‘कामेश्वरी प्रिया पुअर होम’ पर कब्ज़ा करना चाहता थे ‘दरभंगा के कुछ संभ्रांत लोग’ , 300 करोड़ रुपये की संपत्ति है, निबंधन रद्द, समिति के दर्जनों सदस्य पर ‘प्रतिबन्ध’ (भाग-49)

तीन सौ करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति है दरभंगा का कामेश्वरी प्रिया पुअर होम। इतनी बड़ी राशि को देखकर तो "संभ्रांत" षड्यंत्र रचेंगे, क्योंकि यह तो गरीब-गुरबा के कल्याण के लिए ही तो महाराजा बनाये थे

दरभंगा / नई दिल्ली: कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश तर्ज पर विगत दिनों पटना उच्च न्यायालय दरभंगा के अंतिम राजा महाराज अधिराज डॉ सर कामेश्वर सिंह द्वारा अपनी पत्नी के सम्मानार्थ स्थापित कामेश्वरी प्रिया पुअर होम की समिति, जिसमें कपिलेश्वर सिंह भी एक सदस्य हैं, के कुप्रबंधन, अनियमितता और सदस्यों की ‘नियत’ को मद्दे नज़र संस्था का  80-वर्ष पुराना निबंधन को भी रद्द कर दिया है। न्यायालय ने संस्था की देखरेख करने वाला “तथाकथित” गठित समिति को वित्तीय अधिकारों से वंचित कर किसी भी सदस्यों को कामेश्वरी प्रिया पुअर होम परिसर में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया है। 

दरभंगा के आयुक्त को अधिकृत करते पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने कहा है कि वे कामेश्वरी प्रिया पुअर होम की अनियमिताओं का सम्पूर्णता के साथ जांच कर इसे बेहतरीन तरीके से सम्पुष्टित करें ताकि महाराज अधिराज द्वारा जिस उद्देश्य से इस पुअर होम की स्थापना की गयी, अपने उद्देश्य को प्राप्त करें। न्यायलय ने यह भी कहा है कि इस पुअर होम को आर्थिक रूप से सुदृढ़ रखने के लिए, महाराज अधिराज ने दरभंगा स्थित हराही बाजार में जिन 80 व्यावसायिक परिसरों (दूकानों) की स्थापना किये थे, उन सभी दुकानों  का किराया वर्तमान बज़्ज़ार मूल्य के आधार पर निर्धारित किया जा।  इतना ही नहीं, इस परिसर अथवा बाजार क्षेत्र में जितने भी अनधिकृत रूप से अतिक्रमण किया गया है, लोग रहने लगे हैं, उन्हें तत्काल हटाकर सम्पूर्ण इलाके को स्वच्छ और सुन्दर बनाया जाय। आयुक्त के कार्यालय से न्यायालय द्वारा निर्गत सभी आदेशों को अक्षरसः पालन करने का प्रयास किया जा रहा है ताकि समय पर न्यायालय को स्थिति से पुनः अवगत कराया जा सके। 

शहर के गरीब, गुरबों, आर्थिक रूप से कमजोर, अशिक्षित, निरीह लोगों का कहना है कि प्रदेश को मिथिला विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर जय शंकर झा जैसे लोगों की जरुरत है। पहले बिहार मानवाधिकार आयोग और फिर पटना उच्च न्यायालय का आदेश कभी नहीं आता यदि प्रोफेसर झा दरभंगा के अंतिम राजा की सम्पत्ति और सम्पत्ति के उदयेश्य को बचाने के लिए, उस पर शहर के संभ्रांतों द्वारा अधिपत्य ज़माने को रोकने के लिए, महाराज की संपत्ति का नामों निशान मिटाने से बचने के लिए आगे नहीं आये होते, कृतसंकल्पित नहीं हुए होते। आश्चर्य तो यह है कि इस सम्पूर्ण प्रकरण में – कामेश्वरी प्रिया पुअर होम – के नए ‘अनधिकृत समिति’ के निर्माण में महाराजा के अनुज राजा बहादुर विश्वेश्वर सिंह के सबसे छोटे पुत्र कुमार शुभेश्वर सिंह के छोटे पुत्र कपिलेश्वर सिंह का भी नाम आता है। 

प्रोफ़ेसर जय शंकर झा जिन्होंने कोई कसार नहीं छोड़ा अनाथ और बेजुबानों को न्याय दिलाने में।

ज्ञातव्य हो कि इस साल के प्रारंभिक महीनों में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने दरभंगा राज रेसिडुअरी इस्टेट के वर्तमान प्रबंध समिति को भंग कर दिया । प्रबंध समिति के सभी सदस्यों के समस्त अधिकार को ‘समाप्त’ कर दिया । साथ ही, दरभंगा रेसिडुअरी राज इस्टेट के बैंक अकाउंट को ‘जब्त’ कर लिया है और प्रबंधन समिति के एक सदस्य पर दस लाख का जुर्माना भी किया है। कलकत्ता उच्च न्यायालय का यह निर्णय एक याचिका के परिणामस्वरूप आया जिसमें दरभंगा राज रेसिडुअरी ट्रस्ट के क्रियाकलापों में अनियमितता, कुप्रबंध, ट्रस्ट की सम्पत्तियों को औने-पौने मूल्य पर बेचने, महाराजाधिराज और दरभंगा राज की गरिमा को नष्ट करने इत्यादि का आरोप था। इतना ही नहीं, कलकत्ता उच्च न्यायालय ने ट्रस्ट के ट्रस्टियों (प्रबंध समिति के सदस्य) – महारानी कामसुंदरी सहित, दिवंगत कुमार शुभेश्वर सिंह के दोनों पुत्रों – राजेश्वर सिंह और कपिलेश्वर सिंह – को दरभंगा राज रेसिडुअरी ट्रस्ट के ट्रस्टीशिप / प्रबंध समिति की सदस्यता से “बेदखल” भी कर दिया । साथ ही, न्यायालय ने तीन पूर्व न्यायमूर्तियों को “संयुक्त विशेष अधिकारी” के रूप में नियुक्त भी किया । ये संयुक्त विशेष अधिकारी दरभंगा राज रेसिडुअरी  ट्रस्ट के पिछले दस वर्षों के सभी कार्यों की छानबीन करेंगे। न्यायालय ने इन तीन संयुक्त स्पेशल अधिकारियों से निवेदन किया है कि वे किसी उच्च श्रेणी के चार्टड अकाउंटेंट अथवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के फईम को नियुक्त कर विगत दस वर्षों का लेखा-जोखा की जांच कराई जाय। इस कार्य को निष्पादित करने में यदि आवश्यकता हो तो वे स्थानीय पुलिस की भी मदद ले सकते हैं। स्थानीय पुलिस अधीक्षक, जिसके क्षेत्राधिकार में यह इस्टेट आता है, से निवेदन है कि वे संयुक्त विशेष अधिकारियों को कार्य निष्पादन करने में मदद करें। 

पटना उच्च न्यायालय का आदेश

आम तौर पर भारत के मानवाधिकार आयोग को “दंतहीन” माना जाता है क्योंकि राज्य सरकारों के लिए  मानवाधिकार आयोग की अनुशंसा “मान्य” और “बाध्यकारी” नहीं होता है। लेकिन कामेश्वरीप्रिया पुअर होम के मामले में दायर शिकायत की जांच और फिर मानवाधिकार आयोग की अनुंशसा, दरभंगास्थित गरीबों के हक़ पर अपना मालिकाना ज़माने वाले समाज के संभ्रांतों को एक सबक भीसिखाया। इसका परिणाम यह हुआ कि दरभंगा शहर के कुछ “संभ्रांतों” का नाम इस अस्सी-वर्षीय पुअर होम के “तथाकथित उद्धारकों” में देखकर; साथ ही, उस संस्था केउद्देश्यों में तमाम “आधुनिक उद्देश्यों” को पंक्तिबद्ध  देखकर,पटना उच्च न्यायालय के न्यायधीश न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह को यह अंदाज लगगया कि “सब कुछ ठीक नहीं है यहाँ” और तत्काल प्रभाव से उस संस्था को”बर्खास्त” कर, उसके प्रतिनिधियों को उस “पुअर होम” के प्रांगणमें प्रवेश पर निषेध लगा दिया। इतना ही नहीं, दरभंगा के आयुक्त को सम्पूर्णक्रिया-कलापों की देखरेख करने, गरीब-गृह के स्वास्थ को दुरुस्त कर, दरभंगा कीसड़कों पर भीख मांगकर अपना जीवन यापन करने वाले निःसहाय, निरीह, कमजोर, समाज केदबे-कुचले अवलाओं आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक न्याय दिलाने का जबाबदेही भी सौंपा। महाराज अधिराज डॉ सर कामेश्वर सिंह अपने “प्रिय”परन्तु “मृत” पत्नी के सम्मानार्थ कामेश्वरी प्रिया पुअर होम की स्थापनासन 1942 में किये थे।
 
स्थानीय लोगों का मानना है कि महाराज द्वारा स्थापित यह”पुअर होम” की भूमि आज के व्यावसायिक समय में, खासकर जहाँ यह ‘पुअर होम’ स्थित है और जहाँ इसकी आर्थिक रीढ़ की हड्डी को जीवन-पर्यन्तमहबूत रखने के लिए हराही पोखर के समीप कुल 80 दूकानों को बनबाया गया था; न्यूनतम 300-करोड़ की संपत्ति हैं। इसलिए “शहर के संभ्रांतोंका चींटी की तरह इस ओर आकर्षित होना” भी स्वाभाविक है। लेकिन तकलीफ इस बात कीहै कि कुमार शुभेश्वर सिंह के छोटे पुत्रकपिलेश्वर सिंह भी उस “संदेहास्पद समिति” के एक सदस्य थे। पटनाउच्च न्यायालय  सभी सदस्यों को उस पुअर होम की ओर उन्मुख होने पर”प्रतिबन्ध” लगा दिया है।  
 

पटना उच्च न्यायालय का आदेश -2

कामेश्वरी प्रिया पुअर होम की स्थापना दरभंगा के तत्कालीन महाराजा सर कामेश्वर सिंह ने अपनी चहेती पत्नीकी याद और सम्मान में, उनकी इच्छाओं को पूरा करने के लिए जनवरी 1942 में सोसायटी पंजीकरण अधिनियम के तहत पंजीकृत एक सोसायटी के रूप मेंकिये थे। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य  समाज के निराश्रितव्यक्तियों, भिखारियों, परित्यक्त बच्चों, विधवाओं, विकलांगों, वृद्धों के नैतिक – भौतिक – सामाजिक और आर्थिक उत्थान को पुनः प्राप्त करने  के लिए किया गया था।  महाराज की इक्षा थी की इस संस्था के माध्यम से सामाजिक और मानवीय सेवाओं द्वारा बीमार, दुर्बल और पीड़ित व्यक्तियों को मानवीयदृष्टि से सेवा किया जाए, उन्हें आश्रय प्रदान किया जाए। महाराज यह भी सोचे थे कि समाय केऐसे निरीह और उपेक्षित व्यक्तियों को आजीविका के साधन के लिए भी मदद होनी चाहिए ताकि वे कभी भी दानपर निर्भर न रहें, परिवार पर बोझ बने रहें और एक सामान्य स्वास्थ्य के साथ सम्मानित जीवन जी सकें। 

ये भी पढ़े   दरभंगा राज का पतन का मूल कारण तत्कालीन परिवार की महिलाओं, बच्चों का 'मनोवैज्ञानिक उपेक्षा' था, परिणाम सामने है (भाग-23) 

महाराज यह भी चाहते थे कि पुअर होम में रहने वाले निवासियों को  सामान्य रूप व्यावसायिक या तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था करना, जिससे वे अपने पैर पर खड़े हो सकें। इस कार्य के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा। इसमें स्वतंत्र अथवा अन्यधर्मार्थ लोगों, समूहों से भी मददलेने की बात की गयी थी ।  यदि देखा जाए तो महाराज की असीम इक्षा थी की समाज में एक  ऐसे  जनमत तैयार किया जाए, उन्हें शिक्षित किया जाए ताकि समाज में पेशेवर भिखमंगे नहीं रहें।उनकी यह भी कोशिश थी की आम तौर पर  भिखारियोंके साथ पाए जाने वाले बच्चों को उचित शिक्षा और प्रशिक्षण केबाद उन्हें समाज में बसाया जा सकता है ताकि बड़े होने पर उनके लिए उपयुक्त रोजगार मिल सके । और यही कारण है कि महाराजा ने इस कार्य के लिए ‘डैनबी ब्लॉक’ नामक भवन के निर्माण के लिए धन भी दान किया और गरीबघर को आत्मनिर्भर बनाने के लिए 80 दुकानों का निर्माण किया। जिसे हराही मार्केट के नाम सेजाना जाता है। इन दुकानों से मिलने वाला किराया का उपयोगकैदियों के कल्याण और गरीब घर के रखरखाव के लिए किया जा सकता है।
 

पटना उच्च न्यायालय का आदेश -3

तभी तो पटना उच्च न्यायालय केन्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह अपने 9-पृष्ठ के आदेश में लिखा है:”The Court deems it expedient to indicate that it has passed theorder in the special facts and circumstances of the present case, for securingthe ends of justice and in the overall interest of the deprived sections of thesociety at large, being persuaded by the following finding in the orderimpugned of the Commission dated 22.10.2013: “The distant historyof the Poor Home as to the time the poor and the destitutes lived in thePoor Home is not clear. But this much is clear- and more or less admitted- thatnot a single destitute or beggar etc. has lived in the premises of the PoorHome in the last few decades or is living at present. The Poor Home/Society wasto be managed by a Committee, and how the person- presently managing the PoorHome‟ came in control of its affairs is also not quite clear. It ishowever apparent that a group of persons has taken control of the Poor Home fortheir personal gains-in total disregard of the aims and objectives for whichthe Poor Home was founded.”
 
न्यायालय आगे लिखता है:”In the course of hearing the management of the Poor Home produceddocuments to show that it has been functioning in accordance with law andreturns are being filed as per law. On behalf of the applicants/complainants onthe other hand, it was stated that the documents are sham; the fact is that thepresent managing committee did not hold any Annual General Meeting between 1979and 2010. On behalf of the Darbhanga Raj, it was submitted that the PoorHome was set up as a स ociety‟ but it was illegallyconverted into a “trust‟ and the status of themanaging committee itself is questionable.”  
 

पटना उच्च न्यायालय का आदेश -4

ज्ञातव्य हो कि प्रमंडलीय आयुक्तने पूअर होम के पूर्व के प्रबंधन के 105 पृष्ठ के जाँच रिपोर्ट के आधार कुप्रबंधन ,अनियमितता को देखतें हुए राष्ट्रीय महत्व की इस संस्था का “डिरजिस्ट्रेशन” की अनुशंसा निबंधन बिभाग, बिहार सरकार में की और परिणाम स्वरुप इसका निबंधन समाप्त कर दिया गया। साथ ही, पूर्व के प्रबंधन के सभी वित्तीय अधिकार ले लिए गए। अब पूर्व के प्रबंधन के लोगों को झंडोत्तोलन आदि कार्यों यहाँ तक परिसर में आनें – जानें पर रोक लगा दी गई है। साथ ही, प्रशासन ने पुअर होम के के निमित्त हराही टेरेस मार्केट  का बाजार मूल्य से किराया पुनर्निर्धारण हेतु आयुक्त द्वारा लंबे अरसे पहले अनुमंडलाधिकारीरी को अधिकृत किया गया । किराया का पुनर्निधारण का कार्य हो गया। साथ ही, पूअर होम परिसर एवं हराही टेरेस मार्केट में रह रहे  अनाधिकृत लोगों को पत्र के माध्यम से चेतावनी भी दी गयी है कि वे तत्काल प्रभाव से अतिक्रमण को खली कर दें। स्थानीय लोगों का कहनाहै कि हाईकोर्ट के न्यायादेश एवं मानवाधिकार आयोग के निर्देश के आलोक में अनाथों के पुनर्वास पर शीघ्र कार्य जाय।  इतना ही नहीं, प्रमंडलीय आयुक्त के जाँच रिपोर्ट के आधार पर पूर्व के दोषी पाए गए प्रबंधन पर अभी तक दंडात्मक कारवाई हो।   
 
मानवाधिकार आयोग केबारे में न्यायालय ने कहा: Having considered the rival submissions, this Court is of the considered opinion that the contention of the learned counsel for the petitioner, to the extent that the Commission has no power to constitute a committee of a Society, is sustainable. The power ofthe Commission is enumerated in Section 12 of the H.R. Act, which reads asunder: The Commission shall perform all or any of the following functions, namely:- (a) inquire, suo motu or on a petition presented to it by a victim or any person on his behalf or on a direction or order of any Court, into complaint of (i) violation of human rights or abetment thereof; or (ii) negligence in the prevention of such violation by a public servant; (b) intervene in any proceeding involving any allegation of violation of human rights pending before a Court with the approval of such Court; (c) visit, notwithstanding anything contained in any other law for the time being in force, any jail or other institution under the control of the StateGovernment, where persons are detained or lodged for purposes of treatment, reformation or protection, for the study of the living conditions of the inmates thereof and make recommendations thereon to the Government. (d) review the safeguards provided by or under the Constitution or any law for the time being in force for the protection of human rights and recommend measures for their effective implementation; (e) review the factors, including acts of terrorism, that inhibit the enjoyment of human rights and recommend appropriate remedial measures; (f) study treaties and other international instruments on human rights and make recommendations for their effective implementation;
(g) undertake and promote research in the field of human rights; (h) spread human rights literacy among various sections of society and promote awareness of the safeguards available for the protection of these rights through publications, the media, seminars and other available means;
(i) encourage the efforts of non-governmental organizations and institutions working in the field of human rights; (j) such other functions as it may consider necessary for the promotion of human rights. Thus, it is clear that theCommission has only the power to inquire and thereafter make recommendations tothe Government. That being the position, the portion of the order dated22.10.2013 of the Commission passed in File No. BHRC/COMP. 374/13, constitutingthe Committee, stands set aside.”

ये भी पढ़े   दुःखद : जो सीएमडी कक्ष से 100 कदम दूर जूता खोलते थे, करारनामे पर "प्रबंधन" हो गए (भाग - 2) 
पटना उच्च न्यायालय का आदेश -5

ज्ञातव्य हो कि सं 2013 में बिहार मानवाधिकार आयोग के सामने प्रस्तुत शिकायत की सुनवाई करते आयोग अपने आदेश की प्रतिलिपि आर के रॉय, आईएएस(सेवानिवृत्त) बलभद्रपुर, लहरियासराय, दरभंगा, (ii) प्रबंधक, राज दरभंगा महाराज, कार्यालय कामेश्वर नगर दरभंगा, (iii) निदेशक / प्रबंधक, कामेश्वर प्रिया गरीब गृह, दरभंगा, (iv) सचिव, समाज कल्याण विभाग, बिहार सरकार, और (v) जिला मजिस्ट्रेट, दरभंगा को प्रेषित करते कहा था कि : “समिति अपने में से एक संयोजक का चयन करेगी और ऐसे कदम उठाएगी जो गरीब घर के उद्देश्यों की पूर्ति और उसके उचित प्रबंधन के लिए आवश्यक और सहायक हों। दरभंगा जिला प्रशासन और समाज कल्याण विभाग, बिहार सरकार सभी सहयोग प्रदान करेगी और गरीब गृह के उद्देश्यों की पूर्ति और प्रबंधन के लिए आवश्यक कदम भी उठाएगी।”

वैसे, “शक के दायरे में तो समिति मानवाधिकार आयोग के समक्ष” आ गयी थी जब उसने महाराज अधिराज डॉ सर कामेश्वर सिंह द्वारा स्थापित करते समय जिन उद्देश्यों का उल्लेख किया गया था, उन उद्देश्यों से भटक कर समिति अनेकानेक  ऐसी उद्देश्य भी अंकित कर दिए थे जो सन चालीस के दशक में भारतीय राजनीतिक, आर्थिक, स्वास्थ्य, शिक्षण या विकास सेसम्बंधित अन्य विषयों के मानचित्रों पर अभ्युदय भी नहीं हुआ था। शायद समिति केसदस्य इस बात को भूल गए थे की उस समय देश गुलाम था। मानवाधिकार आयोग के न्यायमूर्ती एस एन झा ने 20 से अधिक लोगों की बातें सुने। न्यायमूर्ति इस बात पर भी विचार किये थे कि कैसे यह परिसर समाज के दबे-कुचले निराश्रित व्यक्तियों, भिखारियों, परित्यक्त बच्चों, विधवाओं, विकलांगों, वृद्धों, बीमार और दुर्बल व्यक्तियों को समाज की मुख्यधारा में जोड़ सकता है। क्योंकि पुअर होम के की तत्कालीन समिति के बारे में सिद्धेश्वरीप्रसाद सिंह के कहा था कि: “A a committee is already in existence and looking after the affairs of the Poor Home. As of now, the management by the present managing committee is shrouded in secrecy, and there is total lack of transparency. The Commission is of the view that the committee should be broad based consisting of different sections of the society and things should be done in a transparent manner. Having given due consideration to the matter theCommission hereby constitutes a committee consisting of:- Kumar Kapileshwar Singh, Arun Kumar Kuerji, Vinod Kumar (Journalist-  representing Darbhanga Raj), Dr. Raman Kumar Verma, Dr.Manzar Suleiman, K.K. Mishra (Retired BankManager – representing the present management of Kameshwari PriyaPoor Home), R.K. Roy, IAS (Retd.), Dr. (Smt.) Abha Jha, Dr. AnjuAgarwal (representing the applicants), Deputy Development Commissioner, Darbhanga and Mayor, Darbhanga (Ex-officio Members).

ये भी पढ़े   क्या 'आर्यावर्त-इण्डियन नेशन' अख़बार बंद होने से दरभंगा राज परिवार को अधिक नुकसान हुआ? (भाग-20)  

पटना उच्च न्यायालय का आदेश -6

 
पटना उच्च न्यायालय ने भी मानवाधिकार आयोग की बात को स्वीकारा और कहा: However, the Court, under its prerogative writ jurisdiction underArticle 226 of the Constitution of India, having been made aware of the groundrealities, cannot shut its eyes to such position. The fact, which cannot be denied, is that the Society was set up for the object to do social and humanitarian services.  
 
आयोग ने स्वीकारा था था कि बहुत ऊँची सोच थी महाराज अधिराज का। लेकिन आयोग ने कहा कि “पुअर होम का इतिहास यानी गरीब और बेसहारा यहाँ रहते थे, स्पष्ट नहीं है। लेकिन इतना स्पष्ट है और कमोबेश स्वीकार किया जाता है कि पिछले कुछ दशकों में एक भी बेसहारा या भिखारी आदि इस पुअर होम के परिसर में नहीं रहा है या वर्तमान में रह रहा है। पुअर होम को समाज के एक समिति द्वारा प्रबंधित किया जाना था।  लेकिन इतना स्पष्ट है कि व्यक्तियों के एक समूह ने अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए पुअरहोम पर नियंत्रण कर लिया है – उन लक्ष्यों और उद्देश्यों की पूर्ण अवहेलना मेंजिनके लिए गरीब घर की स्थापना की गई थी। बस क्या था – इतना ही काफी था पटना उच्च न्यायालय के लिए।
 
इंटरनेट पर जब लिखा देखा “The Kameshwari Priya Poor Home is a non-governmental organization established in 1942. The registration number of the organization is: 24/1941-42 (16-01-1942).The organization is operational in Bihar, India. The Kameshwari Priya Poor Home works in the area of Aged and elderly, Art & Culture, Children, DalitWelfare, Disaster Management, Education & Literacy, Health & Nutrition,HIV/AIDS, Micro Finance (SHGs), Panchayati Raj, Rural Development & PovertyAlleviation, Science & Technology, Urban Development & PovertyAlleviation, Vocational Training, Womens Development & Empowerment, YouthAffairs, etc. The NGO works towards the promotion of sustainable development”, मन में उथल-पुथल होने लगा। सोचने लगा सं 1942 में जब इस संस्था का निर्माण हुआ होगा उस समय “HIV/AIDS, Micro Finance (SHGs), Panchayati Raj, Rural Development& Poverty Alleviation, Science & Technology, Urban Development &Poverty Alleviation, Vocational Training, Women’s Development &Empowerment, Youth Affairs,” शब्द भारत के राजनीतिक, आर्थिक,  सामाजिक, सांस्कृतिक, स्वास्थ्य आदि शब्दकोशों में जन्म नहीं लिया होगा। वजह  भी  था – देश अंग्रेजी हुकूमत के अधीन था और जनवरी में महीने में भारत में अंग्रेजों को भगाने के लिए लोगबाग “गोलबंद” हो रहे थे क्योंकि तभी सं 1942 के 9 अगस्त  को “अंग्रेज भारत छोड़ो” का नारा बुलंद हो पाया।
  
पटना उच्च न्यायालय का आदेश -7

बिहार के एक वरिष्ठ पत्रकार सुजीत झा ने लिखा भी:”एक समय में देश का सबसे बड़ा अनाथालय आज खुद अनाथ हो गया। आलम ये है कि अनाथालय अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। कोई इसके आंसू पोंछने वाला नहीं है दरभंगा  के  जिस  श्री  कामेश्वरी  प्रिया पुअर होम से ना जाने कितने अनाथ बच्चे अच्छी परवरिश के कारण अपने पैरों पर खड़े हो गए। लेकिन वही श्री कामेश्वरी प्रिया पुअर होम आज गंदी राजनीति का शिकार हो गया है। बिहार  मानवाधिकार  आयोग  के  आदेश  के  बावजूद  इस  अनाथालय  में अनाथ बच्चों को न रख के निजी अस्पताल चलाया जा रहा है। दरभंगा के जिलाधिकारी भी इस मामले में चुप बैठे हैं। आयोग ने दरभंगा के जिलाधिकारी को स्पष्ट आदेश दिया है कि अविलंब अनाथालय शुरू करवाया जाए। दरभंगा  महाराज  ने  अपनी पत्नी श्री कामेश्वरी प्रिया के असामायिक निधन के बाद अनाथालय बनाने का फैसला लिया था। दो साल बाद 1942 में इस अनाथालय की विधिवत शुरुआत हुई। इस  अनाथालय  को  दरभंगा  के  दिल  में  5  एकड़  जमीन  पर  बड़े  ही  सुसज्जित  ढंग से बनाया गया। दरभंगा महाराज की दिली ख्वाहिश थी कि जिन बच्चों की देख-रेख करने वाला कोई नहीं उसको इस अनाथालय में अच्छी परवरिश मिले। वह आगे चलकर अपने पैरों पर खड़ा हो सके। दरभंगा महाराज  के  जीवन  काल  में श्री कामेश्वरी प्रिया पुअर होम से सैंकड़ों बच्चों ने परवरिश पाई और जीवन में एक नया मुकाम पाया।
 

पटना उच्च न्यायालय का आदेश -8

दरभंगा महाराज सर कामेश्वर सिंह के निधन के बाद से इस अनाथालय पर ऐसे लोगों का कब्जा हो गया जिसने दरभंगा महाराज के अरमानों पर पानी फेर दिया। श्री कामेश्वरी प्रिया पुअर होम स्वार्थी लोगों का शिकार हो गया। परिणाम ये हुआ कि वर्षों से यह अनाथालय खुद ही अनाथ हो गया। अनाथों के पोषण हेतु दरभंगा रेलवे स्टेशन के पास बनीं 80 दुकानों से जो किराया मिल रहा है उससे अनाथों की सेवा नहीं बल्कि अनाथों को पुनर्वास करने हेतु किए जा रहे प्रयासों को  विफल  करने  में  किया  जा रहा है।  श्री कामेश्वरी प्रिया पुअर होम की सच्चाई ये है कि 1978 के बाद से इसमें एक भी अनाथ को प्रबंधन द्वारा नहीं रखा गया। इस बीच श्री कामेश्वरी प्रिया पुअर होम के बदहाल हालत में सुधार लाने के उद्देश्य से मानव सेवा समिति नाम की संस्था आगे आई।मानव सेवा समिति के संस्थापक डॉ. जटाशंकर झा और सेवानिवृत आईएएस अधिकारी आर के  राय  ने  बिहार  मानवाधिकार  आयोग  का  दरवाजा  खटखटाया  बिहार  मानवाधिकार  आयोग  से  मानव  सेवा समिति  ने श्री कामेश्वरी प्रिया पुअर होम को बदहाली से उबारने की दर्खास्त की इस आवेदन को बिहार मानवाधिकार आयोग ने गंभीरता से लिया बिहार मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति एसएन झा ने 17 फरवरी 2013 को श्री कामेश्वरी प्रिया पुअर होम का निरीक्षणकिया ऐतिहासिक जन सुनवाई भी की और एक ऐतिहासिक फैसला भी सुनाया लेकिन श्री कामेश्वरी प्रिया पुअर होम प्रबंध समिति, मानवाधिकार आयोग के इस फैसले का जमकर उल्लंघन कर रहे हैं।

पटना उच्च न्यायालय का आदेश -9

 
आर्यावर्तइण्डियननेशन(डॉट)कॉम से बात करते हुए प्रोफ़ेसर झा ने कहा: पटना उच्च न्यायालय के आदेश के बाद दरभंगा के लोगों में, विशेषकर समाज से उपेक्षित, सड़कों पर भीख मांगकर जीवन यापन करने वाले महिला, पुरुष, बच्चों में एक उम्मीद तो जगी है की उन्हें न्याय मिलेगा। समाज के इस वर्ग के लिए महाराज अधिराज ने जो स्वप्न देखा था, संभव है महाराज अधिराज की मृत्यु के ६० वर्ष बाद ही सही, वह सपना पूरा हो। क्योंकि  विगत  वर्षों  में  इस  पुअर  होम  का  जो  हश्र  हुआ, वह सर्वविदित है।लेकिन इस बात की तकलीफ भी है कि जिन लोगों ने इसपुअर होम के उद्देश्य को नेश्तोनाबूद कर, स्वहित में जिस प्रकार इस संस्था परकब्ज़ा कर लिए थे, वे सभी कानून के गिरफ्त में नहीं आ सके और प्रदेश सरकार केअधिकारी और विभाग बजाय उनके ऊपर कानूनी कार्रवाई करने के, संस्था का दशकों पुराना निबंधन रद्द कर दिया। वैसे हमारी कोशिश जारी है और उम्मीद है है कि प्रदेश की सरकार इस दिशा में कुछ बेहतर कार्य करेगी हमारी  कोशिश  यह  भी  होगी  कि  एक  ओर  जहाँ  समाज  के  गरीब गुरबों को, उपेक्षितों को, जिनके लिए इस संस्था का निर्माण किया गया था, उन्हें न्याय तो मिले ही; साथ ही, जो इस संस्था को हड़पने की अनवरत कोशिश कर रहे थे वे भी कानून के गिरफ्त में आएं।”
 
सं 2012 में प्रोफ़ेसर झा बिहार के मानवाधिकार आयोग के पास एक कम्प्लेन दर्ज किया था और आयोग से कहा था कि इस संस्था पर समाज के कुछ ख़ास लोग न केवल अधिपत्य जमा लिए हैं। इसका परिणाम यह हुआ है की जिस उद्देश्य से इस संस्था का निर्माण हुआ था, वह भटका दिया गया है। बाद में मानवाधिकार आयोग ने उसकी प्राथमिकी के आधार पर जांच आरम्भ की। प्रोफ़ेसर झा होमरिवाइवल समिति के सदस्य हैं। हाईकोर्ट में अनाथों असहायों के मानित पक्षकारप्रो. जयशंकर झा जी के पहल के बाद और हाईकोर्ट के स्पष्ठ निर्देश के बाद भी धरातल पर अनुपालन हो रही देरी । वैसे हाईकोर्ट  के निर्देश के आलोक में प्रमंडलीय आयुक्त, दरभंगा की अनुशंसा पर अभी तक कुछ कार्य किए गए कुछ होना बांकी हैं ।।
 
 
क्रमशः (आगे पढ़े ‘अनाथ और ‘बेजुवान’ को भी लूटने में कोई कसर नहीं छोड़े दरभंगा के संभ्रांत )

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here