पटना कॉलेज@160: कॉलेज का यह #ऐतिहासिक कॉरिडोर और कोने पर #गर्ल्सकॉमनरूम – याद है न

पटना कॉलेज का यह #ऐतिहासिक #कॉरिडोर और कोने पर #गर्ल्सकॉमनरूम - याद है न !! तस्वीर: राहुल मिश्र पटना

जो पटना कॉलेज में शिक्षा प्राप्त किये होंगे, पटना कॉलेज में कभी गए होंगे, वे उम्र से लम्बे इस ऐतिहासिक कॉरिडोर को अवश्य देखे होंगे। अपने ज़माने का ‘पूर्व का ऑक्सफोर्ड’ कहा जाने वाला पटना कालेज इस वर्ष 2022 में अपने स्थापना का 160 वर्ष माना रहा है। इस दृष्टि से अगर देखें तो विगत 160 वर्षों में इस कॉलेज से अघ्ययन करने वाले, इस कालेज में अध्यापन कराने वाले मोहतरम और मोहतरमाओं की कम से कम पांचवी पीढ़ी अवश्य हो गई होगी।

हम लोगों के ज़माने में यह कोर्रिडोर एक तरफ पटना कॉलेज के अंग्रेजी, हिंदी, राजनीति शास्त्र विभागों को दक्षिणी छोड़ पर जोड़ता था, वहीँ इसी छोड़ के शुरुआत में ही सर्वप्रथन गर्ल्स कॉमनरूम का चरण स्पर्श भी करता था। गर्ल्स कॉमनरूम के प्रवेश द्वार पर गिरी मिट्टियों को मन-ही-मन बिना मष्तिष्क में लगाए, एक बार दाहिने देखे कोई भी महात्मन आगे नहीं बढ़ सकते थे। यह कॉमनरूम कॉलेज की बेहतरीन महिलाओं के लिए था।

वजह भी था ‘अंग्रेजी’ और ‘राजनीती शास्त्र’ विभाग यहाँ था। उत्तरी छोड़ गंगा की ओर जाती थी। आज भी परंपरा जारी है। उत्तरी छोड़ के कोने पर एक रास्ता दरभंगा हॉउस की ओर जाता था और कोने पर स्थित था वाणिज्य महाविद्यालय। बीच में बायीं ओर हॉस्टल और दाहिने तरफ खुला मैदान। हमारे लिए न तो पटना कालेज कभी कालेज रहा और न ही यह कॉरिडोर कभी गलियारा – दोनों घर था। बचपन यही गुजरा था। पढ़ना यहीं सीखा था। चलना-दौड़ना यही सीखा था। अनुशाशन यही सीखा था। बदमाशी भी यही सीखा था। इस उम्र से लम्बी कॉरिडोर के बारे में एक विचित्र घटना है मेरे जीवन के साथ जिसे अपनी जीवनी में मैं बखूबी शब्दों में ढाला हूँ।

इस कॉरिडोर की एक और विशेषता थी। गंगा छोड़ के तरफ जहाँ यह समाप्त होकर पटना कालेज के प्रशासनिक भवन में प्रवेश दिलाता था, उसके बायीं ओर उस जमाने के एक बेहतरीन रोज-गार्डन हुआ करता था। लोग उसे “विल्सन गार्डन” के रूप में जानते थे। उम्मीद है इस कालेज में अस्सी के दशक के बाद पढ़ने वाले विद्यार्थी ‘विल्सन गार्डन’ के नाम से परिचित नहीं होंगे। देखने की बात तो दूर। इस गार्डन का रख-रखाव भोला जी और रामाशीष जी दो माली करते थे। दोनों का घर, यानि कालेज द्वारा आवंटित आवास इस गार्डन से दस कदम पर दाहिने तरफ था।

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यहाँ स्थित आवास की विशेषता यह थी कि पूरब में प्राचार्य का आवास, उत्तर में गंगा और पश्चिम में कालेज का प्रशासनिक भवन। भोला जी कोई पांच फिट दो इंच लम्बे, काले, थुलथुले थे, मगर क्या मजाल है की कोई इस विल्सन गार्डन से फूल तोड़कर भाग जाय। पटना कालेज वार्षिक खेल-कूद प्रतियोगिता में भोलाजी हमेशा 100 मीटर की दौड़ में अव्वल आते थे। हाँ, रामाशीष जी छरहरा बदन वाले थे, तेज-तराक भी, परन्तु उम्र का लिहाज हमेशा रखते थे। हम सभी बच्चे रामाशीष जी से बहुत डरते थे। पटना कालेज में रामाशीष जी ही एक ऐसे शिक्षकेत्तर कर्मचारी थे, जिनसे मोहल्ले के सभी बच्चे डरते थे। वे सिर्फ कान का निचला हिस्सा पकड़ते थे और चुटी काट लेते थे।

अंग्रेजी विभाग के पास दक्षिण छोड़ पर जहाँ यह कॉरिडोर समाप्त होता है, वही दाहिने तरफ गर्ल्स कामनरूम होता था, जिसके सामने अच्छा-ख़ासा बरामदा है। इस बरामदे से होकर दो रास्ते निकलते हैं – बायीं तरफ जाने से मैदान के किनारे-किनारे भूगोल विभाग होते होस्टल्स और सड़क की ओर; जबकि दाहिने तरफ जाने पर छोटे मैदान के रास्ते अंग्रेजी, राजनीति शास्त्र, एन्सिएंट हिस्ट्री विभागों के रास्ते फिर अशोक राज पथ पर आ जायेंगे जहाँ कूड़ों का अपार पहाड़ आज भी मिलेगा। टूटी नालियां आज भी मिलेंगी। टूटे-फूटे गोंते लगाती सड़क मिलेंगी जो गंगा तट स्थित पटना विश्व विद्यालय के स्नातकोत्तर विभाग की और जाती है।

प्रशासनिक भवन के सामने वाले मैदान में सैकड़ों बार क्रिकेट मैच होता था। रणजी भी यहाँ खेला जाता था। देश के अन्य विश्वविद्यालयों के खिलाड़ी भी इण्टर-यूनिवर्सिटी मैच खेलने आते थे। गर्ल कॉमनरूम के सामने मैदान में ही बनाया जाता था “स्कोर-बोर्ड” जहाँ खिलाड़ी और विशेषज्ञ तो रहते ही थे, महिलाओं का विशाल समूह भी खिलाड़ियों के मनोबल को बढ़ाने उपस्थित होती थी। हम मोहल्ले के बच्चे ‘स्कोर बोर्ड’ पर ‘संख्या’ लटकाने के लिए – पहले हम – पहले हम – करते रहते थे। वजह होता था ‘ननकू जी का दो सिंघाड़ा (समोसा) और एक चवन्नी। क्रिकेट की दुनिया से जुड़े उस समय के सभी खिलाड़ी हम बच्चों को जानते थे, इसलिए समाजवाद रहता था। इसी जगह भारत का प्रतिनिधित्व करने वाला सब्बा करीम और उसका छोटा भाई भी बाउंड्री लाइन पर बैठा करता था। उस रणधीर वर्मा, प्रतिक नारायण आदि खिलाडी होते थे। खैर।

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इन्ही रास्तों में जाते समय दाहिने हाथ खुली नालियां होती थी (आज भी मिलेंगी) जिसमे पैखाना बहता दिखाई देगा। कटे-फटे प्लास्टर दिखाई देगा। गोबर का अट्टालिका दिखाई देगा। चर्म रोग विभाग से बहती गंदगियां दिखाई देंगी। बहरहाल, आप अपने नाक पर रुमाल रखकर, सरकार, प्रशासन और व्यवस्था को गलियाते आगे बढ़ते चलें। दरभंगा हॉउस प्रवेश द्वार पर रूककर रामायण जी की चाय पीना कभी नहीं भूलें, बहुत बेहतर इन्शान हैं वे; यह अलग बात है कुछ असामाजिक तत्वों ने दिन-दहाड़े उनके जवान बेटे को पटना लॉ कालेज परिसर में गोली मार दिया था।

बहरहाल, उस ज़माने में (सन 1969 – 1978 ) हम सभी पटना कालेज के सामने ननकू होटल वाली गली में एक कमरे के किराया के मकान में रहते थे। (इस गली की कहानी भी लिखूंगा क्योंकि इस गली से दिवंगत राहुल बजाज साहेब जुड़े हैं) उस मकान में बिजली नहीं थी और घर में लालटेन की संख्या भी दो ही थी, जिससे पढ़ने में दिक्कत होती थी। मोहल्ले के कुछ और बच्चों के साथ हम सभी इस बरामदे पर रात में पढ़ते भी थे और फिर सो जाते थे। यहाँ हम बच्चों की पढ़ाई के लिए बिजली-बल्ब का विशेष बंदोबस्त किया गया था कालेज प्राचार्य के तरफ से, जो रात-भर जलता रहता था और सुवह स्वीच ऑफ करना हम बच्चों की जिम्मेदारी होती थी।

एक रात हम उठकर इस कॉरिडोर के अंतिम सीरे पर मैदान के तरफ पैर रखकर पढ़ रहे थे। रात कोई एक बजा होगा। किताब की ओर निगाहें टिकी थी परन्तु कॉरिडोर में दो सफ़ेद वस्त्र पहनी लड़की की आने का आभास हो रहा था। मैं डर भी रहा था और हनुमान चालीसा पढ़ रहा था। दोनों लड़कियां बहुत नजदीक आकर ओझल हो गयीं। मैं किसी तरह उठकर अपने बिस्तर पर लेट गया। सुवह-सवेरे जब अखबार देने डॉ केदार नाथ प्रसाद और रणधीर वर्मा को उनके घर और हॉस्टल में गया तो यह बात बताया। रणधीर वर्मा ही वह जगह पढ़ने के लिए चुने थे। वे देर रात टहलने भी आते थे। अगर कुछ पूछना होता था तो सभी बच्चों को बताते भी थे।

केदार बाबू ने कहा की उस गर्ल्स कामनरूम के पीछे कालेज कर्मचारी आवास में, जो दरभंगा हॉउस जाने वाली सड़क से भी मिलती है। पीछे एन्सिएंट हिस्ट्री विभाग है। सन 1960 के आस-पास एक कर्मचारी की दो बेटियां एक ही दिन मरी थी। वह पटना कालेज की बी ए की छात्राएं थी। ऐसा माना जाता है की वह कालेज परिसर में घूमती है। उस ज़माने के माली राम नरेश कई बार देखा था। ज्यादातर वह गंगा नदी की ओर पटना कालेज प्रशासनिक भवन और वाणिज्य विभाग के बीच “रोज गार्डेन” (अब नहीं है) में धूमती दिखती थी, आभास होता था। वह किसी को कुछ करती नहीं। आप निश्चिन्त रहें। अगली रात बाबूजी भी आये। उन्होंने भी इसकी पुष्टि किये और कहे – यह मार्गदर्शक हैं। तुम बेफिक्र होकर पढ़ो।

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1865 के बाद पटना काॅलेज ने सैकड़ों विद्वान प्रशासक, देशभक्त, अधिकारी, वकील, जज, पत्रकार और लेखक पैदा किया। देखते-देखते, ऐसी स्थिति हो गई कि बिहार का लगभग प्रत्येक बड़ा आदमी पटना कॉलेज का छात्र रहा। बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह, सर्वोदय नेता जय प्रकाश नारायण, महान कवि और साहित्यकार रामधारी सिंह दिनकर, अनुग्रह नारायण सिंह, डॉ सच्चिदानन्द सिन्हा, सर सुल्तान अहमद, प्रसिद्ध इतिहासकार रामशरण शर्मा, सैयद हसन अस्करी, योगेन्द्र मिश्र, जगदीश चन्द्र झा, विष्णु अनुग्रह नारायण, प्रसिद्ध अर्थशास्त्री गोरखनाथ सिंह, केदारनाथ प्रसाद, आदि पटना कॉलेज के छात्र रहे।

पटना काॅलेज में पंडित राम अवतार शर्मा (संस्कृत), डाॅ अजीमुद्दीन अहमद (अरबी और फारसी), सर यदुनाथ सरकार (इतिहास), डाॅ सुविमल चन्द्र सरकार (इतिहास), डाॅ डी०एम० दत्त (दर्शन शास्त्र), डाॅ ज्ञानचन्द्र (अर्थशास्त्र), डाॅ एस०एम० मोहसिन (मनोविज्ञान), एस०सी० चटर्जी (भूगोल), परमेश्वर दयाल (भूगोल), विश्वनाथ प्रसाद (हिन्दी), नलिन विलोचन शर्मा (हिन्दी) जैसे राष्ट्र प्रसिद्ध शिक्षक थे।

बहरहाल, पूर्व का ऑक्सफोर्ड कहा जाने वाला पटना कालेज से लाखों – लाख छात्र – छात्राएँ पढ़कर निकले जो देश के विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका के सर्वश्रेष्ठ नेता, अधिकारी और न्यायमूर्ति बने। सन 1857 के आज़ादी के आन्दोलन के शंखनाद के कोई पांच साल बाद 9 जनबरी, 1863 को पटना के गंगा नदी के किनारे इस शैक्षणिक संस्थान को स्थापित किया गया था। दुर्भाग्य यह है कि कभी अपने में स्वर्णिम इतिहास समेटे पटना कॉलेज ने समाज और शिक्षा जगत को काफी कुछ दिया, लेकिन कॉलेज की गौरवशाली परंपरा को बरकरार रखने के लिए छात्र, शिक्षक, सरकार और समाज मिलकर भी अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा सके।

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