, कहीं वे, अथवा उनके बदले उनके संबधी तो लाभान्वित नहीं हुए?” आखिर, मृतकों की आत्मा तो आसपास शांति हेतु मर्रायेगी ही।  

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न्यायालय श्रम आयुक्त बिहार-सह-अपीलीय प्राधिकार, उपादान भुगतान अधिनियम 1972 के अंतर्गत एक आदेश

बहरहाल, पिछले 25 फरबरी, 2021 को न्यायालय श्रम आयुक्त बिहार-सह-अपीलीय प्राधिकार, उपादान भुगतान अधिनियम 1972 के अंतर्गत एक आदेश जारी करता है। यह आदेश इस बात का प्रमाण है कि करारनामे का पूर्णतः पालन नहीं हुआ और इस आदेश की तारीख तक भी लोगों का बकाया राशि नहीं मिला है। अनिल कुमार (निदेशक) मेसर्स पाटलिपुत्र बिल्डर्स प्राईवेट लिमिटेड, महाराजा कामेश्वर काम्प्लेक्स, फ़्रेज़र रोड, पटना के द्वारा उप-श्रमायुक्त-सह-नियंत्रक प्राधिकार, उपादान भुगतान अधिनियम, 1972 के अंतर्गत पटना द्वारा जी ए वाद संख्या 03/2012 से 124 /2012 में दिनांक 24-07-2017 को पारित आदेश के विरुद्ध एक अपील दायर किया था। इस अपील में विजय कांत राय, पिता श्री बासुदेव राय (अर्चना काम्प्लेक्स, प्रिंटिंग प्रेस, जिला सुपौल) को प्रतिवादी बनाया गया था। 

अपील के अनुसार मेसर्स न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशन लिमिटेड की वित्तीय स्थिति खराब होने के बाद प्रबंधन द्वारा मेसर्स पाटलिपुत्र बिल्डर के साथ अपनी संपत्ति के बारे में समझौता किया गया था जिसके अनुसार पब्लिकेशन के बंद होने के बाद कर्मचारियों के देनदारियों का भुगतान मेसर्स पाटलिपुत्र बिल्डर द्वारा किया जायेगा। लेकिन पब्लिकेशन के बंद होने के बाद मेसर्स पाटलिपुत्र बिल्डर द्वारा कामगारों के बकाये राशि का भुगतान नहीं किया गया। बाद में, कामगारों के आवेदन पर उपादान भुगतान अधिनियम, 1972 के तहत कार्रवाई  प्रारम्भ की गयी एवं उक्त वाद में वादी कामगार श्री हितचन्द्र झा एवं अन्य 89 (नवासी) कामगारों के पक्ष में आदेश पारित करते हुए प्रबंधन को कुल 49 32 ३४२ /- रुपया भुगतान करने का आदेश दिया गया, जिसमें श्री विजय कान्त राय से सम्बंधित वाद संख्या 66/2012 में उपादान भुगतान हेतु आदेशित राशि 15 423 /- भी शामिल है। 

ज्ञातब्य हो कि मेसर्स पाटलिपुत्र बिल्डर द्वारा नियमानुसार श्रमायुक्त, बिहार-सह-अपीलीय प्राधिकार के न्यायालय में अपील ना करके सीधे माननीय पटना उच्च न्यायालय में सी डब्लू जे सी  संख्या 15986/2017 दायर किया गया जिसे दिनांक 29-03-2019 को आदेश पारित करते हुए माननीय उच्च न्यायालय द्वारा उपादान भुगतान अधिनियम, 1972 की धारा – 7 (7) के अनुसार अपीलीय प्राधिकार के समक्ष अपील दायर करने के आदेश निर्गत करते हुए निष्पादित कर दिया गया था। (क्रमशः………..)

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