दिल्ली का रेड़ीवाला मतदाता: ‘एक वजह बता दें की सोनिया गाँधी या राहुल गाँधी को कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष क्यों बनना चाहिए?’ किसी और नौजवान, नवयुवती को क्यों नहीं?

राजपथ का यह खोमचे वाला भी एक मतदाता है। इस सवाल को यह भी पूछ सकता है। 
राजपथ का यह खोमचे वाला भी एक मतदाता है। इस सवाल को यह भी पूछ सकता है। 

प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी “गलत नारा” नहीं दिए। उन्होंने कहा:  “सोच बदलो – देश बदलेगा”  और यह बात भारत के प्रत्येक नागरिकों, मतदाताओं पर लागू होता है, चाहे कांग्रेसी ही क्यों न हों। कुछ तो आतंरिक बातें हैं तो काँग्रेस के खास-वर्ग के नेताओं को हज़म नहीं हो रहा है अब। वैसे सोनिया गाँधी या राहुल गाँधी को कांग्रेस पार्टी के लोग, या फिर कांग्रेसी मानसिकता के मतदातागण पार्टी का सर्वोपरि, कर्ताधर्ता क्यों स्वीकार करे? इस श्रेणी में “चमचों” को नहीं रखा जाय। कांग्रेस की वर्तमान अंतरिम अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गाँधी देश के पूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी नहीं हो सकतीं हैं,  और ना ही, सोनिया गाँधी-राजीव गाँधी के पुत्र श्री राहुल गाँधी अपने पिता का स्थान ले सकते हैं – जहाँ तक पार्टी संगठन का प्रश्न है, या फिर भारत में कांग्रेस को अब तक समर्थन करने वाले देश के नागरिकों और मतदाताओं है। 

पार्टी के कुछेक लोग, जो श्रीमती सोनिया गाँधी के प्रति सम्मानित दृष्टि रखते हैं, या फिर, उनके पुत्र श्री राहुल गाँधी को एक दिवंगत राजीव गाँधी के पुत्र होने के नाते, एक संवेदना भी रखते हैं – यह उनका अपना निजी विचार और व्यवहार हो सकता है। अपने इस विचार और व्यवहार को भारत के लोगों पर वे  “जबरन थोप नहीं सकते”, विशेषकर उन लोगों पर जो आज भी कांग्रेस पार्टी के प्रति निष्ठावान हैं, चाहे देश में कितनी ही राजनीतिक विचारधाराएं बनती-बहती चलें।  

“आप हमें एक वजह बता दें की श्रीमती सोनिया गाँधी को या राहुल गाँधी को कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष क्यों बनना चाहिए,” दिल्ली के चांदनी चौक इलाके के एक वृद्ध रेड़ीवाला का कहना है। 

वह आगे कहता है: “मैं पिछले सभी चुनावों में, चाहे विधान सभा का हो या लोक सभा का, काँग्रेस के पक्ष में  मतदान किया हूँ। लेकिन आज समय बहुत बदल गया है। आज सन 1950 या 1980 जैसी बात नहीं है। आज के नौजवानों की सोच अमेरिका का राष्ट्रपति, या भारत के प्रधान मंत्री या वर्तमान कांग्रेस अध्यक्षा या राहुल गाँधी से 100 नहीं 1000 नहीं, लाखों गुना अधिक बेहतर है, जिसका राष्ट्र के नव-निर्माण में इस्तेमाल किया जा सकता है। परन्तु, ऐसे नौजवानों को कभी जीवन में मौका मिलेगा ? शायद नहीं। चाहे कोई भी राजनीतिक पार्टियां हों, अपने-अपने बच्चों को ही बढ़ाएंगे। फिर तो हम जैसे रेड़ीवाला का बच्चा को जीवन पर्यन्त रेडी ही चलाना चाहिए। सिर्फ चुनाब के समय हमें कांग्रेस के  मतदान कर देना चाहिए। नहीं हुज़ूर। अब समय बदल गया है – इसलिए इस बदलते समय में पार्टी का कमान विचारवान, कुशल, योग्य नौजवान के हाथों देना चाहिए।  साथ ही, कांग्रेस पार्टी के जितने भी चमचे हैं, जो लोगों को स्वहित में बरगलाते हैं – उन्हें दूर फेंकना चाहिए। अगर ज्यादा बोल दिया हूँ तो माफ़ करेंगे।”

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अगर देखा जाय तो देश में छोटी-छोटी पार्टियों का पनपना इसलिए संभव हो  सका, क्योंकि कांग्रेस पार्टी और उसके लोगबाग, आलाकमान सहित; भारत के लोगों से क्रमशः दूरियां बनाते चले गए। कांग्रेस के लोगों में एक ऐसा एटीच्यूड का निर्माण हुआ जो कैंसर रोग से भी बत्तर सावित हो रहा है। यही कारण है कि आज़ादी के बाद कांग्रेस आज पहली बार सबसे कमजोर स्थिति में है। पार्टी केंद्र की सत्ता से लगातार दूसरी बार बाहर है और यह भी पहली बार हो रहा है कि पार्टी के पास एक स्थायी अध्यक्ष तक नहीं है। 

इतिहास गवाह है की सन 1907 में सूरत में जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन हुआ, तत्कालीन स्थिति को मद्दे नजर कांग्रेस दो-फाँक में बंटी – गरम दल और नरम दल।  यह सूरत विभाजन के नाम से कुख्यात हुआ। परन्तु, इतिहास इस बात का भी गवाह है कि यदि गरम दल का निर्णाम नहीं हुआ होता तो शायद चार-दसक बाद ही सही, देश आज़ाद नहीं हुआ होता। यही कारण है कि आज भी देश के नौजवानों में महान क्रांतिकारी रासबिहारी बोस जीवित हैं। शायद इस क्रान्तिकारी को श्रीमती सोनिया गाँधी अथवा श्री राहुल गाँधी नहीं जानते होंगे।  1966 में इंदिरा गांधी जब प्रधानमंत्री बनीं तो के. कामराज और मोरारजी देसाई से उनके मतभेद बढ़े जो पार्टी के विभाजन का कारण बने और 1969 में राष्ट्रपति के चुनाव के दौरान पार्टी दो फाड़ हो गयी थी।   

“भगत जी” को कांग्रेस के तत्कालीन नेता हरि किशन लाल भगत नहीं समझेंगे। लेकिन यदि देखा जाय तो जी-हुज़ूरी नहीं करने से नेताओं स्थिति राजपथ पर ऐसे कनस्तर पर लिखे “भगत जी” जैसा ही होता है। तभी तो सभी राष्ट्र की चिंता न कर, आवाम के बारे में नहीं सोचकर “स्वहित” में अधिक सोचते हैं। इसलिए प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी सच कहे हैं: “सोच बदलो – देश बदलेगा

सत्यहिन्दी डॉट कॉम में श्री संजय राय लिखते हैं:  इंदिरा गांधी जब रायबरेली से चुनाव हार गयीं और केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी; वाई. बी. चव्हाण, ब्रह्मानंद रेड्डी, देवराज अर्स, देवकांत बरुआ, ए. के. एंटनी, शरद पवार, शरत चंद्र सिन्हा, प्रियरंजन दास मुंशी और के. पी. उन्नीकृष्णन जैसे दिग्गज नेताओं ने इंदिरा गांधी को चुनौती दी और कांग्रेस (यू) बना ली जबकि इंदिरा गांधी ने अपनी पार्टी का नाम कांग्रेस (आई) रख लिया। इसके बाद पुनः 1 978 में हुए इस विभाजन का कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र और गोवा में अच्छा-ख़ासा असर हुआ था। लेकिन इंडियन नेशनल कांग्रेस (अर्स) में 1981 में बंटवारा हुआ और इस बार शरद पवार पार्टी से अलग हो गए और इंडियन नेशनल कांग्रेस सोशलिस्ट बनी। 1980 में जैसे ही इंदिरा गांधी वापस सत्ता में आयीं, विभाजित हुए अधिकांश नेता फिर पार्टी में शामिल हो गए। इसके बाद कांग्रेस में बड़ा विभाजन बोफोर्स के मुद्दे पर विश्वनाथ प्रताप सिंह के रूप में देखने को मिला। विभाजन में राजीव गांधी के चचेरे भाई अरुण नेहरू भी विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ खड़े हो गए। आरिफ़ मोहम्मद खान ने भी कांग्रेस छोड़ दी। इस बगावत में विपक्षी दलों का साथ पाकर विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बन गए। बाद में विश्वनाथ प्रताप सिंह की पार्टी टूट कर अलग-अलग धड़ों में बिखर गयी लेकिन मंडल कमीशन के नाम पर उन्होंने राजनीति का जो बीज बोया उसने कई राज्यों में कांग्रेस के जनाधार को  कुतर डाला। उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा आदि प्रदेशों में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गयी और वापसी नहीं कर पायी।  इस कड़ी में देखें तो कांग्रेस पार्टी में अंतिम विभाजन सोनिया गाँधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर शरद पवार, पी.ए. संगमा और तारिक़ अनवर के रूप में हुआ लेकिन उसका भी कोई ख़ास प्रभाव नहीं पड़ा। शरद पवार कांग्रेस में नहीं हैं जबकि तारिक़ अनवर की कांग्रेस में वापसी हो चुकी है।  

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बहरहाल, पीटीआई/भाषा के अनुसार: कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सोमवार को कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में पद छोड़ने की पेशकश की और कहा कि सीडब्ल्यूसी नया अध्यक्ष चुनने के लिए प्रक्रिया आरंभ करे।  उन्होंने संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल को विस्तृत जवाब भेजा है। जानकारी के अनुसार, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कुछ अन्य नेताओं ने उनसे आग्रह किया कि वह पद पर बनी रहें।

सूत्रों का कहना है कि सोनिया गांधी ने गुलाम नबी आजाद और पत्र लिखने वाले कुछ नेताओं एवं उनकी ओर से उठाए गए मुद्दों का हवाला दिया। इधर, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी पार्टी में नेतृत्व के मुद्दे पर सोनिया गांधी को पत्र लिखने वाले नेताओं पर निशाना साधा और कहा कि जब पार्टी राजस्थान एवं मध्य प्रदेश में विरोधी ताकतों से लड़ रही थी और सोनिया गांधी अस्वस्थ थीं तो उस समय ऐसा पत्र क्यों लिखा गया।

नेतृत्व के मुद्दे पर कांग्रेस के दो खेमों में नजर आने की स्थिति बनने के बीच पार्टी की सर्वोच्च नीति निर्धारण इकाई सीडब्ल्यूसी की बैठक वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से हो रही है। सीडब्ल्यूसी की बैठक से एक दिन पहले रविवार को पार्टी में उस वक्त नया सियासी तूफान आ गया जब पूर्णकालिक एवं जमीनी स्तर पर सक्रिय अध्यक्ष बनाने और संगठन में ऊपर से लेकर नीचे तक बदलाव की मांग को लेकर सोनिया गांधी को 23 वरिष्ठ नेताओं की ओर से पत्र लिखे जाने की जानकारी सामने आई।

हालांकि, इस पत्र की खबर सामने आने के साथ ही पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पार्टी के कई अन्य वरिष्ठ एवं युवा नेताओं ने सोनिया और राहुल गांधी के नेतृत्व में भरोसा जताया और इस बात पर जोर दिया कि गांधी परिवार ही पार्टी को एकजुट रख सकता है।  

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