आप भारतीय हैं, शहीदों के दीवाने हैं तो इतिहास पर अपना हस्ताक्षर करें

मणिकांत झा और उनका परिवार। मणिकांत झा पटना सात-मूर्ति के एक शहीद सतीश प्रसाद झा के वंशज हैं

भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के मतवालों पर एक नया इतिहास लिखा जा रहा है। सत्तर साल आज़ादी के बाद भी समाज और सरकार से उपेक्षित उन गुमनाम क्रान्तिकारियों, शहीदों के जीवित वंशजों के लिए एक अनूठा राष्ट्रव्यापी प्रयास प्रारम्भ किया गया है।

इण्डियनमार्टियर्स.इन भारत के लोगों से “एक अद्भुत अपील” किया है। इस अपील में कहा गया है कि इण्डियनमार्टियर्स.इन द्वारा प्रकाशित होने वाली पुस्तकों में किसी भी एक पुस्तक पर, या सबों पर, जिसे वे पसन्द करते हैं, उनपर अपना हस्ताक्षर करें और इस अभियान में अपना योगदान भी दें।

इण्डियनमार्टियर्स.इन द्वारा प्रकाशित होने वाली किसी भी किताब को चुकि बाज़ार में नहीं बेचा जायेगा, इसलिए संस्था ने हस्ताक्षर करने वाले लोगों से अपील किया है कि वे इन किताबों के प्रकाशन के पूर्व हस्ताक्षर करें – डिजिटली।

सोसल मीडिया, विशेषकर फेसबुक पर, इस अपील को भी पोस्ट किया गया है जिसे लोग पसंद भी कर रहे हैं और शेयर भी। इस संस्था का मानना है कि इस प्रयास से कई और आज़ादी के गुमनाम क्रान्तिकारियों और शहीदों के जीवित वंशजों के जीवन में रँग भरा जा सकता है।

इस प्रयास के तहत अभी तीन किताबों का डमी तैयार किया गया है जिसमे “रीविजिटिंग बनारस”, “लखनऊ: द गोल्डेन सिटी ऑफ़ द ईस्ट” और “गया: द प्लेस ऑफ़ इनलाइटेंमेंट एंड साल्वेशन” है। इन दिनों किताबों पर हस्ताक्षर के लिए अपील किया गया है। ये सभी किताब १२ x १२ इंच आकार में हार्ड बॉन्ड कॉफी-टेबुल किताब है जो ३०० पन्नों से ३५० पन्नो का है।

आज़ादी के ७५ वें वर्ष में सैकड़ों गुमनाम क्रान्तिकारियों और शहीदों के साथ अब तक ढूंढे गए ७५ वंशजों से युक्त किताब १८५७-१९४७ मार्टियर्स ब्लडलाइन्स प्रकाशित किये जायेंगे।

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किताब से आज़ादी के क्रांतिकारियों और शहीदों के वंशजों के घरों में दीप जलाने का इस अद्भुत प्रयास की शुरुआत १२ वर्ष पहले हुयी थी, जब शहनाई सम्राट भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को अपने जीवन के अंतिम बसंत में मदद की गुहार लगानी पड़ी थी। ज्ञातब्य हो की शहनाई उस्ताद भारत की आज़ादी की अगुआई करने दिल्ली के लाल किले पर शहनाई-वादन किया था।

“जो भी भारतीय किसी इस किताब पर हस्ताक्षर करेंगे वे पहले अपना डिजिटल हस्ताक्षर संस्था को भेजेंगे (पूरा नाम और मोबाईल नंबर के साथ)

इण्डियनमार्टियर्स.इन पिछले दिनों से उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, उड़ीसा, असम, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली इत्यादि राज्यों के सभी जिलाधिकारियों को भी ईमेल के माध्यम से उस मुहीम में सम्मिलित होने का अपील किया है।

बिहार के दरभंगा जिले के उजान गाँव (बरकागांव) के बासिन्दे दिवंगत गोपाल दत्त झा और दिवंगत राधा देवी के पुत्र, शिवनाथ झा, जो पेशे से पत्रकार हैं और दिल्ली में रहते हैं, अपनी शिक्षिका पत्नी श्रीमती नीना झा २००५ में शुरू किये थे।

इन १२ वर्षों में झा दम्पत्ति सात किताबों के माध्यम से सात क्रातिकारियों, शहीदों के वंशजों के जीवन को नया आयाम दिया है, जिनमे शहीद तात्या टोपे, शहीद उधम सिंह, बहादुर शाह ज़फर, शहीद राम प्रसाद बिस्मिल और एक विधवा शामिल भी हैं।

“यह कार्य अकेले नहीं हो सकता और शहीदों के नाम पर व्यापार भी नहीं हो सकता। इसलिए हम एक कोशिश करना चाहते हैं ताकि आज़ादी के दीवानों, क्रांतिकारियों और शहीदों के जीवित वंशजों को गुमनामी जीवन से तो निकाला ही जाय, साथ ही, उनके घरों में दो वक्त की रोटी की भी व्यवस्था हो सके।”

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संस्था अभी तक ७० वंशजों को ढूढ़े हैं और अपनी आने वाली चार कॉफी -टेबुल किताबों से चार और वशजों के घरों को रोशदान करना चाहते हैं ताकि आज़ादी १८५७-१९४७ आन्दोलन के दौरान फांसी पर लटकाये गए, जेल में यातनाओं को सहते मातृभूमि के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले और अंग्रेजी हुकूमत में अपने ही लोगों के हाथों गोली का शिकार होने वाले शहीदों के जीवित और उपेक्षित वंशजो को समाज के मुख्यधारा में जोड़ा जा सके।

“यह एक राष्ट्रव्यापी हस्ताक्षर अभियान है। इस अभियान के तहत भारत के लोगों को जोड़ने का एक प्रयास है। लोग कम से कम एक किताब बुक करें जिस पर उनका हस्ताक्षर रहे। किताबों के प्रकाशन के लिए और उन वंशजों के मदद के लिए उनसे २५०० रुपये की सहयोग मांग रहे हैं। किताब कभी मरती नहीं, इसलिए सहायक-कर्ता भी किताबों के पन्नों में, उन शहीदों के वंशजों के घरों में जीवित रहेंगे।”

आज़ादी के विगत ७० सालों में न जाने कितने लाख-करोड़ क्विंटल सुगन्धित फूलों की मालाएं भारत के राजनेताओं के हाथों शहरों में उन शहीदों के शिलाओं पर चढ़े होंगे, जबकि दूर-दरस्त गाँव में, जहाँ से वे क्रान्तिकारी भारत माँ की परतन्त्रता की जंजीर से बहार निकालने निकले थे, आज भी गाँव के लोग उनके घरों की ढहती दीवारों पर गोबर पाथ रहे हैं। उनके कब्रों से एक-एक ईंट निकालकर अपने-अपने महल दीवारें जोड़ रहे हैं। जबकि उन्ही गुमनाम क्रान्तिकारियों के वंशज भारत के सड़कों पर दर-दर भटक रहे हैं – दो वक्त की रोटी के लिए, दवाओं लिए, शिक्षा के लिए, छत के लिए।

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बिडंबना यह भी है कि भारत सरकार और राज्य सरकारों द्वारा मिलने वाली स्वतन्त्रता सेनानी पेंशन योजना में भी स्थानीय लोगों, अधिकारियों के मिलीभगत के कारण कई छिद्र हो गए हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो सरकारी क्षेत्र के एक महत्वपूर्ण बैंक द्वारा निर्गत की जाने वाली पेंशन राशि वर्षों से हज़ारों-हज़ार मृत लोगों के नाम से निकला नहीं होता।

ज्ञातब्य है कि राज्य सरकारों के अलावे, भारत सरकार स्वतन्त्रता सेनानी पेंशन योजना के मद में कोई ६४५ करोड़ रूपये प्रतिवर्ष से अधिक खर्च करती है। बिडंबना यह है कि जैसे-जैसे देश की आज़ादी के वर्ष बढ़ते जा रहे हैं, भारत सरकार के गृह मन्त्रालय के स्वतन्त्रता सेनानी पेंशन धारियों की संख्या घटने के बजाय इजाफा ही हो रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार आज भी १,७०,००० से अधिक स्वतन्त्रता सेनानी पेंशनधारी हैं । यह एक सोचनीय विषय है।

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