कामरूप कामाख्या प्रशासन: ‘कामाख्या मंदिर ट्रस्ट’ में ‘मिथिला का प्रतिनिधि’ बहाल करने के लिए शीघ्र बैठक

महाराजा रामेश्वर सिंह

गौहाटी (असम) : मिथिला के लोगों के लिए खुशखबरी। कामरूप कामाख्या प्रशासन शीघ्र ही कामाख्या मंदिर ट्रस्ट के चयनित पदाधिकारियों की बैठक बुला रही है जिसमें कामाख्या मंदिर के विकास में दरभंगा के महाराजाओं की भूमिका पर विस्तार से चर्चा की जाएगी, साथ ही, इस बात पर विशेष पहल की जाएगी की मंदिर ट्रस्ट में मिथिला क्षेत्र का एक प्रतिनिधि अवश्य रहे। सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार मंदिर प्रशासन वर्तमान में जिला प्रशासन के अधीन है। 

विगत दिनों मिथिला-समाज सेवी श्री भवानन्द झा और मिथिला समन्वय समिति के पूर्व अध्यक्ष प्रेमकांत चौधरी कामरूप कामाख्या के डिप्टी कमिशनर श्री पल्लव गोपाल झा से मुलाकात किये थे। मुलाकात के दौरान भवानन्द झा ने विगत अप्रैल माह में आर्यावर्तइण्डियननेशन(डॉट) कॉम और इण्डियनमार्टियर्स(डॉट)इन द्वारा प्रेषित आवेदन पर चर्चा किये। उपायुक्त ने कहा कि वे उपलब्ध सभी दस्तावेजों का अध्ययन किये हैं, साथ ही, मिथिला के लोगों से अपील भी किये हैं कि वे महाराजा दरभंगा और कामरूप कामाख्या मंदिर से सम्बंधित जो भी दस्तावेज उपलब्ध हो, उपयुक्त के कार्यालय में उपलब्ध कराएं। 

उपायुक्त ने कहा कि मंदिर 22-23 और 24 जून को आध्यात्मिक उद्देश्य के बंद थी, अतः उचित समय पर कामरूप कामाख्या मंदिर ट्रस्ट के सभी पदाधिकारियों को बुलाकर इस विषय पर विस्तार से चर्चा करेंगे। प्रशासन की कोशिश अवश्य होगी कि मिथिला की गरिमा और दरभंगा के महाराजाओं द्वारा कामरूप कामाख्या मंदिर और असम के विकास में उनकी भूमिका के मद्दे नजर सकारात्मक पहल की जाएगी। ऐसा करने से मिथिला और असम के लोगों की ऐतिहासिक संबंधों को पुनः नवीकरण किया जा सकता है। 

ज्ञातव्य हो कि अप्रैल माह में भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के गुमनाम क्रांतिकारियों के वंशजों की खोज कर इण्डियनमार्टियर्स(डॉट)इन नामक संस्था और दरभंगा के अंतिम राजा महाराजाधिराज डाक्टर सर कामेश्वर सिंह द्वारा स्थापित ‘दी इण्डियन नेशन और ‘आर्यावर्त’ (अब मृत) अख़बारों के नामों को और महाराजाओं की गरिमा को पुनः स्थापित करने वाला वेबसाइट आर्यावर्तइण्डियननेशन(डॉट)कॉम प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री हिमंता बिस्वा सर्मा और कामरूप कामाख्या के प्रशासनिक अधिकारियों को पत्र भी लिखा था । 

कोई 40-पृष्ठ के दस्तावेजों के साथ लिखे गए पत्र में असम सरकार और कामरूप कामाख्या के अधिकारियों से निवेदन किया गया है कि नीलांचल पर्वत पर स्थित कामाख्या मंदिर और उसके ऊपर भुनेश्वरी मंदिर में, आस-पास के इलाकों के विकास में दरभंगा के तत्कालीन महाराजा रामेश्वर सिंह और तत्पश्चाय्त उनके बड़े पुत्र महाराजाधिराज डॉ सर कामेश्वर सिंह का योगदान आज भी जीवित है। इस बात का जिक्र करते कि असम और गौहाटी के लोग आज भी दरभंगा के महाराजाओं की उदारता को याद रखे हुए हैं, पत्र आगे लिखता है कि मिथिला के महाराजाओं और भारत में कोई चार करोड़ मैथिलों के सम्मानार्थ कामाख्या मंदिर ट्रस्ट में मिथिला से एक प्रतिनिधि को स्थान दिया जाय।   

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आर्यावर्तइण्डियननेशन(डॉट)कॉम से बात करते हुए भवानन्द झा ने कहा कि “उपायुक्त इस विषय को लेकर बहुत ही संवेदनशील है। मिथिला-असमी संस्कृति और आध्यात्म को और बेहतरीन तथा प्रगाढ़ बनाने के लिए वे चिंतित भी हैं। इस विषय पर बहुत ही विस्तार से चर्चा किये, साथ ही, यह विश्वास भी दिलाये कि इस वर्ष मंदिर पट्ट खुलने के बाद कामाख्या मंडित ट्रस्ट के अधिकारियों, सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों और प्रशासन के अधिकार क्षेत्र में जो भी बेहतर व्यवस्था होगा, वे करने को तत्पर हैं। 

श्री भवानन्द झा ने बताया कि आज़ादी के पूर्व और आज़ादी के बाद भारत की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक, आध्यात्मिक क्षेत्रों के विकास में अहम् भूमिका अदा करने वाले दरभंगा के महाराजाओं – लक्ष्मेश्वर सिंह, रामेश्वर सिंह और डॉ सर कामेश्वर सिंह – के सम्मानार्थ तथा मिथिला की सांस्कृतिक गरिमा को पुनः बहाल करने के उद्देश्य से नीलांचल पहाड़ पर स्थित कामरूप कामाख्या मंदिर ट्रस्ट में “मिथिला का एक प्रतिनिधि” यह पहल एक बहुत ही बेहतरीन पहल है और उनकी इक्षा है कि इसका अंत भी बहुत सकारात्मक हो। 

पत्र में इस बात की भी चर्चा की गई है कि दरभंगा के महाराजा रामेश्वर सिंह, जो कामाख्या शक्तिपीठ के एक सिद्ध पुरुष भी थे, जिन्होंने भुनेश्वरी मंदिर के एक गेस्ट हॉउस भी बनाया था (आज उस पर किसी अन्य व्यक्ति का कब्ज़ा है) की मृत्यु 1929 में हुई। महाराजा रामेश्वर सिंह की मृत्यु के बाद उनके बड़े पुत्र महाराजाधिराज डॉ सर कामेश्वर सिंह दरभंगा राज का बाग़-डोर संभाले। कामाख्या के विकास और असम के लोगों के विकास के लिए उनका भी योगदान अक्षुण रहा। डॉ सर कामेश्वर सिंह की मृत्यु आज से कोई छः दशक पूर्व देश की आज़ादी के कोई 14 वर्ष बाद 1 अक्टूबर, 1962 को हुई। 

महाराजा रामेश्वर सिंह (बीच) में

महाराजाधिराज डॉ सर कामेश्वर सिंह की मृत्यु के बाद दरभंगा राज में उनका अपना कोई रक्त-सम्बन्ध नहीं था, सिवाय उनकी पत्नी महारानी अधिरानी कामसुन्दरी के अलावे। महाराजाधीरज की तीन पत्नियां थी, लेकिन सभी संतानहीन रहीं।  उनकी मृत्यु के बाद उनके द्वारा बनाये गए वसीयत नामा और बाद में फेमिली सेटेलमेंट के तहत दरभंगा राज की सम्पत्तियाँ उनकी “विधवाओं” और उनके छोटे भाई राजबहादुर विश्वेश्वर सिंह के संतानों में विभक्त कर दिया गया। सम्पत्तियों की ओर सबों का रुझान इतना अधिक हो गया की दरभंगा राज की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक, आध्यात्मिक और अन्य क्षेत्रों की गरिमा क्रमशः मिट्टी पलीद होती चली गई। 

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पत्र में लिखा गया है: “आपसे निवेदन है कामाख्या ट्रस्ट में स्थापना काल से महाराजा रामेश्वर सिंह की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। उनके पश्चयात महाराजा कामेश्वर सिंह भी सकारात्मक कार्य किये। लेकिन महाराजा की मृत्यु के बाद दरभंगा राज में ऐसा कोई ‘पुरुष’ नहीं बचा जो दरभंगा राज की, महाराजाधिराज की गरिमा और संस्कृति को बचा सके। समयांतराल कामरूप कामाख्या में भी दरभंगा की भूमिका नगण्य होती गयी और लोगों के मानस पटल से मिथिला का नाम मिटने लगा, मिट गया। कामाख्या ट्रस्ट में दरभंगा के महाराजा रामेश्वर सिंह की भूमिका को मद्दे नजर, भुनेश्वरी मंदिर के निर्माण में उनकी भूमिका को ध्यान में रखकर, मिथिला के लोगों के सम्मानार्थ, दरभंगा राज के सम्मानार्थ – कामरूप कामाख्या ट्रस्ट में एक स्थायी स्थान दिया जाय। हम सबों का यह प्रयास सम्पूर्ण मिथिला के लिए बहुत प्रभावकारी होगा।” 

पत्र में यह भी लिखा गया है कि चुकी महाराजाधिराज डॉ सर कामेश्वर सिंह की तीसरी पत्नी (विधवा) महारानी अधिरानी कामसुन्दरी भी अपने जीवन के 92 वें वसंत को पार कर चुकी हैं और ढलती उम्र तथा गिरते स्वास्थ्य के कारण वे अपने पति और ससुर की इक्षाओं को पूरा करने में असमर्थ पा रही हैं। कोई चौदह वर्ष पूर्व सं 2008 के जून महीने में महारानी कामरूप कामाख्या मंदिर में स्वयं पूजा-अर्चना की थी और उस समय इस बात पर चर्चा की गई थी की मिथिला के लोगों के सम्मानार्थ, महाराजाओं के सम्मानार्थ कामरूप कामाख्या मंडित ट्रस्ट में मिथिला का एक प्रतिनिधि को स्थान मिले। 

लेकिन दरभंगा राज के तरफ से, खासकर जो उनके पति की मृत्यु के बाद उनकी सम्पतियों के लाभार्थी हुए, किसी के तरफ से कोई यत्न नहीं किया गया। आज महारानी अधिरानी कामसुन्दरी का स्वास्थ्य बहुत बेहतर नहीं है। ईश्वर न करे, लेकिन प्रारब्ध और नियति को कौन टाल सकता है; महारानी अधिरानी अगर आँख बंद कर लेती हैं तो दरभंगा राज में दरभंगा के महाराजा के “प्रत्यक्ष रक्त सम्बन्ध” का मनुष्य का भी अंत हो जायेगा, साथ ही, वे अपने पति और ससुर की सांस्कृतिक विरासत और आध्यात्मिक गरिमा को बिना बहाल किये, पूरा किये इस लोक से प्रस्थान कर लेंगी, जो अच्छा संकेत नहीं होगा। 

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ज्ञातव्य हो कि दरभंगा के महाराजा सर लक्ष्मेश्वर सिंह की मृत्यु 122 वर्ष पहले हुयी। उनकी मृत्यु के उपरांत दरभंगा राज की गद्दी पर बैठने वाले उनके अनुज महाराजा सर रामेश्वर सिंह की मृत्यु भी करीब 91 वर्ष पहले हुई । तत्पश्चाय्त महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह को भी 59 वर्ष से अधिक जो गए इस पृथ्वी को छोड़े हुए। परन्तु 12 जून सं 1897 से लेकर आज तक महाराजा का वचन पूरा नहीं हो सका। हो भी कैसे? महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह की मृत्यु के बाद तो दरभंगा राज की सम्पत्ति कौड़ी-जैसा लोगों ने लुटा – कुछ अपने, कुछ पराए – फिर शक्तिपीठ कामरूप कामाख्या मंदिर में दिए गए उस सम्मानित वचन को पूरा करने वाला शायद आज की पीढ़ी मेंकोई है अथवा नहीं, यह खरबों का प्रश्न है। इससे भी बड़ा प्रश्न यह है कि क्यादरभंगा राज की वर्तमान पीढ़ी मिथिलाञ्चल के लोगों की सांस्कृतिक अस्तित्व औरगरिमा बचा पायेगी जिसके लिए दरभंगा के महाराजाओं ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिए ?  

कोई चौदह वर्ष पहले महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह की पत्नी महरानी अधिरानी कामसुन्दरी देवी कामाख्या की यात्रा पर थीं। एक उत्सव था महारानी की यात्रा। उस  यात्रा के दौरान कामाख्या मंदिर अथवा नीलांचल पर्वत श्रंखला पर स्थित शायद ही कोई मनुष्य रहा होगा, जो उस उत्सव में शामिल नहीं हुआ होगा। कामाख्या मंदिर के सभी पण्डितगण महारानी की अगुआई किए थे। महारानी भी अपने पुरखों द्वारा संपन्न सभी कार्यों को देखीं। वे भुनेश्वरी मंदिर भी देखीं जहाँ उनके ससुर महाराजा रामेश्वर सिंह माँ काली की साधना करते थे । उस यात्रा के दौरान एक सवाल व्ही उठाया गया था कि “असम के इस कामरूप कामख्या मंदिर के अध्यक्ष थे उनके ससुर – महाराजा रामेश्वर सिंह और दरभंगा राज और महाराजाओं का इस मंदिर और आसपास के क्षेत्रों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान – था, फिर कामाख्या मंदिर के ट्रस्ट में राज दरभंगा का एक स्थायी-सदस्य क्यों नहीं है? वैसे भी महाराजा रामेश्वर सिंह कामाख्या मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष थे। 

लेकिन फिर क्या हुआ? क्यों नहीं दरभंगा राज के वंशज इस दिशा में अग्रसर हुए? क्या राज दरभंगा की सदस्यता सिर्फ मिथिलाञ्चल के करोड़ों लोगों का प्रतिनिधित्व नहीं करता? क्या दरभंगा राज की आज  की पीढ़ियों में इतनी क्षमता नहीं है जो अपने पूर्वजों की संस्कृति-गरिमा को बचा सकें? अनंत सवाल है। 

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