‘धार्मिक न्यास’ के खातिर जब 21,274/- रुपये के लिए महाराजाधिराज ‘लड़’ गए, आज ‘न्यास का स्वास्थ्य’ भी ”स्वस्थ” नहीं है (भाग-40…. क्रमशः )

दरभंगा राज का एक मंदिर। यह दृश्य ही "दृष्टान्त" है। कामेश्वर सिंह धार्मिक न्यास के तहत किसी भी मंदिर. मठों, ठाकुरबाड़ियों की दशा अगर आपको अच्छा नहीं लगे तो लिखिए जरूर

दरभंगा / राजनगर /पटना : आप माने अथवा नहीं। दरभंगा के अंतिम राजा महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह अपनी मृत्यु से छः साल पहले महज 21,274/- रुपये के लिए पटना उच्च न्यायालय से भारत के सर्वोच्च न्यायालय तक एक कर दिये थे। यह पैसे महाराजा द्वारा बनाए गए धार्मिक न्यास को प्रदत्त भूमि से मिलने वाली कमाई का हिस्सा था। सरकार के नियमानुसार यह राशि “आयकर” नियमों के अधीन था, जबकि महाराजाधिराज के लोगों का कहना था कि चूँकि यह राशि महाराजाधिराज द्वारा धार्मिक न्यास को दी गयी कृषि-भूमि की कमाई का हिस्सा है, और न्यास को आयकर अधिनियम से छूट है; अतः यह राशि आयकर विभाग को भुगतान नहीं करनी चाहिए। आश्चर्य तो यह है कि उन दिनों भी महाराज के आस-पास रहने वाले मिथिला के विद्वान और विदुषी गण यह नहीं कह सके कि “एक ही राशि ‘दो व्यक्ति’ अथवा ‘दो संस्था’ के लिए अलग-अलग नियमों के अधीन होती है। जो राशि धार्मिक न्यास के लिए आयकर नियमों के अधीन नहीं है, वह राशि महाराजाधिराज के लिए आयकर अधिनियम के अधीन है।” परन्तु ‘बात तो दरभंगा राज की थी’, और उस दिन भी दरभंगा राज में राग-दरबारियों की किल्लत नहीं थी, आज तो पूछिए ही नहीं। 

महाराजाधिराज दरभंगा ही नहीं, बिहार प्रान्त और देश के अन्य हिस्सों में जिन-जिन मंदिरों, मठों और धार्मिक स्थानों की देख-रेख करने का दायित्व लिए थे, उसका समुचित संरक्षण हो; इस निमित्त अपने राज का एक बहुत बड़ा हिस्सा का कृषि जमीन कामेश्वर सिंह धार्मिक न्यास को दे दिए थे, ताकि आमदनी का स्रोत बना रहे । परन्तु, आज दरभंगा राज रेसिडुअरी ट्रस्ट, कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट या महाराजाधिराज द्वारा सामाजिक-धार्मिक कल्याणार्थ बनाये गए अन्य न्यासों से “अधिक स्वस्थ” कामेश्वर सिंह धार्मिक न्यास का भी नहीं है। बिमारी से यह न्यास भी ग्रसित है। बिहार सरकार द्वारा “पुनर्जीवित” बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद् के आला-अधिकारियों की बात छोड़िए, दरभंगा के कामेश्वर सिंह धार्मिक न्यास का यह “बंद-ताला” वाला कार्यालय से ही आप इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि दरभंगा ही नहीं, बिहार और देश के किन-किन हिस्सों में स्थित मंदिरों और मठों का देखभाल करने का दायित्व लेने वाले दरभंगा के अंतिम राजा महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह के धार्मिक ट्रस्ट का “स्वास्थ्य” कैसा होगा? 

उम्मीद है यह तस्वीर काफी है कामेश्वर सिंह धार्मिक न्यास की स्थिति को बताने के लिए

दरभंगा राज के राजनगर परिसर में स्थित मंदिरों से तो कई मूर्तियां भी गायब हैं। महाराजाधिराज को मालूम नहीं था कि उनकी साँसे अब सीमित हैं और आने वाले दिनों में जब उनकी अमानतों को, गरिमा को कौड़ी के भाव में बेचा जायेगा तो मंदिरों का क्या हाल होगा? इस न्यास के ट्रस्टी हैं महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह की तीसरी और सबसे छोटी 90+ वर्षीय उनकी विधवा महारानी अधिरानी कामसुन्दरी। ज्ञातव्य हो कि विगत समय में बिहार राज्य धार्मिक परिषद के अधीन माँ श्यामा मंदिर का अधिग्रहण कर माँ श्यामा मंदिर न्यास समिति बनाया गया और प्रथम-द्वितीय नहीं, बल्कि ‘छठे स्थान’ पर महज एक ‘सदस्य’ के रूप में महारानी अथवा उनके द्वारा अधिकृत व्यक्ति को स्थान दिया गया। आप आज के परिपेक्ष में दरभंगा राज के सदस्यों का, कामेश्वर सिंह धार्मिक न्यास के अस्तित्व का अंदाजा लगा सकते हैं।  

न्यास के बारे में बहुत बातें हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या कामेश्वर सिंह धार्मिक न्यास के पास ‘सम्पूर्णता के साथ’ ऐसी कोई सूची है जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि इस न्यास को बनाते समय महाराजधिराज ने अमुक-अमुक मंदिरों / मठों के निर्माण, रख-रखाव, पंडित/पुजारी के वेतन, प्रसाद, घुपबत्ती, अगरबती, घूमन, भगवान अथवा भगवती के लिए वस्त्र आदि-आदि मदों पर प्रत्येक दिन अथवा प्रत्येक वर्ष होने वाले खर्च कहाँ से आएंगे? क्या उन मंदिरों और मठों के निमित्त सुरक्षित जमीनों की सूची है कामेश्वर सिंह धार्मिक न्यास के पास ? क्या उन जमीनों के लिए न्यास सरकार के कोषागार में अथवा निबंधन कार्यालय में भूमि-कर का भुगतान कर रखा है? क्या कामेश्वर सिंह धार्मिक न्यास के तहत सभी मंदिरों, मठों की स्थिति बेहतर है? क्या उन भूमियों की खरीद-बिक्री में तो हाथ नहीं लगाया गया है? कामेश्वर सिंह धार्मिक न्यास के तहत संचालित और संरक्षित मंदिरों/मठों के पुजारियों की कोई सूची उपलब्ध है? कामेश्वर सिंह धार्मिक न्यास से बात करने की अनवरत कोशिश किया गया, परन्तु सफल नहीं रहा। सूत्रों का कहना है कि कोई 108 मंदिर और ठाकुरवाड़ी हैं जो कामेश्वर सिंह धार्मिक न्यास के अधीन माना जाता है। इतना ही नहीं, यह भी कहा जाता है कि कानपुर स्थित बाजीराव पेशवा – II के महल में स्थित मंदिर का देखभाल सहित, देश में अनेकानेक ‘ऐतिहासिक लोगों द्वारा स्थापित मंदिर है जिसका देखभाल महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह ने अपने जिम्मे लिय्या था और इसका दायित्व कामेश्वर सिंह धार्मिक न्यास को सौंपा था। 

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दरभंगा राज का एक मंदिर।

सूत्रों का कहना है कि “जब महाराजा रामेश्वर सिंह, यानी दरभंगा के अंतिम राजा महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह के पिता के उस स्थान पर बना मंदिर, जहां उनके पार्थिव शरीर को अग्नि को सुपुर्द किया गया था, माँ श्यामा मंदिर न्यास समिति में महाराजाधिराज की सबसे छोटी “जीवित” पत्नी महारानी अधिराज को समिति के “शीर्षस्थ” पदों पर स्थान न देकर, एक सामान्य सदस्य के रूप में (अपने द्वारा मनोनीत किसी भी व्यक्ति को) स्थान दिया गया; मिथिलांचल के लोग अथवा दरभंगा राज के लोग अपने-अपने सामाजिक अस्तित्व को नाप सकते हैं।”  इतना ही नहीं, न्यास तो बन गया, समिति भी बन गई लेकिन सरकार द्वारा अथवा किसी अन्य स्रोत से उपलब्ध राशियों को खर्च करने का अधिकार 19-सदस्यीय समिति को न देकर जिला प्रशासन अपने अधीन रखा है। माँ श्यामा मंदिर न्यास समिति ( बिहार राज्य धार्मिक पर्षद्र के अन्तर्गत ) माधवेश्वर परिसर, दरभंगा पत्रांक 1067, दिनांक 29/8/2012 को बिहार राज्य धार्मिक न्यास पर्षद, पटना द्वारा माँ श्यामा मंदिर न्यास समिति दरभंगा का गठन किया गया, जो 01/09/2012 से पांच वर्षो के लिए प्रभावी है । 

बहरहाल, बिहार के कुल 38 जिलों में तक़रीबन 534 ब्लॉक हैं और कोई 45,103 गाँव हैं। उन्हीं गाँव में दरभंगा में कुल 1251 गाँव है, और ऐसा कोई गाँव नहीं है जहाँ धार्मिक आस्था से जुड़े स्थान नहीं है। बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद ने 2007 में श्यामा माई मंदिर को अधिग्रहण किया। फिर श्यामा माई मंदिर न्यास समिति का गठन हुआ। राज परिवार के सूत्रों के अनुसार इस परिसर में श्यामा माई सहित जितने मंदिर हैं, वह राजपरिवार के मृत लोगों की चिताओं पर है। इस लिहाज से इस पर राज परिवार का हक बनता है। जबकि न्यास परिषद व श्यामा माई मंदिर न्यास समिति का दावा है कि वर्ष 2007 में जब इस मंदिर परिसर का अधिग्रहण किया गया था उस समय के तत्कालीन जिला पदाधिकारी उपेंद्र शर्मा की ओर से परिषद को जमीन संबंधित भेजी गई रिपोर्ट में श्यामा सहित नौ मंदिरों का समूह लिखा है। इस लिहाज से मंदिर परिसर पर दावा समिति का बनता है। लेकिन, इस विवाद को निष्पादन आज तक नहीं हुआ है। इसका जीवन उदहारण विगत वर्ष उस समय महसूस किया गया जब दिवंगत राजा बहादुर विश्वेश्वर सिंह के बड़े पुत्र राजकुमार जीवेश्वर सिंह की पहली पत्नी राज किशोरी की मृत्यु के पश्चयात उनकी पार्थिव शरीर को जलाने के लिए जिला प्रशासन से अनुमति मांगी गई थी।  

दरभंगा राज का एक मंदिर।

महाराजा रामेश्वर सिंह मां काली के भक्त थे। वह तंत्र विद्या के भी ज्ञाता थे। उनके निधन के बाद 1933 में उनकी चिता पर मंदिर का निर्माण कराया। इसमें स्थापित काली की भव्य प्रतिमा की तांत्रिक व वैदिक दोनों ही विधियों से पूजा की जाती थी। यह तंत्र साधना का भी प्रमुख केंद्र रहा है। यह मूर्ति पेरिस से लाई गई। मूर्ति ग्रेनाइट की बनी हुई है। वैसे दरभंगा ही नहीं, बिहार के लोग भी विश्वास नहीं करेंगे लेकिन कहा जाता है कि आज भी बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद् के अधीन निबंधित जितने भी मंदिर अथवा मठ हैं उनमें से एक-तिहाई हिस्से पर आज भी भू-माफियाओं का अधिपत्य है और अधिकाधिक मामले आज भी  अदालतों में लंबित हैं। वैसे पटना वाला बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद् अपनी सम्पूर्ण शक्ति के साथ प्रदेश के अंदर स्थिर मंदिरों, मठों, ठाकुरबाड़ियों की सूची बना रहा है, उसके हिस्से की जमीनों की सुच बना रहा है ताकि आने वाले दिनों में इस संस्था को सुचारु रूप से चलाया जा सके।

खैर, कामेश्वर सिंह धार्मिक न्यास के बारे में चर्चाएं चलती रहेगी, शायद मिथिलांचल अथवा दरभंगा के लोगों को पता नहीं होगा कि महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह बौद्धिक पुरुषास्त्र के उत्कर्ष पर होने के बाद भी कितने ‘सज्जन’ थे कि वे पटना उच्च न्यायालय से लेकर दिल्ली के सर्वोच्च न्यायालय तक इस बात को लेकर “लड़” गए कि “जो कृषि भूमि मंदिर अथवा अन्य धार्मिक संस्थाओं को चलाने के निमित्त थी और जिस पर कोई कृषि आयकर नहीं लगता था, अगर उसकी आय का एक हिस्सा उन्हें प्राप्त होता है तो वे उस आय से कर-मुक्त नहीं रह सकते हैं।” परिणाम यह हुआ कि महाराजाधिराज पटना उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय का दरवाज खटखटा दिए। वादी महाराजाधिराज और प्रतिवादी भारत सरकार का आयकर विभाग के अधिवक्ताओं के बीच घमासान तर्क-वितर्क हुआ।  सम्मान्नित न्यायाधीश महाराजाधिराज के सम्मान को सम्मानित करते हुए पर्याप्त समय दिए, तर्क-वितरकों को सुने और अंत में निर्णय दिए कि जो भूमि धार्मिक मंदिरों अथवा ठाकुरबाड़ियों के लिए निम्मित है, उससे जो भी आय प्राप्त होती है, अगर उसका इस्तेमाल उन मंदिरों और ठाकुरबाड़ियों के रख-रखाव के लिए होता है तो वह “कर-मुक्त” है; लेकिन जैसे ही वह महाराजाधिराज का “आय” हो जाता है, उसपर “करारोपण” होना “स्वाभाविक” है। और फिर निर्णय महाराजाधिराज के प्रतिकूल हुआ। उम्मीद हैं राज दरभंगा के लोगबाग, जो महाराजाधिराज की संपत्ति पर अपना-अपना अधिपत्य जमाने के लिए कुस्ती और कबड्डी खेल रहे हैं, मालूम नहीं होगा। तत्कालीन न्यायमूर्तियों ने महाराजाधिराज की याचना को नहीं माने और ‘खर्च’ के साथ मुकदमा ख़ारिज कर दिया। उच्च न्यायालय के फैसले को लेकर महाराजाधिराज भारत के सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे।  

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जब मामला सर्वोच्च न्यायालय में आया तो सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन  माननीय न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे सी शाह और  न्यायमूर्ति एस के दास “Income Tax- Exemption from taxation Agricultural income from trust properties-Trustee’s remuneration a Percentage of such income and  resting  on  trust deed-Remuneration,  whether agricultural  income-Indian  Income-tax Act,  1922  (11  of 1922), SS. 2(1),4(3)(viii) के मद्दे नजर महाराजाधिराज के याचिका की सुनवाई किए।  महाराजा ने दलील दिये कि वे एक ट्रस्टी के हैसियत से ट्रस्ट को प्रदान की गई भूमि से मिलने वाली आय का 15 फीसदी अपनी सेवा के लिए लेते थे, एक रेम्युनेरेशन के रूप में। उन्होंने आयकर विभाग को कहा कि उक्त भूमि के इस्तेमाल से एक ट्रस्टी के रूप में जो भी आमदनी उन्हें प्राप्त होती है वह कृषक सम्पत्तियों के इस्तेमाल से होने वाली कृषक आय है जो की भारतीय आयकर अधिनियम 1922 के धारा  s. 4 (3) (viii) के अधीन आयकर से मुक्त है, साथ ही, कृषि आय से उन्हें तो रेम्युनेरेशन दिया जाता है, वह भी आयकर से मुक्त है क्योंकि उस आय का स्रोत कृषि है जो मंदिरों, ठाकुरबाड़ियों को दी गयी है उसके सफल सञ्चालन के लिए।

राज नगर के एक मंदिर से मूर्ति गायब ।

महाराजा कामेश्वर सिंह ने आयकर आयुक्त के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मामला दायर किया था कि ट्रस्ट की आय खेती से होती है और खेती की आय पर टैक्स नहीं है। ट्रस्ट उसी आय को ट्रस्टी को वेतन के रूप में देता है इसलिए इस वेतन पर टैक्स नहीं लगना चाहिए। उनकी दलील थी कि पैसे तो वही हैं जिसपर टैक्स नहीं लगता है इसलिए उसे किसी और मद में किसी और को दिया जाए तो उसपर टैक्स नहीं लगना चाहिए। यह आयकर की बुनियादी आवधारणा के खिलाफ है। आयकर लेने वाले को इससे मतलब नहीं होता है कि पैसे देने वाला कहां से पैसे दे रहा है। उसे इस बात से मतलब होता है कि किसी को आय प्राप्त हो रहा है। उसके काम के बदले फिर भी उसपर टैक्स लगना है। इसमें इस बात का मतलब नहीं है कि वेतन मद में दिया जाने वाला पैसा कहां से आ रहा है या किस मद में खर्च किया जा रहा है। बल्कि जो कमा रहा है वह अपनी कमाई में से टैक्स देता है। इसलिए अदालत ने इसपर टैक्स नहीं लेने की दलील नहीं मानी और यह मामला खारिज हो गया। अदालत ने कहा कि ट्रस्टी को उसके काम के बदले वेतन मिल रहा है और वेतन पर टैक्स लगता है। इसलिए लगेगा। वेतन किस पैसे से दिया जा रहा है यह ट्रस्ट का सिरदर्द है। उसपर टैक्स लगना नहीं लगना ट्रस्ट का सिरदर्द है। ट्रस्टी को अपने वेतन पर टैक्स देना है। वह जायज है। इसलिए अदालत ने न सिर्फ मामला खारिज कर दिया था बल्कि उसका खर्च देने का भी आदेश दिया था। गंभीर मामला है।

महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह की मृत्यु के ठीक दो साल पहले, यानी 25 अक्टूबर, 1960 में पटना उच्च न्यायालय 24 अप्रैल,1957 के फैसले के विरुद्ध सर्वोच्च  न्यायालय में मुकदमा दायर किया था। वादी के तरफ से तत्कालीन अधिवक्ता ए वी विश्वनाथ शास्त्री और आई एन श्रॉफ उपस्थित हुए थे। जबकि प्रतिवादी के तरफ से के एन राजगोपाल शास्त्री और आर एच धेबर थे। अपना पक्ष रखते वादी ने न्यायालय को बताया कि दरभंगा राज के तहत स्थापित अथवा संचालित मंदिरों या ठाकुर बाड़ियों के लिए एक ट्रस्ट है। ट्रस्ट के डीड में दो प्रकार की भूमि का विवरण है। ‘A’ श्रेणी में वह भूमि हैं जहाँ मंदिर अथवा ठाकुरबाड़ी बनाया गया है, स्थापित है और C ‘ शिड्यूल में  वैसी भूमि हैं जो उन मंदिरों और ठाकुरबाड़ियों की डेस्कःरेख, सञ्चालन के लिए ीसत्येमाल होते हैं। ट्रस्ट के डीड में के क्लॉज 6 में उल्लिखित है:

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“And whereas the declarant feels that a Declaration of Trust should be made whereby the income of a part of the Raj properties may be earmarked and specially devoted to the maintenance of the aforesaid institutions as also the Declarant may as hitherto treat himself and be treated by others as a legal Trustee of the said institutions and the properties out of the income of which the said maintenance is being and will be provided for.”

इसी तरह क्लॉज 7 में लिखा है: “The declarant declares that henceforth he holds and will hold the properties detailed at the foot thereof in Schedule ” A ” in trust for religious purposes of maintaining the religious institutions more fully described in Schedule ” B ” annexed here-to. ” और

क्लॉज 8 कहता है: “The declarant further declares that in all lands now held by him in the aforesaid properties as Bakast or proprietor’s private lands as in the schedule ” C ” which are in direct khas cultivation of the Declarant shall henceforth be or continue to be his tenancy lands for which the Declarant shall pay the rental as noted against such lands, annually to the ” trustee for the use and benefit of the aforesaid institutions and the rights of the Declarant in them shall be those of a rayat under the Bihar Tenancy Act.”

राज नगर के एक मंदिर से मूर्ति गायब ।

महाराजाधिराज का कहना था कि :The net income of all the lands set out in Schedule A’.’ after providing for the expenses of management and the taxes payable thereon was estimated at Rs. 1,81,717 and the net rental of the properties described in Schedule ” C ” was estimated at Rs. 10,208 and from the aggregate of these two amounts after deducting 15% as trustee’s remuneration, the balance of the income estimated at Rs. 1,63,136-4-0 was to be utilised for the objects of the trust.

जबकि सन 1950-51 असेसमेंट वर्ष में आयकर विभाग द्वारा निर्धारित महाराजाधिराज की आय में, 6000 रुपये की आमदनी ट्रस्ट के गैर कृषि स्रोत की आय दिखाया गया है। आयकर अधिकारी का कहना था कि ट्रस्ट कोई सार्वजानिक धार्मिक ट्रस्ट नहीं है और जिस स्रोत से 6000 रुपये की आमदनी दिखाई गयी है, वह आयकर के छूट के दायरे में नहीं है। जबकि वादी इसे आयकर के दायरे में नहीं बता रहे थे। न्यायालय ने पटना के आयकर विभाग से प्रश्न किया कि “Whether, in the facts and the circumstances of the case, the amount of Rs. 21,274 being the amount paid to the assessee in his character of a Shebait of the Trust properties should have been held to be exempted from taxation on the ground that it is agricultural income ?”इस प्रश्न के जबाब के आधार पर न्यायालय का कहना था कि “The High Court agreed with the Tribunal that the remuneration was received by the appellant under a contract, and it was not agricultural income, merely because the source of the money was agricultural income. The High Court accordingly answered the fifth question ” against the assessee”. कई सारे दृष्टान्त दिए गए और अंत में न्यायालय ने कहा: “In this view, the appeal fails and is dismissed with costs. Appeal dismissed.”

बिहार के राज्यपाल ने बिहार हिन्दू धार्मिक न्यास अधिनियम 1950 की धारा 8(1) (4) के तहत दी हुई शक्तियों का प्रयोग करते हुए दस सदस्यीय राज्य धार्मिक न्यास समिति का गठन इस वर्ष जनबरी के प्रथम सप्ताह में किया। पूर्व विधि सचिव अखिलेश कुमार जैन की अध्यक्षता में गठित बोर्ड में हरिभूषण ठाकुर बचौल (सदस्य बिहार विधान सभा), नीरज  कुमार (सदस्य बिहार विधान परिषद), कालिका दत्त झा (विभागाध्यक्ष, संस्कृत- ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी), विजय गिरी (पुजारी बड़ी पटनदेवी), शुकदेव दास जी (महंत बगही मठ सीतामढ़ी), चंदन कुमार सिंह (देवचौरा अंदर, विष्णुपद मंदिर गया), डॉ रणवीर नंदन (पूर्व सदस्य बिहार विधान परिषद), रत्नेश सादा (सदस्य बिहार विधान सभा),  गणपति त्रिवेदी (सीनियर एडवोकेट पटना हाई कोर्ट) हैं  । न्यास बोर्ड विगत मार्च 2016 से विघटित पड़ा था। राज्य के तमाम हिन्दू धार्मिक न्यास जो सार्वजनिक (पब्लिक) प्रकृति के हैं उन सबों का प्रबंधन व देखरेख राज्य की यही न्यास बोर्ड करती है। बोर्ड का कार्यकाल 5 साल का होता है। जानकारी के अनुसार बिहार सरकार के गृह विभाग ने सभी जिलाधिकारियों को मंदिरों की चारदीवारी कराने का निर्देश दिया है। फिलहाल धार्मिक न्यास बोर्ड में पूरे बिहार में 4500 मंदिर अभी तक निबंधित हैं …….. क्रमशः  

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