नई दिल्ली: मित्रों। मुझे “माफ़” करना । अगले वर्ष आने में अब चालीस दिवस बचे हैं। चालीस दिवस बाद भारत के सात राज्यों में अलग-अलग महीनों में विधान सभा का चुनाव होने वाला है। चुनाव की शुरुआत पांच राज्यों – गोआ, मणिपुर, पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड – से होने वाले हैं। इन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव फरवरी/मार्च महीने में होगी, जबकि हिमाचल प्रदेश और गुजरात में विधानसभा चुनाव क्रमशः नवंबर और दिसंबर महीने में होगी। आगामी वर्ष में ही जुलाई के महीने में देश के राष्ट्रपति का चयन होना है। इन तमाम राजनीतिक गतिविधियों को देखते, विधान सभा चुनावों में उन सात राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई में सरकार बनेगी, अथवा नहीं, कृषि कानूनों को राजपथ से खींचते हुए रायसीना हिल पर निरस्त कर दिया जायेगा। हज़ारों किसान दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर इन तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करवाने की मांग पर नंवबर 2020 से धरना दे रहे हैं।
बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन विवादास्पद कृषि कानूनों पर आखिरकार अपनी सरकार के कदम वापस खींच लिये और देश से ‘‘क्षमा’’ मांगते हुए शुक्रवार को इन्हें निरस्त करने एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से जुड़े मुद्दों पर विचार करने के लिए एक समिति बनाने की घोषणा की। गुरु नानक जयंती के अवसर पर राष्ट्र के नाम संबोधन में यह घोषणाएं की और विवादास्पद कानूनों का विरोध कर रहे किसानों व कृषक संगठनों से अपना आंदोलन समाप्त करने की गुजारिश की। उन्होंने कहा कि इन कानूनों को निरस्त करने की संवैधानिक प्रक्रिया संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में पूरी कर ली जाएगी।
ज्ञात हो कि पिछले लगभग एक साल से कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून, कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत अश्वासन और कृषि सेवा करार कानून और आवश्यक वस्तु संशोधन कानून, 2020 के खिलाफ विभिन्न राज्यों व राजधानी दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर किसान संगठन आंदोलन कर रहे थे। उन्होंने कहा, ‘‘मैं आज देशवासियों से क्षमा मांगते हुए सच्चे मन से और पवित्र हृदय से कहना चाहता हूं कि शायद हमारी तपस्या में ही कोई कमी रही होगी, जिसके कारण दीये के प्रकाश जैसा सत्य कुछ किसान भाइयों को हम समझा नहीं पाए हैं।’’ उन्होंने आंदोलन कर रहे किसानों से अपने घर वापस लौट जाने की अपील भी की।
इन कृषि कानूनों का पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में भारी विरोध हो रहा था। पंजाब और उत्तर प्रदेश में अगले साल की शुरुआत में विधानसभा के चुनाव होने हैं। ऐसे में भाजपा को उम्मीद है कि केंद्र सरकार के इस फैसले से सिख बहुल पंजाब और जाट बहुल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों की नाराजगी अब खत्म होगी।
प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि उनकी सरकार किसानों, खासकर छोटे किसानों के कल्याण और कृषि जगत के हित में और गांव-गरीब के उज्ज्वल भविष्य के लिए ‘‘पूरी सत्य निष्ठा’’ और ‘‘नेक नीयत’’ से तीनों कानून लेकर आई थी, लेकिन अपने तमाम प्रयासों के बावजूद कुछ किसानों को समझा नहीं पाई। उन्होंने कहा कि सरकार ने कृषि कानूनों को दो साल तक निलंबित रखने और कानूनों में आपत्ति वाले प्रावधानों में बदलाव तक का प्रस्ताव दिया था, लेकिन यह संभव नहीं हुआ। ज्ञात हो कि उच्चतम न्यायालय ने तीनों कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगा रखी है।
उन्होंने कहा, ‘‘आज गुरु नानक देव जी का पवित्र प्रकाश पर्व है। यह समय किसी को भी दोष देने का नहीं है। आज मैं आपको… पूरे देश को… यह बताने आया हूं कि हमने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का निर्णय लिया है। इस महीने के अंत में शुरू होने जा रहे संसद सत्र में, हम इन तीनों कृषि कानूनों को रिपील (निरस्त) करने की संवैधानिक प्रक्रिया को पूरा कर देंगे।’’ उन्होंने आंदोलनरत किसानों से गुरु पर्व का हवाला देते हुए आग्रह किया, ‘‘अब आप अपने-अपने घर लौटें। अपने खेतों में लौटें। अपने परिवार के बीच लौटें। आइए…एक नयी शुरुआत करते हैं। नए सिरे से आगे बढ़ते हैं।’’
प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने अपने पांच दशक के लंबे सार्वजनिक जीवन में किसानों की मुश्किलों और चुनौतियों को बहुत करीब से अनुभव किया है और इसी के मद्देनजर उनकी सरकार ने कृषि विकास व किसान कल्याण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। इस दिशा में उठाए गए विभिन्न कदमों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि किसानों की स्थिति को सुधारने के इसी ‘‘महा अभियान’’ में देश में तीन कृषि कानून लाए गए थे, जिनका मकसद था देश के किसानों, खासकर छोटे किसानों को और ताकत मिले, उन्हें अपनी उपज की सही कीमत और उपज बेचने के लिए ज्यादा से ज्यादा विकल्प मिले। उन्होंने कहा कि इन कानूनों की मांग बरसों पुरानी थी और संसद में चर्चा व मंथन के बाद इन्हें लाया गया था।
उन्होंने कहा, ‘‘देश के कोने-कोने में कोटि-कोटि किसानों ने, अनेक किसान संगठनों ने, इसका स्वागत किया, समर्थन किया। मैं आज उन सभी का बहुत आभारी हूं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ हमारी सरकार, किसानों के कल्याण के लिए, खासकर छोटे किसानों के कल्याण के लिए, देश के कृषि जगत के हित में, देश के हित में, गांव गरीब के उज्ज्वल भविष्य के लिए, पूरी सत्य निष्ठा से, किसानों के प्रति समर्पण भाव से, नेक नीयत से ये कानून लेकर आई थी।’’ उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन इतनी पवित्र बात, पूर्ण रूप से शुद्ध, किसानों के हित की बात, हम अपने प्रयासों के बावजूद कुछ किसानों को समझा नहीं पाए।’’
उन्होंने कहा कि कृषि अर्थशास्त्रियों ने, वैज्ञानिकों ने, प्रगतिशील किसानों ने भी उन्हें कृषि कानूनों के महत्व को समझाने का भरपूर प्रयास किया। मोदी के 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद यह दूसरा मौका है जब केंद्र सरकार विरोध और प्रदर्शन के चलते कोई कानून वापस लेने को मजबूर हुई। वर्ष 2015 में विपक्षी दलों और किसानों के भारी विरोध के बाद भूमि अधिग्रहण विधेयक वापस लेना पड़ा था। केंद्र सरकार ने संशोधित भूमि अधिग्रहण विधेयक को लेकर चार बार अध्यादेश जारी किए थे, लेकिन वह संसद से इसे मंजूरी नहीं दिला पाई।
तीनों कानूनों को निरस्त करने की घोषणा के बाद प्रधानमंत्री ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को प्रभावी व पारदर्शी बनाने के लिए एक समिति गठित करने का भी ऐलान किया। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘एमएसपी को और अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए,ऐसे सभी विषयों पर, भविष्य को ध्यान में रखते हुए, निर्णय लेने के लिए, एक कमेटी का गठन किया जाएगा। इस कमेटी में केंद्र सरकार, राज्य सरकारों के प्रतिनिधि होंगे, किसान होंगे, कृषि वैज्ञानिक होंगे, कृषि अर्थशास्त्री होंगे। ’’
भाजपा के अध्यक्ष जे पी नड्डा और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित पार्टी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी कृषि कानूनों को वापस लेने के फैसले का स्वागत किया। नड्डा ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘गुरु नानक देव जी के प्रकाश उत्सव के खास दिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई घोषणा का भाजपा ह्रदय से स्वागत करती है। प्रधानमंत्री मोदी ने पुनः साबित किया है कि वह किसान भाइयों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध हैं। इस फैसले से पूरे देश में भाईचारे का माहौल बनेगा।’
कानूनों को निरस्त करने की घोषणा का विभिन्न किसान नेताओं और राजनीतिक नेताओं ने स्वागत किया जबकि कांग्रेस ने कहा कि ‘‘देश के अन्नदाताओं ने सत्याग्रह से अहंकार का सिर झुका दिया है।’’ भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के नेता राकेश टिकैत ने कहा कि संसद में विवादास्पद कानूनों को निरस्त करने के बाद ही, वे चल रहे कृषि विरोधी कानूनों के खिलाफ आंदोलन वापस लेंगे।
टिकैत ने इस बात पर भी जोर दिया कि सरकार को फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और दूसरे मुद्दों पर भी किसानों से बात करनी चाहिए। टिकैत ने ट्वीट किया, ‘‘ आंदोलन तत्काल वापस नहीं होगा, हम उस दिन का इंतजार करेंगे जब कृषि कानूनों को संसद में रद्द किया जाएगा । सरकार, एमएसपी के साथ-साथ किसानों के दूसरे मुद्दों पर भी बातचीत करे।’’ प्रधानमंत्री मोदी की इस घोषणा के बाद भारतीय किसान यूनियन उगराहां धड़े के नेता जोगिंदर सिंह उगराहां ने कहा, ‘‘गुरुपरब पर कृषि कानून निरस्त करने का निर्णय प्रधानमंत्री का अच्छा कदम है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘सभी किसान संघ एक साथ बैठेंगे और आगे के मार्ग के बारे में तय करेंगे।’’
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट किया, ‘‘देश के अन्नदाता ने सत्याग्रह से अहंकार का सिर झुका दिया। अन्याय के खिलाफ़ यह जीत मुबारक हो! जय हिंद, जय हिंद का किसान!’’
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाद्रा ने शुक्रवार को केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के फैसले को किसानों की जीत और सरकार के अहंकार की हार करार दिया। वाद्रा ने इस फैसले के समय पर भी सवाल उठाया है। उन्होंने कहा कि आने वाले चुनावों को ध्यान में रखते हुए कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया गया है। उन्होंने प्रश्न किया कि सरकार औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए संसद के शीतकालीन सत्र का इंतजार क्यों कर रही है, और इसके लिए अध्यादेश क्यों नहीं ला रही है?’ वाद्रा ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, ‘ चुनाव पूर्व का सर्वेक्षण आया है जिसमें उनको दिख रहा है कि परिस्थितियां ठीक नहीं हैं, तो अब वह चुनाव से पहले माफी मांगने आ गये हैं। देश भी ये समझ रहा है।’’
उन्होंने कहा, ‘इस सरकार के नेताओं ने किसानों को क्या क्या नहीं बोला। आंदोलनजीवी, गुंडे, आतंकवादी, देशद्रोही, यह सब किसने कहा? तब प्रधानमंत्री जी चुप क्यों थे ? बल्कि उन्होंने ही आंदोलनजीवी शब्द बोला था।’’ किसान आंदोलन में जान गंवाने वाले किसानों को याद करते हुये वाद्रा ने कहा कि उनके भाई राहुल गांधी ने बहुत पहले कहा था कि सरकार को किसानों की ताकत के आगे झुकना होगा और आज जो हुआ है वह किसानों की जीत और अहंकार की हार है। वाद्रा ने कहा, ‘‘जब किसानों की हत्या हो रही थी, जब किसानों को मारा जा रहा था, लाठियां बरसाई जा रही थीं, उनको गिरफ्तार किया जा रहा था, तो यह सब कौन कर रहा था? आपकी ही सरकार तो कर रही थी। आज आप आकर कह रहे हैं कि यह कानून आप वापस लेंगे, तो हम कैसे आपकी नियत पर भरोसा करें?’’ उन्होंने कहा, ‘‘मुझे खुशी इस बात की है कि सरकार समझ गयी है कि इस देश में किसान से बड़ा कोई नहीं है। इस देश में अगर एक सरकार किसान को कुचलने की कोशिश करती है और किसान खड़ा हो जाता है, तो उस सरकार को अंत में झुकना ही पड़ेगा।’’
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने घोषणा का स्वागत करते हुए कहा कि कानूनों के विरूद्ध प्रदर्शन करते हुए जान गंवाने वाले किसानों की ‘‘शहादत’’ अमर रहेगी। उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘आज प्रकाश दिवस पर कितनी बड़ी खुशखबरी मिली। तीनों कानून रद्द। 700 से ज्यादा किसान शहीद हो गए। उनकी शहादत अमर रहेगी। आने वाली पीढ़ियां याद रखेंगी कि किस तरह इस देश के किसानों ने अपनी जान की बाजी लगाकर किसानी और किसानों को बचाया था। मेरे देश के किसानों को मेरा नमन।’’
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने किसानों को तीन कृषि कानूनों के खिलाफ अथक संघर्ष करने के लिए बधाई दी और कहा कि भाजपा ने जिस ‘‘क्रूरता’’ से व्यवहार किया, उससे वह विचलित नहीं हुए। बनर्जी ने ट्वीट किया, ‘‘हर उस किसान को मेरी ओर से हार्दिक बधाई जिसने अथक संघर्ष किया और भाजपा ने जिस क्रूरता से आपके साथ व्यवहार किया, उससे आप विचलित नहीं हुए। यह आपकी जीत है! उन सभी लोगों के प्रति मेरी संवेदनाएं है जिन्होंने इस लड़ाई में अपने प्रियजनों को खो दिया।’’
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर ने ट्वीट कर प्रधानमंत्री को धन्यवाद दिया और उम्मीद जतायी कि केंद्र सरकार ‘‘किसानी’’ के विकास के लिए इसी तरह बेहतर प्रयास करती रहेगी। पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने इस घोषणा को ‘‘सही दिशा में उठाया गया कदम’’ करार दिया। उन्होंने यह भी कहा, ‘‘किसानों के बलिदान का लाभ मिला है।’’ हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने कहा कि तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के फैसले को प्रधानमंत्री की ओर से प्रदर्शनरत किसानों को तोहफे के तौर पर देखा जाना चाहिए। उन्होंने प्रदर्शनरत किसानों से अपने घर लौटने की भी अपील की। (पीटीआई/भाषा के सहयोग से)