भारत में ‘कदम्ब’ के वृक्षों/फलों का आकलन करने में ‘उदारता’ नहीं दिखाए, परिणाम: ‘कम स्पर्म, चीनी, कैंसर, वेजाइना जैसी बीमारियों (भाग-2)

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी 'कदम्ब' का पौधा लगाते

रामनगर / पटना / नई दिल्ली :  सम्मानित श्री अमिताभ बच्चन साहब भले ‘चीनी कम’ फिल्म बनायें, फिल्म के पट-कथा का जो भी अर्थ हो, लेकिन शाब्दिक अर्थ में भारत ही नहीं, विश्व के लोग तो यही समझेंगे कि मनुष्य को ‘चीनी कम’ प्रयोग करना चाहिए। परन्तु, यह सन्देश ‘सार्थक’ सिद्ध नहीं हुआ। अगर होता तो भारत में तक़रीबन 80 मिलियन लोग ‘चीनी की बिमारी’ के शिकार नहीं होते। 

इतना ही नहीं, भारत में महिलाओं को ‘गर्भ धारण’ नहीं हो पाने की एक भयंकर बीमारी सामने आ रही है। आम तौर पर वैसे कई कारणों से ‘गर्भ धारण’ नहीं हो पाता, लेकिन एक सबसे महत्वपूर्ण कारण ‘कम शुक्राणुओं की संख्या’ होती है। यह समस्या कुछ पुरुषों में, अंतर्निहित होती है। जैसे विरासत में मिली क्रोमोसोमल असामान्यता, हार्मोनल असंतुलन, फैली हुई वृषण नसें या ऐसी स्थिति जो शुक्राणु के मार्ग को अवरुद्ध करती है। इसके अलावे, कम सेक्स ड्राईव, इरेक्शन बनाये रखने में कठिनाई, अंडकोष के आस-पास दर्द या सूजन, गांठ, शरीर पर बालों की अधिक संख्या या फिर हार्मोन की असामान्यता भी हो सकते हैं। बातें छोटी-छोटी होती हैं लेकिन लोग ‘छुपाते’ हैं – कोई अपने ‘पुरुषार्थ’ पर आंच नहीं आने देते, तो कोई अपनी स्त्रीत्व पर। 

इसी तरह, भारतीय आयुर्विज्ञान की सांख्यिकी अगर सही है तो हमारे देश में तक़रीबन प्रत्येक नौ व्यक्तियों में एक व्यक्ति के शरीर में ‘कैंसर’ के लक्षण विकसित हो रहे हैं। सांख्यिकी के अनुसार वर्ष 2022 में भारत मेंकैंसर के मामलों की अनुमानित संख्या 14,61,427(क्रूड रेट: 100.4 प्रति 100,000)पाई गई। भारत में, नौ मेंसे एक व्यक्ति को अपने जीवनकाल में कैंसर होने की संभावना है। फेफड़े और स्तनकैंसर क्रमशः पुरुषों और महिलाओं में प्रमुख स्थान बना रहे हैं। बचपन (0-14 वर्ष)के कैंसर में, लिम्फोइडल्यूकेमिया (लड़के: 29.2% और लड़कियां: 24.2%) अग्रणी स्थान हो रहा है । 2020 की तुलना में2025 में कैंसर के मामलों में 12.8 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है। 

इतना ही नहीं,  भारत दुनिया की लगभग 17.31% आबादी का प्रतिनिधित्व करता है। इसका अर्थ है कि इस ग्रह पर छह में से एक व्यक्ति भारत में रहता है। लगभग 72.2% आबादी लगभग 638,000 गांवों में रहती है और शेष 27.8% लगभग 5,480 कस्बों और शहरी समूहों में रहती है। जनसंख्या जनगणना से यह स्पष्ट है कि जनसंख्या अनुपात प्रति 1,000 पुरुषों पर 940 महिलाओं का है। इसके अलावे, भारत में जीवन प्रत्याशा 68 वर्ष है, महिलाओं के लिए जीवन प्रत्याशा 69.6 वर्ष और पुरुषों के लिए 67.3 वर्ष है।

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सांख्यिकी यह भी कहता है कि भारत में अनुपात के संदर्भ में बहुत सारी असमानताएं सामने आती हैं, जिनमें से एक मौखिक स्वास्थ्य का क्षेत्र है। ग्रामीण क्षेत्रों में दंत चिकित्सक-से-जनसंख्या अनुपात निराशाजनक रूप से कम है और 72% ग्रामीण आबादी के लिए 2% से भी कम दंत चिकित्सा उपलब्ध हैं। आंकड़े गंभीर वास्तविकता प्रस्तुत करते हैं कि भारत में 95% आबादी पेरियोडोंटल बीमारी से पीड़ित है, केवल 50% टूथब्रश का उपयोग करते हैं, और केवल 2% दंत चिकित्सक के पास जाते हैं;  भारत में 291 डेंटल कॉलेजों में 23,690 स्नातक और 1,138 स्नातकोत्तर छात्र शिक्षित हैं। 

इन विषयों और सांख्यिकी को हम इसलिए यहाँ उद्धृत कर रहे हैं कि हमारे देश में एक ऐसा वृक्ष और उसका फल है जो इन तमाम बीमारियों को जड़ से मिटाने की अद्भुत क्षमता रखता है। लेकिन देश के लोग उस वृक्ष और उसके फल को कभी तबज्जो नहीं दिए। आज भी उसकी स्थिति बहुत बेहतर नहीं है। आधुनिक भाषा में कहें तो इस वृक्ष और उसके फलों को देश के समाज में, कृषि के क्षेत्र में वह स्थान नहीं मिला जिसका वह ‘हकदार’ था। यानी उसका मूल्यांकन ‘कम आँका’ गया। जानते हैं उस वृक्ष का नाम क्या है – कदम्ब का वृक्ष और उसके फल कदम्ब। 

कदम्ब के फल

और यही कारण है कि पिछले दिनों देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर मोदी ने देश के लोगों को आह्वान किया था कि जहाँ तक संभव हो सकते, जहाँ भी खाली स्थान, जमीन, खेत, खलिहान मिले, ‘कदम्ब’ का एक पौधा अवश्य लगाएं। वजह भी स्पष्ट था। ‘कदम्ब’ के पेड़ों की संख्या देश में बहुत कम है और उत्तरोत्तर नीचे की ओर ही उन्मुख है। 

देश के शीर्षस्थ वास्तुकारों का मानना है कि पेड़-पौधे घर की वास्तु स्थिति पर सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। घर में सुख-शांति और समृद्धि के लिए वास्तु के अनुसार ही पेड़-पौधे लगाना शुभ होता है। कदम का वृक्ष एक ऐसा वृक्ष है जिसके फल से न केवल उपरोक्त सभी बिमारियों का निदान हो सकता है, बल्कि इस वृक्ष को लगाने से दरिद्रता भी दूर होती है। वैसे भी अगर यूनाइटेड नेशन्स मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स प्रोग्राम के आंकड़े को माना जाय तो भारत में तक़रीबन 1.2 बिलियन आबादी, यानी देश का तक़रीबन 7 फीसदी आबादी गरीबी रेखा के नीचे दबा-कुचला जीवन जी रहा है। धार्मिक दृष्टि से यह माना जाता है कि कदम्ब के पेड़ भगवान श्री कृष्ण को सबसे अधिक प्रिय था। वास्तु शास्त्र के अनुसार कदंब का पेड़ कुंडली में मौजूद गुरु दोष से भी निजा दिलाता है। 

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बहरहाल, अविभाजित बिहार के कल के प्राकृतिक और भौगोलिक इतिहास में “काला पानी” से अलंकृत ‘पूर्णिया’ जिला में एक प्राकृतिक या ऋषि खेती को मजबूत बनाया जा रहा है। इस प्राकृतिक खेती से आने वाले समय में पूर्णिया के रामनगर क्षेत्र में कोई 50 से 60 एकड़ भूमि में प्राकृतिक घेराबन्धी के तहत कदम्ब ही कदम्ब का वृक्ष दिखेगा। 

इस प्राकृतिक कृषि के सूत्रधार श्री हिमकर मिश्रा का कहना है कि “हमारी पूरी कोशिश है कि हम इस इलाके में इस ऋषि खेती के द्वारा कदम्ब के इतने वृक्ष लगाएं, उससे उतने अधिक फल प्राप्त करें और उसके प्राकृतिक स्वरुप को बदलकर भारत के साथ-साथ विश्व के कोने-कोने में ‘कम शुक्राणु की बीमारी’, ‘चीनी की बीमारी’, ‘कैंसर के बढ़ते स्वरुप’, ‘पाइरिया’ की बीमारी, ‘भूख’ नहीं लगने की बीमारी, महिलाओं को स्तन-पान में दुघ की कमी होने जैसे बीमारी को, शारीरिक दर्द जैसी बीमारी, खांसी, वैजाइना संबधी बीमारी, मूत्र सम्बन्धी बीमारी, मोटापा, दस्त आदि जैसी बिमारियों पर नियंत्रण पा सकें।”

समर शैल प्राकृतिक फार्म के सूत्रधार श्री हिमकर मिश्रा और कदम्ब के पौधे

श्री मिश्रा का कहना है कि कदम्ब दक्षिण एशिया में आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण और तेजी से बढ़ने वाला पेड़ है। भारत में इसका उपयोग सदियों से किया जाता रहा है और इसका धार्मिक महत्व भी है। इसका उल्लेख विभिन्न धार्मिक पुस्तकों जैसे ग्राम पद्धति और भागवत पुराण में किया गया है। कदम्ब का पेड़ आमतौर पर कागज, लुगदी और लकड़ी उद्योग में उपयोग किया जाता है। इस फल का उपयोग आदिवासी लोगों के द्वारा विभिन्न खाद्य पदार्थों में किया जाता है और इसके रस का उपयोग बच्चों में गैस्ट्रिक जलन के इलाज के लिए किया जाता है। भारत में इस फल के उपयोग पर बहुत कम काम किया गया है।कदम फल के विभिन्न स्वास्थ्य लाभ हैं। 

समर शैल प्राकृतिक फार्म के सूत्रधार श्री मिश्रा का कहना है कि जैसे-जैसे कदम्ब के पेड़ों की संख्या में इजाफा होता जायेगा, फलों की मात्रा भी बढ़ती जाएगी। हमारी कोशिश होगी कि हम इसके फलों का पाउडर बनाकर न केवल भारत, बल्कि विश्व के कोने-कोने तक लोगों को पहुंचाएं। कदम्ब के फल में 75.25–80.60% नमी, 1.79–2.39% वसा, 1.74–2.11% प्रोटीन और 1.31–1.46% राख है। यह फल आयरन (28.3 मिलीग्राम/100 ग्राम), कैल्शियम (123.7 मिलीग्राम/100 ग्राम), जिंक (11.05 मिलीग्राम/100 ग्राम), तांबा (4.19 मिलीग्राम/100 ग्राम), मैग्नीशियम (71.04 मिलीग्राम/100 ग्राम) पोटेशियम (36.7 मिलीग्राम/100 ग्राम), सोडियम (10.7 मिलीग्राम/100 ग्राम), और मैंगनीज (13.7 मिलीग्राम/100 ग्राम) जैसे खनिजों से भरपूर है। 

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श्री मिश्रा आगे कहते हैं: “आज के इस इंटरनेट के युग में हम बिहार के एक कोने में, खेत में बैठकर भी विश्व के कोने में बैठे बड़े-बड़े एलोपैथी, आयुर्वेद के चिकित्सकों, वैज्ञानिकों से बातचीत कर सकते हैं, करते हैं। हम उन्हें आमंत्रित करते हैं ताकि वे इस खेती को देखकर विश्व को इन भयंकर बीमारियों से निजात दिला सकें। कदंब की पत्तियों के सेवन से शुगर को कंट्रोल किया जा सकता है। इसमें एंटी डायबिटिक के गुण पाए जाते हैं। साथ ही कदंब के पत्तों में मेथनॉलिक अर्क भी पाया जाता है। त्वचा रोगों का इलाज करने के लिए कदंब का पेड़ किसी जादुई छड़ी से कम नहीं। प्राचीन काल में त्वचा रोगों का उपचार करने के लिए इस पेड़ के अर्क का पेस्ट बनाकर इस्तेमाल किया जाता था। अर्क एंटीफंगल और एंटीबैक्टीरिया गुणों से भरपूर होता है, जो कई प्रकार के बैक्टीरिया, जैसे एस्चेरिचिया कोलाई, प्रोटीस मिराबिलिस से लड़ने में कारगर होता है।”

उनका कहना है कि “नियमित तौर पर इसका लेप लगाने से चेहरे पर निखार आता है। साथ ही दाग, धब्बे और मुहासे खत्म होते हैं। लिवर शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। आपका लिवर जितना स्वस्थ होगा आप उतने ही तंदुरुस्त होंगे। लेकिन खानपान और जीवनशैली में बदलाव के कारण आजकल अधिकतर लोग लिवर की समस्या से ग्रस्त है। ऐसे में कदंब का पेड़ लिवर के स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद होगा ।”

कदम्ब का 10-20 मी ऊँचा पेड़ भारत के शुष्क वनों में पाया जाता है। इसके फूल आकार में छोटे सफेद रंगों के होते हैं। जो सूखने पर भूरे-काले रंग के हो जाते हैं तथा पूरे साल वृक्ष पर लगे रहते हैं। कदम्ब की एक विशेष बात ये है कि इसके पत्ते बहुत बड़े होते है और इसमें से गोंद निकलता है। इसके फल नींबू की तरह होते हैं। कदम के फूलों का अपना अलग ही महत्व है। प्राचीन वेदों और रचनाओं में इन सुगन्धित फूलों का उल्लेख भी मिलता है।आयुर्वेद में कदम्ब की कई जातियों यानि राजकदम्ब, धारा कदम्ब, धूलिकदम्ब तथा भूमिकदम्ब आदि उल्लेख प्राप्त होता है। चरक, सुश्रुत आदि प्राचीन ग्रन्थों में कई स्थानों पर कदम्ब का वर्णन मिलता है।

क्रमशः

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