विशेष रिपोर्ट: दरभंगा राज रेसिडुअरी ट्रस्ट का बैंक एकाउंट जब्त, तीन-न्यायमूर्तियों की समिति गठित, प्रबंध समिति के सदस्य को 10 लाख का जुर्माना (भाग-39) 

महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह, महाराज रामेश्वर सिंह, महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह का दरभंगा

दरभंगा / पटना / कलकत्ता : दरभंगा के महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह, उनके पिता महाराजा रामेश्वर सिंह, उनके बड़े भाई महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह की आत्माओं को अगर त्रिनेत्रधारी अपनी शरण में स्थान नहीं दिए होंगे अब तक, तो वे सभी अपने दरभंगा राज में सम्पत्तियों के लिए अपने ही रक्त-सम्बन्धियों की वर्तमान हालत देखकर रोते होंगे, बिलखते होंगे। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने दरभंगा रेसिडुअरी इस्टेट के वर्तमान प्रबंध समिति को भंग कर दिया है। प्रबंध समिति के सभी सदस्यों के समस्त अधिकार को ‘समाप्त’ कर दिया है। साथ ही, दरभंगा रेसिडुअरी इस्टेट के बैंक अकाउंट को ‘जब्त’ कर लिया है और प्रबंधन समिति के एक सदस्य पर दस लाख का जुर्माना भी किया है।  

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह की सम्पत्तियों से लाभार्थियों द्वारा दायर एक याचिका पर निर्णय लेते हुए “दरभंगा राज रेसिडुअरी ट्रस्ट” के क्रियाकलापों में अनियमितता, कुप्रबंध, ट्रस्ट की सम्पत्तियों को औने-पौने मूल्य पर बेचने, महाराजाधिराज और दरभंगा राज की गरिमा को नष्ट करने इत्यादि के कारण ट्रस्ट के ट्रस्टियों (प्रबंध समिति के सदस्य) – महारानी कामसुंदरी सहित, दिवंगत कुमार शुभेश्वर सिंह के दोनों पुत्रों – राजेश्वर सिंह और कपिलेश्वर सिंह – को दरभंगा राज रेसिडुअरी ट्रस्ट के ट्रस्टीशिप / प्रबंध समिति की सदस्यता से “बेदखल” कर दिया है। साथ ही, न्यायालय ने तीन पूर्व न्यायमूर्तियों को “संयुक्त विशेष अधिकारी” के रूप में नियुक्त भी किया है। ये संयुक्त विशेष अधिकारी दरभंगा राज रेसिडुअरी  ट्रस्ट के पिछले दस वर्षों के सभी कार्यों की छानबीन करेंगे। न्यायालय ने संयुक्त विशेष अधिकारियों का प्रतिमाह दो लाख रुपये का पारिश्रमिक भुगतान निर्धारित किया है । न्यायालय ने  पश्चिम बंगाल न्यायिक सेवा के विरुद्ध “अवांछनीय” टिका-टिप्पणी करने पर  दरभंगा राज रेसिडुअरी के प्रबंध समिति के एक सदस्य कपिलेश्वर सिंह को 10,00,000 रुपये का दंड  देने का आदेश भी दिया है। 

न्यायमूर्ति देबांगसु बसाक ने कहा है कि: “The fact that the estate requires protection is ‘disputed’ by any of the appearing parties. They seek an appropriate mechanism so that the estate is administered properly. They seek a mechanism by which the entire litigation between the parties come to an end as expeditiously as possible. In view of the factual situation, it would be appropriate to discharge the present committee of management with immediate effect. They will not operate any bank account of the estate any further. In the facts and circumstances in the instant case, it would be appropriate that three Special Officers are appointed to administer the estate.”

कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति देबांगसु बसाक वीडियो कांफ्रेंसिंग द्वारा आयोजित न्यायालय में दरभंगा रेसिडुअरी इस्टेट के क्रिया-कलापों की छानबीन के लिए जिन तीन विशेष स्पेशल ऑफिसर्स की नियुक्ति किये हैं उनमें कलकत्ता उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति ज्योतिर्मय भट्टाचार्य, न्यायमूर्ति (श्रीमती) मधुमिता मित्रा (अवकाश प्राप्त) और साहिबगंज के प्रिंसिपल डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन जज (अवकाश प्राप्त) न्यायमूर्ति गोपाल कुमार रॉय हैं। न्यायालय ने उन सभी पुलिस अधिकारियों, अधीक्षकों से अनुरोध भी किया है कि जिन-जिन स्थानों/क्षेत्रों में दरभंगा रेसिडुअरी इस्टेट की संपत्ति है, और जिसका इन्वेंट्री बनाया जायेगा, आवश्यकता पड़ने पर प्रशासनिक मदद करें। 

न्यायमूर्ति देबांगसु बसाक संयुक्त विशेष अधिकारियों को कहा है कि वे किसी भी राष्ट्रीयकृत बैंक में एक एकाउंट खोले जिसमें रजिस्ट्रार, ओरिजिनल साईड से मिलने वाली एक करोड़ रुपये को जमा कर दिया जायेगा। इस राशि का इस्तेमाल अधिकारियों के वेतन और जांच के दौरान होने वाले अन्य खर्च शामिल होंगे। संयुक्त विशेष अधिकारियों को यह भी स्वतंत्रता दी गयी है की दरभंगा रेसिडुअरी इस्टेट के बेहतर प्रबंधन के लिए वे किसी भी योग्य व्यक्ति अथवा व्यक्तियों की नियुक्ति कर सकते हैं और उन्हें उचित वेतन दे सकते हैं। 
दरभंगा की महारानीअधिरानी कामसुन्दरी वनाम राजेश्वर सिंह और नेत्रायणी और अन्य (1A No GA No 6 of 2018), महारानी अधिरानीकामसुन्दरी वनाम राजेश्वर सिंह।।।अन्य और कात्यायनी। .अन्य वनाम नेत्रायणी और अन्य (1A No GA 13 of 2019  – Old No GA  No 629 of 2019 In PLA No 18 of 1963); महारानी अधिरानी कामसुन्दरी वनाम राजेश्वर सिंह और रत्नेश्वर सिंह और अन्य के मामले में (IA No GA 12 of 2019 – Old GA 638 of 2019 In PLA No 18 of 1963); महारानी अधिरानी कामसुन्दरी वनाम राजेश्वर सिंह और अन्य और श्रीमती नेत्रायणि और अन्य (1A No GA 11 of 2018 – Old No GA 2880 of 2018 PLA No 18 of 1963), महाराजा रामेश्वर सिंह (दिवंगत) और महारानी कामसुन्दरी वनाम कुमार कपिलेश्वर सिंह और दर्शन एलाइंस एग्रो इंडस्ट्रीज लिमिटेड वनाम श्रीमती कामसुन्दरी देवी और अन्य और श्रीमती चेतना सिंह के मामले में (iA No GA 7 of 2018 – Old No GA 2281 of 2018 In PLA No 18 of 1963), तथा महारानी अधिरानी कामसुन्दरी वनाम राजेश्वर सिंह और अन्य तथा श्रीमती नेत्रयानी झा और अन्य के मामले में (1A No GA 14 of 2021 In PLA No 18 of 1963) मुक़दमे की सुनवाई करते न्यायमूर्ति देबांगसू बसाक ने वेस्ट बंगाल स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी के विरुद्ध “बेबुनियाद आरोप” लगाने के जुर्म में कपिलेश्वर सिंह को 10,00,000/- रुपये जुर्माना लगाया। 

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ये तीनो अधिकारीगण न केवल दरभंगा राज के ट्रस्ट्स के क्रियाकलापों की जान करेंगे, बल्कि विशेष “ऑडिट टीम” को नियुक्त कर पिछले 10 वर्षों का लेखा-जोखा का भी जांच करेंगे। न्यायालय ने इन तीन संयुक्त स्पेशल अधिकारियों से निवेदन किया है कि वे किसी उच्च श्रेणी के चार्टड अकाउंटेंट अथवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के फईम को नियुक्त कर विगत दस वर्षों का लेखा-जोखा की जांच कराई जाय। न्यायालय ने इन संयुक्त विशेष अधिकारियों को कहा है कि वे सर्वप्रथम इस्टेट के प्रशासन के लिए  सभी सम्पत्तियों का एक इन्वेंटरी बनाएं । इस कार्य में वे किसी भी व्यक्ति का सहयोग ले सकते हैं। साथ ही उनका वेतन भी निर्धारित कर सकते हैं। इस कार्य को निष्पादित करने में यदि आवश्यकता हो तो वे स्थानीय पुलिस की भी मदद ले सकते हैं। स्थानीय पुलिस अधीक्षक, जिसके क्षेत्राधिकार में यह इस्टेट आता है, से निवेदन है कि वे संयुक्त विशेष अधिकारियों को कार्य निष्पादन करने में मदद करें। 

दरभंगा राज

न्यायालय ने आदेश दिया है कि दरभंगा राज के लेखा से इन स्पेशल ऑफिसर्स को प्रतिमाह 2,00,000/- (दो लाख) रुपये का भुगतान किया जायेगा। न्यायालय ने दरभंगा राज के ट्रस्ट्स के लोगों को आदेश दिया है कि वे न्यायालय द्वारा नियुक्त अधिकारियों को कार्य निष्पादन करने में पूर्णता के साथ सहयोग करें। न्यायालय सभी लाभार्थियों को स्पेशल अधिकारियों द्वारा आयोजित किसी भी बैठक में भाग लेने की पूर्ण स्वतंत्रता दी है। इतना ही नहीं, न्यायालय इस्टेट के बेहतर क्रिया-कलापों के लिए उनसे बेहतर राय की भी अपेक्षा किया है। उन्हें यह भी कहा गया है कि वे अपना ईमेल विशेष अधिकारियों को अवश्य दे दें ताकि वे क्रिया कलापों की सुचना उन्हें देते रहे। विशेष अधिकारियों के कार्यों में कोई दिक्कत ना हो, न्यायालय ने यह भी आदेश दिया है कि आवश्यकता पड़ने पर वे स्थानीय प्रशासन की मदद भी ले सकते हैं।  

चुकी पिछले विशेष पदाधिकारी को उनके कार्य के लिए महाराजाधिराज की सम्पत्तियों के लाभार्थियों ने भुगतान नहीं किया था, जबकि वे पांच बैठक किये थे और प्रत्येक बैठक के लिए उन्हें प्रारम्भ में एक लाख रुपये देने को तय हुआ था। वैसी स्थिति में नव-नियुक्त संयुक्त विशेष अधिकारियों से कहा गया है कि वे निवर्तमान विशेष अधिकारी को रजिस्ट्रार ओरिजिनल साईड द्वारा भुगतान प्राप्त करते ही 10,00, 000 (दस लाख) रुपये अंतिम भुगतान स्वरूप कर दें। 

न्यायालय ने इस्टेट के बेहतर प्रशासन और न्याय के लिए संयुक्त विशेष अधिकारियों से  कहा है कि वे ‘समयबद्ध’ बैठक करेंगे। दो बैठकों के बीच 30 दिनों से अधिक का अंतराल किसी भी स्थिति में नहीं होगा। बैठक में संयुक्त विशेष अधिकारी लाभार्थियों को भी भाग लेने के लिए आने देंगे। प्रत्येक बैठक के 48 घंटा पहले उस समय तक सम्पादित कार्यों के प्रोग्रेस की सूचना सभी लाभार्थियों को देंगे। प्रत्येक बैठक में “मिनट्स” बनेंगे और इसका वितरण भी सबों में बांटा जायेगा होगा। इस्टेट के वार्षिक लेखा का ऑडिट वर्ष के आधार पर होगा । न्यायालय ने यह स्पष्ट रूप से कहा है कि इस्टेट की सभी सम्पत्तियों की पहचान पहली बैठक में ही हो जानी चाहिए। साथ ही, इस्टेट के प्रशासन से सम्बंधित एक रोड-मैप भी तैयार होनी चाहिए। न्यायालय ने कहा है कि इस कार्य को जितना जल्द हो, पूर्ण करना होगा और किसी भी परिस्थिति में संयुक्त विशेष अधिकारी द्वारा पदभार ग्रहण करने के चार महीने के अंदर हो जानी चाहिए। 

ज्ञातव्य हो कि अंतिम दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह की मृत्यु दिनांक पहली अक्टूबर 1962 को हुई। महाराजाधिराज अपनी मृत्यु के पूर्व  5 जुलाई 1961 को एक वसीयत बनाए थे। इस वसीयत को कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा 27 जून, 1963 को न्यायमूर्ति श्री लक्ष्मीकांत झा को एकमात्र एस्क्यूटर घोषित किया गया। महाराजा के वसीयतनामे के अनुसार, महाराजा का दरभंगा राज का सम्पूर्ण अधिकार न्यायमूर्ति झा के पास जाता है। महाराजा के वसीयतनामे में तीन ट्रस्टियों का नाम भी उद्धृत किये थे जिनकी नियुक्ति “सेटलर” द्वारा किया गया – वे थे: पंडित एल के झा (स्वयं), पंडित जी एम मिश्रा और ओझा मुकुंद झा। उपरोक्त “एस्क्यूटर” को अपना सम्पूर्ण कार्य समाप्त करने के बाद दरभंगा राज का सम्पूर्ण क्रियाकलाप इन ट्रस्टियों को सौंपना था। महाराजा के वसीयतनामे में इस बात पर बल दिया गया था कि ट्रस्टियों की मृत्यु अथवा त्यागपत्र के बाद, दूसरे ट्रस्टी द्वारा रिक्तता को भरा जायेगा और वर्तमान ट्रस्ट उक्त दस्तावेज में उल्लिखित नियमों के अधीन ही नियुक्त किये जायेंगे। 

न्यायमूर्ति पंडित लक्ष्मीकांत झा संभवतः सन 1978 साल के मार्च महीने के 3 तारीख को मृत्यु को प्राप्त किये । न्यायमूर्ति पंडित लक्ष्मीकांत झा की मृत्यु के बाद कलकत्ता उच्च न्यायालय न्यायमूर्ति (अवकाश प्राप्त) एस ए मसूद और न्यायमूर्ति शिशिर कुमार मुखर्जी (अवकाश प्राप्त) को दरभंगा राज के “प्रशासक” के रूप में नियुक्त किया गया था । इसके बाद तत्कालीन न्यायमूर्ति सब्यसाची मुखर्जी अपने आदेश, दिनांक 16 मई, 1979 के द्वारा उपरोक्त “प्रशासकों” को “इन्वेंटरी ऑफ़ द एसेट्स’ और ‘लायबिलिटीज ऑफ़ द इस्टेट’ बनाने का आदेश दिया थे ताकि वह दरभंगा राज के ट्रस्टियों को सौंपा जा। उक्त दस्तावेज के प्रस्तुति की तारीख के अनुसार तत्कालीन ट्रस्टियों ने महाराजाधिराज दरभंगा के रेसिडुअरी इस्टेट का कार्यभार 26 मई, 1979 को ग्रहण किया। कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेशानुसार, महाराजाधिराज की सम्पत्तियों के सभी लाभार्थी (यानी परिवार के सदस्य) इस ट्रस्ट के ट्रस्टीज बने । बाद में महाराज के कई पारिवारिक सदस्यों ने कई मुकदमें किये।अंततः यह मामला माननीय उच्चतम न्यायालय में गया और 5 अक्टूबर 1987 को फॅमिली सेटलमेंट हुआ ।

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इस बीच, 27 मार्च, 1987 को सम्बद्ध लोगों के बीच हुए फेमिली सेटेलमेंट को लेकर दायर अपील को सर्वोच्च न्यायालय दिनांक 15 अक्टूबर, 1987 को “डिक्री” देते हुए ख़ारिज कर दिया। तदनुसार, फेमिली सेटेलेमनट के क्लॉज 1 के अनुसार, सिड्यूल II में वर्णित शर्तों को मद्दे नजर रखते, महारानी अधिरानी कामसुन्दरी सिड्यूल II में उल्लिखित सभी सम्पत्तियों की स्वामी बन गयी। स्वाभाविक है, उन सम्पत्तियों पर उनका एकल अधिकार हो गया। इसी तरह, फेमिली सेटेलेमनट के क्लॉज 2 के अनुसार, कुमार शुभेश्वर सिंह के दोनों पुत्र, यानी राजेश्वर सिंह, जो उस समय बालिग हो गए थे, और उनके छोटे भाई, कपिलेश्वर सिंह, जो उस समय नाबालिग थे, सिड्यूल III में वर्णित शर्तों को मद्दे नजर रखते सिड्यूल III में उल्लिखित सम्पत्तियों के मालिक हो गए। आगे इसी तरह, फेमिली सेटेलमेंट के क्लॉज 3 के अंतर्गत सिड्यूल IV में वर्णित सभी नियमों के अनुरूप में सभी सिड्यूल IV में उल्लिखित सम्पत्तियों का मालिक पब्लिक चेरिटेबल ट्रस्ट के ट्रस्टीज हो गए। फेमिली  सेटेलमेंट के क्लॉज 5 के अधीन, श्रीमती कात्यायनी देवी, श्रीमती दिव्यायानी देवी, श्रीमती नेत्रयानी देवी (कुमार जीवेश्वर सिंह के सभी बालिग पुत्रियां) और सुश्री चेतना दाई, सुश्री दौपदी दाई, सुश्री अनीता दाई (कुमार जीवेश्वर सिंह के सभी नबालिग पुत्रियां), श्री रत्नेश्वर सिंह, श्री रश्मेश्वर सिंह (उस समय मृत), श्री राजनेश्वर सिंह (कुमार याजनेश्वर सिंह) सिड्यूल V में उनके नामों के सामने उल्लिखित, साथ ही, उसी सिड्यूल में उल्लिखित शर्तों के अनुरूप, सम्पत्तियों के मालिक होंगे। 

फेमिली सेटेलमेंट के क्लॉज 5 के तहत, पब्लिक चेरिटेबल ट्रस्ट के ट्रस्टीज को यह अधिकार दिया गया कि वे सिड्यूल I में वर्णित ‘लायबिलिटीज’ को समाप्त करने के लिए, सिड्यूल VI में उल्लिखित सम्पत्तियों को बेचकर धन एकत्रित कर सकते हैं, साथ ही, परिवार के लोगों में फेमिली सेटेलमेंट के अनुरूप शेयर रखने का अधिकार दिया गया। साथ ही, फेमिली सेटेलमेंट के क्लॉज 6 के अनुसार, महारानी अधिरानी कामसुन्दरी और राज कुमार शुभेश्वर सिंह या उनके नॉमिनी (दूसरे क्षेत्र के लाभान्वित लोगों के प्रतिनिधि) द्वारा बनी एक कमिटी लिखित रूप से सम्पत्तियों की बिक्री, शेयरों का वितरण आदि से सम्बंधित निर्णयों को लिखित रूप में ट्रस्टीज को देंगे जहाँ तक व्यावहारिक हो, परन्तु किसी भी हालत में पांच वर्ष से अधिक नहीं या फिर न्यायालय द्वारा जो भी समय सीमा निर्धारित हो। 

फैमली सेटेलमेंट के तहत,  महाराजाधिराज के उस सम्पूर्ण संपत्ति स्वरुप सिक्के को जिन चार भागों में विभक्त किया गया उसमें एक – चौथाई भाग महाराजाधिराज पत्नी महारानी कामसुन्दरी को मिला। एक – चौथाई हिस्सा राजेश्वर सिंह और कपिलेश्वर सिंह को मिला।  एक – चौथाई हिस्सा राजकुमार जीवेश्वर सिंह और यज्ञेश्वरा सिंह को मिला और अंतिम एक – चौथाई टुकड़ा चेरिटेबल ट्रस्ट के हिस्से आया। सेटेलमेंट के क्लॉज 11 के तहत, यह बात स्पष्ट किया गया कि ‘समय आने पर ट्रस्ट का निर्माण’ किया जायेगा जिसका नाम ‘कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट’ होगा और इस ट्रस्ट के सभी सदस्यों का चयन, रखरखाव आदि-आदि नियमानुसार होगा। आगे, फेमिली सेटेलमेंट के क्लॉज 14 के अधीन न्यायालय के आदेश केदिनांक 15 अक्टूबर, 1987 से  पांच साल के अंदर इस सेटेलमेंट को लागू करना था। बाद में, दिनांक 7 मई, 1993 को न्यायलय ने सेटेलमेंट को दिनांक 15 अक्टूबर, 1995 तक बढ़ा दिया। 

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने कहा है कि : “Without implementation of the family settlement, the trustees applied for being relieved from their office before the Hon’ble Supreme Court. Such prayer was initially refused. Such trustees made and applied before the Hon’ble Court seeing discharge due to old age and health reasons. By an order dated June 25, 1998, the trustees were discharged subject to them filing accounts to be verified by the committee of the management. A committee of the management of the Residuary Estate of Darbhanga was constituted by an order dated June 25, 1998. An application was made for the purpose of re-constitution of the Committee of management whereby an order dated March 20, 2002, a learned advocate was appointed as one of the member of the committee of the management.”

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महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह (बाएं), महारानी अधिरानी कामसुन्दरी (बीच में) और कपिलेश्वर सिंह (दाहिने)

न्यायालय ने कहा है कि “The fact that the members of the committee of management are not in a position to work together is now too well established. Such fact will appear from the acrimonious averments made in the application and the affidavits as also the allegations levelled against each other in the midst of hearing of proceedings. The present committee of management is functioning since 2009. A period in excess of 11 years has passed with the present committee of management not being able to make any significant progress in the administration of the estate.

ज्ञातव्य हो कि नब्बे के दशक के उत्तरार्ध में  राज दरभंगा के इतिहास में शायद यह पहली घटना होगी जब 84-वर्षीय, 72-वर्षीय और 69-वर्षीय वृद्ध न्यायालय का दरवाजा खटखटाकर उससे विनती किया हो कि उन्हें कार्य मुक्त होने का मार्ग प्रशस्त किया जाय, कार्यमुक्त किया जाय । याचिका में लिखा है: “It is submitted that the applicants are being harassed unnecessarily by the various quarters having vested interest. They are also being confronted with various problems. The applicants further submitted that due to their old age, falling health and other difficulties they are not in a position to continue to function as Trustees. It is the sincere desire of the applicants that they may be relieved of the responsibilities of the office of the Trustees of the Residuary Estate of Maharaja of Darbhanga and also of the Charitable Trust.”

याचिकाकर्ताओं ने न्यायालय से अनुरोध की कि ढलती उम्र और गिरती स्वास्थ्य के कारण वे सभी अब इस अवस्था में नहीं हैं की इस पद पर कार्य कर सकें। स्वाभाविक है कि इन ट्रस्टियों ने न्यायालय से अनुरोध किये कि उन्हें रेसिडुअरी इस्टेट ऑफ़ महाराजा दरभनगा और चेरिटेबल ट्रस्ट के ट्रस्टी के पदों से मुक्त कर दिया जाय। यह भी कहा गया कि याचिका कर्ताओं ने न्यायालय द्वारा अनुशंसित सभी कार्यों के बहुत ही दक्षता के साथ, साथ ही जितनी भी बाकी-बकियौता था, उनमे अधिकांश को पूरा कर दिए हैं। याचिका दायर करने के दिन द्वारकानाथ झा की आयु 72 वर्ष थी, जबकि मदन मोहन मिश्र और कामनाथ झा क्रमशः 84 और 69 वर्ष के थे। याचिका में इस बात का उल्लेख किया गया कि द्वारकानाथ झा एक बार ह्रदय रोग से पीड़ित हो चुके हैं। साथ ही, मदन मोहन झा भी शरीर से अधिक अस्वस्थ रहते हैं और प्रबंधन का कार्य नियमित रूप से नहीं कर सकते हैं। जहाँ तक कि उनकी शारीरिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वे याचिका पर अपना हस्ताक्षर भी कर सकें । द्वारकानाथ झा दरभंगा इस्टेट को विगत 30 वर्ष से देख-रेख कर रहे हैं। अतः, सभी ट्रस्टियों ने यह निर्णय लिए की रेसिडुअरी इस्टेट ऑफ़ महाराजा दरभंगा और चेरिटेबल ट्रस्ट का कार्यभार न्यायालय द्वारा नियुक्त “प्रशासक” को सौंप दिया जाय। वैसे भारत का सर्वोच्च न्यायालय इन सभी ट्रस्टियों को सम्पूर्णता के साथ अधिकार दिए थे जिससे रेसिडुअरी इस्टेट ऑफ़ महाराजा दरभंगा और चेरिटेबल ट्रस्ट का कार्य सुचारु रूप से चले। फिर भी सलाह के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय में तो आवेदन किया ही गया है।  सर्वोच्च न्यायालय ने ही यह आदेश दिया की आवेदन की एक प्रति कलकत्ता उच्च न्यायालय में भी पेश कर दिया जा। 

न्यायालय का यह मानना कि “The estate of the deceased (Maharajadhiraj Sir Kameshwar Singh) is in limbo. The mechanism of the committee of management being requested to administer the estate failed. The committee of management has been in place for over 11 years. They are yet to administer the estate. The first Special officer could not complete the administration . The Second special officer resigned in view of unsavoury statements made against him by one of the members of the committee of management .

न्यायालय ने आगे कहा: “The fact that the estate requires protection is ‘disputed’ by any of the appearing parties. They seek an appropriate mechanism so that the estate is administered properly. They seek a mechanism by which the entire litigation between the parties come to an end as expeditiously as possible. In view of the factual situation, it would be appropriate to discharge the present committee of management with immediate effect. They will not operate any bank account of the estate any further. In the facts and circumstances in the instant case, it would be appropriate that three Special Officers are appointed to administer the estate…..क्रमशः 

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