गजब का “डी.एन.ए.” है : ऑडी गाड़ी से नौकरानी के साथ उतरते भी हैं और सब्जी खरीदने में मोल-जोल भी करते !!!

स्थानीय सब्जी बाज़ार
स्थानीय सब्जी बाज़ार

गाज़ियाबाद : हाथ में एक खूबसूरत झोला लिए नौकरानी के साथ मालकिन ऑडी गाड़ी से जमीन पर पैर रखती हैं। सड़क को पिछले दिनों बारिस की शुरुआती दिनों में गाज़ियाबाद विकास प्राधिकरण द्वारा मरम्मत करायी है। अभी भी पथ्थर के कुछ टूटे-फूटे टुकड़े सड़क के किनारे बेबस पड़ी हुयी थी, काश कोई उठा लेता – स्वच्छ भारत अभियान के तहत ही सही ।

बारिस का पानी सड़क और सड़क के किनारे, कोई दो फीट जगह को बराबर बना दिया था। गड्ढे की तो बात ही छोड़िये। मालकिन के पैरों को किसी कारपोरेट घराने का कोई पांच हज़ार रूपये से अधिक मूल्य का चमकता रंगीन चप्पल और भी खूबसूरत बना रहा था। मालकिन अपने घूटने से कोई एक बिलान ऊपर सफ़ेद जर्किन पहने थी।

मालकिन के साथ दिल्ली के किसी नौकरानी-सेवा केंद्र से लायी गयी बेगम पिछली सीट से नीचे उतरती हैं। एक कुत्ता आगे वाले सीट पर बैठा अपने जीभ से गाडी की खिड़की से सड़क की ऊंचाई माप रहा था । आने-जाने वाले लोग कुत्ते को अधिक देख रहे थे, शायद मालकिन इस बात से भी ख़फ़ा हो गयीं थीं, ऐसा उनके चेहरे पर दिख रहा था।

मालकिन की बेगम अपने कंधे पर झोला लटकाये आगे बढ़ी ही थी की एक साईकिल वाला बगल से निकला और गड्ढे का पानी मालकिन के चरण-चप्पल और जर्किन को प्रणाम किया। मालकिन तिलमिला गयीं, स्वाभाविक था, गुस्सा कहीं और से “कैरी-ऑवर” हो रहा था ।

हम जैसे गरीब लोग जब बरसात में सड़कों पर जमे पानी के बगल से अपने पैजामा-पतलून को ऊपर उठाये भयभीत चलते रहते हैं यह सोचते हुए की कहीं समाज के संभ्रांत लोगों की गाडी जमे पानी से नहीं निकले। अगर मूर्खों को नजर अंदाज करें (क्षम्य है) तो अक्सरहां, समाज के पढ़े-लिखे संभ्रांत लोग सुखी सड़कों पर तो गाड़ी धीरे-धीरे, सिगरेट फूकते, मोबाईल पर बतियाते चलते मिलेंगे; परन्तु जहाँ पानी का जमाव होता है, पानी को उड़ाते गाड़ी को तेज चलाकर अपने चरित्र का विश्लेषण करते हैं, आपने भी देखा होगा, अनुभव भी किया होगा ।

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सड़क के किनारे, दीवाल से सटे रेडी पर कुछ फलों के साथ खड़ा एक बिक्रेता सब कुछ देख रहा था। गड्ढे का पानी का इस कदर हाई जम्प करना, मालकिन के चरण-चप्पल और जर्किन को प्रणाम करते देख वह अपनी हंसी को रोक नहीं सका। उसे हँसते देख ऐसा लगा जैसे मुद्दत से वह कभी हंसा नहीं था। हैंसे भी तो कैसे। पांच फीट आठ इंच के शरीर का वजन अधिक से अधिक ४८ किलोग्राम होगा। हँसते सी सारी नसें मैगी के रेसों की तरह खिंच गयी। किसी तरह फिर वह अपने सामान्य स्थिति में आ सका।

स्थानीय सब्जी बाज़ार
स्थानीय सब्जी बाज़ार

इधर सूर्यदेव वैशाली सेक्टर – १, २, ३, ४ में बनी गगनचुम्बी अट्टालिकाओं के पीछे जैसे-जैसे जा रहे थे, उत्तर प्रदेश द्वार (यू पी गेट) और शिप्रा सन सिटी – बसुंधरा – जजेज कालोनी – मोहन नगर – हिण्डन को जोड़ने वाली सीधी सड़क पर कार्यालय से वापस होते मोहतरम और मोहतरमाओं की गाड़ियां सड़क के बाएं-दाएं बेहिसाब रुकने लगीं। सूट-पैंट पहने, बेल्ट कसे साहेब और साहिबा सभी अपने-अपने हाथों में झोला लिए किलोमीटर लम्बी सब्जी-बाज़ार में ढूकने लगे। आज का दिन मङ्गल था और शाम में बेहतरीन सब्जियों और अन्य रोजमर्रे की जरूरतों के सामानों के लिए मङ्गल बाजार लगता है, दसकों से । यहाँ सूई भी मिलती है और गरमा-गरम जलेबी भी। कोई भी वस्तु ऐसी नहीं है जो आपको यहाँ नहीं मिलेगी, बसर्ते धैर्य हो ढूंढने का। हाँ, पाकेटमारी भी उतनी ही होती है।

बहरहाल, मालकिन गोभी-परवल-करैले की दूकान पर रुकीं। बार-बार पीछे भी देख रहीं थीं। क्यों नहीं, कुत्ता तो गाडी में ही था। दूकान पर रुकते ही मालकिन दूकानदार से गोभी-परवल-करैले का भाव पूछतीं हैं। दुकानदार सभी की कीमत “पाव” (२५० ग्राम) में बताता है।

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मालकिन भाव सुनते ही दुकानदार को हाथ में ले लेती हैं। लूट समझ रहे हो? इतनी महँगी सब्जी है ? दुकानदार खांटी बिहारी था। बोला: मैडमजी !! शायद पहली बार सब्जी खरीदने आयी हैं आप ? आपको कभी देखा नहीं इस बाज़ार में।इतनी महंगी गाडी पर चलती हैं, सब्जी का वजन उठाने के लिए नौकरानी साथ चलती है। आपको मेरी ही सब्जियां महँगी लग रही है। आपने जो गाडी वहां पार्क की हैं वह सिर्फ पेट्रोल से चलती है और पेट्रोल तो कैरेला – गोभी – परवल से सस्ती नहीं है ? आप इतनी धनी हैं, भगवान् आपको क्या नहीं दिया है (सुन्दरता सहित) गोभी – परवल – करैले के लिए ही मोल-जोल करती हैं ? कैसा डी एन ए है ?

डी एन ए शब्द सुनते ही मालकिन जल्दी-जल्दी किलो में सब्जियां लीं। मालकिन की सेविका अपने माथे पर मालकिन की सब्जियां और उनके गुस्से का वजन उठाये कुत्ता बैठे ऑडी की ओर निकल पड़ीं।

बहरहाल, गावों में ही नहीं, शहरों में भी सप्ताह वाला सब्जी-बाजार लगने की परम्परा है। जहाँ स्थानीय और आस-पास के लोग अपने-अपने रोजमर्रे का सामान खरीदते हैं, बेचते हैं और लोगों की आवश्यकताएं पूरी करते हैं। परन्तु यदि गावों के बाज़ारों पर ध्यान दें तो इस बाज़ार से युवा और मध्य-आयु के लोगों की कमी दिखती है। बुजुर्ग और अल्प आयु के लोग (महिला-पुरुष दोनों) खरीददार भी हैं और बिक्रेता भी। इसका सबसे बड़ा कारण गावों से लोगों का पलायन है – अपनी अपनी योग्यता, सामर्थ के अनुसार शहरों में अर्थ अर्जन करना और अपने परिवार का भरण-पोषण करना।

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शहरों में यह परम्परा और भी अधिक सक्रीय तबसे हो गई है, जबसे गावों में प्रशासन की नीति, सफ़ेद-वस्त्र पहने बिचौलियों का प्रवेश, खेतों की मिटटी में फटती दरारें, किसानों की टूटती अर्थव्यवस्था, ऋण और आत्महत्या के कारण किसान और बेरोजगार युवक-युवती-पुरुष-महिलाएं गावों की सीमाओं को शरीर से लांघकर शहरों में अपना और अपने परिवार-परिजनों का पेट भरने हेतु पलायन करने लगे। इसमें शहरीकरण और लोगों के रहने की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नए-नए आवासीय क्षेत्रों का बनना, बड़े-बड़े अट्टालिकाओं का बनना महत्वपूर्ण रहा है।

आज से कोई २०-वर्ष पहले तक राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र – नोयडा, गुडगाँव, फरीदाबाद और गाज़ियाबाद – में मुख्य सड़कों के दोनों तरफ दूर-दूर तक धान, मकई, बाजरा, सब्जियां, गेंहूं, सरसों, दलहन, मूंग इत्यादि की फसलें अपनी-अपनी खुशबु बिखेरती थी और किसान तथा स्थानीय लोग मिलजुल कर रहते थे। आज समय बदल गया। आज इन जगहों पर बड़े-बड़े अट्टालिकाएं हैं। आवासीय कालोनियां हैं और लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए स्थानीय बाज़ार। इसलिए जब बाज़ार जाएँ तो दुकानदार से दो पैसे के लिए मोल-भाव नहीं करें क्योंकि आपके दो पैसे से उसके चेहरे पर हंसी आ सकती है, उसके बच्चे स्कूल जा सकते हैं, भर पेट खा सकता है; लेकिन इतना पक्का है ऑडी से सफर नहीं कर सकता। सफर ऑटो से ही करेगा – सपरिवार, आलू, प्याज,टमाटर, बैगन, सेम, करैला, लहसन, धनिया, मिर्च, गोभी, साथ।

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