क्या आप आज़ादी के योद्धा शहीद तात्या टोपे की तलवार, गुप्ती, लकड़ी का बक्सा या अन्य धरोहर खरीदना चाहते हैं ? 

विनायक राव टोपे शहीद तात्या टोपे के धरोहर के साथ 
विनायक राव टोपे शहीद तात्या टोपे के धरोहर के साथ 

* वे कहते हैं “वे मराठी” हैं, उनसे बड़ा देश भक्त भारतवर्ष में कोई नहीं है। 

* वे कहते हैं “वे पंजाबी हैं”, उन्होंने जितनी कुर्बानियां मातृभूमि के लिए दी, भारत में कोई नहीं दिया। 

* वे कहते हैं वे ”गुजराती” हैं ।  इतिहास गवाह है उनसे बड़ा राष्ट्रभक्त कोई हुआ ही नहीं। 

* वे कहते हैं “वे बिहारी है”, आज़ादी की क्रान्ति उन्हीं की भूमि से शुरू हुई, जब गाँधी चम्पारण आये। 

लेकिन सच यह है कि 14-15 अगस्त, 1947 की रात्रि-वेला के बाद जब भारतभूमि पर भारत का अपना राष्ट्रध्वज लहराया, सभी “राष्ट्रभक्ति” को “राजनीतिक बाज़ार” में बेचने लगे – स्वहित में। अगर ऐसा नहीं होता हो आज स्वाधीनता संग्राम के क्रान्तिकारी, शहीद और उनके वंशज “गुमनाम” कैसे हो जाते? समाज उपेक्षित कैसे हो जाते ?  ​या फिर जीने के लिए, सांस लेने के लिए मातृभूमि की स्वतंत्रता हेतु अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले शहीदों के वंशजों को अपने पुरखों का धरोहर बेचने के लिए सोचना पड़ता? ​

समय दूर नहीं है जब बच्चे पूछेंगे:  कौन भगत सिंह? कौन मेवा सिंह? कौन विष्णु पिंगले? कौन अरुर सिंह? कौन  बसन्त कुमार? कौन मथुरा​ सिंह? कौन बूटा सिंह?  कौन चंद्रशेखर आज़ाद? कौन राजगुरु? कौन बटुकेश्वर दत्त? कौन हरनाम सिंह?  – हमें क्या लेना-देना है उनसे ? हम तो आज़ाद देश में पैदा लिए। क्योंकि उनकी  मानसिकता को शायद कोई नहीं समझा पायेगा की उसके पूर्वज “गुलाम देश में पैदा हुए थे”, तब वे “आज़ाद देश में पैदा हो सके ।” 

नहीं तो आप खुद सोचिये की जिस मराठों को शिवाजी पर इतना नाज है, अंग्रेजी हुकूमत ख़िलाफ़ मराठा-युद्ध आज भी याद कर गौरवान्वित होते हैं, उसी मराठा के भारत के स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी, बाजी राव पेशवा के सेनापति और महारानी लक्ष्मीबाई के अभिन्न मित्र शहीद रामचंद्र पांडुरंग टोपे @ तात्या टोपे के चौथे-श्रेणी के वंशज को महाराष्ट्र के लोग जानते तक नहीं हों !!

​विनायक राव टोपे शहीद तात्या टोपे के धरोहर के साथ 

इतना ही नहीं, अगर आप बृहत् मुंबई म्युनिसिपल कार्पोरेशन भवन (मुंबई वी टी के सामने) के नीचे दाहिने तरफ जाने वाली सड़क के कोने पर पथ्थर शिला पर लिखे शहीद-मराठों के बारे में वहीँ के युवक-युवतियों से, वहां के लोगों से पूछें – आप मुंह को गिरेंगे। यह स्थिति सिर्फ मराठा में  ही नहीं है, भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में भी है, बंगाल में भी हैं, बिहार में भी है, उत्तर प्रदेश में भी है, पंजाब में भी है, दिल्ली में भी है – चतुर्दिक है। 

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आज अगर भारतीय स्वाधीनता संग्राम 1857-1947 के क्रांतिकारियों, शहीदों का नाम देश के राजनीतिक-बाज़ार से हटा लिया जाय, तो शायद आने वाले समयों में पथ्थर की शिलालेखों पर लिखा नाम, या फिर उन क्रांतिकारियों  और शहीदों की आदम-कद मूर्तियां महज “एक सेल्फ़ी पॉइन्ट” बनकर रह जायेगा।  शायद पढ़ने में, सुनने में तकलीफ़ हो रही हो, लेकिन सच तो यही है। 
आप कानपुर के कम्पनी बाग़ में खड़े हो जाएँ और “आधुनिक भारतीयों” से इस स्थान के बारे जिज्ञासा करें।  “अंकल” रूह काँप जाएगी औसतन दस में आठ लोग आपके चेहरे देखकर हंस-देंगे। उन्हें ‘पार्क’ तो पता है क्योंकि यहाँ लोग मिलते-जुलते हैं,  लेकिन यह पता नहीं है यहाँ सन सत्तावन में भारतीय क्रान्तिकारियों ने सैकड़ों अंग्रेजी हुकुमतान की महिलाओं को, बच्चों को मौत के घाट उतार दिया था। यह एक “मेमोरियल वेळ” के  नाम से प्रसिद्द था। यहाँ कई क्रान्तिकारियों की आदमकद प्रतिमा लगाए गए थे।  लेकिन अपने प्रयास के दौरान जब इन स्थानों को देखा था तो किसी प्रतिमा के हाथ नहीं थे, किसी के पैर तोड़ दिए गए थे, किसी मूर्ति पर मोहब्बत पैगाम लिखा था। 

आज देश के राजनेता आज़ादी के क्रान्तिकारियों, शहीदों को अपने विधान सभा संसदीय क्षेत्रों की नजर से देखते हैं।पिछले दिनों अपने प्रयास सिलसिले में एक सांसद से मिला और उनसे याचना किया की हमारे प्रयास मदद करें।  सांसद महोदय बहुत ही निर्लज्जता साथ कहते हैं: “मदद करने की ईक्षा तो है, लेकिन जिन-जिन शहीदों का आपने नाम गिनाया है, वे उनके संसदीय क्षेत्र में नहीं हैं। इससे उन्हें कोई राजनीतिक लाभ नहीं मिल पायेगा । क्षमा करें।”

आज राजनेता  हैं चुंकि फलाना शहीद हमारे संसदीय-क्षेत्र  हैं, इससे मुझे राजनीतिक लाभ 

​विनायक राव टोपे शहीद तात्या टोपे के धरोहर के साथ 

बहरहाल, आज मराठा के शहीद रामचंद्र पांडुरंग टोपे @ तात्या टोपे के चौथे-श्रेणी के वंशज श्री विनायक राव टोपे से बात हुई। टोपे साहेब तात्या टोपे की धरोहर को विश्व बाजार में बेचना चाहते हैं।  वे चाहते हैं कि इससे उन्हें, उनके परिवार को जो भी लाभ हो, देश में गुमनाम क्रान्तिकारियों, शहीदों के जो वंशज आज कष्टकारी हालत से जूझ रहे हैं, उन्हें सहायता करें, उनकी बेटियों की सहायता करें। उनका कहना है की वे स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों के नाम का “राजनीतिकरण” को  सकते, उनके वंशजों को ‘सुरक्षित सामाजिक और आर्थिक जीवन’ अकेले तो दे नहीं सकते, इसलिए शहीद तात्या टोपे की जो भी धरोहर उनके पास सुरक्षित है, उसे विश्व बाज़ार में बेचकर तो मदद कर ही सकते हैं। 

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भारत के उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के बिठुर तहसील में महारानी लक्ष्मी बाई, बाजीराव पेशवा और तात्या टोपे ने प्रथम स्वतंत्रता आन्दोलन का सूत्रपात किया था।  भारत के स्वतंत्रता मिलने के 66 साल बाद भी आज बिठुर रेल-यातायात से कटा है. वैसे पिछले सरकारों ने अनेकों बार इसे रेल-मार्ग से जोड़ने का “झूठा वादा” किया। भारत का एक विशिष्ट औद्योगिक क्षेत्र होने के बाद भी इस इलाके में शिक्षा और रोजगार के कोई साधन “नहीं के बराबर” हैं।  

अमर शहीद तात्या टोपे के पैंसठ वर्षीय प्रपौत्र विनायकराव टोपे ने कहा की स्वतंत्रता संग्राम में शहीद हुए, अंग्रेजी हुकूमत के गोलियों का शिकार हुए क्रांतिकारियों के वंशजों को एक सम्मानित जीवन दिया जा सके। तात्या टोपे के लिए यह सबसे बड़ी श्रधांजलि होगी।” 

विनायक राव कहते हैं चौदह-साल पहले एक पत्रकार दंपत्ति ने अपने अथक प्रयास से हमें और हमारे परिवार को 2007 में गुमनामी जिन्दगी से निकाल कर एक नयी जिन्दगी दिया था। भारतीय रेल इनकी दो बेटियों – प्रगति टोपे और तृप्ति टोपे – को नौकरी दी थी, साथ ही, झा दंपत्ति के प्रयास के पांच लाख रुपये का भी इजाफा हुआ था, लेकिन बेटियां तो ससुराल गयीं, पैसे उनके विवाह पर, बेटे की पढाई पर खर्च हो गए, हम पति-पत्नी अब बूढ़े हो रहे हैं, बेटा शिक्षित होने के बाद भी बेरोजगार है। इसलिए चाहता हूँ कुछ अच्छा  कर जाऊं। 

विनायक राव के अनुसार स्वतंत्रता के पश्च्यात कानपूर शासन ने तात्या टोपे की समस्त वस्तुओं को  अधिगृहित कर लिया था, जो आज कहाँ है किसी को भी  पता नहीं। सन  2007 में जब वे तत्कालीन जिलाधिकारी से मिलने गए थे तो उन्हें धक्के मारकर बाहर निकाल दिया गया था।  तात्या टोपे के वंशज आज मध्य प्रदेश में भी हैं जो बदतर  आर्थिक स्थिति से जूझ रहे हैं। 

विनायक राव के अनुसार आज भी उनके पास तात्या टोपे की “गुप्ती”, जिससे न जाने कितने अंग्रेजों को मौत के घाट सुलाया गया होगा, विशेष कर कानपूर के ‘सत्ती चौरा घाट पर” उनके पास सुरक्षित है।  इसके अलावे, पीतल का एक घड़ा जो 

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तात्या टोपे की माँ का है और सागवान से बना दो लकड़ी का संदूक जो आज भी जस-के-तस हैं। इन वस्तुओं के अतिरिक्त कुछ पुराने कागजात और पुस्तकें हैं जिसे विश्व  बाज़ार में बेच कर स्वतंत्रता संग्राम (1857-1947) के दौरान शहीद हुए क्रांतिकारियों के आज के जीवित वंशजों को, जो भारत के विभिन्न राज्यों में गुमनामी जीवन जी रहे हैं, एक सुरक्षित सामाजिक और आर्थिक जीवन पर खर्च करने की ईक्षा है। 

​विनायक राव टोपे शहीद तात्या टोपे के धरोहर के साथ 

पौराणिक कथन के अनुसार कानपूर शर में गंगा के तट पर बसा बिठुर वही स्थान है जहाँ व्यास मुनि ने “वेद” की रचना की थी. भगवन रामचंद्र-सीता के दोनों पुत्रों – लव-कुश का जन्म इसी स्थान पर हुआ था। मराठा युद्ध के बाद बाजीराव पेशवा नाना साहेब के साथ इसी बिठूर में स्थान लिया था जहाँ नाना साहेब, महारानी लक्ष्मी बाई और तात्या टोपे की आगुआयी में भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बजा था। दुर्भाग्य यह है की भारत के आजादी के 73 साल बाद भी यह इलाका भारत के अन्य इलाकों की तरह उपेक्षित है। विनायक राव टोपे के पिता स्वर्गीय नारायण राव टोपे को सन 1857 के युद्द के सौ साल पूरे होने पर तत्कालीन उत्तर प्रदेश शाशन की ओर  से सम्मानित किया गया था।  

नारायण राव टोपे, शहीद रामचंद्र पांडुरंग टोपे के भतीजे थे. उस समय उत्तर प्रदेश शाशन के सचिव स्वर्गीय आदित्य नाथ झा ने एक चाँदी  की थाल के अतिरिक्त 1001 रूपये भी प्रदान किये थे। ज्ञातव्य हो की बिहार के उसी स्थान के एक दूसरी-पीढ़ी विनायक राव टोपे का जीवन सवांरा था। 

पिछले दिनों भारत के एक राष्ट्रीय राजनैतिक पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन दिल्ली में संपन्न हुआ था। दिल्ली के सड़कों पर बड़े-बड़े बैनर और पोस्टर लटके थे और उसी में लटका था स्वतंत्रता संग्राम के कुछ शहीदों के तस्वीर. शहीद रामचंद्र पांडुरंग टोपे @ तात्या टोपे की भी तस्वीर उनमे से एक था। परन्तु, उस राजनैतिक पार्टी के अध्यक्ष सहित वरिष्ठ राजनेताओं से तात्या टोपे के वंशजों के बारे में पूछा की वे अभी जीवित हैं या नहीं? किसी ने भी सकारात्मक उत्तर नहीं दिए। 

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