२०-साल पहले ‘प्रसार भारती’ जब आकाशवाणी के “अमूल्य धरोहरों, टेप्स, आर्काइव्स” को भी अपना समझ बैठा, बेचने लगा  

प्रसार भारती : बीस साल पहले
प्रसार भारती : बीस साल पहले

आज फिर एक बार देश का नेशनल ब्रॉडकास्टर प्रसार भारती “खबर” में है। प्रसार भारती ने देश के प्रतिष्ठित सम्वाद एजेन्सी पीटीआई को एक पत्र लिखा है, धमकाया की पैसा देना बंद कर देंगे, एजेन्सी द्वारा जारी “समाचार” देश-द्रोही है, वगैरह-वगैरह। यह तो वही बात  हो गयी “सैंयाँ भईल कोतवाल – अब डर काहे का ?”

२०-साल पहले प्रसार भारती पैसा कमाने के लिए आकाशवाणी के “अमूल्य धरोहरों, टेप्स, आर्काइव्स” को अपना समझ बैठा था और बेचने लगा था। उस समय भी “राजनेता” पीछे “खड़े” थे, आज तो ये नेता के पिछलग्गू बन रहे हैं ताकि नेताजी “बुरा” न मान लें।

सही पूछिए तो ‘नेशनल ब्राडकास्टर’ प्रसार भारती में पदस्थापित अधिकारियों को अपनी अस्तित्व की पहचान पर “खतरा” आज से ही नहीं है, प्रसार भारती को अपने अस्तित्व में आने के समय से ही है। या फिर प्रसार भारती में पदस्थापित पदाधिकारीगण सरकार से इतने भयभीत होते हैं (कहीं नौकरी न चली जाय, कहीं कांट्रेक्ट न समाप्त कर दे इत्यादि-इत्यादि) की “बिना सोचे-समझे चिट्ठी लिख देते हैं।  

आपको २० साल पहले ले चलता हूँ। यह खतरा इसकी स्थापना (23 नबम्बर, 1997) के कुछ साल बाद से ही प्रारम्भ हो गया था जब प्रसार भारती के तत्कालीन आर आर शाह ने आकाशवाणी के “धनाढ्य पुरालेख (अर्काइव्स)” से “अमूल्य टेप्स” पर अपना “अधिपत्य” जमाकर “बाज़ार” में बेचने का कार्य शुरू  किया था। इस कार्य की शुरुआत भाजपा के तत्कालीन नेता (अब दिवंगत) प्रमोद महाजन ने किया था – टैगोर द्वारा गाये गए ”वन्दे मातरम” से।   

उस समय शाह नए-नए आये थे प्रसार भारती में गृह मंत्रालय से। प्रसार भारती के अधिकारियों की एक बैठक आहूत किये। इस बैठक में वैसे आकाशवाणी के करीब तीन दर्जन से अधिक “गैर-तकनीकी” कर्मचारी भी उपस्थित हुए, लेकिन कहते हैं न “मरता क्या नहीं करता?” प्रसार भारती के तत्कालीन अधिकारियों को “उछलने-कूदने” के पीछे, यानि परोक्ष रूप से भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता श्री प्रमोद महाजन थे।  अतिरिक्त महानिदेशक श्रीमती ए पॉल को “नए आर्काइव्स” का प्रमुख बना  दिया गया जो आर्काइव्स “आकाशवाणी” से छीनकर लाते। 

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कोई 19-साल पहले श्री महाजन के आदेश पर आकाशवाणी के पांच अमूल्य टेपों को काटा गया।   अमूल्य टेपों में 1905 में रविंद्रनाथ टैगोर द्वारा गाये गए “वन्दे मातरम”, दिलीप कुमार रॉय द्वार सन 1921 में इन्डियन नेशनल कांग्रेस का गया-सत्र में दिया गया भाषण, 1935 में तिमिर बरन द्वारा संचालित एक कोरल ग्रुप, 1940 में मोघूबाई कुर्दीकर का कंसर्ट, मास्टर कृष्णा राव (1942), दिलीप कुमार रॉय और शुभलक्ष्मी (1942), उस्ताद हाफ़िज अहमद खान (1947) हीराबाई बरोडकर (14 अगस्त 1947 का मध्य रात्रि), पंडित ओंकारनाथ ठाकुर (अगस्त 15, 1947) और मिलिट्री बैंड  सञ्चालन 1948 में हर्बर्ट मुर्रिल्ल कर रहे थे – सम्मिलित थी। 
वैसे देश के इतिहास में जितना भी ऐतिहासिक कार्य हुआ था, उस समय  प्रसार भारती का जन्म भी नहीं  हुआ था।आकाशवाणी सभी दृष्टिकोण से ऐसे सभी आर्काइव्स का एक-मात्र संरक्षक था।  इतना  ही नहीं, सरकार और ट्रस्ट बनने के साथ-साथ अनेकानेक ऐतिहासिक भाषण ले दे दिए गए – चाहे किसी भी प्रधान मंत्री का क्यों न हो। 

उस ज़माने में आकाशवाणी के  आर्काइव्स से  कोई 50,000 टेप्स, जिसमें लगभग 25,000 घंटा भारत ही नहीं, विश्व के नेताओं भाषण था, प्रसार भारती अपने कब्जे  में ले लिया चाहे महात्मा गाँधी (1947) का भाषण हो, सुभाष चंद्र बोस (1935)  हो, बंकिम चंद्र  हो, मोहम्मद अली जिन्ना  हो या मौलाना अबुल कलाम आज़ाद  हो।

बहरहाल, आज इसी नेशनल ब्रॉडकास्टर द्वारा देश के प्रतिष्ठित समाचार एजेन्सी को “धमकी भरा पत्र” भेजकर अपनी उसी “अस्तित्व वाला खतरा” को पुनः उजागर किया है। 

उधर  वरिष्ठ पत्रकार और सम्पादक डॉ. वेदप्रताप वैदिक लिखते हैं: प्रेस ट्रस्ट आॅफ इंडिया (पीटीआई) देश की सबसे पुरानी और सबसे प्रामाणिक समाचार समिति है। मैं दस वर्ष तक इसकी हिंदी शाखा ‘पीटीआई—भाषा’ का संस्थापक संपादक रहा हूं। उस दौरान चार प्रधानमंत्री रहे लेकिन किसी नेता या अफसर की इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह फोन करके हमें किसी खबर को जबर्दस्ती देने के लिए या रोकने के लिए आदेश या निर्देश दे लेकिन अब तो प्रसार भारती ने लिखकर पीटीआई को धमकाया है कि उसे सरकार जो 9.15 करोड़ रु. की वार्षिक फीस देती है, उसे वह बंद कर सकती है।  

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यह राशि पीटीआई को विभिन्न सरकारी संस्थान जैसे आकाशवाणी, दूरदर्शन, विभिन्न मंत्रालय, हमारे दूतावास आदि, जो उसकी समाचार-सेवाएं लेते हैं, वे देते हैं। यह धमकी वैसी ही है, जैसी कि आपात्काल के दौरान इंदिरा सरकार ने हिंदी की समाचार समितियों- ‘हिंदुस्थान समाचार’ और ‘समाचार भारती’ को दी थी। मैंने ‘हिंदुस्थान समाचार’ के निदेशक के रुप में इस धमकी को रद्द कर दिया था। मैं अकेला पड़ गया। 

मेरे अलावा सबने घुटने टेक दिए और इन दोनों एजेंसियों को उस समय पीटीआई में मिला दिया गया। क्या पीटीआई को दी गई यह धमकी कुछ वैसी ही नहीं है ? मैं पीटीआई के पत्रकारों से कहूंगा कि वे डरें नहीं। डटे रहें। 1986 में बोफोर्स कांड पर जब जिनीवा से चित्रा सुब्रह्मण्यम ने घोटाले की खबर भेजी तो ‘भाषा’ ने उसे सबसे पहले जारी कर दिया। प्रधानमंत्री राजीव गांधी और उनके अफसरों की हिम्मत नहीं हुई कि वे मुझे फोन करके उसे रुकवा दें।  

अब पीटीआई ने क्या गलती की है ? सरकारी चिट्ठी में उस पर आरोप लगाया गया है कि उसने नई दिल्ली स्थित चीनी राजदूत सुन वीदोंग और पेइचिंग स्थित भारतीय राजदूत विक्रम मिसरी से जो भेंट-वार्ताएं प्रसारित की हैं, वे राष्ट्रविरोधी हैं और वे चीनी रवैए का प्रचार करती हैं। उनसे हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वक्तव्य का खंडन होता है। हमारे राजदूत ने कह दिया कि चीन गलवान घाटी में हमारी जमीन खाली करे जबकि मोदी ने कहा था कि चीन हमारी जमीन पर घुसा ही नहीं है। इसी तरह चीनी राजदूत ने भारत को चीनी-जमीन पर से अपना कब्जा हटाने की बात कही है। यही बात चीनी विदेश मंत्री ने हमारे विदेश मंत्री से कही थी।  

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मेरी समझ में नहीं आता कि इसमें पत्रकारिता की दृष्टि से राष्ट्रविरोधी काम क्या हुआ है ? यह पत्रकारिता का कमाल है कि वह दुश्मन से भी उसके दिल की बात उगलवा लेती है। जो काम नेता और राजदूत के भी बस का नहीं होता, उसे पत्रकार पलक झपकते ही कर डालते हैं। उन पर राष्ट्रविरोधी होने की तोहमत लगाकर प्रसार भारती अपनी प्रतिष्ठा को ही ठेस लगा रही है। मैं समझता हूं कि सरकार को चाहिए कि प्रसार भारती के मुखिया अफसर को वह फटकार लगाए और उसे खेद प्रकट करने के लिए कहे।   

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