दरभंगा के लोगों के लिए खुशखबरी!! ‘दरभंगा रेसिडुअरी इस्टेट” के ट्रस्टीगण ‘बेदख़ल’ हुए, आर्थिक दंड भी (भाग – 35)

कलकत्ता उच्च न्यायालय और उसका कदम

दरभंगा / पटना / दिल्ली : आधुनिक भारत में शारीरिक और मानसिक व्यक्तित्व बनने, बनाने वालों में दो तरह के लोगों की बाढ़ है। एक: शरीर से ‘ज़ीरो फिगर’ बनने वालों की और दूसरे: मन और पेशा से: ‘पब्लिक फिगर’ बनने वालों की। विश्वास नहीं हो तो भारत में सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर उपस्थित भारतीयों की संख्या को देख लीजिये। “वीआरसोशल(डॉट)कॉम के ग्लोबल सोसल ओवरव्यू के आधार पर भारत में तक़रीबन 3.8 बिलियन लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं ताकि अपने-अपने सामाजिक क्रियाकलापों का ब्यौरा लिखते रहें, लोगों को बताते रहे। इसमें सैकड़ों लोग ऐसे भी है जो आधुनिक भारत में विभिन्न पारम्परिक और संस्थागत मीडिया घरानों के मालिक भी हैं, या फिर समयांतराल अपने पूर्वजों द्वारा स्थापित मीडिया घरानों, समाचार पत्रों को बंद कर, जगह-जमीन को बेच-बाच दिए;  वे भी “मुफ्त वाले” सोशल मिडिया पर अपनी उपस्थिति दर्ज किये हैं। बहरहाल, शायद अब तक दरभंगा के लोगबाग, मिथिलांचल के लोगबाग, पटना के लोगबाग, बिहार के लोगबाग और आधुनिक भारत के लोगबाग, जो दरभंगा के अंतिम राजा महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह को, राजा बहादुर विश्वेश्वर सिंह को, उनकी कर्तब्य-परायणता, दानशीलता को जानते हैं, उन्हें सम्मान करते हैं; उन्हें शायद मालूम नहीं होगा कि “दरभंगा रेसिडुअरी इस्टेट के सभी ट्रस्टियों को ”ट्रस्ट के क्रिया-कलापों के साथ कुप्रबन्ध के कारण” न्यायालय उन्हें बेदखल कर दिया है।  न्यायालय ने ट्रस्ट के अब तक के सभी कार्यों की छानबीन करने के लिए तीन-सदस्यीय न्यायमूर्तियों की नियुक्ति भी कर दी है। इतना ही नहीं, दो ट्रस्टियों को न्यायालय ने दंड स्वरुप कुछ लाख रुपये भुगतान करने का भी आदेश दिया। महाराजाधिराज की मृत्यु के बाद शायद यह पहला अवसर है जब ट्रस्टियों को ट्रस्ट के क्रियाकलापों से ‘बेदखल” कर दिया गया हो और उनके कुप्रबन्ध के कारण दंडित भी किया हो। 

इस विषय को शीघ्र ही बहुत विस्तार से लिखेंगे, लेकिन अभी आपको बता दूँ की सूत्रों के अनुसार कलकत्ता उच्च न्यायालय ने महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह की सम्पत्तियों से लाभार्थियों द्वारा दायर एक याचिका पर निर्णय लेते हुए ”दरभंगा राज रेसिडुअरी ट्रस्ट” के क्रियाकलापों में अनियमितता, कुप्रबंध, ट्रस्ट की सम्पत्तियों को औने-पौने मूल्य पर बेचने, महाराजाधिराज और दरभंगा राज की गरिमा को नष्ट करने इत्यादि के कारण ट्रस्ट के ट्रस्टियों – महारानी अहिरानी कामसुन्दरी सहित, राजबहादुर के सबसे छोटे पुत्र (दिवंगत) कुमार शुभेश्वर सिंह के दोनों पुत्रों – राजेश्वर सिंह और कपिलेश्वर सिंह – को दरभंगा राज रेसिडुअरी ट्रस्ट के ट्रस्टीशिप से “बेदखल” कर दिया है। न्यायालय ने ट्रस्टियों पर कई लाख रुपये का आर्थिक दंड भी दंड लगाया है। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने तीन सम्मानित न्यायाधीशों की नियुक्ति भी की है जो दरभंगा राज रेसिडुअरी ट्रस्ट के अब तक के क्रियाकलापों की न केवल जांच करेंगी, बल्कि यह भी निर्धारित करेगी कि दरभंगा राज रेसिडुअरी ट्रस्ट की जितनी भी सम्पत्तियों को अब तक बेचीं गयी है उसमें फेमिली सेटलमेंट के तहर दरभंगा राज परिवार के अन्य लाभार्थियों को हिस्सा मिला है अथवा नहीं। सूत्रों के अनुसार, फैमिली सेटलमेंट लागू होने के बाद महाराजाधिराज द्वारा बनाये गए वसीयत का अस्तित्व “सेट-ए-साइड” हो गया। 

कहा जाता है कि कलकत्ता उच्च न्यायालय के इस फैसले से राजबहादुर विश्वेश्वर सिंह के बड़े और मझले पुत्रों के आज की पीढ़ियों को बहुत राहत मिलने की सम्भावना है। राजबहादुर विश्वेश्वर सिंह के बड़े पुत्र राजकुमार जीवेश्वर सिंह की सातो बेटियां, जिन्हे फैमिली सेंटक्लेमन्ट के बाद ट्रस्ट्स के अधीन अपने पूर्वजों की बिकने वाली किसी भी संपत्ति से कुछ भी आर्थिक हिस्सा नहीं मिला, कलकत्ता उच्च न्यायालय के इस फैसले से और तीन-न्यायमूर्तियों की जांच-पड़ताल के बाद “सकारात्मक हिस्सा” मिलने की सम्भावना है। राजकुमार जीवेश्वर सिंह की सात बेटियां हैं – कृत्यायनी देवी, दिव्यायानी देवी, नेत्रायणी देवी, चेतना देवी, दौपदी देवी, सुनीता देवी और अनीता देवी – जो विवाहोपरांत अपनी-अपनी ससुराल में हैं। जबकि राजबहादुर के मझले बेटे राजकुमार यज्ञेश्वर सिंह के तीन बेटे हुए – रत्नेश्वर सिंह, रश्मेश्वर सिंह और राजेश्वर सिंह। इसमें रश्मेशर सिंह का निधन हो गया। राजबहादुर के सबसे छोटे बेटे दिवंगत कुमार शुभेश्वर सिंह के दो पुत्र हैं – राजेश्वर सिंह (अमेरिका में रहते हैं) और कपिलेश्वर सिंह। ये दोनों भाई महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट के अलावे दरभंगा रेसिडुअरी ट्रस्ट के भी ट्रस्टीज हैं। साथ ही दरभंगा राज के अन्य कई संस्थाओं के भी ट्रस्टीज हैं। दिवंगत जीवेश्वर सिंह की पहली पत्नी दिवंगत राजकिशोरी की दूसरी बेटी दिव्यायानी देवी ने कहा: न्यायालय के इस फैसले से हम बेटियों, बच्चों का भला होने का उम्मीद है। हमें न्यायालय और न्यायमूर्तियों पर पूरा विश्वास है।” आर्यावर्तइण्डियननेशन(डॉट)कॉम दरभंगा राज रेसिडुअरी ट्रस्ट के “बेदखल” ट्रस्टियों में कपिलेश्वर सिंह से संपर्क स्थापित करने की कोशिश किया, लेकिन नाकामयाब रहा। दूसरे ट्रस्टी राजेश्वर सिंह अमेरिका में रखते हैं और 92-वर्षीय महारानी अधिराज टिपण्णी करने की अवस्था में नहीं है। कहा जाता है कि उम्र के इस पड़ाव पर महारानी का प्रतिनिधित्व उनके एक सम्बन्धी करते हैं। जानकारी के अनुसार कलकत्ता न्यायालय द्वारा आर्थिक दंड की माफ़ी के लिए दंडित ट्रस्टीज सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाये, जहाँ उन्हें कुछ माफ़ी भी मिली है। 

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महाराजाधिराज द्वारा नियुक्त ट्रस्टीज जब न्यायालय से गुहार लगाए थे – मुझे कार्य मुक्त करें, मैं अपमान नहीं सह सकता हूँ।

बहरहाल, आपको बता दूँ कि नब्बे के दशक के उत्तरार्ध रेसिडुअरी इस्टेट ऑफ़ महाराजा दरभंगा और महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट के ट्रस्टियों ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय सहित, कलकत्ता उच्च न्यायालय को लिखित याचना देकर न्यायालय से गुहार किए कि उन्हें रेसिडुअरी इस्टेट ऑफ़ महाराजा दरभंगा और चेरिटेबल ट्रस्ट से “कार्यमुक्त” कर दिया जाय । वे सभी ट्रस्टीज महाराजाधिराज द्वारा मरने से पूर्व अपने वसीयतनाम में बनाये थे। अपनी याचना में उन ट्रस्टियों ने न्यायालय से निवेदन किया था कि जीवन के अंतिम वसंत में वे सभी “बेइज्जत” नहीं होना चाहते हैं। चूंकि इस सम्पूर्ण कार्यभार में अनेकानेक लोगों का “निहित स्वार्थ” निहित है, अतः बढ़ती उम्र और ढ़लती स्वास्थ्य के मद्दे नजर वे अपने कार्यों को कर पाने में असहाय हैं, नहीं कर सकते हैं। वे न्यायालय से निवेदन भी किये कि “उन्हें मुक्ति दिया जाय” और सम्पूर्ण कार्य को संपादित करने के लिए न्यायालय एक प्रशासक की नियुक्ति कर दे – याचना है। 

मिथिलाञ्चल अथवा राज दरभंगा के इतिहास में शायद यह पहली घटना थी जब 84-वर्षीय, 72-वर्षीय और 69-वर्षीय वृद्ध न्यायालय का दरवाजा खटखटाकर उससे विनती किया हो कि उन्हें कार्य मुक्त होने का मार्ग प्रशस्त किया जाए, कार्यमुक्त किया जाए । याचिका में लिखा है: “It is submitted that the applicants are being harassed unnecessarily by the various quarters having vested interest. They are also being confronted with various problems. The applicants further submitted that due to their old age, falling health and other difficulties they are not in a position to continue to function as Trustees. It is the sincere desire of the applicants that they may be relieved of the responsibilities of the office of the Trustees of the Residuary Estate of Maharaja of Darbhanga and also of the Charitable Trust.”

दस्तावेज के अनुसार, नब्बे के दशक के उत्तरार्ध कलकत्ता उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति  विशेश्वर नाथ खरे और उनके सहयोगी न्यायमूर्तियों के समक्ष एक याचिका प्रस्तुत किया गया था । यह याचिका सिविल प्रोसेड्यूर कोड के सेक्शन 90 और आदेश 36 के तहत, सन 1963 के प्रोबेट प्रोसीडिंग्स संख्या 18 के तहत, दरभंगा के महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह बहादुर के वसीयत नामा के अधीन नियुक्त ट्रस्टियों के द्वारा इण्डियन ट्रस्ट एक्ट के सेक्शन 34, 37, 39, 60 और 74 के अधीन प्रस्तुत किया गया था । प्रस्तुतकर्ता थे – द्वारका नाथ झा, मदन मोहन मिश्र और कामनाथ झा। ये सभी ट्रस्टी न्यायालय से निवेदन करते हैं कि महाराजाधिराज की मृत्यु 1 अक्टूबर, 1962 को हुई । अपनी मृत्यु से पूर्व वे दिनांक 5 जुलाई, 1961 को एक वसीयत बनाए थे जिसमें लक्ष्मी कांत झा को “सोल एस्क्यूटर” बनाये थे । इसके बाद दिनांक 26 सितम्बर, 1963 उक्त वसीयतनामा को “प्रोबेट” करने का अधिकार लक्ष्मी कांत झा को दिया गया । लक्ष्मी कांत झा उक्त कार्य को सम्पन्न करते हुए 3 मार्च, 1978 को मृत्यु को प्राप्त किये । 

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महाराजाधिराज द्वारा नियुक्त ट्रस्टीज जब न्यायालय से गुहार लगाए थे – मुझे कार्य मुक्त करें, मैं अपमान नहीं सह सकता हूँ।

इन विगत समयों के बीच इन तीन ट्रस्टियों ने न्यायालय द्वारा अनुमोदित / अनुशंसित समय सीमा के अधीन सभी प्रकार के प्रशासनिक कार्य को पूरा करने का भरपूर प्रयास किया था । तथापि ज़मींदारी प्रथा की समाप्ति के बाद बिहार सरकार द्वारा बहुत बड़ी मात्रा में ज़मींदारी कम्पेनसेशन, डेक्रेटल ड्यूज, मालिकाना और उससे सम्बंधित ब्याजों का भुगतान महाराजाधिराज के समय से ही नहीं हुआ था, अतः सम्पूर्ण कार्यों को सम्पादित करने में कुछ और वक्त लग सकता था।याचिका में इस बात को स्पष्ट किया गया कि विभिन्न लोगों के द्वारा, विभिन्न तरीकों से ट्रस्टियों को बेवजह परेशान किया जा रहा है। इसके अलावे वे विभिन्न क्षेत्रों से अनेकानेक परेशानियों का भी सामना कर रहे हैं। याचिकाकर्ताओं ने न्यायालय से अनुरोध की कि ढलती उम्र और गिरती स्वास्थ्य के कारण वे सभी अब इस अवस्था में नहीं हैं की इस पद पर कार्य कर सकें। स्वाभाविक है कि इन ट्रस्टियों ने न्यायालय से अनुरोध किये कि उन्हें रेसिडुअरी इस्टेट ऑफ़ महाराजा दरभनगा और चेरिटेबल ट्रस्ट के ट्रस्टी के पदों से मुक्त कर दिया जाय। यह भी कहा गया कि याचिका कर्ताओं ने न्यायालय द्वारा अनुशंसित सभी कार्यों के बहुत ही दक्षता के साथ, साथ ही जितनी भी बाकी-बकियौता था, उनमे अधिकांश को पूरा कर दिए हैं। 

याचिका दायर करने के दिन द्वारकानाथ झा की आयु 72 वर्ष थी, जबकि मदन मोहन मिश्र और कामनाथ झा क्रमशः 84 और 69 वर्ष के थे। याचिका में इस बात का उल्लेख किया गया कि द्वारकानाथ झा एक बार ह्रदय रोग से पीड़ित हो चुके हैं। साथ ही, मदन मोहन झा भी शरीर से अधिक अस्वस्थ रहते हैं और प्रबंधन का कार्य नियमित रूप से नहीं कर सकते हैं। जहाँ तक कि उनकी शारीरिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वे याचिका पर अपना हस्ताक्षर भी कर सकें । द्वारकानाथ झा दरभंगा इस्टेट को विगत 30 वर्ष से देख-रेख कर रहे हैं। अतः, सभी ट्रस्टियों ने यह निर्णय लिए की रेसिडुअरी इस्टेट ऑफ़ महाराजा दरभंगा और चेरिटेबल ट्रस्ट का कार्यभार न्यायालय द्वारा नियुक्त “प्रशासक” को सौंप दिया जाय। वैसे भारत का सर्वोच्च न्यायालय इन सभी ट्रस्टियों को सम्पूर्णता के साथ अधिकार दिए थे जिससे रेसिडुअरी इस्टेट ऑफ़ महाराजा दरभंगा और चेरिटेबल ट्रस्ट का कार्य सुचारु रूप से चले। फिर भी सलाह के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय में तो आवेदन किया ही गया है।  सर्वोच्च न्यायालय ने ही यह आदेश दिया की आवेदन की एक प्रति कलकत्ता उच्च न्यायालय में भी पेश कर दिया जा। 

महाराजाधिराज द्वारा नियुक्त ट्रस्टीज जब न्यायालय से गुहार लगाए थे – मुझे कार्य मुक्त करें, मैं अपमान नहीं सह सकता हूँ।

अतः उपरोक्त स्थितियों के मद्दे नजर आवेदकों को रेसिडुअरी इस्टेट ऑफ़ महाराजा दरभंगा और चेरिटेबल ट्रस्ट के ट्रस्टी पदों से मुक्त किया जाए, साथ ही, न्यायालय द्वारा नियुक्त “प्रशासक” शेयरों को उक्त रेसिडुअरी इस्टेट के लाभान्वितों के बीच वितरित करने का अधिकार दिया जाय जिसे महाराजा छोड़कर गए हैं। याचिका पर द्वारकानाथ झा और कामनाथ झा का हस्ताक्षर है। जबकि मदन मोहन झा हस्ताक्षर नहीं कर सके। नब्बे के दशक के उत्तरार्ध और 2021 के प्रारंभिक दशक में समय में आसमान-जमीन पर परिवर्तन हुआ है। परिवर्तन होना भी स्वाभाविक है क्योंकि जो उस समय नाबालिग थे, अठ्ठारह वर्ष की आयु को नहीं प्राप्त किये थे, आज न्यूनतम 48 वर्ष के होंगे। जो उस दिन सम्प्पति शब्द से वाकिफ नहीं थे, आज अपने दाँतों के जबड़ों से पकड़कर रखना चाहते हैं। इतनी बड़ी संपत्ति तो शायद आने वाली दस पुस्त भी “मेहनत कर अर्जित नहीं कर सकती है” – सुनने में, पढ़ने में कष्टकारक है, कर्णप्रिय नहीं है – लेकिन सत्य तो यही है। यह बात रेसिडुअरी इस्टेट ऑफ़ महाराजा दरभंगा और चेरिटेबल ट्रस्ट के सभी लाभार्थियों पर लागू है।

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बहरहाल, जितने ही ‘सन्देहास्पद’ स्थिति में दरभंगा के महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह का निधन हुआ, जितने ही आनन्-फानन में इनका दाह-संस्कार उनकी दोनों महारानियों की उपस्थिति में कर दिया गया, महाराजाधिराज की मृत्यु के बाद जितनी ही तेजी से दरभंगा राज का पतन हुआ –  यह आने वाले समय में देश के अन्वेषण-शोधकर्ता के लिए शोध का एक विषय होगा। बहरहाल, वैसे दरभंगा राज के अंदर का एक खास वर्ष दरभंगा राज की, महारानियों की, चेरिटेबल ट्रस्ट की विशालकाय भूखंडों, उपेक्षित भवनों पर जो समयांतराल अपना अस्तित्व समाप्त कर रहा है, पर गिद्ध जैसी निगाहें लगाए बैठे हैं। इतना ही नहीं, इन वर्षों में विभिन्न राजनीतिक दलों, नेताओं द्वारा पोषित, संरक्षित भू-माफिया, बड़े-बड़े भवन निर्माता भी अपनी पलकों को झुकने नहीं दे रहे हैं। क्या पता पलक झपकते ही कोई और मालामाल हो जाए, भूखंड और महलों पर अपना-अपना अधिपत्य जमा ले। क्योंकि विगत वर्षों से जिस कदर महाराजाधिराज की सम्पत्तियों का हश्र हो रहा है, कल तक जो उस ईंट के तरफ देखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे, आज दरभंगा राज के लाभार्थियों के साथ उनके ही बैठकी में कुर्सी और सोफे पर पालथी मारकर सौदा कर रहे हैं, भोजन-कक्ष और शराब पीने के स्थान पर “चखना” लेकर पहुँच रहे हैं ताकि सम्पत्तियों का “डील” हो सके।  

महाराजाधिराज अपनी मृत्यु के बाद भी, दरभंगा ही नहीं, भारत के विभिन्न शहरों में जितनी सम्पत्तियाँ छोड़ गए थे, उन सम्पत्तियों के सहारे भारत के बराबर भौगोलिक क्षेत्रफल का एक और देश जोड़कर भारत को बृहत्-भारत बनाया जा सकता था। स्वतन्त्र भारत में सरकार की मदद से देश में आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक, मानवीय क्रांतियाँ लायी जा सकती थी, जिससे देश के लोगों का अत्यधिक भलाई हो सकता था – लेकिन ऐसा नहीं हुआ और जो हुआ, साथ ही, जो हो रहा है, वह मिथिलाञ्चल ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण भारत-राष्ट्र के लोगों के लिए एक “दुःखद” प्रकरण हैं। 

ज्ञातब्य हो कि अपनी मृत्यु से पूर्व 5 जुलाई 1961 को कोलकाता में उन्होंने अपनी अंतिम वसीयत की थी। कोलकाता उच्च न्यायालय द्वारा वसीयत सितम्बर 1963 को प्रोबेट हुई और पं. लक्ष्मी कान्त झा, अधिवक्ता, माननीय उच्चतम न्यायालय, वसीयत के एकमात्र एक्सकुटर बने और एक्सेकुटर के सचिव बने पंडित द्वारिकानाथ झा । वसियत के अनुसार दोनों महारानी के जिन्दा रहने तक संपत्ति का देखभाल ट्रस्ट के अधीन रहेगा और दोनों महारानी के स्वर्गवाशी होने के बाद संपत्ति को तीन हिस्सा में बाँटने जिसमे एक हिस्सा दरभंगा के जनता के कल्याणार्थ देने और शेष हिस्सा महाराज के छोटे भाई राजबहादुर विशेश्वर सिंह जो स्वर्गवाशी हो चुके थे के पुत्र राजकुमार जीवेश्वर सिंह , राजकुमार यजनेश्वर सिंह और राजकुमार शुभेश्वर सिंह के अपने ब्राह्मण पत्नी से उत्पन्न संतानों के बीच वितरित किया जाने का प्रावधान था । 

आज, दरभंगा राज रेसिडुअरी ट्रस्ट या महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह के नाम पर बने लगभग सभी ट्रस्टों की स्थिति बहुत बेहतर नहीं है ……क्रमशः 

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