महामहीम, मन्त्री महोदय ‘मृतकों के परिवारों के साथ मज़ाक नहीं’, जब ‘शहीद’ शब्द भारत सरकार में दर्ज है ही नहीं तो फिर कौन ‘शहीद’, किसकी ‘शहादत’?  

कारगिल युद्ध का समय, विजय हासिल करने का दिन और आज, यानि 26 जुलाई, 2020 के दिन में दो समानताएं हैं। उस दिन भी भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी, आज भी है। सम्भवतः उस दिन राजनाथ सिंह भारत सरकार में केन्द्रीय सर्फेस ट्रांसपोर्ट मंत्री थे, आज भारत के रक्षा मंत्री हैं। इन दो दसकों से अधिक समय में शायद ही सरकार अथवा शासन उन 527 योद्धाओं को, जो युद्ध के मैदान में ढ़ेर हो गए मातृभूमि की रक्षा करते वीरगति को प्राप्त किये और 1300 से अधिक योद्धा, जो घायल हुए, उनके परिवार, परिजनों, पुत्र-पुत्रियों, विधवाओं के बारे में सोची होगी ? शायद नहीं।

इससे भी अधिक क्रूर मज़ाक उन तमाम योद्धाओं, उनके परिवार और परिजनों, विधवाओं से तब करती है सरकार और व्यवस्था-शासन के राजनेता-अधिकारीगण जब उन्हें “शहीद” और उनकी मृत्यु को उनका “शहादत” कहती है। यह महज “राजनीति” के लिए हैं। अगर सच में उन वीर-योद्धाओं के प्रति सम्मान है, उनकी विधवाओं के प्रति सम्मान है, बुजुर्ग, बेसहारा माता-पिता प्रति सम्मान है तो उन्हें आधिकारिक तौर पर “शहीद का दर्जा” दे न।  

इतना ही नहीं, हम जिन योद्धाओं को “शहीद” शब्द से अलङ्कृत कर स्वयं को अथवा उनके परिवार-परिजनों-संतानों को  सांत्वना देते हैं कि उनके पिता-पति-भाई मातृभूमि की रक्षा करते “शहीद” हो गए; माननीय अमित शाह जी का गृह मंत्रालय अथवा राजनाथ सिंह जी का रक्षा  मंत्रालय उन्हें “शहीद” मानती ही नहीं। यह आधिकारिक तौर पर संसद को पता  है।  भारत के राष्ट्रपति को, उनके कार्यालय को ज्ञात है। उम्मीद है प्रधान मंत्री  कार्यालय को भी पता होगा, रक्षा मंत्रालय, गृह मंत्रालय – सभी को पता होगा।  

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परन्तु,  आज महामहीम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने करगिल युद्ध में देश के लिए खुद को न्योछावर कर देने वाले वीर बांकुरों की “शहादत” को याद किया और उन्हें नमन किया। श्री कोविंद ने करगिल विजय दिवस के अवसर पर ट्वीट करके कहा, ‘करगिल विजय दिवस हमारे सशस्त्र बलों की निडरता, दृढ़ संकल्प और असाधारण वीरता का प्रतीक है।’ उन्होंने आगे लिखा, ‘मैं उन वीर सैनिकों को नमन करता हूं जिन्होंने दुश्मन का डटकर मुकाबला किया और भारत माता की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। राष्ट्र सदा के लिए उनका और उनके परिवारजनों का कृतज्ञ है। गौरतलब है कि 26 जुलाई 1999 को भारत को करगिल युद्ध में विजय मिली थी, तब से इस दिन को करगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। 

भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा 22 दिसंबर 2015 को संसद को बताया गया था : “The Ministry of Defence has inforced that the word “Martyr” is not used in reference to any of the casualties in Indian Armed Forces. Similarly no such term is used in reference to the Central Armed Police Forces (CAPFs) and Assam Rifles (AR) personnel killed iun action or any operation. However, their families/Next of Kin are given full family pension under the Liberalized Pensionary Award (LPA) rules and lump sum ex-gratia compensation of Rupees fifteen lakh asd per rules in addition to other benefits admissible.” तत्कालीन गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू ने श्रीमती नीलम सोनकर  प्रश्न के जबाब में लोक सभा को बताया था। 

मृतकों की आत्मा, उनके परिवार और परिजनों के साथ क्रूर मज़ाक नहीं करें हुज़ूर। आप सच में, आधिकारिक तौर पर उन्हें “शहीद” कह दें, उनकी “शहादत” को सम्मानित कर दें – देखिये वे  सभी आपके होंगे। पन्द्रह-लाख मौत की कीमत तो नहीं हो सकती न  हुज़ूर 

इधर, उसी गृह मंत्रालय के आज के केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह कारगिल विजय दिवस पर मातृभूमि की सुरक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान देने वाले सेना के शहीदों को नमन किया ।  कारगिल विजय की 21वीं वर्षगांठ पर भारतीय सेना ने कारगिल में पाकिस्तानी सैनिकों को परास्त कर विजय पताका फहराई थी। शाह ने कारगिल युद्ध में मातृभूमि की रक्षा के लिये प्राण न्यौछावर करने वाले “शहीदों” को नमन करते हुए कहा, कारगिल विजय दिवस भारत के स्वाभिमान, अद्भुत पराक्रम और दृढ़ नेतृत्व का प्रतीक है। मैं उन शूरवीरों को नमन करता हूँ, जिन्होंने अपने अदम्य साहस से कारगिल की दुर्गम पहाड़ियों से दुश्मन को खदेड़ कर वहाँ पुनः तिरंगा लहराया। मातृभूमि की रक्षा के लिए समर्पित भारत के वीरों पर देश को गर्व है।   

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रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने करगिल में पाकिस्तानी सेना को परास्त कर देश के लिये “शहीद” होने वाले सेना के जवानों को रविवार को सलाम किया। श्री सिंह ने करगिल शहीदों को सलाम करते हुए लिखा, कार करगिल विजय की 21वीं बरसी मैं भारतीय सेना के उन जांबाजों को सैल्यूट करना चाहूंगा जिन्होंने विश्व में हाल के इतिहास की सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण स्थिति में शत्रु को परास्त कर विजय हासिल की थी।

बहरहाल, भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध लगभग 60 दिनों तक चला और 26 जुलाई के दिन उसका अंत हुआ। दोनों देशों द्वारा परमाणु परीक्षण के कारण तनाव और बढ़ गया था। स्थिति को शांत करने के लिए दोनों देशों ने फरवरी 1999 में लाहौर में घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए। जिसमें कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय वार्ता द्वारा शांतिपूर्ण ढंग से हल करने का वादा किया गया था। लेकिन पाकिस्तान ने अपने सैनिकों और अर्ध-सैनिक बलों को छिपाकर नियंत्रण रेखा के पार भेजने लगा और इस घुसपैठ का नाम “ऑपरेशन बद्र” रखा था। इसका मुख्य उद्देश्य कश्मीर और लद्दाख के बीच की कड़ी को तोड़ना और भारतीय सेना को सियाचिन ग्लेशियर से हटाना था। पाकिस्तान यह भी मानता है कि इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार के तनाव से कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने में मदद मिलेगी।

प्रारम्भ में इसे घुसपैठ मान लिया था और दावा किया गया कि इन्हें कुछ ही दिनों में बाहर कर दिया जाएगा। लेकिन नियंत्रण रेखा में खोज के बाद और इन घुसपैठियों के नियोजित रणनीति में अंतर का पता चलने के बाद भारतीय सेना को अहसास हो गया कि हमले की योजना बहुत बड़े पैमाने पर किया गया है। इसके बाद भारत सरकार ने ऑपरेशन विजय नाम से 2,00,000 सैनिकों को भेजा। यह युद्ध आधिकारिक रूप से 26 जुलाई 1999 को समाप्त हुआ। इस युद्ध के दौरान 550 सैनिकों ने अपने जीवन का बलिदान दिया और 1400 के करीब घायल हुए थे ।

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