1939: महाराजा दरभंगा का ‘सर्वाधिकार का प्रतिक’ वाला उपहार और फिर अंग्रेजों का जाना 

महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह भारत के तत्कालीन गवर्नर जेनरल लार्ड लिनलिथगो को सर्वाधिकार का प्रतिक उपहार प्रदान करते 

शायद परतंत्र और स्वतन्त्र भारत में ऐसी कोई दूसरी घटना नहीं हुई जब राष्ट्राध्यक्ष (सन 1947 से पूर्व गवर्नर जेनेरल और सन 1947 के बाद राष्ट्रपति) अपनी कुर्सी को छोड़कर सदन के पटल पर आये हों और सदन के किसी सदस्य के “उपहार” को बड़े ही अदब से स्वीकार किये हों – वह भी ‘सर्वाधिकार का प्रतिक गदा । ज्ञातब्य हो की लार्ड लिनलिथगो के समय-काल में ही भारत में आज़ादी की लड़ाई करवट ले ली थी और लार्ड लिनलिथगो भी इस बात को जानते थे कि महाराजाधिराज का यह उपहार उनके लिए अंतिम उपहार है, क्योंकि अब अंग्रेजी हुकूमत का अंत का समय आ गया है।” 

आर्यावर्तइण्डियननेशन(डॉट)कॉम के पास उपलब्ध दस्तावेज़ों और तस्वीरों से यह स्पष्ट है कि तत्कालीन कौन्सिल ऑफ़ स्टेट (अब राज्य सभा) के आजीवन सदस्य दरभंगा के महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह भारत के अंतिम से तीसरे गवर्नर जेनेरल लार्ड लिनलिथगो को कई मन चाँदी के बने ‘मेस’ उपहार स्वरुप प्रदान किये थे, और लार्ड लिनलिथगो उस ऐतिहासिक उपहार को सहर्ष स्वीकार भी किया था। 

सूत्रों के अनुसार, आज इस सम्बन्ध में महाराजाधिराज की अगली पीढ़ियों को फक्र हो अथवा नहीं (होने का कोई वजह भी नहीं है, खासकर महाराजाधिराज की सम्पत्तियाँ मिलने, सम्पत्तियों को बेचने के बाद), लेकिन मिथिलाञ्चल के करीब चार करोड़ लोगों और बिहार के नागरिकों के लिए फक्र की बात है। वह उपहार (मेस) आज भी ब्रिटिश म्यूजियम में आम लोगों के दर्शनार्थ भारत के तत्कालीन महाराजाधिराज के सम्मान में रखा हुआ है। 

पटना विश्वविद्यालय के पूर्व-इतिहासकारों ने यह स्पष्ट कहा था कि “आज़ादी के बाद भी, इतिहास के पन्नों में ऐसी दूसरी घटना नहीं मिलती। यदि उस ‘उपहार’ के स्वरुप और उसके बाद तत्कालीन भारत में होने वाली राजनीतिक घटनाओं को मद्दे नजर रखा जाय, तो यह कहते तनिक भी अतिशयोक्ति नहीं होता है कि महाराजाधिराज दरभंगा सर कामेश्वर सिंह ने तत्कालीन कौन्सिल ऑफ़ स्टेट में आज़ादी की लड़ाई का बिजुल बजा दिए थे। उपहार तो मेस (गदा) था, लेकिन वह करोड़ों भारतीयों एक तरफ से आदाद भारत के लिए एक प्रतिक था। उस उपहार के बाद भारत में कोई आठ ऐसी राजनीतिक घटनाएं हुई जो अंग्रेजी हुकूमत को भारत-भूमि से दखलन्दाज कर दिया, देश स्वतंत्र हो गया।” 

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परन्तु, उस ऐतिहासिक घटना को न तो महाराजाधिराज के आज की पीढ़ियां, न बिहार के लोग, न भारत का आवाम या फिर सं 1947 के बाद आज़ाद भारत में कुकुरमुत्तों के तरह पनपे राजनेतागण जानते हैं और न ही कोई मतलब है। अगर ऐसा नहीं होता तो आज देश के उच्च सदन में उस उपहार का जिक्र अवश्य होता। जो नहीं है। और जहाँ इसका लिखित और सम्मानित उल्लेख है, उस हुकूमत को हमने 75 वर्ष पहले भगा दिया था। लेकिन आज उस उपहार के बारे में, उस तथ्य के बारे में, उस अवसर के बारे में छवि के साथ अमूल्य दस्तावेज आज भी लन्दन के संग्रहालय में उपलब्ध है, सुरक्षित हैं। 

दस्तावेज के अनुसार: 

2238; Presentation of a mace to the council of stateby Sir Kameshwar Singh of Darbhanga  IOR/L/PJ/7/1922  1 Apr1938-9 Jun 1938 

Slim folder of papers- transferred toSecretary P & J dept 6 May 1938Extract from official report of the Courtof State Debates 1 April 1938  

Comprised:- Letter from Silversmiths, Thomas Fattorini Ltd of Birmingham – asking if could make a mace. Also enclosed advert for that company. 

Accompanied by note asking for foundation for this letter and reply that it seems to refer to the mace as “Sir Harvard D’Egville is acting as the Maharajah’s agent in this matter” Also noted that noanswer required. 

A cutting from the official report pasted to a larger sheet. 

PRESENTATION OF A MACE TO THE COUNCIL OF STATE BY THE HONOURABLE MAHARAJADHIRAJA SIR KAMESHWAR SINGH OF DARBHANGA 

THE HONOURABLE THE PRESIDENT:- Honourable Members, I have very important and interesting news to give you, that our esteemed colleague, the Honourable Maharajadhiraja Sir Kameshwar Singh of Darbhanga has presented a mace to this House. (Applause) He has particularly asked me to readh is letter and I will, therefore, do it.

He says. 

“My dear Sir Maneckji – Apropos the talk we had I write this brief note to confirm that I shall be delighted to present a mace to the Council of State as a token of my high regard for the House and its just non-official and distinguished President (Applause). I hope you will do me the honour of accepting the gift” 

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I had to ask the Governor General’s permission to accept this gift and I am glad to say that he has accorded his permission. The Private Secretary to His Excellency theGovernor General writing to me says.

“His Excellency has read with great interest your letter of the 24th March in which you inform him of the generous decision of the Honourable Maharajadhiraja of Darbhanga to present a mace to the Council of State. He has great pleasure according the permission for which you ask to be allowed to accept the mace on behalf of the Council of State.” 

As regards the ceremony with which the mace will be received into this House I shall consult the leaders of the Parties and other members at the proper time.  

End of cutting 

Then “For information – W T OTTEWILL”  

लार्ड लिनलिथगो सं 1936 में भारत के गवर्नर जेनेरल बने और सन 1943 तक बने रहे। उनके कार्यावधि के दौरान भारत में आठ महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाएं घटी। सर्वप्रथन उनके आगमन के एक वर्ष बाद सन 1937 में गवर्नमेंट ऑफ़ इण्डिया एक्ट, 1935 तहत पहली बार मद्रास, सेंट्रल प्रोविंस, बिहार, उड़ीसा, यूनाइटेड प्रोविंस, बम्बई प्रोविंस, असम, बंगाल, पंजाब, सिंध और एन डब्लू एफ पी क्षेत्रों में चुनाव हुआ। चुनाव परिणाम फरवरी, 1937 में आये और पंजाब और सिंध को छोड़कर सभी आठ प्रोविंसों में इण्डियन नेशनल कांग्रेस एक मजबूत पार्टी के रूप में उभरा।  उस समय भी आल इण्डिया मुस्लिम लीग किसी भी प्रोविंस में सरकार बनाने में विफल रही। इतना ही नहीं, कांग्रेस की सरकार लार्ड लिनलिथगो के खिलाफ बगावत कर त्यागपत्र भी दी और इसका वजह था कि भारतीयों को बिना पूछे उन्हें  द्वितीय विश्व युद्ध में धकेल दिया गया। 

कांग्रेस सरकार की निर्णय को इंडियन मुस्लिम लीग के नेताओं ने “डे ऑफ़ डेलिब्रेन्स” (22 दिसम्बर, 1939) के रूप में मनाया था। अगर देखा जाय तो इस दिन ही अखंड भारत का दो फांक हो गया था जो बाद में लार्ड माउण्टबेटन के समय भारत और पाकिस्तान के रूप में ज़मीन पर आया। लार्ड लिनलिथगो के समय में ही  लाहौर रिजोलुशन (मार्च 22-24, 1940) को अपनाया गया था।  इस रिजोलुशन को मुहम्मद जफरउल्लाह खान लिखे थे और बंगाल के तत्कालीन प्रधान मंत्री ए के फज़लुल हक़ ने प्रस्तुत किया था और आल इण्डिया मुस्लिम लीग उसे स्वीकार की थी। 

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भारत के तत्कालीन गवर्नर जेनरल लार्ड लिनलिथगो

लार्ड लिनलिथगो के समयावधि में ही क्रिप्स मिशन जिसे ब्रिटिश सरकार द्वारा द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीयों का सहयोग प्राप्त करने के लिए किया गया।  यह पूर्ण रूपेण एक असफल प्रयास था, लेकिन इसने भारतीय आज़ादी की लड़ाई को एक अलग मोड़ दिया। 1942 के मार्च  के उत्तरार्ध में सर स्टैफ़ोर्ड क्रिप्स, जो की लेबर पार्टी से सम्बंधित थे, की अध्यक्षता में एक मिशन भारत आया था।  इस मिशन का मुख्य उद्द्देश्य भारतीय नेताओं, मुख्यतः कांग्रेस व  मुस्लिम लीग के नेताओं के सहयोग से युद्ध काल में भारतीयों का सहयोग प्राप्त करना था। बदले में क्रिप्स ने युद्ध की समाप्ति के उपरांत भारत में चुनाव कराने व औपनिवेशिक दर्जा प्रदान करने वादा किया, जिसके  तात्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल एकदम विरुद्ध थे। 
 
क्रिप्स प्रस्ताव लेबर पार्टी के सौजन्य से भेजा गया था जिसका मानना था की भारतीयों को स्वशासन का  अधिकार है। क्रिप्स ने भारतीय नेताओं के साथ मुलाकात के बाद एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया जिसे क्रिप्स प्रस्ताव कहते हैं, जिसे कांग्रेस व मुस्लिम लीग दोनों ने अस्वीकृत कर दिया। गाँधी जी ने क्रिप्स प्रस्ताव को “दिवालिया बैंक के नाम आगामी तारीख का चेक” कहकर सम्बोधित किया।  अन्य दलों के भी इसी तरह के विचार थे क्रिप्स प्रस्ताव असफल होने के बाद कांग्रेस ने भारत छोड़ो आंदोलन छेड़ दिया , ब्रिटिश सरकार ने भी आंदोलन का दमन करने के लिए सभी उपायों का सहारा लिया  कांग्रेस के सभी बड़े नेताओ को जेल में दाल दिया गया। 

बंगाल अकाल

लार्ड लिनलिथगो के समयावधि में ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेजों को भारत से भागने का एक विश्व-स्तर पर प्रयास प्रारम्भ किये थे। साथ ही, 9 अगस्त, 1942 को “अंग्रेज भारत छोड़ो” आंदोलन की शुरुआत हुयी थी। आज़ाद हिन्द फौज का गठन भी सन 1942 में ही हुआ था। इतना ही नहीं, लार्ड लिनलिथगो 1943 का ऐतिहासिक बंगाल अकाल को भी देखा था।  

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