आप भाग्यशाली हैं कि अपने जन्म-स्थान जिला पुर्णियाॅ (बिहार) के 252 वें प्रवेश वर्ष में जीवित हैं, स्वस्थ हैं 

पुर्णियाॅ का एक राजवाड़ा 

हम सभी पुर्णियाॅ के लोग, बिहार के लोग बेहद भाग्यशाली हैं कि अपने-अपने जन्म-स्थान के स्थापना के 252 में प्रवेश वर्ष में स्वस्थ हैं – शरीर से भी और आत्मा से भी। हां, इस स्वस्थता को और अधिक मजबूत बनाया जा सकता है अगर हम अपने-अपने जन्म-स्थान, जिले और प्रदेश के ऐतिहासिक पुरातत्वों को और अधिक सुदृढ़ बनायें, सुरक्षित रखें ताकि आने वाली पीढ़ियों को जानकारी की किल्लत नहीं हो। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि समय के बीतने के साथ-साथ हम कुछ भी नहीं बचा पा रहे हैं। पुरुखों द्वारा अर्जित सम्पत्तियाँ, जो भारत राष्ट्र का एक अमूल्य धरोहर हो सकता था, बेचकर अपनी सामाजिक-नैतिक-सांस्कृतिक विरासतों को मिट्टी-पलीद कर रहे हैं। 
 
पुर्णियाॅ जिले का इतिहास काफी प्राचीन है। महाभारत काल से लेकर बौद्ध काल, पाल वंश के शासन काल से लेकर मुगल काल तक पुर्णियाॅ का जिक्र है। हर्षवर्धन के समय में ह्वेनसांग तो मुगल काल में अबुल फजल द्वारा लिखे गए ‘आइने-ए-अकबरी’ में भी पुर्णियाॅ का जिक्र है। मुगल काल के समय फौजदार जबकि मुस्लिम शासन काल में गवर्नर राज रहा। अंग्रेजी हुकूमत के दौरान डकरैल पुर्णियाॅ जिला के पहले जिलाधिकारी बने । ‌ उन्होंने 14 फरवरी 1770 को कार्यभार सम्भाला था।

लार्ड क्लाइव की अगुवाई में कलकत्ता में ईस्ट इण्डिया कम्पनी की दखल के बाद पुर्णियाॅ के पहले कलेक्टर अंग्रेज डकरैल बनाए गए। तभी से इस दिन (14 फरवरी) को पुर्णियाॅ जिले के स्थापना दिवस के तौर पर मनाया जाता है। 14 फरवरी 2021 को 251 साल मुकम्मल कर पुर्णियाॅ 252 वें साल में प्रवेश कर रहा है। पुर्णियाॅ जिले के स्थापना दिवस को पिछले वर्ष से राजकीय समारोह के तौर पर मनाया जाता है।
 
1770 में इंगलिश सुपरवाइज और कलेक्टर डकरैल के हाथों कमान आने के बाद 1817 में रेगुलेशन के बाद पुर्णियाॅ जिला बिहार और बनारस बोर्ड का के कमिश्नर की अथाॅरिटी के अधीन आ गया। 1872 में वह जिला कलकत्ता बोर्ड आॅफ रेवेन्यू के हाथों में आ गया। 1829 में 20 नए कमिश्नर डिवीजन बनाए गए। पुर्णियाॅ और मालदा जिला भागलपुर कमिश्नरी के अधीन आ गया। 1990 में पुर्णियाॅ प्रमण्डल बनने के साथ ‘अररिया’ और ‘किशनगंज’ को जिला बनाया गया। पहले ‘अररिया’ और ‘किशनगंज’ पुर्णियाॅ का सब-डिवीजन था। 

पुर्णियाॅ सब-डिवीजन एक नवम्बर 1864 और किशनगंज सब-डिवीजन 17 दिसम्बर 1845 को बना। पुर्णियाॅ “महाभारत” से भी जुड़ा हुआ है। डब्ल्यू डब्ल्यू हंटर लिखित ‘ए स्टेटिकल एकाउंट आॅफ हिस्ट्री’ के मुताबिक 12 साल के अज्ञातवास के दौरान पाण्डव ‘ठाकुरगंज’ में रुके थे। अभी ‘ठाकुरगंज’ किशनगंज का हिस्सा है, लेकिन तभी (‘महाभारत’ के समय) पुर्णियाॅ जिले का अंग था। 

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बौद्धकाल के दौरान भी पुर्णियाॅ जिले का जिक्र है। हुण के आक्रमण के दौरान पुर्णियाॅ मगध का हिस्सा था। 640 में हर्षवर्धन के शासनकाल और गौड़ वंश के दौरान ह्वेनसांग भी यहाॅ आए। गौड़ और पाल वंश के शासकों का भी यहाॅ रहा राज। बिहार और बंगाल में शासन करने वाले पाल शासनकाल और गौड़ वंश शासनकाल के दौरान भी पुर्णियाॅ का जिक्र आता है। नौवीं से 12वीं शदी के बीच पाल वंश के अधीन पुर्णियाॅ रहा। 12वीं सदी की समाप्ति के बाद मुस्लिम शासन शुरू हुआ। 

मुस्लिम शासन काल में गवर्नर राज मुगल के समय के फौजदार। बख्तियार खिलजी ने गौड़ गवर्नर को हटा दिया। मुगल शासन के समय पुर्णियाॅ में फौजदार शासन करते थे। मुगल के समय ग्रेट मिलिट्री फ्रंटियर प्रावीस के तौर पर पुर्णियाॅ को जाना जाता था। महानंदा नदी के पूर्व को सरकार तेजपुर और नदी के पश्चिमी इलाके को सरकार पुर्णियाॅ कहा जाता था। 1680 में ए खान पुर्णियाॅ के नवाब बने। 12 वर्ष तक वह नवाब रहे। 1722 में सैफ खान गवर्नर बने। सैफ खान काबुल के जाने माने गवर्नर अमीर खान के पुत्र थे। 1740 में अलीवर्दी खान ने सैफ खान के खिलाफ विद्रोह कर दिया ‌ कटिहार के ‘मनिहारी’ के समीप बलदियाबारी में शौकतजंग व सिराजुद्दौला के बीच जंग हुआ।

“पुर्णियाॅ” (1877 में प्रकाशित) में लिखा है कि पुर्णियाॅ में सदर सब डिवीजन के अन्तर्गत सात थाना थे। यह सब डिवीजन 2572 स्कवायर मील में था। 2634 गाॅव थे। 1 लाख 57 हजार 733 घर थे। 7, 73, 310 आबादी थी, जिसमें 5,36,248 यानी 69.5 फीसदी हिन्दू थे। 1870-71 में 5 मजेस्ट्रियल और रेवेन्यू कोर्ट थे। अररिया सब डिवीजन में तीन पुलिस थाना: अररिया, रानीगंज एवं मनिहारी था। अररिया सब-डिवीजन 1 नवम्बर 1864 को अस्तित्व में आया था। यह 1040 स्क्वायर मील में था। 680 गाॅव और टाउनशिप थी। किशनगंज सब डिवीजन 17 दिसम्बर 1845 को अस्तित्व में आया। 1340 स्क्वायर मील में किशनगंज सब डिवीजन था। इसके अन्दर 865 गाॅव और शहर थे। 88,473 घर थे। कुल आबादी 5,64,430 थी। इसमें 2,17,808 हिन्दू और 3,46,330 मुस्लिम आबादी थी। यहाॅ 38.6 फीसदी हिन्दू और 61.4 फीसदी मुस्लिम आबादी थी। ओ मेली के द्वारा 1911 में डिस्ट्रिक्ट गजेटियर, पुर्णियाॅ में बताया गया है कि प्रशासनिक दृष्टिकोण के तहत पुर्णियाॅ जिला में 3 सब डिवीजन पुर्णियाॅ सदर, अररिया और किशनगंज थे।

1908 में पुर्णियाॅ जिला में सर्वे व सेटलमेंट आपरेशन (1901-1908) के मुताबिक पुर्णियाॅ जिला 4,994 मील में था। जिला में उस समय 13 थाना थे। अररिया सब डिवीजन में 3 थाना था। यह सब डिवीजन 1977 सृक्वायर मील में था। फारबिसगंज 376 मील में था। रानीगंज 270 और अररिया 431 मील में था। इसी तरह किशनगंज सब डिवीजन में 3 थाना था। किशनगंज सब डिवीजन 1346 स्क्वायर मील में था। बहादुरगंज 398, इस्लामपुर 626 और किशनगंज 327 मील में था। पुर्णियाॅ सदर सब डिवीजन में 7 थाना था। यह सब डिवीजन 2571 मील में था। धमदाहा 520 मील में था, जब कि कोढ़ा 421, पुर्णियाॅ 424, कसबा-अमौर 279, गैपालपुर 323, कदवा 365 एवं सैफगंज 239स्क्वायर मील में था।
 
अबुल फजल ने बताया कि सरकार पुर्णियाॅ के पास 100 घुड़सवार और 5,000 सैनिक थे। ईस्ट इण्डिया गजेटियर में हेमिल्टन ने पेज 687 में यह जानकारी दी है। उन्होंने बताया है कि बंगाल प्रान्त का पुर्णियाॅ सबसे बड़ा जिला है जो कि 26 डिग्री नार्थ लेटीट्यूड पर स्थित है। नार्थ में मोरंग हिल और नेपाल, पूर्व में दिनाजपुर और पश्चिम में तिरहुत और भोजपुर था। 1790 में पुर्णियाॅ में 2784 गांव किराया देते थे। जिला 2351 स्क्वायर मील में था। 1951 की जनगणना के मुताबिक पुर्णियाॅ जिला में पुर्णियाॅ, कटिहार, अररिया, किशनगंज व फारबिसगंज चार टाउन थे। तभी जिला की आबादी 25,25,231 थी। जिला 4885 स्क्वायर मील में था। 4555 गांव थे। 28 थाना थे। 1901 की जनगणना के मुताबिक पुर्णियाॅ की आबादी 18,74,714 थी जो 1951 में बढ़कर २25,25,281 था। यानी 50 साल में आबादी में 6,50,437 आबादी बढ़ी।
 

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पुराना पुर्णियाॅ जिला का इतिहास काफी समृद्ध है। चारों ओर जल और जंगल से घिरा पुर्णियाॅ शिकारियों के लिए जन्नत था। अंग्रेज शिलिंगफोर्ड ने पुर्णियाॅ में सबसे बड़े राइनो का शिकार किया था। यह अभी भी कलकत्ता के म्यूजियम में स्टैंडिंग पोजीशन में है। यहाॅ नदियों के किनारे रूस, यूरोप से भी प्रवासी पक्षियां आती थी। राजा कृत्यानंद सिंह ने ‘शिकार इन हिल्स एण्ड जंगल्स’ और ‘पुर्णियाॅ‌ एक शिकारलैण्ड’ किताब लिखी, जिसमें यहां पाए जाने वाले जीव जन्तु के अलावा शिकार के बारे में उन्होंने जानकारी दी है। बनैली राज के राजा कृत्यानंद सिंह के अलावा कई अंग्रेज अफसर शिकार करते थे। यहां हिरण, लियोपार्ड, नीलगिरी, राइनो, वाइल्ड बफेलो, चीलत, पिग, जेकल और फाॅक्स काफी संख्या में थे। जे इंग्लिश ने ‘टेंट लाइफ इन टाइगर लैण्ड्स’ (1892) में लिखा है कि पुर्णियाॅ और उत्तर भागलपुर का इलाका विश्व का सबसे बेहतर टाइगर शूटिंग ग्राउंड है। ओ मेली ने लिखा है कि कालियागंज इंडिगो फैक्ट्री और दियारा के जंगलों में टाइगर थे।
 
पुर्णियाॅ गांगेटिक श्रेत्र है। यहां की मिट्टी उपजाऊ है। वन सम्पदा की भरमार है। पूर्ण अरण्य यानी सघन फोरेस्ट के कारण ही इसका नाम पुर्णियाॅ पड़ा। कोसी, महानंदा, पनार, परवान, कनकई नदियों से यह जिला घिरा हुआ है। यहां नदियों में काफी संख्या में मगरमच्छ पाया जाता था। वर्ष 1930-40 के दशक में मगरमच्छ के स्किन का पुर्णियाॅ में व्यापार होता था। यहां रेप्टाइल्स की भरमार थी। कोबरा, करैत के अलावा पनिया दराज जैसे सांपों का काफी आतंक था। लिजार्ड भी बहुतायत में पाए जाते थे। यहां काफी संख्या में इनसेक्ट्स पाए जाते हैं। चींटी, मक्खी समेत इनसेक्ट्स की की प्रजातियां यहां थी। यहां कई तरह की पक्षियां भी पाई जाती थी। अंग्रेजों ने इसका वर्गीकरण किया है। इसके तहत गेम एण्ड नाॅन गेम वाइल्ड बर्ड्स, माइग्रेटरी और नाॅन माइग्रेटरी बर्ड्स और लैण्ड एण्ड वाटर बर्ड्स के तौर पर पक्षियां यहां हजारों की तादाद में पाई जाती थी।

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नदियों से घिरे रहने के कारण यहां मछली भी प्रचुर मात्रा में पाई जाती थी। ओ मेली के मुताबिक बुआरी, हिलसा, टेंगड़ा, बचुवा, कनचट्टी, कतला, रोहू मिरका, कबै, गरै, सौरी, सिंघी और मंगूरी का जिक्र किया है। उन्होंने लिखा है कि फिशरी इस जिला में नेगलेक्टेड था। फिशरमैन के पास पूंजी नहीं थी। उन्हें प्रशिक्षण भी नहीं था। इसके बावजूद मछली का एक्सपोर्ट किया जाता था। बुकानन ने अपनी रिपोर्ट में मछली की 134 वैरायटी का जिक्र किया है। उनके मुताबिक जिला में 14 हजार से अधिक फिशरमैन थे। कोरी कोसी स्थित वनभाग स्थित जंगलों के बीच बड़ा सा तालाब भी है।

चम्पानगर ड्योढ़ी के श्री विनोदानंद सिंह बताते हैं कि शिकार के लिए पुर्णियाॅ सात दशक पहले तक उपयुक्त जगह था। मनिहारी के अंग्रेज जमीन्दार शिलिंगफोर्ड ने कोढ़ा में गेडा़ का शिकार किया था, इसलिए इस जगह का नाम गेड़ाबाड़ी (कटिहार) पड़ा। श्री विनोदानंद सिंह के मुताबिक बचपन में खुद उन्होंने यहां लियोपार्ड और मगरमच्छ समेत कई तरह के जीव जन्तु देखे हैं। यहां टाइगर, राइनो, हिरण भरा हुआ था। कलकत्ता, दार्जिलिंग, इलाहाबाद म्यूजियम में पुर्णियाॅ के राइनो अभी भी हैं। अभी भी यहां कई तरह के जीव जन्तु पाए जाते हैं। महानंदा में डाल्फिन और परमान में घड़ियाल मिल चुका है।

– नोवेल्टी एण्ड कम्पनी, पटना के प्रबन्ध निदेशक श्री नरेन्द्र कुमार झा के सहयोग से 

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