मजदूरों, परिवारों, बच्चों के जीवन के साथ खेलने की मालिकों की आदत तो पुरानी है… (भाग – 12)

उन दिनों की बात है - कुमार शुभेश्वर सिंह (अब दिवंगत) और शत्रुघ्न सिन्हा 

दरभंगा / पटना : आखिर क्या वजह थी कि रियाज अजिगाबादी के प्रबंध निदेशक काल में बिहार सरकार के उप-श्रम आयुक्त, दि न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशन लिमिटेड, कर्मचारी और पत्रकार यूनियनों के बीच हुए त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद भी दि न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशन लिमिटेड के तत्कालीन मालिक और अन्य शेयर धारकों ने उसे निरस्त कर कर्मचारियों के भविष्य को गर्त में धकेल दिया। क्या उक्त त्रिपक्षीय समझौते से संस्थान के मालिकों और शेयर धारकों को “लाभ” की रकम की मोटाई कम हो रही थी? क्या वे नहीं चाहते थे कि कर्मचारियों का जीवन सुखमय हो ? कुछ तो बात थी जरूर अन्यथा मेरिडियन कंस्ट्रक्शन इण्डिया लिमिटेड के स्थान पर पाटलिपुत्रा बिल्डर्स का आगमन कैसे हो गया और सैकड़ों कर्मचारियों के भविष्य के साथ मालिकों ने मिलकर कैसे धोखधड़ी कर लिया। वैसे देश में अब मजदूरों की स्थिति कैसी है, मालिकों, नेताओं और मजदुर यूनियन के ‘अपने लोगों ने ही’, मजदूरों को श्रमिकों के साथ क्या-क्या खिलवाड़ कर रहे हैं यह तो दिल्ली के जंतर-मंतर पर मुद्दत से घरना पर बैठे मजदुर और श्रमिक जानते ही हैं।  

बहरहाल, महाराज के मरने के बाद दरभंगा राज में अंदर भी, बाहर भी लुटेरों का साम्राज्य हो गया । कौन अपना, कौन पराया था या है, इसे आंकने में चन्द्रगुप्त भी विफल हो जाते, अगर चन्द्रगुप्त जीवित होते। सबों ने अपने-अपने चेहरों पर मुखौटा पहन लिया था, आज भी पहने है। सभी एक दूसरे के हितैषी जैसे व्यवहार करते दिखते तो हैं, लेकिन वास्तविक रूप से सभी एक-दूसरे को छल करने के लिए, स्वयं लाभान्वित होने के लिए चतुर्दिक चक्रव्यूह रचने में मशगूल है। वैसे महाराजा के मरने के बाद दरभंगा राज में सही रूप से मानसिक आंकलन करने वाले की किल्लत ही नहीं, बंजर जैसी स्थिति है। फिर भी लोग दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं कि वे उनके हितैषी है। बिडंबना यह है कि अगर दरभंगा राज के स्वामित्व वाले दि न्यूजपेपर्स एंड पब्लिकेशन्स लिमिटेड (प्रकाशक : आर्यावर्त, इण्डियन नेशन, मिथिला मिहिर) के “प्रबंधन” के लोग, उस कंपनी के शेयरहोल्डर्स अगर सच में महाराजाधिराज की गरिमा को बचाना चाहते, हज़ारो कर्मचारियों, उनके परिवारों, उनके बाल-बच्चों के हितैषी होते तो शायद आज न उनका और न आर्यावर्त-इण्डियन नेशन का यह हश्र नहीं होता – नामोनिशान नहीं मिटता। 

“मेरे पिता की मृत्यु 30-वर्ष पहले हुई। उनकी मृत्यु के बाद मैं अपनी माँ को लेकर आर्यावर्त-इण्डियन नेशन दफ्तर पहुंचा ताकि तत्कालीन अधिकारियों से बात कर यथास्थिति से माँ को अवगत करा सकूँ। पिताजी का कुछ पैसा कार्यालय से भुगतान होना था। उस दिन लेखा विभाग के एक श्रेष्ठ अधिकारी, जो प्रबंधन और मालिक के बहुत नजदीक थे, उनसे मिला और पिता के बारे में बताया, माँ से मिलाया।  पिता के शेष पैसों के बारे में जब पूछा तो वे ‘शनिदेव  जैसा उत्तेजित हो गए और माँ की उम्र का बिना ख्याल किये हम दोनों पर बरस गए। माँ सबसे बड़ी बेटी उस अधिकारी से न्यूनतम दस वर्ष बड़ी होगी। माँ की आँखें अश्रुपूरित हो गयी। माँ जानती थी कि उसे जीवन पर्यन्त कभी कोई तकलीफ नहीं होगी अपने बच्चों से, फिर भी वह अपने पति की अर्जित कमाई के लिए चिंतित थी। वह चाहती थी की अपने पति की इक्षा को उनके पैसों से पूरा कर अंतिम सांस ले ।  लेकिन ऐसा नहीं हुआ। माँ मेरे हाथ को पकड़े उस भवन की सीढ़ी से नीचे उतर रही थी। आँचल से अपनी आँखों को पोछ रही थी। मैं उस समय चाहता तो उस अधिकारी को कुछ भी कर सकता था, लेकिन माता-पिता का संस्कार ऐसा नहीं था। माँ की वेदना और अश्रु बहुत कुछ कह रहा था। माँ की मृत्यु, बाबूजी की मृत्यु के 18 वर्ष बाद हुई, आज से दस वर्ष 11-वर्ष पहले। माँ खाली हाथ अपने पति के पास गई। आर्यावर्त-इण्डियन नेशन में उसके पति की कमाई मालिक नहीं दिया।”

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त्रिपक्षीय वार्ता/करारनामा – लेकिन मालिक और शेयर धारकों को पसंद नहीं आया 

इन कहानियों की श्रृंखला लिखते समय एक दस्तावेज पर लिखा मिला: “आर्यावर्त-इण्डियन नेशन-मिथिला मिहिर कार्यालय में कार्य करने वाले लगभग सौ से अधिक कामगार मृत्यु को प्राप्त किये हैं। संस्थान ने भूतपूर्व निदेशक सर्व नारायण दास और भूतपूर्व कार्यवाहक  सचिव मदन मोहन आचार्य द्वारा दिनांक 06-04-2014 को पटना के कोतवाली थाना में दर्ज एफ आई आर में भी इस बात का उल्लेख है। मदन मोहन आचार्य द्वारा एक कागज़ पर लिखा मिला उनके हस्ताक्षर के साथ। लिखा है: “मैं (भूतपूर्व कार्यवाहक सचिव) वर्षों से स्पाईनल कॉर्ड की बीमारी से पीड़ित होने के कारण घर में सिमित हूँ। वर्ष 2006 में लम्बर 4 और 5 का ऑपरेशन कराना पड़ा था। मैं 60 प्रतिशत विकलांग हूँ। हमारा लाखों बकाया राशि की अनिल कुमार द्वारा बेईमानी कर ली गयी। अनेक कर्मचारी दवा के अभाव में तथा अनेक राशन के अभाव में मर गए।” इन शब्दों को पढ़कर वह दृश्य याद आ गया, हाथ पकड़ी माँ याद आ गयी, अपनी आँचल से अश्रु पोछती उसके हाथ याद आ गए, सीढ़ी पर नीचे उतड़ते, कुहरते, हिचकी लेते माँ का चेहरा, उसका स्वरुप याद आ गया।”

बहरहाल, रियाज अजिगवादी के  प्रबंध निदेशक काल में दि न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशन्स, फ़्रेज़र रोड, पटना ने अपने पत्र दिनांक 26-06-2001 के द्रारा सचिव श्रम नियोजन और प्रशिक्षण विभाग पटना को यह सुचना दी थी की प्रबंधन की जर्जर आर्थिक स्थिति के कारण कुल कार्यरत 294 कर्मचारियों में से 200 कर्मचारियों की छटनी दिनांक 01-02-2001 से कर दी जाएगी।  पत्र प्राप्त होते ही सचिव्त्र श्रम नियोजन और प्रशिक्षण विभाग बिहार सरकार ने प्रबंध निदेशक दी न्यूज पेपर्स एंड पलिकेशन्स लि. को सरकारी पत्र सांख्य 3  / डी 1 क – 29 / 2001 श्र नई 1559  दिनांक 26-06-2001 के द्वारा औद्योगिक विवाद अधिनियम के प्रावधानों का हवाला देते हुए प्रस्तावित छटनी को वापस लेने के निर्देश दिया।  साथ ही, श्रम आयुक्त पटना को इस विवाद में शीघ्र हस्तक्षेप कर कार्रवाई करने का निर्देश दिया।  निर्देश प्राप्त करते ही उप श्रम आयुक्त दिनेश्वर प्रसाद सिन्हा को उभय पक्ष को वार्ता हेतु दिनांक 29-06-2001  को अपने कार्यालय कक्ष में बुलाया। 

दिनांक 29 जून को उप श्रम आयुक्त के सम्पर्क हुई बैठक में यह बात उभरकर आयी थी की कंपनी की आर्थिक स्थिति बहुत भयावह है तथा कंपनी अपने कर्मचारियों को वेतन देने की स्थिति में नहीं है। कर्मचारियों ने शेयर होल्डरों से मिलकर पैसा लेने एवं इस काम में प्रबंधन द्वारा अड़ंगा नहीं लगाने जाने की बात को कंपनी के प्रबंध निदेशक को कहा था की वे फंड लाने का प्रयास कर रहे हैं  तथा अगस्त – सितम्बर के पहले सप्ताह में में सम्भतः कर्मचारियों का वेतन अदा कर देंगे जिसे लेने के बाद कर्मचारी अपना-अपना त्यागपत्र प्रबंधन के हाथों सौंप देंगे. प्रबंधन इसमें से 200 से अधिक कर्मचारियों को हटाकर आवश्यकतानुसार कर्मचारियों को सेवा में बुला लेंगे। प्रबंधन का मानना था की यदि एक बार वेतन की रकम अदा कर देते हैं तो ग्रेच्युटी और बोनस की रकम की वे बाउंड बनाकर निर्धारित अवधि के बाद कर्मचारी कैश करा लेंगे। 

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त्रिपक्षीय वार्ता/करारनामा – लेकिन मालिक और शेयर धारकों को पसंद नहीं आया 

कर्मचारियों के प्रतिनिधियों ने भी बताया की कंपनी के सभी पत्रकार एवं कर्मचारी जिन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा कंपनी की सेवा में बिताया है, चाहते हैं कि कंपनी एक बार फिर अपने पाऊँ पर खड़ा हो तथा दोनों दैनिक एकल बार फिर राज्य में प्रमुख दैनिक बन सके।  इसके लिए वे किसी भी तरह की कुर्बानी देने के लिए तैयार हैं। कर्मचारी अपने प्रबंधन को खुली छूट देना चाहते हैं की वे दोनों दैनिकों को प्रकाशित कर सके।  श्रमजीवी पत्रकार यूनियन एवं एन एंड पी कर्मचारी यूनियन एवं प्रबंधन के बीच उप श्रम आयुक्त के समक्ष की गयी बातों के आलोक में विचार विमर्श हुआ और यह निर्णय लिया गया की सम्पूर्ण मामलों को आपसी समझौते के द्वारा निम्नलिखित मुद्दों के आलोक में तय कर लिए जायँ। इसके आलोक में दोनों पक्षों के बीच कई एक दौर की वार्ता चली तथा निर्धारित 20 अगस्त को दोनों यूनियन एवं प्रबंधन की सौहार्दपूर्ण वातावरण में बातचीत भी हुई। समझौता की शर्तों का एक मसविदा तीनों पक्षों के बीच दिया गया तथा सहमति के लिए समय मांगा गया।  अंततः आज दिनांक 25-06-2001  को उप श्रम आयुक्त पटना के समक्ष एक त्रिपक्षीय समझौता संपन्न हुआ। 

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यह तय हुआ कि कंपनी और मेरीडियन कंस्ट्रक्शन इण्डिया लिमितेर्ड्स के बीच फ़्रेज़र रोड स्थिति आर्यावर्त इंडिअयं नेशन के भवन को तोड़कर नया कॉम्प्लेक्स बनाने सम्बन्धी करार 16 अगस्त 2001 को हो चूका है जिस करार को दोनों यूनियन की सहमति प्राप्त है। इस समझौते की भी पुष्टि हो चुकी है।  शेयर होल्डर्स की सहमति प्राप्त कर आरओसी के यहाँ प्रस्ताव जाना बाकी रह गया है।  जिसके अंतर्गत  मेरिडियन कंपनी एन एंड पी लिमिटेड को कर्मचारी के बीच वेतन बांटने हेतु अपने बैंक के द्वारा अग्रिम भुगतान करेगी जिसे एन एंड पी लिमिटेड  के सभी वर्तमान कार्यरत कर्मचारी से त्यागपत्र लेकर मार्च 2001 तक का वेतन भुगतान कर दिया जायेगा। यह भुगतान 30 सितम्बर 2001  तक कर दिया जायेगा। ऐसा न होने पार्ट यह करार तथा बिल्डर  किया गया करार स्वतः समाप्त समझा जायेगा। 

यह भी तय हुआ कि कट ऑफ़ डेट 31-08-2001 निर्धारित है। इस प्रकार छह महीने का वेतन अर्थात अप्रैल से अगस्त तक का एवं मार्च 1990  से पूर्व का यदि कोई वेतन बकाया है, बाकि छुट्टी एवं रकम या कर्मचारी ने कोई अग्रिम ले रखा है या एलआईसी  का या किसी अन्य भत्ते के रूप में बकाया रह गया है तो उसे तैयार कर एक से डेढ़ वर्षों के अंदर एन एंड पी अदा कर देगी। वैसे एन एंड पी कंपनी का प्रयास होगा की समय से पहले ही भुगतान कर दिया जाय। इसका अलग से बॉन्ड बनाकर दिया जायेगा।  

त्रिपक्षीय वार्ता/करारनामा – लेकिन मालिक और शेयर धारकों को पसंद नहीं आया 

बोनस ग्रेच्युटी जोड़कर इस रकम का एक बाउंड विधिवत स्टाम्प पेपर बनाकर  कंपनी कर्मचारियों को देगी। इस बाउंड में सभी बकायों का अलग अलग उल्लेख रहेगा। जैसे ही भवन निर्माण का कार्य पूरा हो जायेगा, वैसे ही कंपनी अपने हिस्से को किराये पर लगाएगी और अग्रिम रूप से आयी रकम का भुगतान कर्मचारियों को अबिलम्ब कर देगी।  यदि कंपनी भवन निर्माण कार्य पूरा होने के तीन माह के अंदर भुगतान नहीं करेगी तो कंपनी कर्मचारियों की बाकी रकम जिसे बाउंड के शक्ल में दिया जायेगा, पर बैंक दर से बचत खाते में जो ब्याज बैंक देगी वह कर्मचारियों को देगी जिसकी अवधि एक वर्ष से अधिक नहीं होगी। 

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यह भी तय पाया की कर्मचारियों के ग्रेच्युटी एवं बोनस की रकम के बराबर भवन में स्थान कर्मचारियों के नाम सुरक्षित रहेगा जिसे कंपनी बेच नहीं सकती है।  भुगतान के बाद कंपनी जो चाहे कर सकती है।  कंपनी ने अपने कर्मचारियों को प्रस्ताव दिया है  यदि वे चाहें तो अपने बाकी राशि के एवज में  व्यापार करने अथवा दूकान खोलने के लिए और रकम लगाकर पूर्ण स्वामित्व के आधार पर स्थान भी ले सकते हैं।  उन्हें व्यापार करने के लिए दूकान अथवा कार्यालय के काम रियायती दर पर कर्म,चरियों को दिया जायेगा।  कंपनी चाहेगी की उसके कर्मचारी कंपनी छोड़ने के बाद अपनी रकम को इधर-उधर न कर जीवन यापन के लिए आमदनी का साधन बनाने में लगाएं। यह सुविधा केवल एन एंड पी कंपनी अपने कर्मचारियों को लम्बी सेवा को देखते हुए दे रही है। 

तत्काल मार्च 2001 तक का कुल वेतन 30 सितम्बर 2001 तक कर्मचारियों को दिया जायेगा।  वेतन भुगतान एवं त्यागपत्र साथ साथ होगा तथा कर्मचारियों का बाउंड की रकम के अलावे किसी प्रकार का बकाया एवं दावा कंपनी पर नहीं रह जायेगा। सभी भुगतान एवं त्यागपत्र की प्रक्रिया बैंक के माध्यम से ही संपन्न होगी।  इस करार के मुताबिक पत्रकार एवं कर्मचारी तभी त्यागपत्र देंगे जब उनके वतन, बोनस ग्रेच्युइटी एवं अन्य बकायों से सम्बंधित विवरण प्रत्येक कर्मचारी को दिखाकर पूर्णतः संतुष्ट कर दिया जाय, 25 सितम्बर से पूर्व दिवो यूनियनों को बकायों सम्बन्धी सभी विवरण उपलब्ध करा दिया जायेगा। 

एन एंड पी कंपनी अपने कर्मचारियों की सेवाओं को देखते हुए प्रत्येक कार्यरत कर्मचारियों को  एक माह का वेतन एक्सग्रेसिया के रूप में देगी। इसके अलावा जिस कर्मचारियों की सेवा अवधि 10 वर्ष से कम है उन्हें एक माह का वेतन दिया जायेगा जो बोनस और ग्रेच्युटी के साथ मिलेगा। यदि किसी प्रकार का विवाद द्वारा करारनामे से संबंधित अथवा भवन निर्माण के साथ हुआ तो उक्त समस्या को आर्बिट्रेशन अधिनियम के अंतर्गत सुलझाया जायेगा .दोनों पक्ष विवाद के 30 दिनों के अंदर आर्बिट्रेटर का मनोनयन कर लेंगे। 

इस त्रिपक्षीय करारनामे पर प्रबंधन के तरफ से हस्ताक्षर करने  वालों में रियाज आजिजाबादी (प्रबंध निदेशक) के अलावे  सर्वनारायण दस, विक्रम कुमार मिश्र, दिनेश आनंद  और मदन मोहन आचार्य जबकि पत्रकार-कर्मचारी के तरफ से शिवेंद्र नारायण सिंह, अमर मोहन प्रसाद, गिरीश चंद्र झा और गौरी शंकर आचार्य। सरकार के तरफ से दिनेश्वर प्रसाद सिन्हा, उप श्रम आयुक्त एवं समझौता पदाधिकारी, पटना ने हस्ताक्षर किये। लेकिन यह त्रिपक्षीय करारनामा शायद मालिक और शेयर धारकों को हजम नहीं हुआ। ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार के तरफ से उप-श्रम आयुक्त के आगमन से कंपनी के मालिक, शेयर धारकों और प्रबंधन के एक खास वर्ग को उनके “अपेक्षित लाभ” की उपेक्षा हो जाती, इसलिए वे “करारनामे की ही सम्पूर्णता के साथ उपेक्षा कर दिए” और “स्वहित में” पाटलिपुत्रा बिल्डर्स से हाथ मिला लिए………..क्रमशः 

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