पटाख़े तो ऐसे फूटे जैसे कोई राष्ट्रीय पर्व हो, ख़ैर !! लॉक डाउन में इंटरनेट बना मसीहा, कामों को बनाया आसान  

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लॉक"डाउन"

रविवार को 5 अप्रैल था । भारत के लोगबाग अपने-अपने घरों में डरे-सहमे पिछले 11 दिनों से साँसे ले रहे थे (आज भी स्थिति वही है) । घड़ी की छोटी सूई रात के 9 पर ​और बड़ी सूई सरकारी-क्रिया-कलापों की तरह शनैः शनैः बारह की ओर। लोगों के घरों की बत्तियां बुझने लगी, खिड़कियों पर दीया, मोमबत्ती, मोबाईल का लाईट, टॉर्च-लाईट जलने लगा। तभी आसमान में पटाखों का आवाज गूंजने लगा, आसमान-तारा बूम-बूम करने लगा, अनेकानेक प्रकार के रौशनी दीखने लगा – मानो राष्ट्र कोई उत्सव मना रहा हो; जबकि भारत के हज़ारों-लाखों लोग देश के विभिन्न प्रांतों में, सरकारी अस्पतालों में, उपचार-गृहों में, स्वनिर्मित कोरेन्टाईन गृहों में अपने-अपने जीवन की साँसे गईं रहे थे। कई साँसे बंद हो गयी थी, कई रुक-रुक कर चल रही थी और परिजन टकटकी निगाहों से, दूर से टूटती साँसों को देख रहे थे। यही है “वास्तविक मानसिकता भारत के लोगों की”, आप माने या नहीं। 

चौथा अक्षर समाचार पत्र के प्रबन्ध संपादक श्यामलाल शर्मा फेसबुक पर लिखते हैं: “महामारी का दीपोत्सव ! मुबारक हो ! प्रधानमंत्री जी ! लेकिन आज शर्म भी शर्मिंदा हो गया, घंटा घड़ियाल और पटाखे भी बज गये, किस बात की ख़ुशी मना रहे हो, उन गरीब मजदूरों की मौत पर जो सैकड़ों मील पैदल चल कर अब भुखमरी से मरने की कगार पर हैं और हजारों लोग कोरोना की बीमारी की चपेट में हैं , लोग मर रहे है और यह बेशर्म छोटी दिवाली मना रहे हैं इनकी मानवता मर गयी है। चलो एक बार को मान लिया लोगों में उत्साह भरने के लिए एक जुट करने के लिए दिए जलाये ठीक है लेकिन पटाखे छोड़े वह किस ख़ुशी में , और सबसे ज्यादा बेशर्म तो यह टीवी चैनल वाले हो गए हैं जिनको वह गरीब मजदूर नहीं नजर आ रहा है जिसके पास खाने का दाना तक नहीं है। यह तस्वीर गुजरात की है जहां शनिवार को राशन की पर्ची लेने के लिए लोगों की भीड़ जमा हो गयी थी और भगदड़ मच गयी…!

​बहरहाल, ​देश में कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए 21 दिनों का लॉकडाउन लागू है। ​​ऐसे में आम लोगों, खासकर शहर में रहने वालों के कामों को इंटरनेट ने काफी हद तक आसान बना दिया है। इंटरनेट की मदद से लोग घर से ही काम कर पा रहे हैं। बीमार लोग अपने डॉक्टर से परामर्श ले पा रहे हैं।​ इसके अलावा लोग इंटरनेट की मदद से वीडियो कॉल करके अपने खास और परिचित लोगों की न केवल खैर खबर ले पा रहे हैं बल्कि उन्हें देख भी पा रहे हैं। साथ में दफ्तर की बैठकें भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कर रहे हैं।

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​इधर, ​ भारत में फंसे विदेशी पर्यटकों की मदद के लिए शुरू की गई सरकारी वेबसाइट पर पिछले पांच दिनों में 769 पंजीकरण कराए गए हैं। इस साइट के जरिए आपातकालीन चिकित्सकीय मदद के तहत एक अमेरिकी, एक ऑस्ट्रेलियाई और कोस्टा रिका के दो नागरिकों सहित अन्य को विशेष सुविधा मुहैया कराई गई।​ कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने से रोकने के लिए लागू लॉकडाउन (बंदी) के दौरान देश में फंसे विदेशी पर्यटकों की पहचान, सहायता और उन्हें सुविधाएं मुहैया कराने के मकसद से 31 मार्च को पोर्टल www.strandedinindia.com की शुरुआत की गई थी।​ ऐसे पर्यटकों को वेबसाइट पर जाकर अपनी बुनियादी जानकारी देने के साथ ही अपनी समस्या के बारे में बताना होगा ताकि उनकी सहायता की जा सके।​

जबकि ​भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) एक सर्वेक्षण के हवाले से ​कहा है कि ​कोरोना वायरस के सामुदायिक फैलाव को रोकने के लिए किए गए 21 दिन के देशव्यापी पाबंदियों का अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव होगा​ और भारी संख्या में लोगों की नौकरी जाने का अंदेशा जताया है।​ सीआईआई के करीब 200 मुख्य कार्यकारी अधिकारियों के बीच किए गए ऑनलाइन सर्वेक्षण ‘सीआईआई सीईओ स्नैप पोल’ के मुताबिक मांग में कमी से ज्यादातर कंपनियों की आय गिरी है। इससे नौकरियां जाने का अंदेशा है।सर्वेक्षण के अनुसार, ‘‘चालू तिमाही (अप्रैल -जून) और पिछली तिमाही (जनवरी-मार्च) के दौरान अधिकांश कंपनियों की आय में 10 प्रतिशत से अधिक कमी आने की आशंका है और इससे उनका लाभ दोनों तिमाहियों में पांच प्रतिशत से अधिक गिर सकता है।’’ सीआईआई ने कहा, ‘‘घरेलू कंपनियों आय और लाभ दोनों में इस तेज गिरावट का असर देश की आर्थिक वृद्धि दर पर भी पड़ेगा। रोजगार के स्तर पर इनसे संबंधित क्षेत्रों में 52 प्रतिशत तक नौकरियां कम हो सकती हैं।’’ सर्वेक्षण के अनुसार लॉकडाउन खत्म होने के बाद 47 प्रतिशत कंपनियों में 15 प्रतिशत से कम नौकरियां जाने की संभावना है। वहीं 32 प्रतिशत कंपनियों में नौकरियां जाने की दर 15 से 30 प्रतिशत होगी।  

वरिष्ठ पत्रकार मुकुंद हरि ​जी लिखते हैं: लॉकडाउन के दौरान मैं अपने घर से नहीं निकल पा रहा हूं लेकिन इसके बावजूद इंटरनेट ने मुझे काफी सहूलियत दी।​ अपने दोस्तों-रिश्तेदारों से फोन पर उनका हाल-चाल और स्थिति पूछता रहा। इसी की वजह से कुछ लोग ऐसे मिले जो छोटी-मोटी निजी नौकरी करते थे।

लॉकडाउन की वजह से अपने कार्यस्थल न जा पाने के कारण उन्हें पैसों की कठिनाई हो गयी थी। बैंक में भी इतनी मामूली राशि खातों में बची थी कि वे अपने घर के लिए राशन तक न खरीद पा रहे थे।​ ऐसे में इंटरनेट ने काफी मदद की। व्हाट्सएप से उनके पासबुक की फोटो मंगाकर उनको नेटबैंकिंग के जरिये पैसे भेजने में सहायता मिली। जिसकी बदौलत उनके घर जीने को जरूरी चीजें आ पाईं।

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इसी दौरान तमाम तरह के अफवाह फैलाने वाले वीडियो और संदेश भी खूब दिखे जिसे बदकिस्मती से लोगों को शेयर करते हुए देखा गया।​ आम लोगों की छोड़िए बड़े-बड़े पत्रकार भी इसके शिकार बने। फेक न्यूज़ मौजूदा हालात में बहुत ही खतरनाक हो सकता है।​ ​

सी कड़ी में तब्लीगी जमात के लोगों के नाम पर कई पु​​राने वीडियो भी वायरल कर दिए गए, जो बाद में पुराने और किसी दूसरी घटना से जुड़े साबित हुए।​ इंटरनेट की वजह से लॉकडाउन में लोग इसका मनोरंजन के लिए भी खूब प्रयोग कर रहे हैं। तमाम वीडियो प्लेटफॉर्म्स पर लोग वेब सीरीज, सिनेमा वगैरह भी खूब देख रहे हैं।  

हालांकि लॉकडाउन के बाद इंटरनेट की स्पीड कम हुई है और डेटा की खपत बढ़ी है। इसे देखते हुए नेटफ्लिक्स और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म ने वीडियो की क्वालिटी (गुणवत्ता) को थोड़ा कम किया है।​ देश में इंटरनेट इस्तेमाल करने वाली संख्या 48 करोड़ से ज्यादा है और जानलेवा कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए सरकार ने जब लोगों से घर में ही रहने को कहा तो इंटरनेट उनके लिए मसीहा बनकर सामने आया।​ एक ही शहर में रहने के बावजूद लोग एक दूसरे से नहीं मिल पा रहे हैं तो इंटरनेट उन्हें करीब लाया है। अगर इंटरनेट नहीं होता तो कई कंपनियों का कामकाज चरमरा जाता लेकिन वीडियो कॉल ने ऐसा होने नहीं दिया।​

सुधांशु शेखर भाराजद्वाज कहते हैं: लॉकडाउन में बाहर की दुनिया से जुड़ने के​ लिए, किसी की आर्थिक मदद करने के ​लिए, ​ क्रेडिट कार्ड का पेंमेंट करने के ​लिए एकमात्र सहारा हैं।क्योंकि मैं एक ज़िम्मेदार नागरिक के रूप में लॉकडाउन का पूर्णतः पालन कर रहा ​हूँ ।  

पुणे में रहने वाली श्रेया सेनगुप्ता का कहना है कि ऐसे तनावपूर्ण वक्त में इंटरनेट उन्हें चिंता मुक्त रखने में मदद कर रहा है।​ 29 साल की सेनगुप्ता ​कहते हैं कि उन्हें लंदन जाना था लेकिन कोरोना वायरस के कारण उनकी यह यात्रा रद्द हो गई। ऐसे में वह वीडियो कॉल के जरिए लंदन में अपने भाई और बॉयफ्रेंड की खैर खबर तो ले ही रही हैं साथ में उन्हें देख भी पा रही हैं।बीते कुछ हफ्तों के दौरान लोगों ने अपने परिवार के सदस्यों, दोस्तों और सहकर्मियों के साथ वीडियो चैट के स्क्रीन शॉट साझा किए हैं। इससे यह बात साबित होती है कि जब कोरोना वायरस को शिकस्त देने लिए सामाजिक दूरी का नियम अपनाया जा रहा है तब इंटरनेट लोगों को आपस में जोड़ रहा है।​ व्हाट्सएप, फेसटाइम, फेसबुक मेसेंजर जैसी ऐप के अलावा जूम जैसी नई ऐप भी लोगों का अपनी ओर ध्यान खींच रही हैं।

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मुंबई में एक एनजीओ के साथ काम करने वाली श्रुति मेनन के लिए भी इंटरनेट काफी मददगार साबित हुआ है। वह मार्च के पहले हफ्ते से ही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अपने सहकर्मियों के साथ समन्वय कर रही हैं।​ मेनन ने कहा, “हम अपनी कोर टीम के साथ दिन में एक बार सुबह वीडियो कॉल करने की कोशिश करते हैं। इससे दिन के काम की योजना बनाने में काफी मदद मिलती है। अगर किसी मुद्दे का तुरंत निदान करने की जरूरत होती है तो हम दूसरी बार भी वीडियो कॉल निर्धारित करते हैं।”​ उन्होंने कहा कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग आमने-सामने की बैठक का काफी हद तक विकल्प है।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के कई अस्पताल ऑनलाइन परामर्श दे रहे हैं।​ गुड़गांव के पारस अस्पताल ने अपनी ऐप पर 22 मार्च से वीडियो सत्र के जरिए यह सुविधा शुरू कर दी है।​ अस्पताल के सुविधा निदेशक डॉ समीर कुलकर्णी ने बताया, “लोगों से मेलजोल से दूर रहने के लिए कहे जाने के बाद से हमने ऑनलाइन परामर्श सेवा शुरू कर दी थी। डॉक्टर और मरीज के बीच वीडियो सत्र होते हैं। हम दवा का ई-पर्चा देते हैं और परामर्श शुरू होने से पहले फीस का भुगतान करना होता है।”

इसके अलावा लोग एक दूसरे के साथ ऑनलाइन गेम्स, खासकर लूडो भी खेल रहे हैं, जिसमें भाग लेने वाले लोग देश के किसी भी हिस्से के हो सकते हैं।

‘सेलुलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ (सीओएआई) के महानिदेशक रंजन मैथ्यू ने बताया कि इंटरनेट पर निर्भरता बढ़ने से देश में डेटा की खपत में कम से कम 20-30 फीसदी का इजाफा हुआ है।​ इसे देखते हुए, नेटफ्लिस और फेसबुक जैसे प्लेटफार्म ने वीडियो क्वालिटी (गुणवत्ता) को कम किया है। इस बाबत सीओएआई ने सरकार को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि नेटवर्क पर पड़ने वाले बोझ को कम करने के लिए उपाय किए जाएं।​ बेंगलुरु स्थित ‘सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसाइटी’ के गुरशबद ग्रोवर का कहना है कि देश में इंटरनेट का तंत्र ऐसा नहीं है जो चरमरा जाए।​ (पीटीआई/भाषा के सहयोग से)

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