“कामेश्वर सिंह ​चेरिटेबल ट्रस्ट कितना ट्रस्टवर्थी रहा महाराजा के निधन के बाद?” मिथिला के लोग अधिक जानते ​होंगे……(भाग-43)

कलकत्ता उच्च न्यायालय का निर्देश: दरभंगा रेसिडुअरी ट्रस्ट के ट्रस्टियों का बैंक क्रियाकलाप बंद, ​ट्रस्टियों का अधिकार जब्त, 10 वर्षों के लेखा-जोखा का ऑडिट - क्या यह दरभंगा के लाल किले के प्रति लोगों का विश्वास बरकरार रख पाएगा?

दरभंगा / पटना : नेताओं को अगर ‘अपवाद’ की श्रेणी में रख दें, फिर भी दरभंगा के अंतिम राजा महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह की ‘आकस्मिक मृत्यु’ के बाद दरभंगा और मिथिलांचल के लोगों को महाराजा मरने से पहले जो सपना देखा था, उस सपने को साकार रूप देने के लिए वसीयत में जिस ‘चेरिटेबल ट्रस्ट’ शब्द का इस्तेमाल किया; उस ट्रस्ट के प्रति दरभंगा और मिथिलांचल के लोग अगर अपनी-अपनी प्रतिबद्धता दिखाते, तो शायद नागरिकों के प्रति महाराजा की बचन बद्धता पूरी हो सकती, इस चेरिटेबल ट्रस्ट का स्थापना उद्देश्य पूरा हो पाता ! लेकिन क्या हुआ, क्या नहीं हुआ यह तो जो दरभंगा में हैं वे अधिक जानते होंगे। स्थानीय लोग “सुषुप्तावस्था” में चले गए और ट्रस्ट के ट्रस्टी पटना और दिल्ली के राजनीतिक गलियारे में घूमने गले। हाँ, स्थानीय अख़बारों में “पूरे पृष्ठ का विज्ञापन” और फिर कलकत्ता उच्च न्यायालय का आदेश अवश्य दिखाई दिया। 

उस विज्ञापन में महाराजा की सोच के बारे में, लोगों के प्रति उनकी बचन वद्धता के बारे में तो लिखा नहीं गया। यह भी नहीं लिखा गया की महाराजा अपने प्रदेश के लोगों के लिए क्या-क्या करना चाहते थे। फिर दरभंगा जिले की 4,443,696 जनसंख्या को कैसे मालूम हो कि महाराजाधिराज अपने राज के गरीब-गुरबा के लिए, पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं के लिए, दबा-दारु के आभाव में मृत्यु सय्या पड़े बीमार के लिए, पैसे के आभाव में किसी गरीब की बेटी की शादी नहीं टूटे, पैसे के आभाव में किसी होनहार बालक अथवा बालिका का भविष्य लूटे – कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट बनाने का आदेश देकर गए,इस ट्रस्ट के कभी नहीं सूखने वाला आय के स्त्रोत निश्चित कर दिए थे, ताकि उन गरीब-गुरबों के चेहरों पर मुस्कान जीवन के अंतिम सांस तक रहे। परन्तु, उन अशिक्षित, कमजोर, निरीह लोगों को बताएगा कौन और क्यों बताएगा कि महाराजा उनके लिए क्या-क्या कर गए, जबकि “लाभार्थी” कोई अन्य हो।

आश्चर्य की बात तो यह है कि पहली अक्टूबर, 1962 को, जब महाराजाधिराज अंतिम सांस लिए, जिले की जनसंख्या कोई 106,000 आस-पास थी; जो 2021 आते-आते 4,443,696 हो गई। इन विगत वर्षों में और इतनी बड़ी जनसँख्या वृद्धि के बाद भी दरभंगा के लोग कभी महाराजाधिराज द्वारा लिखित “वसीयत” और उसमें उल्लिखित “चेरिटेबल ट्रस्ट” के बारे में उनकी सम्पत्तियों के लाभार्थियों से नहीं पूछा कि “उस चेरिटेबल ट्रस्ट का क्या हुआ? ट्रस्ट की सम्पत्तियों का क्या हुआ? उसके आय के स्रोतों और व्यय के रास्तों का क्या हुआ? शिक्षा के क्षेत्र में, स्वास्थ्य के क्षेत्र में, संस्कृति के क्षेत्र में, विज्ञान के विकास के क्षेत्र में, छात्रवृत्ति के क्षेत्र में इत्यादि-इत्यादि क्षेत्रों में जन-साधारण के कल्याणार्थ कितने व्यय हुए, जिसके लिए महाराजाधिराज ने इस ट्रस्ट की स्थापना किये थे । महाराजाधिराज ने इस ट्रस्ट के “आय के स्त्रोत” निश्चित कर दिए थे। कहीं ऐसा तो नहीं हुआ कि “चेरिटेबल ट्रस्ट” के निमित्त महाराजाधिराज ने जो “आय के स्त्रोत” निर्धारित किये थे, उसे भी “स्वहित” में बेच दिया गया ?

आप विश्वास नहीं करेंगे लेकिन सत्य यही है कि महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना 25 मार्च, 1992 को हुई। यानी महाराजा की मृत्यु के 30-वर्ष बाद हुई। इस चेरिटेबल ट्रस्ट के तीन ट्रस्टी थे – द्वारकानाथ झा, मदन मोहन झा और काम नाथ झा – ये तीनों हस्ताक्षर कर्ता मृत्यु को प्राप्त किये। प्रारंभिक अवस्था में 3000 /- रुपये डोनेशन के साथ कामेश्वर सिंह चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना हुई। लेकिन महाराजाधिराज ने इस ट्रस्ट के उद्देश्य और ऑब्जेक्टिव के बारे में कोई विशिष्ट दिशा निर्देश अपने जीते-जी नहीं दिया था। सिवाय इसके कि उनके साम्राज्य में किसी भी व्यक्ति को, गाँव के किसान से लेकर, गरीब-गुरबा से लेकर विद्वान-विदुषी तक, यह चेरिटेबल ट्रस्ट काम आये।  चाहे उनकी शिक्षा की बात हो, स्वस्स्थ की बात हो, ज्ञान-विज्ञान की बात हो, उनके विकास की बात हो। किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाय।   

​महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट का कागजात – देखिये क्या लिखा है

“ट्रस्टों” का निर्माण एक “विश्वास” पर ही होता है जो बाहर के लोग समझते हैं। इसका निर्माण उनकी सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, शैक्षिक, स्वास्थ्य, संस्कृति, सामाजिक-क्रिया-कलापों, धार्मिक क्रिया-कलापों इत्यादि-इत्यादि समाज के गरीब-गुरबाओं की मुलभुत समस्याओं का एक जीता-जागता तस्वीर बनाकर होता है। महाराजाधिराज भी शायद यही सोचे होंगे “चेरिटेबल” शब्द का इस्तेमाल अपने ‘वसीयत’ बनाते समय। “ट्रस्ट”, यानि “विश्वास” का एक महल और इस महल के छत्र-छाया में दरभंगा ही नहीं, मिथिलांचल ही नहीं, बिहार ही नहीं, देश के लोगों के लिए, गरीब-गुरबों के लिए, उनकी शिक्षा के लिए, उनके विकास के लिए, उनकी संस्कृति के विकास के लिए, शोध और विज्ञान के विकास के लिए, कला और संस्कृति के विकास के लिए, पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन के लिए, लेखों-शोध कार्यों के प्रकाशन के लिए, अस्पतालों की स्थापना के लिए, विद्यालयों की स्थापना के लिए, विद्यालयों के संरक्षण के लिए, शारीरिक और मानसिक विकास के लिए, चैरिटेबल डिस्पेंसरियां के लिए, प्रसव गृह की स्थापना/संरक्षण के लिए, कामेश्वर सिंह के सभी दस्तावेजों के रखरखाव के लिए, पुस्तकालयों/वाचनालयों की स्थापना के लिए, समाज के दावे-कुचले वर्गों की बेटियों की शादी के लिए, धर्मशालाओं के निर्माण के लिए, दानशीलता के लिए – या उन सभी उद्देश्यों के लिए, जो उन ट्रस्टों की स्थापना काल में “अशोक-स्तम्भ से युक्त” वाले कागजातों पर मुद्रित थे, वचन दिए थे ।

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ट्रस्ट के कागज पर बहुत ही तबज्जो दिया गया। हॉस्पिटल, चेरिटेबल  डिस्पेंसरी, मेटरनिटी होम, महिलाओं के लिए अस्पताल, बाल कल्याण केंद्र की स्थापना, अस्पतालों में पर्याप्त बिस्तरों की व्यवस्था, अस्पताल की स्थापना जिससे लोगों को लाभ प्राप्त हो सके। इस बात का भी उल्लेख किया गया कि किसी भी विद्यालय को आर्थिक मदद देना, विद्यालयों को बढ़ावा देना, देख भाल करना, किसी भी संस्थान, कॉलेज, विश्वविद्यालय, टेक्निकल कालेज, फिजिकल कालेज, मेंन्टल कालेज की स्थापना, शोध कार्यों को प्रमुखता देना, शोध करवाना, संस्कृति और कला को बढ़ाव देना, विज्ञानं को बढ़ावा देना, बेहतर स्वास्थ्य की व्यवस्था करना, गरीब गुरबा को मदद इत्यादि – इत्यादि। ट्रस्ट के निर्माण के समय यह उल्लेख किया गया कि ट्रस्ट की सम्पूर्ण शक्ति बोर्ड ऑफ़ ट्रस्टी में निहित होगी। इस ट्रस्ट में न्यूनतम 3 और अधिकतम 9 ट्रस्टीज होंगे। 

​महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट का कागजात – देखिये क्या लिखा है

इसके अलावे कामेश्वर सिंह के किसी भी भाषा में भाषण, लेखनी, प्रकाशन को एकत्रित करना, उसे सुरक्षित रखना, पुनः प्रकाशित करना आदि बातों को महत्व दिया गया। यह भी व्यवस्था किया गया की महाराजाधिराज की चिठ्ठिया, पत्राचार, उनकी लेखनी, उनके संवाद को गाँव गाँव तक लोगों में पहुँचाया जाय, युवकों को पढ़ाया जाय, बताया जाय ताकि मातृभूमि के प्रति, लोगों के प्रति लोगों में संवेदना जागृत हो, वे भावनातमक मूल्यों को समझें और एक-दूसरे के लिए काम कायें। एक म्यूजियम बनाया जाय जहाँ उनसे सम्बंधित सभी कागजातों, रेप्लिका, लेख, कतरन को सुरक्षित रखा जाय। इस ट्रस्ट के अधिक यह भी निर्धारित किया गया की सम्पूर्ण देश में वेद, शास्त्र पुराण, काव्य का प्रचार-प्रसार किया जाय। विभिन्न स्थानों पर सेमिनार, संगोष्ठी, योग कराया जाए ताकि देश में स्पिरिचुअल और संस्कृति का विकास हो। पुस्तकालय, वाचनालय का अधिकाधिक निर्माण हो। माता-पिता विहीन बच्चों के लिए अनाथालय, विधवा आश्रम का निर्माण किया जाए, धर्मशालाओं का निर्माण हो, विधवाओं की देखभाल किया जाए, उन्हें वोकेशनल ट्रेनिंग दिया जाय, उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जाय। बिना जाति-संप्रदाय के बारे में सोचे, समाज के सभी गरीब-गुरबाओं को, आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को समय-समय पर उनके कार्यों के लिए आर्थिक मदद की जाय। अनंत बातें उल्लिखित हैं ट्रस्ट के डीड में। 

परन्तु, ट्रस्ट का क्या उद्देश्य था और ट्रस्ट कितना ‘ट्रस्टवर्दी’ रहा – यह बात तो न दरभंगा के लोग ही पूछे और न मिथिलाञ्चल के लोगों को कोई मतलब रहा – आखिर क्या हुआ महाराजा के उन सपनों का जिसे वे मरने के पहले ‘जीते-जी देखे थे’ अपने लोगों के लिए, अपने राज्य के लोगों के कल्याणार्थ।  और जो हुआ वह महाराजाधिराज सपने में भी नहीं सोचे होंगे। क्योंकि दरभंगा राज के इतिहास में शायद यह पहली घटना होगी जब न्यायालय द्वारा नियुक्त प्रशासनिक अधिकारी को न्यायालय द्वारा अधिकृत कार्यों को निष्पादित करने के बाद भी महाराजाधिराज की सम्पत्तियों के लाभार्थी उन्हें पैसे नहीं दिए हों। वर्षों बाद कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायमूर्तियों ने अपने अधिकारी के कार्यों का सम्मान करते हुए नवनियुक्त अधिकारियों से यह कहा है कि पूर्व के पदाधिकारी की बकाया राशि से दोगुनी राशि तत्काल भुगतान किया जाये। न्यायालय ने यह भी कहा कि पूर्व के पदाधिकारी पांच बैठक किये थे, यानी शर्त के अनुसार उन्हें पांच लाख रुपये मिलनी चाहिए थी। लेकिन लाभार्थियों ने उन्हें पैसे “नहीं” दिए। अतः उक्त बकाया राशि से दुगुनी राशि, यानी 10 लाख रुपये भुगतान करने का आदेश दिया। 

न्यायालय ने कहा: The court is informed that the remuneration of the outgoing special Officer has not been paid. The Outgoing Special Officer held five meetings . The initial remuneration was fixed at Rs. 1 lakh. The parties did not pay such remuneration. In such circumstances, the incoming Joint Special Officers are quested to pay a sum of Rs. 10 lakh to the Outgoing Special Officer as his final remuneration immediatel;y on receipt of funds from the learned Registrar, Original Side.”

​महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट का कागजात – देखिये क्या लिखा है

न्यायालय का यह मानना कि “The estate of the deceased (Maharajadhiraj Sir Kameshwar Singh) is in limbo. The mechanism of the committee of management being requested to administer the estate failed. The committee of management has been in place for over 11 years. They are yet to administer the estate. The first Special officer could not complete the administration . The Second special officer resigned in view of unsavoury statements made against him by one of the members of the committee of management .

उधर जहाँ राजेश्वर सिंह और कपिलेश्वर सिंह के अधिवक्ताओं ने  न्यायालय को बताया कि ट्रस्ट का लेखा-जोखा ‘ऑडिटेड’ है, वहीं महारानी अधिरानी कामसुन्दरी के अधिवक्ता ने न्यायालय से कहा कि इस्टेट के लायबिलिटी को कमेटी के सिर्फ दो सदस्यों को दिखाया गया है। महारानी के अधिवक्ता ने कहा कि लेखा का पुनः ‘ऑडिट’ होना चाहिए। निवर्तमान विशेष अधिकारी ने अपनी बैठक के मिनट्स में दस वर्षों का पुनः ऑडिट का आदेश दिया था। लेकिन कपिलेश्वर सिंह ने उस मिनट्स की आलोचना किये थे। जबकि सदस्य उस आदेश को चैलेन्ज नहीं किये था। न्यायालय ने कहा: “The beneficiaries are directed to cooperate with the Joint Special Officer in the administration of the estate.” 

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ज्ञातव्य हो कि कलकत्ता उच्च न्यायालय ने महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह की सम्पत्तियों से लाभार्थियों द्वारा दायर एक याचिका पर निर्णय लेते हुए “दरभंगा राज रेसिडुअरी ट्रस्ट” के क्रियाकलापों में अनियमितता, कुप्रबंध, ट्रस्ट की सम्पत्तियों को औने-पौने मूल्य पर बेचने, महाराजाधिराज और दरभंगा राज की गरिमा को नष्ट करने इत्यादि के कारण ट्रस्ट के ट्रस्टियों (प्रबंध समिति के सदस्य) – महारानी कामसुंदरी सहित, दिवंगत कुमार शुभेश्वर सिंह के दोनों पुत्रों – राजेश्वर सिंह और कपिलेश्वर सिंह – को दरभंगा राज रेसिडुअरी ट्रस्ट के ट्रस्टीशिप / प्रबंध समिति की सदस्यता से “बेदखल” कर दिया है। कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति देबांगसु बसाक वीडियो कांफ्रेंसिंग द्वारा आयोजित न्यायालय में दरभंगा रेसिडुअरी इस्टेट के क्रिया-कलापों की छानबीन के लिए जिन तीन विशेष स्पेशल ऑफिसर्स की नियुक्ति किये हैं उनमें कलकत्ता उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति ज्योतिर्मय भट्टाचार्य, न्यायमूर्ति (श्रीमती) मधुमिता मित्रा (अवकाश प्राप्त) और साहिबगंज के प्रिंसिपल डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन जज (अवकाश प्राप्त) न्यायमूर्ति गोपाल कुमार रॉय हैं। न्यायालय ने उन सभी पुलिस अधिकारियों, अधीक्षकों से अनुरोध भी किया है कि जिन-जिन स्थानों/क्षेत्रों में दरभंगा रेसिडुअरी इस्टेट की संपत्ति है, और जिसका इन्वेंट्री बनाया जायेगा, आवश्यकता पड़ने पर प्रशासनिक मदद करें।

​महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट का कागजात – देखिये क्या लिखा है

ये तीनो अधिकारीगण न केवल दरभंगा राज के ट्रस्ट्स के क्रियाकलापों की जान करेंगे, बल्कि विशेष “ऑडिट टीम” को नियुक्त कर पिछले 10 वर्षों का लेखा-जोखा का भी जांच करेंगे। न्यायालय ने इन तीन संयुक्त स्पेशल अधिकारियों से निवेदन किया है कि वे किसी उच्च श्रेणी के चार्टड अकाउंटेंट अथवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के फईम को नियुक्त कर विगत दस वर्षों का लेखा-जोखा की जांच कराई जाय। न्यायालय ने इन संयुक्त विशेष अधिकारियों को कहा है कि वे सर्वप्रथम इस्टेट के प्रशासन के लिए  सभी सम्पत्तियों का एक इन्वेंटरी बनाएं । इस कार्य में वे किसी भी व्यक्ति का सहयोग ले सकते हैं। साथ ही उनका वेतन भी निर्धारित कर सकते हैं। इस कार्य को निष्पादित करने में यदि आवश्यकता हो तो वे स्थानीय पुलिस की भी मदद ले सकते हैं। स्थानीय पुलिस अधीक्षक, जिसके क्षेत्राधिकार में यह इस्टेट आता है, से निवेदन है कि वे संयुक्त विशेष अधिकारियों को कार्य निष्पादन करने में मदद करें।

न्यायालय ने आगे कहा: “The fact that the estate requires protection is ‘disputed’ by any of the appearing parties. They seek an appropriate mechanism so that the estate is administered properly. They seek a mechanism by which the entire litigation between the parties come to an end as expeditiously as possible. In view of the factual situation, it would be appropriate to discharge the present committee of management with immediate effect. They will not operate any bank account of the estate any further. In the facts and circumstances in the instant case, it would be appropriate that three Special Officers are appointed to administer the estate…

​महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट का कागजात – देखिये क्या लिखा है

न्यायालय दरभंगा की महारानी अहिरानी कामसुन्दरी वनाम राजेश्वर सिंह और नेत्रायणी और अन्य (1A No GA No 6 of 2018), महारानी अधिराणी कामसुन्दरी वनाम राजेश्वर सिंह।।।अन्य और कात्यायनी। .अन्य वनाम नेत्रायणी और अन्य (1A No GA 13 of 2019  – Old No GA  No 629 of 2019 In PLA No 18 of 1963); महारानी अधिरानी कामसुन्दरी वनाम राजेश्वर सिंह और रत्नेश्वर सिंह और अन्य के मामले में (IA No GA 12 of 2019 – Old GA 638 of 2019 In PLA No 18 of 1963); महारानी अधिरानी कामसुन्दरी वनाम राजेश्वर सिंह और अन्य और श्रीमती नेत्रायणि और अन्य (1A No GA 11 of 2018 – Old No GA 2880 of 2018 PLA No 18 of 1963), महाराजा रामेश्वर सिंह (दिवंगत) और महारानी कामसुन्दरी वनाम कुमार कपिलेश्वर सिंह और दर्शन एलाइंस एग्रो इंडस्ट्रीज लिमिटेड वनाम श्रीमती कामसुन्दरी देवी और अन्य और श्रीमती चेतना सिंह के मामले में (iA No GA 7 of 2018 – Old No GA 2281 of 2018 In PLA No 18 of 1963), तथा महारानी अधिरानी कामसुन्दरी वनाम राजेश्वर सिंह और अन्य तथा श्रीमती नेत्रयानी झा और अन्य के मामले में (1A No GA 14 of 2021 In PLA No 18 of 1963) मुक़दमे की सुनवाई कर रहा था।

दरभंगा के अंतिम राजा महाराज कामेश्वर सिंह की मृत्यु दिनांक पहली अक्टूबर 1962 को हुई। महाराजाधिराज अपनी मृत्यु के पूर्व  5 जुलाई 1961 को एक वसीयत बनाए थे। इस वसीयत को कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा 27 जून, 1963 को न्यायमूर्ति श्री लक्ष्मीकांत झा को एकमात्र एस्क्यूटर घोषित किया गया। महाराजा के वसीयतनामे के अनुसार, महाराजा का दरभंगा राज का सम्पूर्ण अधिकार न्यायमूर्ति झा के पास जाता है। महाराजा के वसीयतनामे में तीन ट्रस्टियों का नाम भी उद्धृत किये थे जिनकी नियुक्ति “सेटलर” द्वारा किया गया – वे थे: पंडित एल के झा (स्वयं), पंडित जी एम मिश्रा और ओझा मुकुंद झा। उपरोक्त “एस्क्यूटर” को अपना सम्पूर्ण कार्य समाप्त करने के बाद दरभंगा राज का सम्पूर्ण क्रियाकलाप इन ट्रस्टियों को सौंपना था। महाराजा के वसीयतनामे में इस बात पर बल दिया गया था कि ट्रस्टियों की मृत्यु अथवा त्यागपत्र के बाद, दूसरे ट्रस्टी द्वारा रिक्तता को भरा जायेगा और वर्तमान ट्रस्ट उक्त दस्तावेज में उल्लिखित नियमों के अधीन ही नियुक्त किये जायेंगे।

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​महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट का कागजात – देखिये क्या लिखा है

न्यायमूर्ति पंडित लक्ष्मीकांत झा संभवतः सन 1978 साल के मार्च महीने के 3 तारीख को मृत्यु को प्राप्त किये । न्यायमूर्ति पंडित लक्ष्मीकांत झा की मृत्यु के बाद कलकत्ता उच्च न्यायालय न्यायमूर्ति (अवकाश प्राप्त) एस ए मसूद और न्यायमूर्ति शिशिर कुमार मुखर्जी (अवकाश प्राप्त) को दरभंगा राज के “प्रशासक” के रूप में नियुक्त किया गया था । इसके बाद तत्कालीन न्यायमूर्ति सब्यसाची मुखर्जी अपने आदेश, दिनांक 16 मई, 1979 के द्वारा उपरोक्त “प्रशासकों” को “इन्वेंटरी ऑफ़ द एसेट्स’ और ‘लायबिलिटीज ऑफ़ द इस्टेट’ बनाने का आदेश दिया थे ताकि वह दरभंगा राज के ट्रस्टियों को सौंपा जा। उक्त दस्तावेज के प्रस्तुति की तारीख के अनुसार तत्कालीन ट्रस्टियों ने महाराजाधिराज दरभंगा के रेसिडुअरी इस्टेट का कार्यभार 26 मई, 1979 को ग्रहण किया। कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेशानुसार, महाराजाधिराज की सम्पत्तियों के सभी लाभार्थी (यानी परिवार के सदस्य) इस ट्रस्ट के ट्रस्टीज बने । बाद में महाराज के कई पारिवारिक सदस्यों ने कई मुकदमें किये।अंततः यह मामला माननीय उच्चतम न्यायालय में गया और 5 अक्टूबर 1987 को फॅमिली सेटलमेंट हुआ ।

इस बीच, 27 मार्च, 1987 को सम्बद्ध लोगों के बीच हुए फेमिली सेटेलमेंट को लेकर दायर अपील को सर्वोच्च न्यायालय दिनांक 15 अक्टूबर, 1987 को “डिक्री” देते हुए ख़ारिज कर दिया। तदनुसार, फेमिली सेटेलेमनट के क्लॉज 1 के अनुसार, सिड्यूल II में वर्णित शर्तों को मद्दे नजर रखते, महारानी अधिरानी कामसुन्दरी सिड्यूल II में उल्लिखित सभी सम्पत्तियों की स्वामी बन गयी। स्वाभाविक है, उन सम्पत्तियों पर उनका एकल अधिकार हो गया। इसी तरह, फेमिली सेटेलेमनट के क्लॉज 2 के अनुसार, कुमार शुभेश्वर सिंह के दोनों पुत्र, यानी राजेश्वर सिंह, जो उस समय बालिग हो गए थे, और उनके छोटे भाई, कपिलेश्वर सिंह, जो उस समय नाबालिग थे, सिड्यूल III में वर्णित शर्तों को मद्दे नजर रखते सिड्यूल III में उल्लिखित सम्पत्तियों के मालिक हो गए। आगे इसी तरह, फेमिली सेटेलमेंट के क्लॉज 3 के अंतर्गत सिड्यूल IV में वर्णित सभी नियमों के अनुरूप में सभी सिड्यूल IV में उल्लिखित सम्पत्तियों का मालिक पब्लिक चेरिटेबल ट्रस्ट के ट्रस्टीज हो गए। फेमिली  सेटेलमेंट के क्लॉज 5 के अधीन, श्रीमती कात्यायनी देवी, श्रीमती दिव्यायानी देवी, श्रीमती नेत्रयानी देवी (कुमार जीवेश्वर सिंह के सभी बालिग पुत्रियां) और सुश्री चेतना दाई, सुश्री दौपदी दाई, सुश्री अनीता दाई (कुमार जीवेश्वर सिंह के सभी नबालिग पुत्रियां), श्री रत्नेश्वर सिंह, श्री रश्मेश्वर सिंह (उस समय मृत), श्री राजनेश्वर सिंह (कुमार याजनेश्वर सिंह) सिड्यूल V में उनके नामों के सामने उल्लिखित, साथ ही, उसी सिड्यूल में उल्लिखित शर्तों के अनुरूप, सम्पत्तियों के मालिक होंगे।

​महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट का कागजात – देखिये क्या लिखा है

फेमिली सेटेलमेंट के क्लॉज 5 के तहत, पब्लिक चेरिटेबल ट्रस्ट के ट्रस्टीज को यह अधिकार दिया गया कि वे सिड्यूल I में वर्णित ‘लायबिलिटीज’ को समाप्त करने के लिए, सिड्यूल VI में उल्लिखित सम्पत्तियों को बेचकर धन एकत्रित कर सकते हैं, साथ ही, परिवार के लोगों में फेमिली सेटेलमेंट के अनुरूप शेयर रखने का अधिकार दिया गया। साथ ही, फेमिली सेटेलमेंट के क्लॉज 6 के अनुसार, महारानी अधिरानी कामसुन्दरी और राज कुमार शुभेश्वर सिंह या उनके नॉमिनी (दूसरे क्षेत्र के लाभान्वित लोगों के प्रतिनिधि) द्वारा बनी एक कमिटी लिखित रूप से सम्पत्तियों की बिक्री, शेयरों का वितरण आदि से सम्बंधित निर्णयों को लिखित रूप में ट्रस्टीज को देंगे जहाँ तक व्यावहारिक हो, परन्तु किसी भी हालत में पांच वर्ष से अधिक नहीं या फिर न्यायालय द्वारा जो भी समय सीमा निर्धारित हो।

फैमली सेटेलमेंट के तहत,  महाराजाधिराज के उस सम्पूर्ण संपत्ति स्वरुप सिक्के को जिन चार भागों में विभक्त किया गया उसमें एक – चौथाई भाग महाराजाधिराज पत्नी महारानी कामसुन्दरी को मिला। एक – चौथाई हिस्सा राजेश्वर सिंह और कपिलेश्वर सिंह को मिला।  एक – चौथाई हिस्सा राजकुमार जीवेश्वर सिंह और यज्ञेश्वरा सिंह को मिला और अंतिम एक – चौथाई टुकड़ा चेरिटेबल ट्रस्ट के हिस्से आया। सेटेलमेंट के क्लॉज 11 के तहत, यह बात स्पष्ट किया गया कि ‘समय आने पर ट्रस्ट का निर्माण’ किया जायेगा जिसका नाम ‘कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट’ होगा और इस ट्रस्ट के सभी सदस्यों का चयन, रखरखाव आदि-आदि नियमानुसार होगा। आगे, फेमिली सेटेलमेंट के क्लॉज 14 के अधीन न्यायालय के आदेश केदिनांक 15 अक्टूबर, 1987 से  पांच साल के अंदर इस सेटेलमेंट को लागू करना था। बाद में, दिनांक 7 मई, 1993 को न्यायलय ने सेटेलमेंट को दिनांक 15 अक्टूबर, 1995 तक बढ़ा दिया।

क्रमशः

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