हॉउस ऑफ़ लॉर्ड्स का मेज, मेज का रेप्लिका और महाराजाधिराज दरभंगा का उपहार… आपको पता है क्या हुआ?

हॉउस ऑफ़ लॉर्ड्स के मेज का रेप्लिका और महाराजाधिराज दरभंगा सर कामेश्वर सिंह 

लन्दन आर्काइव्स के दस्तावेजों के अनुसार दरभंगा के अंतिम महाराजा सर कामेश्वर सिंह हिंदुस्तान के बेहतरीन धनाढ्य, मानवीय, संवेदनशील, अनुशासित महाराजाओं में सर्वश्रेष्ठ थे। वे तत्कालीन अविभाजित और विभाजित भारतीय समाजों के कल्याणार्थ ऐसे अनेकानेक ऐतिहासिक कार्य किये, दान दिए, उपहार दिए, जिसे स्वतंत्र भारत में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाना चाहिए था। परन्तु ऐसा नहीं हुआ। और जो हुआ अथवा हो रहा है वह राज दरभंगा के नाम पर, महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह, महाराजा रमेश्वर सिंह और महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह की कीर्तियों पर, उनके साम्राज्य गरिमा पर एक प्रश्नचिन्ह है। इतिहासकारों, और शोधकर्ताओं और महाराजाओं के प्रति सम्वेदना रखने वाले उनके हितैषीगण तो यहाँ तक कह गए कि “महाराजा का संतानहीन होना” भी दरभंगा राज के पतन का महत्वपूर्ण कारण है ।
  
RUINS OF DARBHANGA RAAJ नामक रंगीन कॉफी-टेबुल किताब में इतिहासकार तो यहाँ तक मानते हैं कि “महाराजाधिराज की मृत्यु के बाद उनकी सम्पत्तियों पर चाहे कितने ही लोगों द्वारा अधिपत्य जमाया गया हो, कितने ही लोग उन सम्पत्तियों को कौड़ी के भाव में बेचकर धनाढ्य हुए हों; लेकिन वास्तविकता तो यह है कि दरभंगा राज का नाम और शोहरत, उसकी गरिमा तो सन 1962 के अक्टूबर माह में महाराजाधिराज की अंतिम सांस से ही समाप्त हो गयी।”

वैसे लन्दन आर्काइव्स के दस्तावेजों के अनुसार, लन्दन के संग्रहालयों में आज भी दरभंगा महाराजाओं का नाम उद्धृत हैं – उसमें सर्वश्रेष्ठ गवाह है “स्वर्ण और चाँदी में बना हॉउस ऑफ़ लॉर्ड्स की कुर्सी का रेप्लिका” की प्रस्तुति जिसे उन्होंने उपहार-स्वरुप स्वतंत्र भारत सरकार के माध्यम से दिया था। तकलीफ इस बात की है कि स्वतंत्र भारत में दरभंगा राज और महाराजाओं की अनगिनत ऐतिहासिक कार्यों को उनके ही परिवार के लोगों ने समाप्त कर दिया। 

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हॉउस ऑफ़ लॉर्ड्स का मेज 

लन्दन के एक सूत्र के मुताबिक सन 1947 के पूर्व सार्वजनिक रूप से भारत से जितने भी चलनशील वस्तुओं/सामग्रियों/जेवरातों/अमूल्य निधियों को अंग्रेजी अधिकारियों द्वारा लाया गया था, यहाँ के ऐतिहासिक संग्रहालयों में “पब्लिक डिस्प्ले” पर रखा है। सूत्र का यह भी कहना है कि ब्रिटिश नियमों के मुताबिक जितनी भी सामग्रियां “पब्लिक डिस्प्ले” पर रखीं है और उसके लिए यदि दर्शकों से राशि ली जाती है तो सम्पूर्ण एकत्रित राशि का एक अहम् हिस्सा उस संपत्ति के वास्तिविक मालिकों के आज के वंशजों के निमित होता है जो सम्बंधित देश में रहते हैं। अंग्रेजी हुकूमत समाप्ति के के दौर में और उसके बाद भी भारत से बहुत सरे अमूल्य वस्तुएं गयी थी। 
सूत्रों के अनुसार वेस्टमिंस्टर महल के लॉर्ड्स कक्ष में, जहाँ  हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स के सत्र का परिचालन होता है, और जिस सिंघासन से संबोधित करके संसद का उद्घाटन किया जाता है, उस सिंघासन का रेप्लिका महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह ने सम्मानार्थ पेश किया था। वैसे इस स्पीकर चेयर का डिजाईन सम्भतः 1849 में हुआ था। लेकिन सं 1941 में हॉउस ऑफ़ कॉमन में बनबार्डिंग के कारण वह कुर्सी ख़राब हो गयी थी। संसद के कार्य को सुचारु रूप से चलने के लिए एक “तत्कालीन कुर्सी” की व्यवस्था की गयी थी।  

सूत्रों के अनुसार महाराजाधिराज एक दूरदर्शी मनुष्य थे और वे भविष्य में भारत-ब्रिटेन राजनयिक सम्बन्धों के महत्वों को समझते थे, इसलिए उन्होंने हॉउस ऑफ़ लॉर्ड्स की उस कुर्सी का एक रेप्लिका बनाने को सोचा। इस रेप्लिका का निर्माण स्वर्ण-चांदी में हुआ था। आज़ाद भारत में भारत सरकार के माध्यम से यह रेप्लिका प्रस्तुत किया गया था। लेकिन फिर क्या हुआ इस बात की जानकारी शायद दरभंगा राज के पास नहीं है।  सूत्रों के अनुसार दरभंगा के महाराजधिराक सर कामेश्वर सिंह अविभाजित भारत के कौंसिल ऑफ़ स्टेट के करीब 13 वर्ष तक (सन 1933-1946) तक सदस्य थे। साथ ही, वे भारत के संविधान सभा के भी पांच वर्ष (1947-1952) तक सदस्य थे। इतना ही नहीं, आज से 88-वर्ष पूर्व उन्हें 1 जनबरी सं 1933 को आई ई सी से प्रोन्नत कर “नाईट कमाण्डर ऑफ़ दी मोस्ट एमिनेंट ऑर्डर ऑफ़ दी इण्डियन इम्पायर बनाया गया था। आज़ाद भारत में वे अपने जीवन के अंतिम सांस तक भारतीय संसद के ऊपरी सदन के सदस्य रहे। महाराजाधिराज की मृत्यु अक्टूबर 1962 में एक उत्तराधिकारी का नाम लिए बिना उनका निधन हो गया।

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