दक्षिण दिल्ली के छत्तरपुर में लिखा दिखा “दरभंगा फार्म”, यहाँ तो अपने ही लोग नाम मिटा रहे हैं (भाग-27)

भारत की राजधानी की दक्षिण क्षेत्र के छत्तरपुर इलाके में एक जगह लिखा दिखा: "दरभंगा फार्म" - एक सम्मानार्थ।

दरभंगा / पटना / नई दिल्ली : दरभंगा के अंतिम राजा महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह के शरीर को पार्थिव होने के बाद दरभंगा राज की, दरभंगा-राज की महारानियों की संपत्ति खरीदने वाले आधुनिक भारत के ‘क्रेताओं’ में सर्वाच्च न्यायालय के अधिवक्ता और राजनेता आर के आनंद शायद ‘पहला और अंतिम’ व्यक्ति होंगे, जो ‘महाराजाधिराज के सम्मानार्थ’ अपने आवास का नाम “दरभंगा फार्म” रखे होंगे । यहाँ तो दरभंगा राज के लोग, मिथिला के लोग जब दरभंगा अथवा दरभंगा से बाहर संपत्ति अर्जित करते हैं तो उसका निबंधन अपने ‘जीवित माता-पिता’ के नाम पर, अपने भाइयों के नामपर, साथ में, नहीं करते, भले क्रय करने में आर्थिक मदद भी क्यों न मिली हो; अपितु उस संपत्ति का निबंधन अपनी अपने अथवा पत्नी के नाम पर करते, ताकि आने वाले समय में कोई बंटवारे के लिए खड़ा न हो जाय। बात बहुत कटु है, परन्तु सोचियेगा जरूर क्योंकि भारत की राजधानी की दक्षिण क्षेत्र के छत्तरपुर इलाके में एक जगह लिखा दिखा: “दरभंगा फार्म” – एक सम्मानार्थ। लेकिन दरभंगा एविएशन को बेचने के बाद लोग “नाम” चाहते हैं, महाराजाधिराज का। लेकिन यह तो सरकार की बात है। 

तत्कालीन दरभंगा राज की बात जाने दें। आज कोई 2279 वर्ग किलोमीटर में फैले दरभंगा जिला की आबादी लगभग 39,37,385 है । ये सभी लोग शहरी क्षेत्रों के अलावे जिला के कोई 1,277 गांव में रहते हैं। ये लोग अब दरभंगा राज के अधीन नहीं, बल्कि दरभंगा राज भी दरभंगा के जिलाधिकारी के प्रत्यक्ष शासन और नियंत्रण में हैं। क्योंकि अब राजा नहीं है और जमींदारी प्रथा को भी समाप्त हुए कोई सत्तर वर्ष बीत गए। अब ”सब धन बाईस पसेरी” – यानी कानून के सामने भारत का प्रत्येक नागरिक बराबर। कोई राजा नहीं, कोई प्रजा नहीं, कोई शासक नहीं, कोई  शासित नहीं। सभी अपनी-अपनी योग्यता के अनुसार, शक्ति के अनुसार, सामर्थ के अनुसार, सोच के अनुसार विभिन्न प्रकार के व्यवसाय से अपने-अपने जीवन-यापन कर रहे हैं। मसक्कत भरी जीवन के इस भाग-दौड़ में अगर कोई किसी का सम्मान करता है तो सम्मानित होने वाले व्यक्ति को उन सबों का कृतार्थ होना चाहिए। जिले की कुल आबादी में कोई 20,59,949 पुरुष तथा 18,77,436 महिलाएं हैं और यहाँ के लोगों की प्रति व्यक्ति आय 15, 870/- रूपया आंका गया है। 

सबसे बड़ी बात यह है कि दरभंगा जिले में आज कोई 12,81,511 पुरुष और 9,98,742 महिलाएं ऐसे हैं जो दरभंगा के अंतिम राजा महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह को अंतिम सांस लेने के समय दरभंगा की जमीन पर ‘आत्मा और शरीर’ से जीवित तो थे, क्योंकि प्रदेश का महाराजा भी ‘आत्मा और शरीर से जीवित था। परन्तु विगत सात दशकों में  ये 12,81,511 पुरुष और 9,98,742 महिलाएं शरीर से कमजोर हो गए हैं। इन सत्तर और अधिक वर्षीय लोगों में शायद कोई दस फ़ीसदी लोग ही महाराजाधिराज को अपनी दोनों आँखों से देखे हैं। फिर भी, उनके मन में, आत्मा में आज भी महाराजाधिराज के प्रति हिमालय की चोटी वाला सम्मान है। लेकिन बदलते वक्त और ढलती उम्र में उन दस फ़ीसदी लोगों सहित, दरभंगा की सम्पूर्ण आबादी का आज भी राजदरभंगा के लोगों से कहीं करोड़ो गुना बेहतर हैं, जहाँ तक मानसिकता का प्रश्न है। “अर्थ” से “हीन” होने के बाबजूद, “ह्रदय” से बहुत “धनाढ्य” हैं और चाहते हैं की किसी न किसी रूप में “दरभंगा राज” का , दरभंगा के अंतिम राजा सर कामेश्वर सिंह का, उनकी तीनों महारानियों का” नाम अनंत काल तक जीवित रहे। क्योंकि महाराजाधिराज के शरीर को पार्थिव होने के बाद, जिस तरह महाराजाधिराज का दरभंगा का नामो-निशान मिटाने के लिए खुरपी, कुदाली, हल-बैल चलाया जा रहा है – दरभंगा ही नहीं, बिहार ही नहीं, भारत के लोगों के लिए ‘विलुप्त प्रश्न’ बन जायेगा 

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दक्षिण दिल्ली के छत्तरपुर क्षेत्र में एक जगह लिखा दिखा: “दरभंगा फार्म” – देखकर हैरानी हुई। सोचा दिल्ली सल्तनत में, वह भी महरौली क्षेत्र में, “दरभंगा फ़ार्म’ – आठवां आश्चर्य। वैसे महरौली भी सात प्राचीन शहरों में से एक है जो दिल्ली की वर्तमान स्थिति को बनाते हैं। दरभंगा के महाराजाधिराज भले संस्कृत को बचाए रखने के लिए अपना‘लक्ष्मी-वर-विलास-प्रसाद’ किला दान दे दिए हों; परन्तु “महरौली” तो स्वयं एक संस्कृत शब्द ‘मिहिरावली’ से जन्म लिया है । महरौली उस बस्ती का सूचक है जहाँ विक्रमादित्य के दरबार के प्रसिद्ध खगोलशास्त्री वराह-मिहिरा अपने सहायकों, गणितज्ञों और तकनीशियनों के साथ रहते थे। बाद के दिनों में, इतिहास के अनुसार 1206 ईश्वी में, खासकर मोहम्मद गोरी के मृत्यु के बाद, क़ुतुब-उद-दीन-ऐबक कुतुबुद्दीन  अपना सल्तनत बनाया और महरौली में राजधानी। सन 1206 के बाद से कोई 85 वर्ष तक यहाँ एक इतिहास रचा गया। सबसे बड़ी बात है यहाँ जैन समुदाय के अंतिम तीर्थंकर महावीर का मंदिर है और इसी क्षेत्र में एक और मंदिर है “आद्याकात्यायनी शक्तिपीठ” – जिसकी स्थापना सन 1974 में हुआ था। ऐतिहासिक दृष्टि से दिल्ली सल्तनत का यह इलाका बहुत महत्वपूर्ण है – उसी तरह जैसे “दरभंगा फ़ार्म” का होना। 

मिठास तो आया, परन्तु मन मीठा नहीं हो सका

खैर। दरभंगा फार्म के मालिक हैं सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता आर के आनंद और उनका यह फार्म तक़रीबन 16 बीघा और 5 बिस्बा में फैला है। कहा जाता है कि यह जमीन दरमंगा महाराज की थी, जिस पर महाराजाधिराज की छोटी महारानी का अधिपत्य था। महारानी द्वारा संरक्षित यह जमीन एक बच्ची के नाम से थी, जिसे महारानी ने बाल्यकाल से पाली-पोसी थी। कहा जाता है कि आर के आनन्द सं 1990-91 में इस जमीन को महारानी से ख़रीदे थे। जमीन के क्रय-बिक्रय काल में वह बालिका, जिसके नाम से यह जमीन थी, भी उपस्थित थी। उन दिनों आधिकारिक रूप से 6,00,000 रुपये में उक्त जमीन को ख़रीदा गया। आज बेहतरीन आवास है आर के आनंद का। सबसे बड़ी बात यह है कि आर के आनंद दरभंगा के ‘महाराजाधिराज को जीवित’ रखने के लिए अपने आवास का नाम रखे – दरभंगा फार्म। क्योंकि दरभंगा के अस्तित्व को ‘दरभंगा के महाराजाधिराज’ के अस्तित्व से अलग कर नहीं देखा जा सकता हैं। 

यह करोड़ों-अरबों का प्रश्न है कि अगर एक “गैर-मैथिल” दरभंगा महाराजाधिराज का नाम इस कदर जीवित रख सकता है तो फिर महाराजाधिराज की पीढ़ियां क्यों नहीं? महाराजधिराजी की मृत्यु के बाद आज पुरुष के तरफ से चौथी पीढ़ी आ गयी है और महिला में सम्भवतः पांचवीं – लेकिन शायद ही कोई महाराजा के नाम को, उनके दरभंगा के नाम को इस कदर जीवित रखा होगा। वावजूद इसके कि महाराजा की मृत्यु के बाद उनके द्वारा बनाये गए वसीयत में पुरुष और महिलाओं को अपार संपत्ति “मुफ्त” में मिली थी। आनंद राज्य सभा के पूर्व सांसद भी हैं। भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन के उपाध्यक्ष भी रहे हैं। बार कॉउंसिल ऑफ़ दिल्ली के अध्यक्ष भी रह चुके हैं और सबसे बड़ी बात इण्डियन लॉ इंस्टीच्यूट के करीब 25-वर्ष से अधिक समय तक उपाध्यक्ष भी रहे हैं।  

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अब सवाल यह है कि महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह की मृत्यु के बाद दरभंगा एविएशन का अस्तित्व कलकत्ता के चौरंगी और दरभंगा में नेश्तोनाबूद हो गया – बेच दिया गया। कुल रकम 28,14,194/- रुपये। महाराजाधिराज की मृत्यु के चौदह महीने भी नहीं बीते थे कि दरभंगा एविएशन का नामोनिशान मिट गया। दफ्तर बिक गया।  हवाई पट्टी और हवाई जहाज के बदले “मूल्य” प्राप्त कर लिया गया। दरभंगा एविएशन का दफ्तर 42-चौरंगी में था। कलकत्ता के चौरंगी रोड स्थित 42/1, 42A और 42 बी की संपत्ति रुपये 10,40,00,000 /- में बेचा गया था और यहीं दरभंगा एविएशन भी था। लेकिन दरभंगा राज के संपत्ति के लाभार्थी कभी कलकत्ता के चौरंगी पर प्रदर्शन नहीं किया।  कभी मंत्री से नहीं मिले कि “दि 42 कलकत्ता” का नाम दरभंगा के महाराजा पर कर दें। यह अलग बात है कि पटना के फ़्रेज़र रोड पर महाराजा के आर्यावर्त – इण्डियन नेशन – मिथिला मिहिर अख़बारों और पत्रिका के दफ्तर को, जमीन को ‘कर्मचारियों के रक्षार्थ बेचीं तो गई, लेकिन रक्षा किसकी हुई – यह सर क्रेता और बिक्रेता जानते हैं। अब सभी तो आर के आनंद आनंद हो नहीं सकता।  

तत्कालीन दरभंगा राज के रामबाग़ परिसर के बाहर सड़क पर पानी का जमाव। रामबाग की इन दीवारों की तुलना दिल्ली के लाल किले से की जाती है।

Estate of Maharajadhiraj Sir Kameshwar Singh Bahadur of Darbhanga, Bihar (deceased) – Accountable person: Sole Executor Pandit Lakshmi Kant Jha, Ex-Chief Justice, Patna High Court” जो मूलतः दरभंगा राज की ‘चल-अचल सम्पत्तियों’ का एक सम्पूर्ण दस्तावेज है, के पृष्ठ 21 एनेक्चर – एल Business: The Deceased’s share in movable and immovable property as Sole proprietor of M/s Darbhanga Aviation में संस्थान का पता 42, चौरंगी रोड, कलकत्ता लिखा है और यह नन-सिड्यूल चार्टर एयरलाइन्स चलता है। इस दस्तावेज ke “नोट्स” men उद्धृत हैं जो इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि दरभंगा एविएशन नमक संस्था को आज से 58-साल पहले बेच दिया गया था और उसके एवज में विक्रेता को निर्धारित मूल्य प्राप्त हो गए थे। दस्तावेज में लिखा है: 

2. Out of the assets of M/s Darbhanga Aviation a building (3, Middleton Street, Calcutta) has been sold in January 1964 for the gross sum of Rs. 21,25,000/- (including the cost of furniture and approximately 4 kathas of land, holding No. 42/1 Chowringhee Road, belonging to the deceased). 

3. Out of the assets of M/s Darbhanga Aviation, the aerodrome together with land, building etc. etc has been acquired by the Government of India for which a total sum of Rs. 3.86,965/66 has been awarded as the value of the acquired properties. 

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4. The two aircrafts belonging to M/s Darbhanga Aviation have been requisitioned under Section 108 of the Defence of India Rules and price has been determined at Rs. 3,02,229/- by the Central Government so far, which has not yet been received. इन तीनों “नोट्स” को पढ़ने के बाद आप क्या कहेंगे? सबसे बड़ी बिडंबना यह है कि जिस महाराजाधिराज ने देश में शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए, शिक्षा को लोगों के दरवाजे तक पहुँचने के लिए, शिक्षा को भारत के लोगों का मूलभूत अधिकार बनाने के लिए अपने समर्थ से अधिक सम्पत्तियों का दान किया, अपने ही चहारदीवारी के अंदर रहने वाले महिला-पुरुषों को इतना शिक्षित नहीं कर पाए, समय से लड़ने के काबिल नहीं बना पाए, महिलाएं खुद भी शिक्षा-रूपी ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल कर राज दरभंगा की ऊँची दीवारों से बाहर नहीं निकल पाई, जो महाराजाधिराज के वसीयत के ‘सोल एस्क्यूटर’ और पटना उच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश “न्यायमूर्ति” लक्ष्मी कांत झा से “सवाल” पूछ पाती। 

बहरहाल, पहली अक्टूबर सं 1962 के बाद, यानि उनकी “आकस्मिक मृत्यु” के बाद क्यों ऐसा हुआ जो दरभंगा राज प्रति सम्मान उत्तरोत्तर कम होता गया। उनका सम्मान उस शिखर जैसा था की भारत के राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद भी, गाँधी भी, सुभाष बोस भी “ससम्मान उनके सामने खड़े होते थे। मानवता का पराकाष्ठा थे दरभंगा महाराज। लेकिन आज जब दरभंगा हवाई अड्डे के नामकरण का प्रश्न आता है तो क्या गृह मंत्रालय, क्या नागर विमानन मंत्रालय, क्या प्रदेश के मुख्य मंत्री मंत्रालय – इन कार्यालयों में कार्य करने वाले चपरासी और अधिकारी भी सीधा-मुंह बात नहीं करता। महत्व नहीं देता। नामकरण की बात छोड़ दें। 

यह जमीन भी उन्ही की थी। हवाई पट्टी भी उन्ही का थी। परन्तु सबसे बड़ी बात यह है कि दरभंगा एविएशन को तो 28,14,194/- रुपये में बेच दिया गया था और यह बात दरभंगा राज के लोग बाग़ लोगों को बताये नहीं। अब आप ऐतिहासिक दस्तावेजों के आधार पर लोगों को जो भी कहें, बताते रहे कि तिरहुत का विमानन इतिहास दरअसल बिहार का विमानन इतिहास था, ठीक है । लेकिन सवाल यह है कि आपके खंडकाल में क्या हुआ? आपने महाराजा के इतिहास को सबल बनाने के लिए कितने पन्ने जोड़े – शायद कुछ नहीं, सिवाय पानों को फाड़ने के अलावे, उनका नामोनिशान मिटने के अलावे। 

बहरहाल, तिरहुत के विमानन इतिहास की शुरुआत तिरहुत सरकार महाराजा रामेश्वर सिंह के कालखंड में ही होती है। तिरहुत सरकार का पहला विमान एफ-4440 था। जो 1917 में प्रथम विश्‍वयुद्ध के दौरान भारतीय मूल के सैनिकों के लिए खरीदा गया था। आजकल लोगबाग कहते नहीं थकते कि तिरहुत सरकार का पहला विमान जहां भारतीय फौज के लिए खरीदा गया था, वही दरभंगा एविएशन का आखिरी विमान भी भारतीय वायुसेना को ही उपहार स्‍वरूप दिया गया। यह कहना गलत है। उपहार स्वरुप नही दिया गया था बल्कि Defence of India Rules के तहत उसकी कीमत Rs. 3,02,229/ निर्धारित की गयी थी।

………..क्रमशः

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