अभी-अभी सूचना के आधार पर नेपाल से १२ जंगली हाथियों की टोली भारत सीमा में (उत्तर बिहार) प्रवेश किया है। स्थानीय प्रशासन और वन विभाग के अधिकारीगण हाई अलर्ट कर दिए हैं। साथ ही, लोगों से अपील किये हैं की वे जानवरों के साथ बुरा व्यवहार नहीं करें जिससे वह मानव-जान-माल पर उतर आये।
पटना: कहते हैं प्रत्येक मरा हुआ हाथी सवा लाख का नहीं होता – लेकिन जब आदमी और जानवर के टकराव से आदमी की मृत्यु हो जाय, भले ही आदमी देश सीमा में “अवैध” रूप से ही क्यों न आश्रय ले रखा हो; मृतक आदमी की कीमत तो नहीं कहेंगे, लेकिन मौत का मुआवजा “सवा लाख ही नहीं, उसके चार गुना यानि, पांच लाख हो जाता है।
आये दिन बिहार में (भारत-नेपाल सीमा) हाथियों का अत्याचार बढ़ रहा है और मुआवजा भी । वजह भी है – मनुष्य का टकराव उन हाथियों के साथ। अंत में मनुष्य मारा जाता है और मृतक के परिवारों को मुआवजा देने का जवावदेही स्थानीय प्रशासन और सरकार पर आता है।
पिछले दिनों किशनगंज जिला के बिघल बैंक प्रखंड के बिहारी टोला गाँव में एक हाथी एक बृद्ध आदमी को कुचलकर मार दिया। पैंसठ-वर्षीय रामनारायण उर्फ़ महेश शर्मा की मृत्यु घटना-स्थल पर ही हो गयी। स्वाभाविक है ग्रामीण इस घटना की सम्पूर्ण जबाबदेही स्थानीय प्रशासन और वन विभाग को देगा, दिया भी। परन्तु कभी किसी ग्रामीणों ने सरकार अथवा प्रशासन को इस दिशा में पहल करने में मदद नहीं किया और कर रहा है ताकि हाथी के साथ स्थानीय लोगों का मुठभेड़ नहीं हो।
यदि स्थानीय लोगों की आवादी को देखा जाय तो इसमें ९० से अधिक फीसदी लोग बांग्ला देश से भारत में जबरन घुसकर रह रहे हैं। नेपाल के रास्ते भूखा हाथी भारत की सीमा में अक्सर प्रवेश करता है जो स्थानीय खेती-फसल को नष्ट करता है। यह क्रिया-प्रक्रिया अक्सरहां हाथी और स्थानीय लोगों के बीच एक युद्ध जैसा स्थिति पैदा करता है। इसमें कभी हाथी मारा जाता तो कभी स्थानीय लोग।
अरड़िया जिला के अधिकारी का कहना है कि: “हम इसलिए यह नहीं कह रहे हैं की हम व्यवस्था का एक अंग हैं । हम स्थानीय प्रशासन के लोग, वन विभाग के लोग एक बार नहीं, सैकड़ों बार स्थानीय लोगों से निवेदन किये हैं, करते आ रहे हैं की वे जानवरों के साथ युद्ध नहीं करें। जंगलों की कमी के कारण हाथी नेपाल से भारत में प्रवेश करते हैं। खेतों में लगे फसलों को खाते हैं (ग्रामीणों के अनुसार उसे बर्वाद करता है) – ग्रामीणों का विशाल समूह इन जानवरों पर टूटता है, फिर युद्ध होता है।
स्थानीय लोग कभी प्रशासन की बातों को नहीं मानते हैं। अगर जानवर फसल खाता भी है तो प्रशासन की ओर से इसकी भरपाई की जा सकती है। फसल खाकर फिर वह वापस जाता है और अनेकोबार ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं। लेकिन क्या बच्चा, क्या जवान, क्या बूढ़े – सभी हाथियों पर टूट पड़ते हैं।”
सुपौल की एक घटना को उद्धृत करते एक अधिकारी कहते हैं पिछले दिनों नेपाल के जंगल से भटक कर भारतीय सीमा में घुसे एक जंगली हाथी ने सुपौल जिले में जमकर उत्पात मचाया। दो-दिन और रात जिले के अलग- अलग क्षेत्रों में इस हाथी ने तीन लोगों को पटक-पटक कर मार डाला। आधा दर्जन से अधिक लोग घायल भी हुए थे । इनमें कुछ को हाथी ने घायल किया है तो कुछ भागने के क्रम में गिरकर घायल हुए हैं।
भारत-नेपाल सीमा से लगभग 35 किमी अंदर रिहायशी इलाके तक पहुंचे हाथी ने कई कच्चे घरों को क्षतिग्रस्त भी कर दिया है। खेतों मे लगी गेंहू और मकई की फसल भी रौंद कर बर्बाद कर दी । हाथी के हमले में तीन लोगों की मौत हुयी। बाद में वन विभाग के अधिकारीयों ने हाथी को वापस जंगल मे पहुँचाया।
बताया जाता हैं कि एक हाथी अपने झुण्ड से बिछड़कर बसंतपुर प्रखंड के भीमनगर के लालपुर में पहुंच गया। वहां मकानों को क्षतिग्रस्त करते हुए हाथी ने बसाबनपट्टी में एक महिला को घायल कर दिया और रामनगर पहुंच कर फसलों को क्षति पहुंचायी। इसके बाद राघोपुर के मोतीपुर में छीट मोतीपुर निवासी युगेश्वर यादव को हाथी ने पटक कर मार डाला। धर्मपट्टी गांव में हाथी ने मो जब्बार को गंभीर रूप से घायल कर दिया। देवीपुर के जहलीपट्टी निवासी चनिया देवी को भी पैर से कुचलकर मार डाला। इसके बाद हाथी ने कोरियापट्टी गांव में खेत में काम कर रहे रंजीत साह की भी पैरों से कुचल कर जान ले ली।
इसी तरह, भारत-नेपाल सीमा पर स्थित सीमावर्ती गांवों में इस वर्ष तीसरी बार हाथियों ने झुंड में प्रवेश कर तबाही मचाई। तीन की संख्या में आए हाथियों ने बारहभांग गांव पहुंचकर एक परिवार के घर को क्षतिग्रस्त कर दिया।
वहीं बारहभांग निवासी कन्हैया महतो की पत्नी रेखा देवी अपने तीन बच्चों के साथ घर में सोई हुई थी। नेपाल से आए हाथियों में से एक हाथी ने उसके घर को तोड़कर घर में घुस गया। रेखा देवी अपने बच्चों के साथ जिस चौकी पर सोई हुई थी, हाथी ने उसी चौकी को उलट दिया। तब रेखा देवी की नींद खुली वह सामने हाथी को देख कर वह बदहवास हो गई एवं किसी प्रकार अपने बच्चों के साथ भाग कर अपनी जान बचाई। इस क्रम में उसके एक बच्चे राजा को हल्की चोट भी लगी है।
हाथियों के इस प्रकार एकाएक आ जाने से सीमावर्ती ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों में दहशत व्याप्त है एवं लोग रतजगा करने को मजबूर हैं। ग्रामीणों के अनुसार अभी मकई का फसल बड़ा नहीं हुआ है, तब हाथियों का प्रकोप इलाका में बढ़ते जा रहा है। मक्के के फसल बड़े होने के पश्चात और अधिक हाथियों की आने की आशंका लोग व्यक्त कर रहे हैं। ग्रामीणों ने प्रशासन एवं वन विभाग से आग्रह किया है कि हाथियों को इस क्षेत्र में आने से रोकने के लिए कोई ठोस उपाय किया जाए। नहीं तो फसल के साथ साथ घर एवं जान माल की भी हानि हो सकती है।
बी बी सी रिपोर्ट के आधार पर पिछले दस साल में सिर्फ झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ में जंगली हाथी एक हज़ार लोगों को मार चुके हैं। इसी अवधि में सिर्फ झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ में एक सौ सत्तर से ज़्यादा हाथी भी मारे जा चुके हैं। पूर्वोत्तर और दक्षिण भारत की कहानी भी इससे बहुत अलग नहीं है।छत्तीसगढ़ वन विभाग की रिपोर्ट में पिछले दस साल में क़रीब तीस हाथियों के मरने की बात कही गई है, वहीं झारखंड के प्रमुख वन संरक्षक के अनुसार ये तादाद सत्तर से ऊपर है। पिछले दस साल में प्रदेश में मरने वाले हाथियों की संख्या 71 है.
पूर्वी और मध्य भारत में हाथियों का घर 23,500 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला है। यानि झारखंड से लेकर पश्चिम बंगाल, ओडिशा और छत्तीसगढ़ तक इनकी आवाजाही का गलियारा फैला हुआ है। ये गलियारा टूट रहा है जिससे आबादी में उनकी घुसपैठ पहले से ज़्यादा हो गई है। हाथियों का गलियारा कई राज्यों से होकर गुजरता है और हर राज्य का अपना जंगल महकमा है, जिनमें समन्वय की कमी है।
भारत में साल 2007 से 2009 तक 367 वर्ग किलोमीटर जंगल कम हुए हैं। वन विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक़ 80 फ़ीसदी जंगलों के ग़ायब होने की वजह आबादी का पास आना है जबकि 20 प्रतिशत औद्योगिकीकरण है। यहाँ तक कि आदिवासी बहुल ज़िलों में भी 679 वर्ग किलोमीटर के वनोन्मूलन की बात रिपोर्ट में कही गई है। जंगल कम होने के कारण न सिर्फ जंगली हाथियों का गलियारा टूट रहा है, बल्कि उनके खाने के लाले भी पड़ रहे हैं। मसलन जंगलों में बांस और फलदार वृक्ष कम हो रहे है। उन्हें पता है कि अपना पेट भरने के लिए उन्हें किस तरफ रुख़ करना चाहिए. अक्सर वे इन्सानी बस्तियां ही होती है।