जब भी ‘न्याय की बात’ होगी, ‘हताश लोगों की निगाहें’ ‘पुलिस’ और ‘न्यायमूर्तियों’ की ओर ही उठेगी (भाग-5)

एक दुःखद दिवस 
एक दुःखद दिवस 

दरभंगा / पटना : दरभंगा के महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह, महाराजा रामेश्वर सिंह और महाराजधिराज सर कामेश्वर सिंह को मिथिलांचल में दरभंगा को एक राज के रूप में स्थापित करने में, धन अर्जित करने में, मानवता-मानवीयता का उद्धरण स्थापित करने में, स्वाधीनता-पूर्व भारत और आज़ाद भारत में अपना नाम दर्ज करने में क्या-क्या मसक्कत करना पड़ा होगा, यह तो उन महात्माओं का ह्रदय ही जानता होगा। लेकिन महाराजाधिराज की मृत्यु के बाद दरभंगा राज का, महाराजाधिराज के ऐतिहासिक पुरातत्वों का, भवनों का, सम्पत्तियों का क्या हश्र हुआ, यह भी उन महात्मनों की आत्मा ह्रदय विदारक स्थिति में आंकता होगा। नहीं तो सर कामेश्वर सिंह द्वारा स्थापित आर्यावर्त-इण्डियन नेशन-मिथिला मिहिर समाचार पत्र-पत्रिका के दफ्तर, उस दफ्तर की बहुमूल्य भूमि का यह हश्र नहीं होता तो हुआ। समाज की गिरती मानसिकता, कर्मचारियों की अनुशासनहीनता, प्रबंधकों का लोभ तथा मालिक का कमजोर नेतृव इस सम्पूर्ण “ह्रदय-विदारक स्थिति का जीता-जागता उदाहरण बिहार की पत्रकारिता के इतिहास में दर्ज किया गया है।” 

खैर। बिहार के सरकारी दफ्तरों में ही नहीं, भारत के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के सरकारी दफ्तरों में, विशेषकर जहाँ गरीब-गुरबा के न्याय से सम्बंधित कागजात रखे होते हैं या सरकारी आयकर विभागों, पुलिस विभागों, अन्वेषण विभागों के दफ्तरों के ‘अत्यधिक सुरक्षित’ स्थानों पर जहाँ समाज के दबंगों, धनाढ्यों, लुटेरों, कारपोरेट घरानों के कालाबाज़ारी से सम्बंधित दस्तावेज और कागजातें रखे होते हैं, वहां आग अवश्य लग जाती है। आम तौर पर या तो बिजली विभाग द्वारा मुद्दत पहले बिछाये गए तारों को उस धृनत कार्य के लिए दोषी ठहराया जाता है, फांसी पर लटका दिया जाता है या फिर सिगरेट-बीड़ी के डब्बों/कागजों पर वैधानिक चेतावनी के बावजूद समाज के लोगबाग अपने-अपने ग़मों को, दुखों को भुलाने के लिए एक-दो कश सिगरेट अथवा बीड़ी क्या पी लेते हैं,  बेचारा सिगरेट और बीड़ी को बलि पर चढ़ा दिया जाता है। 

फिर, सुपुर्दे ख़ाक हुई कुर्सी, टेबुल, कागज़, फाइल्स, लालटेन, बल्ब, बाल्टी, पोछा, इत्यादि सामानों पर से राखों की परतों को हटाकर अन्वेषणकर्ता जांच पड़ताल करते हैं । रिपोर्ट विभागाध्यक्ष और अन्य आला अधिकारियों को सौंप दिया जाता है। फिर मसला ठंढा हो जाने के बाद “दो-तीन नायकों, नायिकाओं के बीच किसी होटल में, किसी फार्म हॉउस पर, समुद्र के किनारे खुली हवा में गुफ्तगू होती है। सभी आश्वस्त हो जाते हैं कि अब कोई सबूत/सुराग नहीं बचा है, जिसे डीएनए जांच, फोरेंसिक जांच करवाया जा सके, अन्वेषण कर्ताओं के ज्ञान-वान, अनुभवी, प्रशिक्षित “देशी-विदेशी-क्रॉस-ब्रीड के स्वांगों” से भी जांच-पड़ताल करने के बाद कोई गवाह नहीं मिलेगा; फिर सभी अपने-अपने दैनिक कार्यों में लग जाते हैं। 

मुद्दत से न्याय के दरवाजे पर बैठा गरीब-निरीह-अर्थहीन-समाज से तिरस्कृत, बेरोजगार, दबे-कुचले लोग टकटकी निगाहों से सरकारी मुलाजिमों को देखते रहते हैं, शायद कभी न्याय की हवा भी भारतवर्ष में चलेगी और उन्हें न्याय मिलेगा। कई सांसे देखते-देखते रुक जाती है, कई आखें निहारते-निहारते पथरा जाती हैं। आर्यावर्त-इण्डियन नेशन-मिथिला मिहिर के हज़ारों कर्मचारियों, उनके परिवारों की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है। अगर ऐसा नहीं होता तो भारतभूमि के विभिन्न अदालतों में – जिला अदालत से दिल्ली के मथुरा रोड – सिकंदरा रोड और तिलक मार्ग के बीच स्थित सर्वोच्च न्यायालय तक, लगभग चार करोड़ चार लाख मुकदमें लंबित नहीं होते। अब जब न्याय की बात होगी तो देश में न्याय तो सिर्फ दो ही विभागों के गणमान्य महात्मन दिला सकते हैं। भारत की 130 करोड़ लोगों की निगाहें उन्ही दो लोगों पर आकर बहुत विश्वास के साथ, बहुत निष्ठा के साथ, बहुत सम्म्मान के साथ, बहुत आशाओं के साथ टिकती है। इसमें एक हैं “खाकी वर्दीधारी” पुलिस और दूसरे “सफ़ेद वस्त्रधारी काले कोट वाले न्यायमूर्ति। ये दोनों समुदाय भारतीय समाज की बुनियाद हैं, नींव है, भूत हैं, वर्तमान हैं और भविष्य भी हैं। लेकिन। 

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वैसे हमारे देश में लोगों का, विशेषकर मतदाताओं का “याददाश्त” बहुत कमजोर होता है। कारण यह है कि “कितनी बातें याद रखा जाय?”, एक अहम् प्रश्न उठ जाता है और दूसरे: “याद रखने से होगा ही क्या ? गद्दी पर तो वही बैठेंगे, कुर्सी पर तो उनके ही लोग बाग बैठेंगे। अब देखिये न, आज से महज 400 साल पहले ईश्वर को प्राप्त हुए उत्तर प्रदेश में जन्म लिए, राम को ‘भगवान’ बनाने वाले, ‘रामायण’ और ‘रामचरितमानस’ जैसे अनेकानेक ग्रंथों के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास ने अपने रामचरितमानस में दासी मंथरा की ओर से एक चौपाई लिखी- “कोउ नृप होइ हमैं का हानी – चेरि छाड़ि अब होब की रानी”। मात्र एक रात्रि के समय अंतराल में सत्ता का पूरा तख्तापलट करवाने के लिए एक दासी ने यह कह दिया – उसे कोई लेना-देना नहीं, वह तो दासी की दासी ही रहेगी। रानी सोचें उनका क्या होगा ? कहीं न कहीं उसके मन के किसी कोने में यह बात अवश्य रही होगी, यदि भरत राजा बनेगें, तो उसकी भी थोड़ी ज्यादा चलेगी । दी न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशन्स लिमिटेड के प्रबंधन के लोग, कर्मचारी युनियन के लोग, पत्रकार यूनियन के लोग शायद अठारह वर्ष पूर्व जिस “समझौते पर हस्ताक्षर” किये थे, उनके मन में भी शायद यह चौपाया अवश्य याद आया होगा। अन्यथा, आज भूखे-नंगे कर्मचारियों, उसके परिवारों, परिजनों को इस कदर नहीं छोड़कर जाते – चाहे उन्हें न्याय मिले अथवा नहीं। 

अब देखिये न, विगत दिनों पटना शहर के ह्रदय में अंग्रेजों के ज़माने में बना भवन, पटना के लोग बाग़, प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस सभी “कोतवाली पुलिस थाना” के रूप में जानते हैं।  इस थाने को ही आग लग गयी। अब अंग्रेजी हुकूमत तो है नहीं ही स्वाधीनता संग्राम में इस घटना को दर्ज किया जाय। आग उस समय लगी जब उस थाने में बिहार विद्यालय परीक्षा समिति द्वारा आयोजित/संचालित परीक्षाओं में जो अब्बल आये थे, यानी “टॉपर” थे, जिन्होंने अपने-अपने शैक्षिक गुणों के आधार पर परीक्षा समिति द्वारा निर्गत परीक्षा-फल वाले प्रिंटेड-कागज़ पर अपना-अपना नाम सबसे ऊपर दर्ज किया था, से सम्बंधित कागजात थे।  परीक्षा-फल एक स्कैम के तहत मुकदमा का स्वरुप लिए है और कोटबली थाने में ही कागजात ‘सुरक्षित’ रखा था। यह अलग बात है कि उन्हें शायद उन सभी टॉपर्स को यह भी ज्ञान नहीं होगा की ‘सूई में कितने छेड़’ होते हैं ? 

अधिकारी कह दिए: “स्कैम-जांच में कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा” – अब वे कह रहे हैं तो “ब्रह्मवाक्य” मानना ही पड़ेगा। लोग बाग़ मान लिए। कुछ लोग बोले भी कि बिहार बोर्ड में जब भी घोटाले की बात सामने आती है उसके कुछ दिन के अंदर या तो बोर्ड कार्यालय या फिर जहाँ संवेदनशील कागजातें रखी होती हैं, आग जरूर लगती है। यह निश्चित प्रकिया है। आज बोर्ड से संबंधित कागजों का पीछा आग ने पुलिस स्टेशन तक किया।  जब तक आग प्रज्वलित थी, कोतवाली थाना के रास्ते आयकर विभाग के गोलंबर की ओर से आती और डाक बांग्ला चौराहे से मिलती बेली रोड कुछ देर के लिए बाधित रही, लोग बाग़ कुछ रुक कर, कुछ रुकते-चलते धुंआ को देखते निकलते गए। फिर रास्ता साफ़ और लोग आने-जाने लगे।                                                                                                                                                      
एक और दृष्टान्त लीजिये न। पटना समाहरणालय से न्यायालय नीलाम पत्र प्राधिकारी-सह-जिला पंचायत राज पदाधिकारी के कार्यालय से ज्ञापांक संख्या 193 दिनांक 16-9-2020 को बिहार के पुलिस महानिदेशक को, पटना के वरीय पुलिस अधीक्षक को और थाना अध्यक्ष, कोतवाली को “अतिसंवेदनशील” पताखे के तहत एक पत्र प्रेषित किया जाता है। पत्र का विषय होता हैं मेसर्स पाटलिपुत्रा बिल्डर्स प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक की गिरफ्तारी और कुर्क वारंट का क्रियान्वयन। 

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पत्र में लिखा जाता है “विदित हो कि इस न्यायालय द्वारा लगातार स्मरित किया जाता रहा है, परन्तु थानाध्यक्ष प्रतिवेदन देने  असमर्थ रहे हैं।  जिससे उक्त वाद में प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। जिसके कारण क्षुब्ध होकर लेनदार की ओर से सुनील कुमार झा के द्वारा भारत सरकार के केंद्रीय कृत लोक शिकायत निवारण एवं अनुश्रवण व्यवस्था के अधीन प्राप्त आवेदन इस न्यायालय को कार्रवाई हेतु प्राप्त हुयी है।  जिसमें न्यायालय को उक्त मामले की जानकारी विधिवत अभिलेखों का कार्रवाई से सम्बंधित प्रतिवेदन भेजना है। अतः अनुरूष है कि उक्त मामले में इस न्यायालय से निर्गत वारंट को शीघ्र कार्यान्वयन प्रतिवेदन हेतु सम्बंधित पुलिस पदाधिकारी को आदेश देने की कृपा की जाए ताकि देनदार की राशि वसूली की जा सके एवं भारत सरकार के  केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण एवं अनुश्रवण व्यवस्था को प्रतिवेदन समर्पित किया जा सके।  

लेकिन सवाल लगभग साढ़े पांच करोड़ से भी ऊपर है। अब इतनी बड़ी राशि की वसूली, वह भी पटना के फ़्रेज़र रोड के बीचोबीच महाराजा दरभंगा की ऐतिहासिक “करारनामे के अनुसार बिकी हुयी संपत्ति आर्यावर्त – इण्डियन नेशन – मिथिला मिहिर समाचार पात्र/पत्रिका समूह के प्रकाशक दी न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशन्स लिमिटेड” के कर्मचारियों द्वारा, जिसकी स्थिति सन 1998 में हर्मेश मल्होत्रा द्वारा निर्देशित गोविंदा, रवीना टंडन, कादरखान, जॉनी लिवर, असरानी और प्रेम चोपड़ा द्वारा अभिनीत “दूल्हे राजा” के डायलॉग   ‘नंगा नहाएगा क्या और निचोड़ेगा क्या’ जैसा है।  ऐसी स्थिति में कागज़ पर जारी फरमान का हश्र ऐसा ही होता है। कोई नौ महीने में अभी तक पटना के कोतवाली पुलिस द्वारा नीलाम वाद संख्या 728 / 2017 कामगार हितचन्द्र झा एवं अन्य कुर्क वारणतम एवं गिरफ्तारी का क्रियान्वयन नहीं हो पाया। पटना पुलिस को मेसर्स पाटलिपुत्रा बिल्डर्स के निदेशक अनिल कुमार को गिरफ्तार करना है और उनकी संपत्ति को को कुर्क करना है ताकि करारनामे के अनुसार बंद दी न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशन लिमिटेड के कर्मचारियों का बकाया भुगतान किया जा सके। 

पटना के वरीय पुलिस अधीक्षक को लिखा गया पत्र (पृष्ठ-1)

दिनांक 31 मार्च, 2002 को दी न्यूज पेपर्स एंड पालिकेशन्स लिमिटेड के प्रबंधन, पाटलिपुत्रा बिल्डर्स प्राइवेट लिमिटेड, दी एन एंड पी कर्मचारी यूनियन, बिहार पत्रकार यूनियन के अधिकारियों के साथ  “मेमोरेंडम ऑफ़ अग्रीमेंट एंड सेटलमेंट” पर हस्ताक्षर हुआ। करारनामा चार पन्नों का था। प्रबंधन के तरफ से श्री एस एन दास, जो उस दिन निदेशक थे कंपनी के, श्री दिनेश्वर झा, मैनेजर; एम एम आचार्य, एक्टिंग सेक्रेटरी; श्री सी एस झा, एकाउंट्स ऑफिसर हस्ताक्षर किये और क्रेता पाटलिपुत्रा बिल्डर्स के तरफ से कंपनी के निदेशक श्री अनिल कुमार (स्वयं) और उनके एक प्रतिनिधि श्री आनंद शर्मा। दी न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशन लिमिटेड के कर्मचारी यूनियन के तरफ से थे श्री गिरीश चंद्र झा (अध्यक्ष), दिग्विजय कुमार सिन्हा (जनरल सेक्रेटरी), श्री एस एन विश्वकर्मा, जॉइंट सेक्रेटरी, श्री रमेश चंद्र झा, जॉइंट सेक्रेटरी और बिहार वर्किंग जर्नलिस्ट्स यूनियन के तरफ से हस्ताक्षर करता थे श्री शिवेंद्र नारायण सिंह (प्रेसिडेंट), श्री मिथिलेश मिश्रा (एग्जीक्यूटिव) । करारनामे पर कहीं भी संस्थान के स्वामी / भूखंड के स्वामी दिखाई नहीं दिए। 

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पटना पुलिस को मेसर्स पाटलिपुत्रा बिल्डर्स के अधिकारी नहीं मिल रहे हैं। लेकिन पटना के एक वरिष्ठ पत्रकार, जो बिहार पत्रकार यूनियन के पदाधिकारी भी थे और मेसर्स पाटलिपुत्रा बिल्डर्स के करीबी भी, का कहना है कि : पाटलिपुत्रा  बिल्डर्स प्राइवेट लिमिटेड नोयडा सेक्टर १५ विशालकाय आवासीय नगर बना रहा है। गुरुग्राम में एक विशालकाय मॉल बना रहा है। पटना के एग्जिविशन रोड पर स्थित बिग बाजार के साथ 70 कमरे वाला विशालकाय होटल बना रहा है।  पंजाब नॅशनल बैंक के समापित आठ-तल्ले का मकान बना रहा है।  फ़्रेज़र रोड में हिन् वर्तमान महाराजा कॉम्प्लेक्स से आगे 120 – बिस्तर वाला एक लघु अस्पताल बंना रहा है, गया में विष्णु विहार के समीप पाटलिपुत्र निर्वाणा नमक भव्य ईमारत बना रहा है। बहुत बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स पर कार्य हो रहे हैं।   

पटना के वरीय पुलिस अधीक्षक को लिखा गया पत्र (पृष्ठ-2)

बहरहाल, एन एंड पी कर्मचारी यूनियन द्वारा पटना के वरीय पुलिस अधीक्षक को लिखा गया यह पत्र एक और ज्वलंत दृष्टान्त है। यूनियन ने विषय में लिखा है: अनिल कुमार, प्रबंध निदेशक, पाटलिपुत्र बिल्डर्स लिमिटेड, महाराजा कॉम्प्लेक्स, फ़्रेज़र रोड, पटना के काली-करतूतों एवं धोखाधड़ी के सम्बंद में।”

पत्र में लिखा गया है कि: “उक्त बिल्डर एवं  एन एंड पी कर्मचारी यूनियन और प्रबंधन के बीच एक त्रिपक्षिति समझौता हुआ जिसमें कर्मचारियों का वेतन, ग्रेच्युटी एवं बोनस आदि के बकाया रकम 8 . 50 करोड़ (मुलहन) बिल्डर देनदार है। पूरब भुगतान होने तक उक्त संपत्ति कर्मचारी के नाम सुरक्षित / गिरवी है जो समझौता के पैरा न० 2, 9 एवं 12 में उल्लिखित है। बिल्डर आंशिक भुगतान करने के बाद 4 पोस्ट-डेटेड चेक, जो कुल 5.82 करोड़ का जारी किया लेकिन षड्यंत्र एवं धोखाधड़ी के तहत पैसा भुगतान नहीं किया। इस सम्बन्ध में यूएएन दरवा श्रम विभाग, नीलम पत्र पदाधिकारी, पटना एवं माननीय पटना उच्च न्यायालय में काफी दिनों से मुकदमा लड़ रहा है, और बिल्डर के विरुद्ध जब्ती-कुर्की एवं वारंट भी जारी हो चूका है, लेकिन बिल्डर अपने धन-बल एवं आर्यन न्यूज चैनेल के बल पर मामला दबाने में सक्षम रहा है।”

आर्यावर्त इण्डियन नेशन डॉट कॉम से बात करते हुए हितचन्द्र झा कहते हैं: विगत 18 वर्षों में कंपनी के कर्मचारी यूनियन के अनेकानेक नेताओं से लेकर, बिहार पत्रकार यूनियनों के नेताओ तक सबों ने करारनामे के अनुसार 8.50 करोड़ रुपये खरीदार से लेकर, एक-एक कर्मचारियों को एक-एक बकाया रूपया का भुगतान करना चाहता था। समयांतराल, अनेकानेक लोग, चाहे श्रमिकों के तरफ से आवाज उठा रहे हों या पत्रकारों के तरफ से, इस आंदोलन से अपनी दूरी बनाते गए। यह दूरियां क्यों बनी, किस परिस्थितियों में वे अपने को कर्मचारियों के हितों के लिए लड़ाई छोड़कर अलग हो गए, यह तो वही जानते हैं। इन वर्षों में अनेकानेक परिवार के मुखिया, परिवार के सदस्य मृत्यु को प्राप्त किये। अनेकानेक परिवार टूट गया। लेकिन लोगों ने मुड़कर पूछा भी नहीं। दी न्यूज पेपर्स एंड पब्लिकेशन / भू स्वामी तो एक बार भी पलटकर नहीं देखा उन मजदूरों को जो जिसने दरभंगा राज के लिए, महाराजाओं के लिए, इस संस्थान के अध्यक्ष-सह-प्रबंध निदेशक दिवंगत शुभेश्वर सिंह के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिए।”

हितचन्द्र झा आगे कहते हैं: ” परन्तु आज मैं अपने कुछ साथियों के साथ इस लड़ाई को जारी रखे हुए हैं।  जब तक हम जीवित रहेंगे तब तक हमारी कोशिश होगी कि कर्मचारियों का बकाया राशि प्राप्त हो जाय।  करारनामे के अनुसार जो राशि तय थी – चाहे बैंक का हो अथवा कर्मचारियों का – उसमें से महज तीन करोड़ रुपये के आसपास क्रेता कंपनी ने भुगतान किया है ………..क्रमशः 

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