प्रधानमंत्री कार्यालय में “15 मन सोना” प्राप्त करने का कोई आधिकारिक दस्तावेज है क्या? (भाग-11)

दरभंगा के महाराजाधिराज की आत्मा उवाच: हमारे चेरिटेबल ट्रस्ट का क्या हाल-चाल है ? लोककल्याण कार्य कर रहा है या उसे भी 

दरभंगा / पटना / दिल्ली : महाराजाधिराज ऑफ़ दरभंगा द्वारा स्थापित दी इण्डियन नेशन, आर्यावर्त और मिथिला मिहिर का तो नामोनिशान मिटा ही दिए, महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट का “स्वास्थ्य” ठीक तो है न ? खैर, अगर सूचना के अधिकार को महत्वहीन नहीं समझा जाए तो इस बात को पता लगाना न तो मुश्किल है और ना ही कठिन कि महाराजाधिराज ऑफ़ दरभंगा सर कामेश्वर सिंह की मृत्यु (तारीख: 1 अक्टूबर, 1962) और तत्कालीन प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु (तारीख 27 मई, 1964) के बीच 20-महीनों में भारत सरकार के खजाने में दरभंगा राज से 15 किलो सोना दान में मिला था क्या? कहा जाता है कि महाराजाधिराज की मृत्यु के बाद एक विशेष कार्यक्रम के आयोजन के तहत उस ज़माने राजनेता मोरारजी देसाई सरकार का प्रतिनिधित्व करते 15 किलो सोना किये थे। 

दावे के साथ यह कहना उतना ही मुश्किल है कि दरभंगा के अंतिम राजा महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह का वसीयतनामा किस ‘परिवेश’ और ‘स्थिति’ में बना। महाराजाधिराज की मृत्यु के बाद पटना उच्च न्यायालय की “उपस्थिति” में भी, पटना उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति पंडित लक्ष्मीकांत झा उस वसीयतनामा का प्रोबेट कराने कलकत्ता उच्च न्यायालय क्यों गए? कलकत्ता उच्च न्यायालय उन्हें “सोल एस्च्युटर” कैसे बना दिया? वैसे कलकत्ता उच्च न्यायालय के सम्मानित न्यायाधीश महोदय इस बात का जिक्र अवश्य किये कि “यह मामला उनके कलकत्ता से बाहर का है” – तथापि उन दिनों दरभंगा राज में , महाराजाधिराज के जो भी सम्बन्धी थे, जो उस वसीयतनामे के अनुसार उनकी संपत्तियों के लाभार्थी थे, “चूं” तक नहीं किये कि यह कार्य पटना उच्च न्यायालय क्यों नहीं करेगा? कलकत्ता उच्च न्यायालय क्यों करेगा? 

लाभार्थियों में कुछ “बालिग” थे, कुछ “नाबालिग” थे। दस्तावेजों के आधार पर ऐसा प्रतीत होता है कि जो ‘नाबालिग’ थे उनकी बोली की कोई कीमत नहीं थी, जो ‘बालिग’ थे, नहीं बोलने की कीमत देख रहे थे। वैसी स्थिति में, यह कहना कि महाराजाधिराज की मृत्यु के साथ ही, भारत सरकार का आयकर विभाग, संपत्ति कर विभाग के आला-अधिकारियों ने दरभंगा राज के विरुद्ध करोड़ों की राशि में आयकर और संपत्ति कर बकाया का नोटिस जारी किया, हजम नहीं होता। इतना ही नहीं, कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा दरभंगा राज की सम्पत्तियों से सम्बंधित महाराजाधिराज के वसीयतनामे का “एक मात्र एस्च्युटर” न्यायमूर्ति लक्ष्मीकांत झा को आदेश दिया जाता है कि वे दरभंगा राज की “चल” और “अचल” सम्पत्तियों को बेचकर दो करोड़ और अधिक की राशि सरकार को जमा कर दे – क्या जमा करने के सम्बन्ध में महाराजा की सम्पत्तियों के लाभार्थियों के पास दस्तावेज है क्या?

यह भी कहा जाता है कि महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह की मृत्यु के बाद तुरंत बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू दरभंगा राज से 15 मन सोना मांगे थे और पंडित झा एक कार्यक्रम के तहत नेहरू को दिया भी था गया। लेकिन दुर्भाग्य यह था कि पंडित नेहरू महाराजाधिराज की मृत्यु के बाद “एक अक्षर का भी शोक सन्देश राज दरभंगा अथवा महाराजा की विधवा पत्नी को नहीं भेजे थे। सर कामेश्वर सिंह की मृत्यु 1 अक्टूबर, 1962 को होती है और तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु 27 मई, 1964 को, यानी दोनों की मृत्यु तारीखों के बीच महज 20-माह का अंतर होता है। आम तौर पर, महाराजाधिराज दरभंगा जैसे व्यक्ति की मृत्यु के साथ ही, कोई भी प्रधान मंत्री, उसमें भी पंडित नेहरू जैसा, तक्षण सोने की मांग तो नहीं करेंगे !! अब सवाल यह है कि क्या सच में राजकीय कोष में दरभंगा राज का 15 किलो सोना गया था? अगर प्रधानमंत्री कार्यालय/आवास पर आया तो भारत सरकार के राजकोष में या प्रधान मंत्री नेहरू के किसी दस्तावेज में इस बात का उद्धरण है क्या? आज की तारीख में भारत का सूचना अधिकार तो बता ही सकता है कि आखिर दरभंगा राज का 15 मन सोना राजकोष में उस 20-महीनों के बिच जमा हुआ था क्या? 

दरभंगा के महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट, लोक कल्याण कार्य और वर्तमान स्थिति 

एक बात तो पक्का है कि महाराजाधिराज दरभंगा सर कामेश्वर सिंह की सम्पत्तियों के लाभार्थियों ने महाराजाधिराज की किसी भी इक्षाओं को, उनके किसी भी सपनों को, उनके किसी भी धरोहरों को, उनके द्वारा स्थापित शिक्षा-संस्कृति-कला-विज्ञान-समाज से सम्बंधित क्रिया-कलापों को जो मिथिलाञ्चल को मेरुदंड की हड्डी के रूप सहारा देकर दरभंगा राज और मिथिलांचल को खड़ा रखा, जिन कार्यों को करने के लिए महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट बना, सर कामेश्वर सिंह के मरणोपरांत ध्वस्त हो गया । सभी लाभार्थीगण “स्वहित” के मद्दे नजर महाराजाधिराज को भी “नमस्कार” कर दिए।  

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बहरहाल, बिहार में जिसे भी देखिये, चाहे बिहार में रहते हो अथवा बिहार की चौहद्दी से बाहर अपना जीवन यापन करते हैं, इतिहास के पन्नों को पलट कर दिखाने लगते हैं। बाबू कुंवर सिंह से बाबू अमर सिंह तक, सैय्यद हुसैन से कपिल मुनि तिवारी तक, एम जे अकबर से अरविंद नारायण दास तक, विद्यापति से रामधारी सिंह दिनकर तक, भिखारी ठाकुर से रघुवीर नारायण तक, बिधान चंद्र राय से बिस्मिल्लाह खान तक, राजेन्द्र प्रसाद से कमला प्रसाद तक पन्ना-दर-पन्ना पलटने लगते हैं । कहते थकते नहीं कि फलाने ने बिहार का नाम रोशन किया, फलाने ने रोशनदान किया – लेकिन उनका सभी ‘तर्क-वितर्क’ वाला इतिहास का पन्ना न्यूनतम 60 वर्ष+  से अधिक पुराना होता है। हमने सन 1962 को “कट-ऑफ” वर्ष माना है जब दरभंगा के अंतिम राजा महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह अपनी अंतिम सांस लेकर अनंत यात्रा पर निकले थे। सन 1962 में बिहार की आवादी 34,840, 968 थी और सन 2021 में कुल 128,458,570 है, जिसमें महाराजाधिराज के परिवार और परिजन भी सम्मिलित हैं । सवाल यह है कि इन विशाल आवादी में से कितने आधुनिक सम्मानित लोगबाग हुए जो बिहार के आधुनिक इतिहास में कोई नया अध्याय जोड़े हों। शायद नहीं। 

दरभंगा के महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट, लोक कल्याण कार्य और वर्तमान स्थिति 

दरभंगा राज और राज परिवार के लोग-बाग़ भी इस ऐतिहासिक ह्रदय-विदारक घटना से अछूता नहीं है क्योंकि पहली अक्टूबर, 1960 के बाद, यानी दरभंगा के अंतिम राजा महाराजाधिराज की अंतिम सांस के बाद से आज तक दरभंगा राज की ओर से ऐसी कोई भी घटना नहीं हुई है, जो महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह का नाम, उनके वसीयतनामे पर उद्धृत कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट का नाम आधुनिक भारत के इतिहास में, आधुनिक बिहार के इतिहास में, आधुनिक मिथिलाञ्चल के इतिहास में पुनः स्थापित किया जा सके।  सवाल यह है कि महाराजाधिराज जब अपने वसीयत में “चेरिटेबल” ट्रस्ट की बात इसलिए किये की वे स्वयं मानव-कल्याण के लिए कोइन भी कदम पीछे नहीं करते थे। और उम्मीद किये कि उनकी मृत्यु के बाद उस मानवता-प्रकरण की कड़ी उनके परिवार वाले, परिजन, खासकर जो उनकी मृत्यु के बाद उनकी सम्पत्तियों से लाभान्वित होंगे, को नहीं टूटने देंगे। महाराजाधिराज शिक्षा के क्षेत्र में, दानशीलता के क्षेत्र में और देशभक्ति के क्षेत्र में क्या किये, क्या नहीं किये यह तो “इतिहास” की बात हो गयी। लेकिन अपनी मृत्यु के बाद उस चैरिटेबल ट्रस्ट – महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट – के द्वारा वह सभी कार्य किया जायेगा, जिससे मानवता बची रहे, उनकी आत्मा को भटकना नहीं पड़े, शांति मिले – लेकिन विगत छः दशकों में महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट क्या किया, यह अरबों-खरबों का प्रश्न है !

अगर लोग बाग़ स्वयं को किसी भी राजनीतिक पार्टी के खम्भे से नहीं बांधे और मन तथा आत्मा से ‘राजनीतिक गलियारों में संकीर्ण विचारों के साथ नहीं भटकें, तो भारत में जब भी शिक्षा के महत्व और उसके संस्थागत प्रचार-प्रसार, दानशीलता और देशभक्ति की चर्चा की जाएगी,  दरभंगा राज का नाम लिया ही जायेगा – चाहे ऊपर नाम से लें या अन्तःमन से। कोई भी व्यक्ति उस तथ्य को “नजरअंदाज” नहीं कर सकता है।  वैसे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में राजनीति के कारण ही पंडित मदन मोहन मालवीय दरभंगा के महाराजाओं से आगे निकल गए। खैर। 

दरभंगा के महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट, लोक कल्याण कार्य और वर्तमान स्थिति 

महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट के दस्तावेज के अनुसार राज दरभंगा का इतिहास 400 साल से भी अधिक पुराना है जब सन 1577 में महामहोपाध्याय महेश ठाकुर ने दरभंगा राज की स्थापना किया था। महेश ठाकुर अपने समय के प्रख्यात विद्वान थे। उनके बाद भी जो भी दरभंगा राज के राजा हुए, मसलन शुभंकर ठाकुर, पुरुषोत्तम ठाकुर, नारायण ठाकुर, छत्र सिंह, महेश्वर सिंह आदि सभी अपने-अपने समय के, अपने-अपने क्षेत्र के हस्ताक्षर थे। महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह, महाराजा रामेश्वर सिंह और महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह की तो बात ही अलग थी।  वे सभी दिग्गत श्त्रविद थे, अनन्य राष्ट्रभक्त थे, अन्य दानशीलता में विश्वास रखते थे। उस ज़माने का इतिहास आज भी उनकी राष्ट्रभक्ति, उनकी दानशीलता का दृष्टान्त देता है विश्व को। उनकी दानशीलता में किसी भी प्रकार का जातिवाद, भेदभाव नहीं था। समाज के सभी जाति, संप्रदाय के लोग उनके सामने बराबर थे । चाहे व्यक्ति राजनेता हों, अधिकारी हो, नौकरशाही हो, खेतिहर हों, छात्र हों , प्राध्यापक हो, धार्मिक हों, स्वास्थ्य का क्षेत्र हों, स्पिरिचुअल का क्षेत्र हो, कला का क्षेत्र हो, जिला स्तर का हो, प्रादेशिक स्तर का हो, राष्ट्रीय स्टार का हो, दरभंगा राज प्रत्येक स्थान पर मुखरित हुआ था। 

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यह भी कहा जाता है दरभंगा राज तत्कालीन प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहजरू के आह्वान पर 15 मन सोना देश को दिया था। उनके कहने पर दिल्ली का 7-मानसिंह रोड उन्हें तुरंत खाली कर सरकारी इस्तेमाल के लिए दे दिए थे।  साठ हज़ार से अधिक अमूल्य किताबे और 400-साल पुराना धरोहर राष्ट्र को सपर्पित कर दिए थे। महाराजाधिराज मकई मृत्यु 1 अक्टूबर, 1962 को हुई। उनका अपना कोई संतान नहीं था। जो थी वह दो महारानियाँ और उनके अनुज राजबहादुर विशेश्वर सिंह के तीन पुत्र, यानी महाराजाधिराज के तीन भतीजे। महाराजाधिराज अपनी वसीयत नामे पर 5-7-1961 को हस्ताक्षर करते हैं और पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश ‘न्यायमूर्ति’ लक्ष्मीकांत झा को “सोल एक्सेक्यूटर” बनाते हैं। महाराजा की मृत्यु के बाद उस वसीयतनामे” को कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा “प्रोबेट” किया जाता है। 

कहा जाता है कि न्यायमूर्ति लक्ष्मीकांत  झा सेटेलमेंट कमिश्नर (आयकर) और (सम्पत्तिकर), भारत सरकार द्वारा राज दरभंगा के विरुद्ध बड़े पैमाने पर आयकर और संपत्ति कर से बकाये से सम्बंधित बकाये लंबित मामले प्राप्त किये। कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा “न्यायमूर्ति” लक्ष्मीकांत झा को यह अधिकार दिया जाता है कि दरभंगा राज की चल और अचल सम्पत्तियों को बेचकर आयकर, सम्पत्तिकर के रूप में एक अच्छी राशि, दो करोड़ और अधिक, जमा कर दें। न्यायमूर्ति झा की मृत्यु सं 1978 में हुयी। इसके बाद दरभंगा राज का प्रशासन कलकत्ता न्यायालय द्वारा नियुक्त अधिकारियों के जिम्मे आ गया, जो बाद में, कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सब्यसाची मुखर्जी के आदेश दिनांक 15 मई, 1979 के अनुसार दरभंगा राज का प्रशासन दरभंगा राज के निदेशक मंडल के हाथों आ गया। महाराजा के वसीयतनामे में ही “चेरिटेबल ट्रस्ट की बात कही गयी, जिसे फॅमिली सेटलमेंट के तहत और सर्वोच्च न्यायालय के आदेश दिनांक 15 अक्टूबर, 1987 को सहर्ष स्वीकार किया गया। फॅमिली सेटलमेंट के तहत दरभंगा राज के लोगों ने, जो वसीयत नाम के अनुसार महाराज की सम्पत्तियों के लाभार्थी बने, प्रचुर मात्रा में धनराशि और अन्य सम्पत्तियाँ इस चेरिटेबल ट्रस्ट को दिया।  इस ट्रस्ट का अन्य मानवीय कार्यों के अलावे शिक्षा का पर्याप्त मात्रा में प्रचार-प्रसार संबंधी कार्य, कला का विस्तार-विकास, विज्ञान के क्षेत्र में क्रियाकलाप-विस्तार, स्वास्थ्य के क्षेत्र में पर्याप्त विकास और विस्तार संबधी कर्त निर्धारित किये गए थे। इसके अलावे समाज के गरीब, जरूरतमंद लोगों को, या किसी भी जरूरतमंद लोगों को पर्याप्त आर्थिक मदद करना था।

दरभंगा के महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट, लोक कल्याण कार्य और वर्तमान स्थिति 

प्रारंभिक अवस्था में 3000 /- रुपये डोनेशन के साथ महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना हुई। लेकिन लेकिन महाराजाधिराज ने इस ट्रस्ट के उद्देश्य और ऑब्जेक्टिव के बारे में कोई विशिष्ट दिशा निर्देश अपने जीते-जी नहीं दिया था। सिवाय इसके कि उनके साम्राज्य में किसी भी व्यक्ति को, गाँव के किसान से लेकर, गरीब-गुरबा से लेकर विद्वान-विदुषी तक, यह चेरिटेबल ट्रस्ट काम आये।  चाहे उनकी शिक्षा की बात हो, स्वस्स्थ की बात हो, ज्ञान-विज्ञान की बात हो, उनके विकास की बात हो। किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाय।   

ट्रस्ट के स्थापना काल में महाराजाधिराज की बातों को बहुत ही तबज्जो दिया गया। हॉस्पिटल, चेरिटेबल डिस्पेंसरी, मेटरनिटी होम, महिलाओं के लिए अस्पताल, बाल कल्याण केंद्र की स्थापना, अस्पतालों में पर्याप्त बिस्तरों की व्यवस्था, अस्पताल की स्थापना जिससे लोगों को लाभ प्राप्त हो सके। इस बात का भी उल्लेख किया गया कि किसी भी विद्यालय को आर्थिक मदद देना, विद्यालयों को बढ़ावा देना, देख भाल करना, किसी भी संस्थान, कॉलेज, विश्वविद्यालय, टेक्निकल कालेज, फिजिकल कालेज, मेंन्टल कालेज की स्थापना, शोध कार्यों को प्रमुखता देना, शोध करवाना, संस्कृति और कला को बढ़ाव देना, विज्ञानं को बढ़ावा देना, बेहतर स्वास्थ्य की व्यवस्था करना, गरीब गुरबा को मदद इत्यादि – इत्यादि। 

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ट्रस्ट के निर्माण के समय यह उल्लेख किया गया कि ट्रस्ट की सम्पूर्ण शक्ति बोर्ड ऑफ़ ट्रस्टी में निहित होगी। इस ट्रस्ट में न्यूनतम 3 और अधिकतम 9 ट्रस्टीज होंगे। प्रारम्भ में तीन ट्रस्टियों के साथ – द्वारकानाथं झा, मदन मोहन मिश्रा और एक नाथ झा) ट्रस्ट की स्थापना की गयी और एक साल के अंदर छः अन्य ट्रस्टियों की नियुक्ति की जाएगी।  ये छह ट्रस्टी वही लोग होंगे जो महाराजाधिराज की सम्पत्तियों के लाभार्थी होंगे। 

दरभंगा के महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट, लोक कल्याण कार्य और वर्तमान स्थिति 

महाराजाधिराज के इक्षानुसार ग्रामीण इलाके के लोगों के कल्याणार्थ महत्व देते 25 मार्च 1992 को बना महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट निबंधित हुआ। कामेश्वर सिंह के किसी भी भाषा में भाषण, लेखनी, प्रकाशन को एकत्रित करना, उसे सुरक्षित रखना, पुनः प्रकाशित करना आदि बातों को महत्व दिया गया। यह भी व्यवस्था किया गया की महाराजाधिराज की चिठ्ठिया, पत्राचार, उनकी लेखनी, उनके संवाद को गाँव गाँव तक लोगों में पहुँचाया जाय, युवकों को पढ़ाया जाय, बताया जाय ताकि मातृभूमि के प्रति, लोगों के प्रति लोगों में संवेदना जागृत हो, वे भावनातमक मूल्यों को समझें और एक-दूसरे के लिए काम कायें। एक म्यूजियम बनाया जाय जहाँ उनसे सम्बंधित सभी कागजातों, रेप्लिका, लेख, कतरन को सुरक्षित रखा जाय। 

इस ट्रस्ट के अधिक यह भी निर्धारित किया गया की सम्पूर्ण देश में वेद, शास्त्र पुराण, काव्य का प्रचार-प्रसार किया जाय। विभिन्न स्थानों पर सेमिनार, संगोष्ठी, योग कराया जाए ताकि देश में स्पिरिचुअल और संस्कृति का विकास हो। पुस्तकालय, वाचनालय का अधिकाधिक निर्माण हो। माता-पिता विहीन बच्चों के लिए अनाथालय, विधवा आश्रम का निर्माण किया जाए, धर्मशालाओं का निर्माण हो, विधवाओं की देखभाल किया जाए, उन्हें वोकेशनल ट्रेनिंग दिया जाय, उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जाय। बिना जाति-संप्रदाय के बारे में सोचे, समाज के सभी गरीब-गुरबाओं को, आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को समय-समय पर उनके कार्यों के लिए आर्थिक मदद की जाय। अनंत बातें उल्लिखित हैं ट्रस्ट के डीड में। 

लेकिन अन्य बातों को यदि छोड़ भी दें तो शायद दरभंगा राज में महाराजाधिराज की पत्नी के विरुद्ध उन्ही के घर के लोग, महाराजाधिराज की सम्पत्तियों के लाभार्थी, सम्पत्तियों के लिए ही अनेकानेक मुक़दमे किये हैं, कुछ मुकदमें आज भी भारत के न्यायालयों में लंबित हैं। वैसी स्थिति में “चेरिटेबल ट्रस्ट” अपने उद्देश्य को कितना प्राप्त किया होगा, इस ट्रस्ट के अधीन सम्पत्तियों, गहनों का इस्तेमाल मानव कल्याणार्थ, गरीब-गुरबों कल्याणार्थ किता हुआ होगा, कितने अस्पताल बने, कितने अनाथालय बने, कितने पुस्तकालय बने, कितने विद्यालय बने, किटचे वाचनालय बने, कितने सेमिनार और संगोष्ठी हुए यह तो ट्रस्ट के लोग अधिक जानते होंगे। लेकिन इतना सच है कि दिव्यांगों को दी जाने वाली ट्राइस्किल के पीछे महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट का नाम उद्धृत कर देने से महाराजाधिराज की आत्मा कलपेगी, बिलखेगी – यही सच है। क्योंकि बिना डकार लिए ट्रस्ट के सभी धन-सम्पत्तियों को खाना दरभंगा राज की संस्कृति में कहीं उल्लेख नहीं है। 

बहरहाल, दरभंगा के लोगों को, मिथिलांचल के लोगों को चाहे वे किसी भी जाति के हैं, डोम हैं, चमार है, पंडित हैं, कायस्थ है, ठठेरा है, बहेरा है, कर्मकांडी हैं, दलित है, पासवान है, आदिवासी है, महादलित हैं, यादव हैं, कुर्मी हैं, धानुक हैं, कुशवाहा हैं, कोयरी हैं, सिख हैं, ईशाई हैं, क्षत्रिय हैं, शूद्र हैं, वैश्य हैं धनुख हैं आप सबों को दरभंगा राज के महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चैरिटेबल ट्रस्ट के क्रियाकलाप के बारे में पूछने का पूरा अधिकार है। पूछिए न ट्रस्ट से की महाराजाधिराज की मृत्यु के बाद उन्होंने आपके लिए, बिहार के लिए, मिथिलांचल के लिए क्या किये? ……… क्रमशः 

 

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