‘नेपथ्य’ में कोई तो है जो दरभंगा के दिवंगत महाराजाधिराज की ‘अंतिम विधवा’ को आगे कर जमीन की खरीद-बिक्री कर रहा है (भाग-36 क्रमशः)

महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह और उनकी विधवा महारानी कामसुन्दरी, उनका निवास और कल्याणी फाउंडेशन का दफ्तर

दरभंगा / पटना / दिल्ली : दरभंगा के अंतिम ‘संतानहीन’ राजा महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह 1 अक्टूबर, 1962 को अंतिम सांस लिए। दरभंगा के नरगौना पैलेस में उनका “भव्य” शरीर ‘पार्थिव’ हो गया। परतंत्र भारत से लेकर स्वतंत्र भारत तक, यानी सन 1929 से लेकर स्वतंत्र भारत में जमींदारी प्रथा की समाप्ति तक सर कामेश्वर सिंह भारत के एक मशहूर और दानशीलता के लिए प्रसिद्द जमींदार के रूप में जाने गए । पहली अक्टूबर 1962 को सूर्योदय के साथ, जब वे अंतिम सांस लिए और उनका शरीर संगमरमर जैसा सफ़ेद नरगौना पैलेस के सतह पर ‘पार्थिव’ हुआ, उस क्षण तक वे लगभग 6200 किलोमीटर क्षेत्र के स्वामी थे। किस अवस्था में उनकी मृत्यु हुई, कैसे हुई, यह तो भारत के लोगों के लिए, मिथिलांचल के लोगों के लिए और दरभंगा राज परिवार के लोगों के लिए “विशेष अन्वेषण” का विषय था और आज भी है, परन्तु “धन” के आगे “मन” की मृत्यु होना भी स्वाभाविक है। महाराजाधिराज की मृत्यु से पूर्व उनके अनुज राजबहादुर विश्वेश्वर सिंह का निधन हो गया था। स्वाभाविक है उनकी पीढ़ी के लोग भी दरभंगा राज की चार-दीवारी के अंदर नहीं थे, जिनकी “नियत” और “नियति” दोनों नरगौना पैलेस के संगमरमर जैसा सफ़ेद हो। उस सफ़ेद भवन में मौत की काली साया किधर से, किस रूप में प्रवेश ली, मौत के समय महाराजा के परिवार के किन-किन व्यक्तियों की परछाई उस संगमरमर के सतह पर थी, जहाँ महाराजाधिराज का शरीर पार्थिव हुआ, कौन-कौन से व्यक्ति उपस्थित थे? तत्कालीन जिला प्रशासन से लेकर प्रदेश और दिल्ली तक के लोग बाग़ कितनी सक्रियता दिखाए उस दिन – यह सभी बातें अन्वेषण का विषय है। यह भी अन्वेषण का विषय आज भी है कि वह कौन सा कारण था जिसके चलते तत्कालीन मुख्य मंत्री बिनोदानंद झा बिना किसी जांच के महाराजाधिराज  शरीर को माधवेश्वर में अंतिम संस्कार करबा दिए। न पोस्टमार्टम हुआ और न ही कोई जांच-पड़ताल। बिना किसी राजकीय सम्मान के महाराजाधिराज का पार्थिव शरीर अग्नि को सुपुर्द कर दिए गया और दरभंगा राज के लोगबाग के साथ-साथ मिथिलांचल के लोग मूक-बधिर बने रहे । महेश ठाकुर से लेकर उनके समय तक अर्जित सभी सम्पत्तियाँ दरभंगा में ही रह गयी।  महाराजाधिराज तो खाली हाथ चले गए। बाद में उनकी सम्पत्तियों के साथ क्या हुआ, क्या-क्या हुआ और हो रहा है, यह तो दरभंगा ही नहीं, मिथिलांचल के लोग भी जानते हैं, परन्तु …….. ।

कोई 60-वर्ष होने वाला है महाराजाधिराज को गए। इन वर्षों में दरभंगा ही नहीं, भारतवर्ष और विदेशों में अर्जित सभी सम्पत्तियाँ कौड़ी के भाव में निकल गए, कुछ निकल रहे हैं शेष समयांतराल निकल जायेंगे। वह तो कलकत्ता उच्च न्यायालय को धन्यवाद दिया जाय कि विगत दिनों दरभंगा राज रेसिडुअरी ट्रस्ट की सम्पत्तियों को बेचने सम्बन्धी बातों को लेकर ट्रस्ट के ट्रस्टीज को तत्काल प्रभाव से ट्रस्ट के कार्यों और अधिकारों से वंचित कर तीन न्यायमूर्तियों द्वारा जान का आदेश दिया।  साथ ही, ट्रस्टीज पर कुछ आर्थिक दंड भी लगाए। 

ज्ञातब्य हो कि अपनी मृत्यु से पूर्व 5 जुलाई 1961 को कोलकाता में उन्होंने अपनी अंतिम वसीयत की थी। महाराजाधिराज अपनी मृत्यु से पहले अपनी पत्नियों, परिवार के लोगों के लिए “अपेक्षित” धन-दौलत बाँट दिए। शेष दरभंगा के लोगों के लिए दे दिए ट्रस्ट के अधीन जो मानव कल्याण के लिए निमित्त बनाये। कोलकाता उच्च न्यायालय द्वारा वसीयत सितम्बर 1963 को प्रोबेट हुई और पं. लक्ष्मी कान्त झा, अधिवक्ता, माननीय उच्चतम न्यायालय, वसीयत के एकमात्र एक्सकुटर बने और एक्सेकुटर के सचिव बने पंडित द्वारिकानाथ झा । वसियत के अनुसार दोनों महारानी के जिन्दा रहने तक संपत्ति का देखभाल ट्रस्ट के अधीन रहेगा और दोनों महारानी के स्वर्गवाशी होने के बाद संपत्ति को तीन हिस्सा में बाँटने जिसमे एक हिस्सा दरभंगा के जनता के कल्याणार्थ देने और शेष हिस्सा महाराज के छोटे भाई राजबहादुर विशेश्वर सिंह जो स्वर्गवाशी हो चुके थे के पुत्र राजकुमार जीवेश्वर सिंह , राजकुमार यजनेश्वर सिंह और राजकुमार शुभेश्वर सिंह के अपने ब्राह्मण पत्नी से उत्पन्न संतानों के बीच वितरित किया जाने का प्रावधान था । 

कुछ वर्ष पूर्व महारानी कामसुन्दरी

लेकिन इन 60 वर्षों में क्या हुआ यह बिहार के लोगों से अधिक मिथिलांचल और दरभंगा के लोग जानते हैं। “संतानहीन” महाराजाधिराज को इस बात का एहसास था कि उनके जाने के बाद उनके अनुज के तीनों बेटों में, उनकी पत्नियों में वह काबिलियत नहीं है जो दरभंगा राज को बरकरार रख पाएंगे। वैसे महाराजाधिराज को और उनके भाई राजा बहादुर को भी इस मामले में “दोषमुक्त” (क्लीन-चिट) का अभिप्रमाण नहीं दिया जा सकता हैं। यदि आज के वंशजों की बात की जाय तो महाराजाधिराज ही नहीं, राजबहादुर भी तत्कालीन पीढ़ी के बच्चो-महिलाओं को चार-दीवारी के अंदर उस तरह का कोई भी पारिवारिक, सामाजिक, शैक्षिक, बौद्धिक, आध्यात्मिक अवसर नहीं दिए, जिसके कि महाराजाधिराज और राजबहादुर दरभंगा राज के चारदीवारी के बाहर के लोगों में “मशहूर” थे। तत्कालीन परिवार के लोगों की, महिलाओं की, बच्चों की बुनियादी नींव “दरभंगा राज में जो अपेक्षा थी”, वह नहीं हो पायी, फलतः वे सभी आने वाले दिनों के लिए खुद को सामाजिक दृष्टि से सज्ज नहीं कर पाए। दरभंगा के महाराजा शिक्षा के क्षेत्र में भले विश्व के लोगों के लिए ‘हस्ताक्षर’ हों, परन्तु घर के लोगों, महिलाओं और बच्चों के लिए ‘शून्य’ रहे । राजबहादुर के सबसे बड़े पुत्र कुमार जीवेशश्वर सिंह पढ़ने में उम्दा थे, परन्तु किसी अन्य कारणों से वे महाराजाधिराज की नजरों में खड़े नहीं उतरे। खासकर “महिलाओं में शिक्षा की किल्लत” के कारण महाराजाधिराज की मृत्यु के बाद दरभंगा राज के अस्तित्व पर क्या पड़ा, यह आने वाले दिनों में “ऐतिहासिक घटना” के रूप में अंकित होगा। आज लिख लीजिये।  

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एक दृष्टान्त: वह कौन सी बात थी जिसके कारण महाराजाधिराज की सबसे छोटी पत्नी महारानी अधिरानी कामसुन्दरी को महाराजाधिराज की  मृत्यु के कोई 52-वर्ष बाद, यानी मार्च 2014 को दरभंगा के तत्कालीन अपर न्यायिक दंडाधिकारी दिनेश कुमार के न्यायालय में दरभंगा राज की बुनियाद को हिला दिया। महाराजाधिराज के देहांत के बाद उनकी  सम्पत्तियों के लूट-खसोट की हज़ारों घटनाएं हैं, सैकड़ों घटनाएं भारत के न्यायालयों में लंबित हैं। परन्तु अपर न्यायिक दंडाधिकारी के न्यायालय में घटित उस घटना को सोचकर मन विचलित तो अवश्य होता है, विश्वास नहीं होता – ऐसा भी हो सकता है? यह अलग बात है कि अपर न्यायिक दंडाधिकारी द्वारा दिए गए फैसले के बाद दरभंगा किले के अंदर अथवा किले के बाहर की दुनिया शांत रही (ऐसा प्रतीत होता है), परन्तु अगर अन्वेषण किया गया होता अथवा आज भी अन्वेषण किया जाय, तो स्थिति दूध-का-दूध और पानी-का-पानी हो सकता है।  इस बात का पर्दाफाश हो सकता है कि जीवन के अंतिम वसंत में क्या दरभंगा के अंतिम महाराजा की सबसे छोटी पत्नी महारानी अधिरानी कामसुन्दरी ऐसा कार्य कर सकती हैं ?  क्या वे किसी व्यक्ति के ‘वेदना और संवेदना के कारण इस कार्य को करने को मजबूर हो गई ? ऐसी कौन सी जरुरत आ पड़ी जिसके कारण उन्हें अपर न्यायिक दंडाधिकारी के न्यायालय में “लज्जित” होना पड़ा ? आज या उस दिन भी, महारानी अधिरानी अपनी उम्र के जिस पड़ाव पर हैं, वहां ‘भगवद्भजन’ के अलावे दूसरा कोई विकल्प नहीं रहता है – जीवन के प्रति।  ‘जीवन और भौतिक सुख’ की बात, धन-संपत्ति की बात करना, सोचना तो मनुष्य सोच नहीं सकता। 

कल्याणी फॉउंडेशन का दस्तावेज 

महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह बहादुर के वसीयतनामा की कंडिका दो के आधार पर महारानी कामसुंदरी देवी द्वारा “निवास स्थान का दाखिल खारिज अपने नाम करने को गैरकानूनी बताते हुए रद कर दिया था और इस मामले में सदर अंचल के तत्कालीन सीओ से जवाब तलब किया था। अपर न्यायिक दंडाधिकारी ने अपने आदेश में कहा था कि महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह बहादुर के वसीयतनामा की कंडिका दो में है कि नरगौना पैलेस की भूमि व भवन का उपयोग महारानी जीवनकाल तक कर सकती हैं। उनके निधन के बाद निवास स्थान उनके भतीजे राज कुमार शुभेश्वर सिंह के नाम हो जाएगा। इसके बावजूद महारानी ने वसीयतनामा को छिपाकर सीओ सदर के समक्ष आवासीय भूमि को अपने नाम करने का आवेदन दिया। तत्कालीन सर्किल अधिकारी ने जून 26, 2007 को महारानी का आवास उनके नाम कर दाखिल खारिज कर दिया। राजकुमार शुभेश्वर सिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र राजेश्वर सिंह और कपिलेश्वर सिंह ने अपर समाहर्ता के न्यायालय में वाद दायर कर महारानी के नाम से जमाबंदी रद करने का आग्रह किया था। अपर समाहर्ता ने 6.3.14 को अपने आदेश में जमाबंदी को रद कर दिया और सीओ समेत सीआइ व हलका कर्मचारी के विरूद्ध कार्रवाई का आदेश दिया है।

महाराजाधिराज द्वारा बनाये गए दस्तावेज के अनुसार : “I bequeath the property mentioned in Schedule ‘A’ to my wife Maharani Rajlakshmi for her life for her residence only. She shall be entitled to reside in the said house and use the furniture and fittings solely without let or hindrance by anybody. After her demise the said property shall vest in my youngest nephew Rajkumar Subheshwara Singh absolutely.” और क्या चाहिए ? महारानी राज्यलक्ष्मी जी का देहावसान हो गया। दस्तावेज के अनुसार उक्त संपत्ति महाराजाधिराज के छोटे भतीजे कुमार शुभेश्वर सिंह का हो गया “अब्सॉल्युटली” – आगे कुमार शुभेश्वर सिंह भी मृत्यु को प्राप्त किये। स्वाभाविक है यह संपत्ति उनके दो पुत्रों को हस्तगत हुआ होगा। उसी तरह, दस्तावेज में आगे लिखा है: “Similarly, I bequeath the property mentioned in Schedule ‘B’ to my wife maharani Kamsundari for her life for her residence only (and for no other purpose) and at her demise the said property shall vest in my youngest nephew Rajkumar Subheshwar Singh absolutely.” यहाँ, महारानी कामसुंदरी जी, अपने जीवन का करीब 90-बसंत देखी हैं, स्वस्थ हैं और उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना मिथिलांचल का लोग करते हैं। लेकिन, महाराजाधिराज के छोटे भतीजे कुमार शुभेश्वर सिंह का देहांत हो गया। स्वाभाविक है, महारानी कामसुंदरी जी के नाम की संपत्ति उनके जीते-जी अभी दूसरों को हस्तगत नहीं हो सकती है। 

कल्याणी फॉउंडेशन का दस्तावेज 

महाराजा साहेब अपने वसीयत में अपनी दोनों पत्नियों के नाम संपत्ति तो कर दिए, लेकिन वसीयत में आगे यह भी लिख दिए कि: “Subject to the disposition and bequeath mentioned above my entire residue of my estate shall vest in a Board of Trustees, consisting of persons named and described in Schedule ‘C’ who will hold the property in trust for my two wives and the children of my aforesaid three nephews.” यानी महाराजाधिराज अपनी दोनों पत्नियों को जो भी सम्पत्तियाँ दिए, उसकी सम्पूर्ण देखरेख के लिए “ट्रस्ट” बना दिए।  यानी महारानियों को उनके जीते-जी उन संपत्तियों पर प्रत्यक्ष रूप से कोई “अधिकार” नहीं रहा। ट्रस्ट को अधिकृत किया गया कि वह “कैपिटल एसेट्स” से महारानी राजलक्ष्मी को आठ लाख रुपये और छोटी महारानी कामसुन्दरी को 12 लाख रुपये देगा, साथ ही, यह भी अधिकृत किया की “भवनों से सम्बंधित जितनी भी सम्पत्तियाँ हैं उसका सम्पूर्णता के साथ मरम्मत, रखरखाव हो। दस्तावेज में आगे लिखा है, जैसा की वादी ने न्यायालय को भी बताये कि “Subject to the dispositions and bequeath mentioned above my entire residue of my estate shall vest in a Board of Trustees consisting of persons named and described in Schedule “C” who hold the property in trust for my two wives and the children of my aforesaid three nephews (sons of my deceased brother). The Trustees shall pay out capital assets Rs. 8 (eight) lacs to Maharani Rajyalakshmi and Rs. 12(twelve) lacs to Maharani Kamsundari, and keep the properties, particularly the house properties in proper repairs. On the demise of my two wives, one-third of the properties shall vest in the children of my youngest nephew Rajkumar Subheshwara Singh born of a wife of his own Brahman Community, and one-third will be divided between the children of my other two nephews, Rajkumar Jeeveshwara Singh and Rajkumar Yajneshwara Singh and one-third will remain in Trust for public charitable purposes. 

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कल्याणी फॉउंडेशन का दस्तावेज 

दस्तावेजों के आधार पर 5 जुलाई, 1961 को महाराजधिराज सर कामेश्वर सिंह द्वारा वसीयतनामे पर हस्ताक्षर किया गया।वसीयतनामे पर हस्ताक्षर करने के 453 वें दिन महाराजाधिराज की मृत्यु हो गई और पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति पंडित लक्ष्मीकांत झा “सोल एस्क्यूटर” बनते हैं, साथ ही, 26 सितम्बर, 1963 को कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा उक्त वसीयतनामे को “प्रोबेट” करने का एकमात्र अधिकार न्यायमूर्ति पंडित लक्ष्मीकांत झा को प्राप्त होता है और फिर प्रारम्भ होता है “पारिवारिक जंग” – लेकिन एक छः पन्ने के दस्तावेज में इस बात को बहुत ही प्राथमिकता थे स्थान दिया गया है “And Whereas now there is a genuine feeling among the parties that in all probability the whole estate will be liquidated for paying taxes and other legal dues and expenses on litigations even during the lifetime of the first party (Maharani Adhirani Kamsundari, wife of Maharajadhiraj Sir Kameshwar Singh) and hardly anything will remain for the beneficiaries and public charity if the present state of affairs is allowed to continue…..” स्वाभाविक है ‘फॅमिली सेटेलमेंट” ही एक मात्र उपाय रह गया जिससे सभी लाभार्थियों के लाभों, के साथ-साथ ‘पब्लिक चेरिटेबल ट्रस्ट’ की रक्षा हो सकती है और  महाराजाधिराज द्वारा लिखे गए अपनी वसीयत के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है। फेमिली सेटेलमेंट का दस्तावेज मार्च 27, 1987 को लिखा गया। 

कल्याणी फॉउंडेशन का दस्तावेज 

महारानी अधिरानी कामसुन्दरी कल्याणी निवास, दरभंगा में रहती थी। महाराज बहादुर के सबसे छोटे बेटे कुमार शुभेश्वर सिंह के बड़े बेटे राजेश्वर सिंह ‘बालिग’ हो गए थे और रामबाग परिसर में रहते थे। उनके अनुज कपिलेश्वर सिंह उस समय ‘नाबालिग’ थे और वे अपने पिता द्वारा प्रतिनिधित्व हो रहे थे। महाराजाधिराज द्वारा बनाये गए दरभंगा राज के रेसिडुअरी इस्टेट के तीनों ट्रस्टी द्वारकानाथ झा, हरि मोहन मिश्रा गोविंद मोहन मिश्र भी उपस्थित थे। कुमार जीवेश्वर सिंह की पहली पत्नी श्रीमती श्रीमती राजकिशोरी जी (अब दिवंगत) की पहली पुत्री श्रीमती कात्यायनी देवी जिनका विवाह अरविन्द सुन्दर झा के साथ हुआ, राजकिशोरीजी-जीवेश्वर सिंह की दूसरी पूरी श्रीमती दिव्यायानी देवी जो भक्तेश्वर झा की पत्नी थी, श्रीमती नेत्रायणी देवी, जो जीवेश्वर सिंह और उनकी दूसरी पत्नी श्रीमती इरावती देवी की पुत्री थी और सुशिल झा की पत्नी थी, सुश्री चेतना दाई, सुश्री दौपदी दाई, सुश्री अनीता दाई, सुश्री सुनीता दाई श्रीमती जीवशर सिंह -इरावती देवी की बेटियां थी; रत्नेश्वर सिंह, रश्मेश्वर सिंह और राजमेश्वर सिंह – तीनो पुत्र राजकुमार यज्ञेश्वर सिंह और अंत में महाराजकुमार विश्वेश्वर सिंह के सबसे छोटे बेटे कुमार शुभेश्वर सिंह – पहले, दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवें पार्टियों के रूप में फेमिली सेटलमेंट के दस्तावेजों पर उपस्थित थे। विभिन्न आकार-प्रकार के हस्ताक्षरों के साथ, गजब की एकता फेमिली सेट्लमेंट के छः पन्नों पर दिखता है। शायद 27 मार्च, 1987 के बाद इस तरह की एकता दरभंगा राज के परिवार के लोग, रामबाग का चारदीवारी कभी नहीं देखा गया होगा। कहा जाता है कि उस फैमिली सेटेलमेंट के साथ ही महाराजाधिराज का वसीयत “set aside” हो जाता है।  

दरभंगा के अंतिम राजा महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह की मृत्यु के बाद अनेकानेक ट्रस्ट्स बने। अन्य ट्रस्टों की बात तो आगे करेंगे, मसलन, धार्मिक ट्रस्ट, लेकिन महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चैरिटेबल ट्रस्ट और महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फाउंडेशन।  सभी ट्रस्टों का का मकसद लगभग एक ही था मिथिलांचल, बिहार, देश के लोगों के लिए, गरीब-गुरबों के लिए, उनकी शिक्षा के लिए, उनके विकास के लिए, उनकी संस्कृति के विकास के लिए, शोध और विज्ञानं के विकास के लिए, कला और संस्कृति के विकास के लिए, पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन के लिए, लेखों-शोध कार्यों के प्रकाशन के लिए, अस्पतालों की स्थापना के लिए, विद्यालयों की स्थापना के लिए, विद्यालयों के संरक्षण के लिए, शारीरिक और मानसिक विकास के लिए, चैरिटेबल डिस्पेंसरियां के लिए, प्रसव गृह की स्थापना/संरक्षण के लिए, कामेश्वर सिंह के सभी दस्तावेजों के रखरखाव के लिए, पुस्तकालयों/वाचनालयों की स्थापना के लिए, समाज के दावे-कुचले वर्गों की बेटियों की शादी के लिए, धर्मशालाओं के निर्माण के लिए, दानशीलता के लिए।महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फॉउंडेशन की स्थापना महाराजा की मृत्यु के 26-वर्ष बाद 8 दिसम्बर, 1988 को हुई। महाराजाधिराज की मृत्यु 1 अक्टूबर, 1962 को हुई थी। महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फाउंडेशन में तीन व्यक्तियों का (ट्रस्टी) हस्ताक्षर है – कामसुन्दरी (महाराजाधिराज की पत्नी), हेतुकर झा और उदय नाथ झा। इन तीन हस्ताक्षरकर्ताओं में हेतुकर झा की मृत्यु हो गयी है। यानी अब सिर्फ महारानी काम सुंदरी हैं और उदय नाथ झा। 

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कल्याणी फॉउंडेशन का दस्तावेज 

महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फाउंडेशन के ट्रस्ट डीड के आठवें पृष्ठ के पैरा 14 में लिखा है: The Board of Trustees” may utilise to the extent of ninety percent of the Trust Fund to achieve the object of the Trust as may be deemed just and proper by them from time to time. Ten percent of the Trust fund shall be earmarked for deposit towards the Fixed capital Account of the trust in order to maintain balance of the diminishing value of the ‘Fixed capital’ in years to come.” कुल 38 पैराग्राफों में लिखित इस ट्रस्ट के दस्तावेज में कुल 33 बीघा, 11 कठ्ठा 15 धूर जमीन जिसमें काफी पेड़ कलगे हैं का भी उल्लेख किया है जिसमें 1 बीघा-5 कथा और 13 धूर जमीं दरभंगा जिला (थाना नंबर 449), बासुदेवपुर मुदलाहपट्टी गाँव, पूरब भीगो परगना का जिक्र है जबकि 32 बीघा, 6 कठ्ठा और 2 धूर जमीं जिसमे काफी पेड़ लगे हैं बसुदेओपुर महल सोहन, परगना – पूरब भिगो, थाना दरभंगा उल्लिखित है। 

दस्तावेजों के अनुसार महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फॉउंडेशन के “डोनर ट्रस्टी”, यानि महाराजी अधिरानी काम सुंदरी अपने जीवन के 90 वसंत पार कर चुकी हैं और वृद्धावस्था के अंतिम पड़ाव पर पहुँच गयी हैं। महाराजा दरभंगा अपने जीवन काल में अनेकानेक दान किये हैं, चाहे आर्थिक क्षेत्र हो या सामाजिक या सांस्कृतिक, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद प्रदेश के विकास में योगदान नगण्य हो गयी है । दस्तावेज के अनुसार डॉ हेतुकर झा इस  फॉउंडेशन के संस्थापक और लाईफ-टाईम ट्रस्टी के साथ साथ मैनेजिंग ट्रस्टी भी थे। अब वे जीवित नहीं हैं। शेष दो आमंत्रित ट्रस्टीगण अपने-अपने कार्य काल को दो-बार पूरा कर अवकाश प्राप्त कर चुके हैं। कुल 17 पन्नों के दस्तावेजों में अनेकानेक बातें की गई हैं, लिखी हैं जो इस बात को स्पष्ट करता है कि किसकी मृत्यु होने के कौन कार्य करेगा, इत्यादि। दरभंगा के लोगों का ही नहीं, दरभंगा राज परिवार से जुड़े अन्य लोगों का कहना है की “खुदा-न-खास्ते अगर महारानी साहिबा की मृत्यु हो जाती है, तो वैसी स्थिति में महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फॉउंडेशन की सम्पूर्ण सम्पत्तियों पर एकाधिकार “को-ट्रस्टी” का हो जायेगा। 

कल्याणी फॉउंडेशन का दस्तावेज 

कल्याणी ट्रस्ट डीड के अनुसार, फॉउंडेशन का कार्यकारी शक्ति मैनेजिंग ट्रस्टी में निहित है। बाद में, दिसंबर 1998 में एक सप्लीमेंट्री डीड ऑफ़ रेक्टिफिकेशन पारित कर फॉउंडेशन में  दो “इंवाइटिज ट्रस्टीज” का पद जोड़ा गया, जिसका कार्यकाल दो वर्ष निर्धारित किया गया। साथ ही, इस बात का भी प्रावधान किया गया कि इस इन्वाइटेड ट्रस्टीज के कार्यकाल को एक-टर्म के लिए और बढ़ाया जा सकता है। बसर्ते बोर्ड ऑफ़ लाईफ टाईम ट्रस्टीज / मैनेजिंग ट्रस्टी का अनुमोदन हो।महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फॉउंडेशन एक पब्लिक ट्रस्ट है और सरकार द्वारा निर्धारित आयकर से सम्बंधित सभी सुविधाओं का लाभ भी उठता है – चाहे आमदनी हो या डोनेशन। सूत्रों के अनुसार “डॉ हेतुकर झा की मृत्यु 2017 में होती है। बाद में डॉ सुरेंद्र गोपाल, जो एक इन्वाइटी ट्रस्टी थे, अपने दो टर्म कार्यकर अवकाश प्राप्त करते हैं। पुनः, पद्मश्री  मानव बिहारी वर्मा, जो दूसरे इन्वाइटेड ट्रस्टी थे, वे भी अपना दो कार्यकाल पूरा कर 2018 में अवकाश प्राप्त करते हैं। अब इस फॉउंडेशन में न तो कोई लाईफ़ टाईम /मैनेजिंग ट्रस्टी है, न इन्वाइटेड ट्रस्टीज है, जो डोनर ट्रस्टी हैं वे 90 वर्ष से भी अधिक हैं और फॉउंडेशन का क्रिया-कलाप देखने, समझने की स्थिति में नहीं हैं।  

दस्तावेज के अनुसार कल्याणी फॉउंडेशन अपना क्रिया-कलाप 1987-89 में प्रारम्भ किया और दफ्तर कल्याणी निवास में बनाया। कल्याणी निवास कोई 175 बीधा क्षेत्र वाले नरगौना पैलेस का एक हिस्सा है जो सात बीघा में स्थित है। दरभंगा के लोगों का कहना है कि सात बीघा यानी 140 कठ्ठा और दरभंगा में जिस स्थान पर यह यह भूमि है, उसकी कीमत न्यूनतम एक करोड़ प्रति कठ्ठा तो है ही, यानी कुल कीमत 140 करोड़। शेष भागों में देश के विभिन्न हिस्सों में स्थित दरभंगा हाऊसों से, जहाँ-जहाँ काली की प्रतिमा, या अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमा थी, यहाँ लाकर रखी गई। यह भी कहा जाता है कि इस परिसर से दो बीघा जमीं कभी बेचने की कोशिश की गयी थी।  बेचने और निबन्घन के के क्रम में 75 लाख रुपये का स्टाम्प भी ख़रीदा गया था। लेकिन बाद में ‘स्ट्रिक्चर’ पास हो गया कि इस जमीं को बेचीं नहीं जा सकती। यह भी कहा जाता है कि राष्ट्रीय राजमार्ग 57 पर कोई 37 बीघा जमीन पूर्व में बेचा गया था और कोई 1. 5 करोड़ रूपया कल्याणी फाऊंडेशन को दिया गया था ताकि क्रिया-कलाप सुचारु रूप से संचालिटी किया जा सके। इसके अलावे दरभंगा हवाई अड्डा के पास कोई 20 बीघा जमीन थी, जिसके आधे हिस्से पर एक राजनीतिक पार्टी के लोगों का कब्ज़ा हो गया। दरभंगा के लोग तो यह भी मानते हैं कि जिस कदर महाराजाधिराज की संपत्ति का जो हश्र हुआ, महारानी की मृत्यु के बाद कल्याणी फॉउंडेशन का भी कहीं यही हाल न हो जाय।

बहरहाल, दरभंगा को क्रमशः “वीरान” कर, इस बात का भी अंदेशा है की महारानी दक्षिण दिल्ली में भी कोई बहुमूल्य जमीन अथवा महल खरीदी हैं। सवाल यह है कि महारानी को कोई संतान नहीं है और वे उम्र के अंतिम पड़ाव पर हैं, फिर नेपथ्य में वह कौन है जो महारानी के नाम पर जमीन की खरीद-बिक्री कर रहा है ? आपको मालूम हो तो इत्तिला जरूर करें……………….क्रमशः

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