किडनी, ह्रदय, फेफड़ा, रक्तचाप, डाईबिटिज से ग्रसित ‘ठेंघुने-कद’ से ‘आदम-कद’ के बिहारी नेता राजनीतिक उत्तराधिकारियों की खोजकर रहे हैं ‘गोलघर’ से

मुख्य मंत्री नितीश कुमार: मुझपर कोई लांछना नहीं लगा सकता की मैं वंशवाद को  बढ़ावा दे रहा हूँ। फोटो: PTI 
मुख्य मंत्री नितीश कुमार: मुझपर कोई लांछना नहीं लगा सकता की मैं वंशवाद को  बढ़ावा दे रहा हूँ। फोटो: PTI    

श्रीकृष्ण सिन्हा से लेकर नितीश कुमार तक बिहार अब तक 23 नेताओं को मुख्य मंत्री के रूप में देखा, आँका। कईयों को दूसरे-तीसरे-चौथे-पांचवें बार सिंघासन पर बैठाया; तो कोई सिंघासन का अवलोकन करते-करते 74-वर्षीय वृद्ध हो गए, ह्रदय में छिद्र भी हो गया। कोई 72-वर्ष के हो गए। कोई  किडनी, ह्रदय, फेफड़ा, रक्तचाप, डाईबिटिज इत्यादि जानलेवा बिमारियों से ग्रसित होने के बावजुद राजनीति से मोह भंग नहीं हुआ।  अब अपनी राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में अपने सन्तानों को आगे ला रहे हैं। 

बिहार में प्रदेश के मुख्य मन्त्री नितीश कुमार को छोड़कर, लगभग सभी ”ठेंघुने-कद” से लेकर ”आदम-कद” के नेतागण, चाहे लालू प्रसाद यादव हों, राम विलास पासवान हों, सभी धृतराष्ट्र के तरह ‘पुत्रमोह’ से ग्रसित  हो गए हैं और अपनी अगली पीढ़ी को प्रदेश का कमान हाथ में देकर “निश्चिन्त” हो जाना चाहते हैं, भले ही, प्रदेश सम्पूर्ण रूप से गर्त में क्यों न चला जाय। प्रदेश के लोगों के बारे में, मतदाताओं के बारे में तो पूछिए ही नहीं।

उत्तराधिकारी ढूंढने की प्रक्रिया चुनाव के समय, चाहे विधान सभा का चुनाव हो या लोक सभा का, उत्कर्ष पर होता है। राजनीति में आगे निकलने के लिए अनेकानेक ऐसे व्यक्ति, नेता भी डाकबंगला चौराहा पर उपलब्ध हैं, जो किसी भी जाति/समुदाय के शिखर पर बैठे नेताओं को अपना ”सबकुछ” मान लेते हैं, यहाँ तक की “अभिभावक”, “पिता-तुल्य” जबकि वास्तविक पिता और अभिभावक अपने पुत्रों के दर्शन के लिए तरसते रहते हैं अपने जीवन का अंतिम सांस गाय-गोरु के बथान में लेते । 

लेकिन वहीँ कुछ ऐसे भी युवक और वंशज हैं, जो उत्तराधिकारी के लिए सभी शर्तें पूरा तो करते  हैं, सम्पूर्ण अवसर भी है; परन्तु राजनीति से उतनी ही दूरी रखना चाहते हैं जितनी दूरी पटना सिटी से दानापुर की है। वे एक साधारण मनुष्य के  रूप में जीवन यापन करना चाहते हैं।

मुख्य मंत्री नितीश कुमार अपने एकलौते पुत्र निशान्त कुमार के साथ: 
फोटो : पीटीआई  

नितीश कुमार को अपने एकलौते पुत्र निशान्त कुमार के साथ “शैक्षिक-मानसिक इंजीनियरिंग” बहुत बेहतर है। कहा जाता है कि पुत्र को पिता के प्रति “समर्पण” तो उत्कर्ष पर है; पिता के तरफ कोई ऊँगली भी नहीं उठा सकता; लेकिन “पिता की राजनीति से मीलों दूर तक वास्ता नहीं है।  जबकि सुशील कुमार मोदी के पुत्रद्वय – उत्कर्ष तथागत और अक्षय अमृतांशु – व्यापार से तालुकात होने के वावजुद, “राजनीति” के अलावे “अन्यत्र” अपने जीवन को संवारना चाहते हैं। वैसे “मोदियों” को “मौका” से कोई 36-का आंकड़ा नहीं है।

स्वयंभू-दलित नेता रामविलास पासवान और पूर्व पति-पत्नी मुख्य मन्त्री जोड़ी – लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी – अपने दोनों पुत्रों को और बेटी मीशा भारती को “राजनीति का स्वाद  चखाकर जीवन पर्यन्त उनका राजनीतिकरण करने के लिए नित्य दण्ड-बैठकी कर रहे हैं। यहाँ तक की रांची जेल वाले अस्पताल से भी पुत्र को राजनीति का पाठ पढ़ा रहे हैं। वैसे लालू प्रसाद यादव और राम विलास पासवान शारीरिक रूप से अब उतने स्वस्थ नहीं हैं जितने पहले थे  – किडनी, ह्रदय, फेफड़ा, रक्तचाप, डाईबिटिज इत्यादि भयानक बिमारियों से जूझ रहे हैं, वैसी स्थिति में “राजनीतिक उत्तराधिकारी” ढूँढना स्वाभाविक है। तीन साल पहले राम विलास पासवान का ह्रदय का शल्य चिकित्सा हुआ था लन्दन में। यह अलग बात हजै कि उनके मतदाताओं को बिहार के किसी भी अस्पताल में चिकित्सा की सुविधा वैसी उपलब्ध नहीं है, जैसी “एक मनुष्य” लिए होनी चाहिए।

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बहरहाल, यदि देखा जाय तो जिस तरह लालू प्रसाद यादव और राम विलास पासवान बिहार के ऐसे दो नेता हैं, जिन्होंने प्रदेश को अपने पांच-दसक से अधिक की राजनीतिक जीवन में “कुछ सकारात्मक स्वरुप नहीं दिए” – जबकि लालू  प्रसाद और उनकी पत्नी राबड़ी देवी प्रदेश के मुख्य मंत्री बने।  राम विलास पासवान के प्रति भगवान् का रुख अभी तक नहीं बदला जिससे जीवन के अन्तिम चरण में भी निवास का पता “मुख्य मंत्री आवास” लिखा जाय। हाँ, प्रदेश के दलितों, दबे-कुचलों मुख में लालू प्रसाद यादव “आवाज” जरूर दिए जो आज़ादी के पांच-दसक बाद तक भी वे “मूक-वधिर” थे। यह बात अलग है कि “स्वयंभू-दलित नेता” कहने वाले रामविलास पासवान कभी “दलितों” का नहीं हुए।

उप-मुख्य मंत्री सुशील मोदी के पुत्र उत्कर्ष तथागत (तस्वीर विवाह के दिन का है इसलिए नव-दंपत्ति सदा-सुहागन रहें।

यह कहा जाता है कि जब प्रदेश में वर्तमान मुख्य मन्त्री नितीश कुमार “महा-दलित” नामक एक “वोट-बैंक” का सरकारी-स्तर पर  निर्माण कर रहे थे, तब राम विलास पासवान प्रत्यक्ष रूप से उन्हें निहोरा किये की “उनकी जाति को महा-दलित की श्रेणी में” नहीं ”नाथा” जाय।

सत्तर दसक में बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा संचालित प्रशासनिक सेवा परीक्षा परिणाम में अपना नाम दर्ज किये राम विलास पासवान वर्तमान राजनेताओं में “एकलौते” नेता हैं तो “दो शादियां” किये – पहली शादी श्रीमती राजकुमारी देवी से हुई जिसके दो सन्तान हैं – उषा पासवान और आशा पासवान। अस्सी के दसक के शुरुआत में ही श्रीमती राजकुमारी देवी “पासवान-मुक्त” हो गयीं और कोई दो साल बाद, रामविलास पासवान एयर-हॉस्टेस सुश्री रीना शर्मा जी का हाथ आजीवन साथ देने हेतु  थामे। श्रीमती रीना पासवान-रामविलास पासवान के दो सन्तान हैं – सुश्री निशा पासवान और चिराग़ पासवान। चिराग पासवान, राम विलास पासवान के एकलौते “चिराग” हैं जो “भारतीय फिल्म जगत के हारे हुए खिलाडी” हैं।

बिहार में एक कहावत है: “कुच्छो नहीं करेगा तो नेता तो बन ही जायेगा, झूठ-सच बोलकर।  बस बोलना आना चाहिए। फिर तो “आना” क्या “कौड़ी” के भाव में मतदाता को बरगलाकर, बेचकर सिंघासन पर बैठ ही जायेगा।” इसी कहावत को चरितार्थ करने में पिता-पुत्र 24 x 7 x 365 लगे हुए हैं।

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राम विलास पासवान – रीना शर्मा अपने पुत्र चिराग पासवान के साथ

बिहार के डाकबंगला चौराहे पर चर्चा भी है कि “चिराग” अपने पिता की अन्तिम ईक्षा (पटना निवास का पता) अवश्य पूरा कर देंगे। सवाल यह है कि क्या बिहार के लोग, बिहार के मतदाता अपना घर पांच-साल के लिए फूंकेंगे? यदि लोगों की, मतदाताओं की, विशेषकर “प्रवासित  नागरिकों” (चाहे शिक्षित हों या अंगूठा छाप” विगत वर्षों के अनुभवों मद्दे नजर अब अपनी ऊँगली ऐसे लोगों के लिए “कालिख़” नहीं करेगी, जिन्होंने बिहार के स्थापना के बाद से लगातार, बार-बार मतदाताओं को बेवकूफ बनाया, जो कभी प्रदेश के लोगों का नेता हुआ ही नहीं – अपने-अपने परिवार, भाई-बहन-बेटा-बेटी को विधान सभा से लेकर संसद तक पहुंचाया। जबकि स्वयं को “दलित-नेता” कहते हैं।

जैसे-जैसे रामविलास पासवान “वृद्ध” होते जा रहे हैं, हाजीपुर से लेकर जनपथ तक की बीमारियाँ जिस तरह उनके शरीर पर “कब्ज़ा” कर रही हैं; स्वाभाविक है “पुत्रमोह” होना  भी होंगे की जीते-जी चिराग़ “बिहार से लेकर दिल्ली तक राजनीतिक मानचित्र पर प्रकाशमय हो जाय और अगली पीढ़ी को भी तैयार करे राजनीति में छलाँग लगाने के लिए। खबर वैसे पक्का नहीं है, परन्तु “सुगबुगाहट” क्वींस रोड है की आगामी बिहार चुनाव में पासवान-परिवार के कुछ नए चेहरे बिहार के छायाकारों को मिलने वाले हैं “फोटो” के लिए और पत्रकारों को “लिखने” के लिए।

लेकिन वर्तमान मुख्य मंत्री नितीश कुमार – जो लगातार पांच बार प्रदेश के मुख्य मंत्री रह चुके हैं – के एकलौते पुत्र निशान्त कुमार को अपने पिता से तो “ब्रह्म” जैसा  प्रेम है, निशान्त के लिए वे “ब्रह्माण्ड” स्वरुप हैं; परन्तु उनकी “पेशा” से वह न्यूनतम गँगा-की-चौड़ाई बराबर फासला रखता है। राजनीतिक पंडितों (आजकल पटना के गाँधी मैदान से लेकर डाकबंगला के रास्ते सर्कुलर रोड तक चटाई बिछाकर बैठे हैं) का यदि माने तो उनके अनुसार “निशान्त राजनीति में नहीं आएंगे” – लेकिन  “आने वाले विपत्ति के दिनों में, जब सम्पूर्ण प्रदेश पुत्रमोह से ग्रसित हो जायेगा नितीश कुमार को सत्ता-मुक्त करने, जीवन की लड़ाई में हार-स्वीकार करने’; फिर यह “मातृहीन” पुत्र ,चन्द्रमा के तरह पिता के ऊपर फैले अँधेरी रात का शांतिपूर्ण और सुखद सवेरा लेकर आएगा (आज गाँठ बांध लें) – इसे परिवारवाद नहीं कहेंगे।

निशांत कुमार राजनीति और मीडिया से बहुत दूर रहते हैं।  पेशे से इंजीनियर हैं लेकिन उनका झुकाव आध्यात्म की तरफ ज्यादा है। अपनी माँ श्रीमती सिन्हा की मृत्यु के बाद निशान्त “अन्तःमन” से अकेला हो गए। यह अलग बात है कि पिता हमेशा उनके साथ मनोवल बढ़ाने हेतु खड़े होते हैं; लेकिन “माँ की बात ही कुछ और थी” – इसलिए  निशांत ने राजनीति के प्रति केवल अपनी अनिच्छा ही नहीं जताई बल्कि यहां तक कहा कि वे राजनीति में कभी नहीं जाएंगे और आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करेंगे। निशांत, जो नीतीश की इकलौती संतान हैं, प्रारम्भ से कुछ अलग प्रकृति के हैं। मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश के शपथ-ग्रहण जैसे एकाध मौके को छोड़ दें तो राजनीति के गलियारे में वे शायद ही देखे जाते हैं। भीड़-भाड़ और किसी भी तरह के प्रचार से दूर उन्हें एकांत में समय बिताना अधिक पसंद है। बताया जाता है कि अपनी मां की असमय मृत्यु उनके एकांतप्रिय स्वभाव का एक बड़ा कारण है।

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पूर्व मुख्य मंत्री लालू प्रसाद-राबड़ी देवी के “गिरिधर-गोपाल” – तेजश्वी यादव और  प्रताप यादव।  फोटो : पीटीआई 

लालू प्रसाद यादव की तो बात ही नहीं करें। पिता ही नहीं, माता भी, आजकल राजनीतिक बाजार में अपने दोनों पुत्रों, बेटियों की तारीफ़ करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। आजकल पुत्रद्वय  तेजस्वी यादव और तेजप्रतापयादव के अलावे बेटी मीसाभारती भी राजनीति में  सक्रिय हैं।सवाल यह है कि लालू प्रसाद यादव, उनकी पत्नी  “अकस्मात् मुख्य मन्त्री” अपने परिवार को राजनीतिक संरक्षण, प्रोन्नत्ति, आधार देने के अलावे “प्रदेश को दिए” जो आने वाले समय में प्रदेश की जनता आस्वस्त हो की उन्हें लालू यादव-राबड़ी देवी के पुत्र-पुत्री देंगे।

लालू यादव के पुत्रद्वय “नवमीं कक्षा”  पढ़े हैं और पुत्री निशा भारती की शैक्षणिक योग्यता पर अनेकानेक बार प्रश्नचिन्ह लगा है। वैसी स्थिति में प्रदेश में आने वाले दिनों में शिक्षा का क्या महत्व रह जायेगा, यह बहुत ही बेहतरीन शोध का विषय होगा। प्रदेश के लोग कर्पूरी ठाकुर के मुख्य मंत्रित्व काल से प्रदेश में शिक्षा की स्थिति देख   चुके हैं। जहाँ तक प्रदेश में अन्य विकासों का सवाल है – यह तय है कि लालू यादव के पुत्रद्वय और बेटी प्रदेश को  प्रकार की दिशा नहीं दे सकते हैं।

इन लोगों में एक बात और भी महत्वपूर्ण है इनकी भाषा। भाषा पर नियंत्रण नहीं है और दूसरी पार्टियों के नेताओं को छोड़िये, आम आदमी की बात छोड़िये; अपनी पार्टी में भी लोगों को सम्मान देने में शालीनता नहीं है। यही कारण है कि लालू यादव के पुराने मित्र प्रोफ़ेसर रघुवंश प्रसाद सिंह राष्ट्रीय जनता दल से मोह त्यागकर राजनीतिक सन्यास लेने जा  रहे हैं। अगर और तहक़ीक़ात करें तो आने वाले समय में दर्जनों ऐसे लोग आरजेडी पार्टी में अपनी-अपनी कुर्सियों से चार-इंच ऊपर ही बैठे हैं ताकि समय पर निकलने में सुविधा हो। कई बार ऐसा हुआ है जब पुत्रद्वय मंच से  सार्वजानिक रूप से मंच पर उपस्थित आरजेडी के नेताओं को, मन्त्रियों को “नीचा” दिखाए हैं।

तभी तो  जदयू प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद  राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ नेता  रघुवंश प्रसाद सिंह का पार्टी   छोड़ने को लेकर कहा कि भी की “राजद में मान-सम्मान के साथ काम करना किसी भी राजनेता के लिए आसान नहीं है।”  उन्होंने कहा कि एक बात बिल्कुल स्पष्ट है कि जिस यंत्रणा के शिकार डॉ. सिंह थे, जो संवादहीनता और अपमान का घूंट पीकर वह राजद में लंबे समय तक बने रहे उसके बाद अंतत: उनको यह निर्णय लेना पड़ा। श्री प्रसाद ने कहा कि डॉ. सिंह के राजद छोड़ने को निस्संदेह पार्टी की डूबती नाव में एक बड़े छेद के तौर पर देखा जा सकता है।

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