कोरोना वायरस के खिलाफ जंग लड़ने लिए अर्थ की जरुरत होगी, स्वाभाविक है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी “प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और राहत कोष” नामक ट्रस्ट बनाने की घोषणा की जहां लोग कोरोना वायरस के खिलाफ सरकार की लड़ाई में मदद एवं योगदान दे सकते हैं । प्रधान मंत्री इस ट्रस्ट के अध्यक्ष होंगे ।
लेकिन सांसदों को MPLADS स्कीम के तहत आवंटित राशि (अनुपयुक्त 1734 . 42 करोड़ रूपया मार्च 27, 2019 तक) को “कोरोना वायरस” “सोसल डिस्टेंसिंग” बनाये न रखें माननीय प्रधान मंत्री जी, सांसदों/विधायकों को संसदीय/विधान सभा क्षेत्रों के विकास हेतु दी जाने वाली राशि का उपयोग इस महामा री को नियंत्रित करने में किया जा सकता है और यह कार्य सिर्फ आप तथा माननीय गृह मंत्री श्री अमित शाह कर सकते हैं।
भारत लोगों से प्रधान मंत्री तो मदद की गुहार कर लिए, लेकिन इस बात को स्पष्ट नहीं किये की भारत के संसद – लोक सभा और राज्य सभा – के सांसदों और देश के सभी 29 राज्यों और 8 केंद्र प्रशासित राज्यों के विधायकों (विधान सभा और विधान परिषद् सहित) का, जो देश के 130 करोड़ लोगों का राजनीतिक मंच पर प्रतिनिधित्व करते हैं – इस जंग में क्या भूमिका होगी?
संसद और विधान सभाओं/विधान परिषदों द्वारा उनके संसदीय / विधान सभा क्षेत्रों के विकास के लिए आवंटित राशि का क्या इस पुनीत कार्यों में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है? या यह आवंटित राशि “कोरोना वायरस जैसा ही है – सोसल डिस्टेंसिंग – बनाये रखना।
वजह यह है कि प्रधान मंत्री के आह्वान पर भी देश के राजनीतिक गलियारों से जो आक्रामक रुख लिया जाना चाहिए था, वह नहीं है।
सोसल मिडिया पर कुछेक राजनेता यदि पावरोटी का एक पैकेट सुन्दर से कागज़ में लपेट कर अपने ड्राईवर को भी खिलाते हैं, इसका विडियो अपलोड हो जाता है। यह न्यायसंगत प्रतीत नहीं होता है क्योकि भारत में तक़रीबन 376. 1 मिलियन लोग सोसल मिडिया पर उपस्थित हैं – प्रधान और मंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री इस दिशा में सक्षम कदम उठा सकते हैं ताकि उनकी और उनकी सरकार की बदनामी नहीं हो।
बहरहाल, देश में ऐसी त्रादसी से निपटने के लिए पैसों की किल्लत नहीं है (होनी नहीं चाहिए) बसर्ते व्यवस्था, नेतागण, सांसदों, विधायकों, जिलाधिकारियों या अन्य सभी लोगों को देश के लोगों के प्रति चिंता हो – मानवीय हो अथवा नहीं परन्तु यह अवश्य सोचें की देश का यह नागरिक एक मतदाता है। उन्हें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि “अगर देश में आवाम (मतदाता) नहीं रहेंगे तो वे संसद अथवा विधान सभाओं में इत्र-छिड़ककर कैसे बैठ पाएंगे।
आकंड़ों के अनुसार भारत के लोक सभा में 543 सांसद हैं, जबकि राज्य सभा में 245 यानि कुल 788 सांसद जो देश के 130 करोड़ लोगों का/मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं ।
इसी तरह, सम्पूर्ण देश के विधान सभाओं में कुल 4116 विधायक और 426 विधान परिषदों में – यानि कुल 4542 विधायक। ये सभी सांसद और विधायक अपने-अपने क्षेत्रों के मतदाताओं (लोगों) के प्रतिनिधि होते है, इसलिए इनकी जवाबदेही देश के राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, मुख्य मंत्री से अधिक होना चाहिए और अगर ऐसा नहीं होता तो माननीय प्रधान मंत्री समय-समय पर सांसदों / मंत्रियों की “कक्षा” नहीं लेते, उन्हें अपने-अपने संसदीय क्षेत्रों में जाने/कार्य करने को बाध्यकारी नहीं बनाते । इन सांसदों को अपने संसदीय / विधान सभा-विधान परिषद् क्षत्रों में विकास अथवा अन्य कार्यों के लिए राशि आवंटित किये जाते हैं।
यदि भारत सरकार / संसद इन सांसदों / विधायकों द्वारा विकास अथवा अन्य कार्यों के लिए आवंटित राशियों का उपयोग की समीक्षा करे तो आंकड़े आँख खोलने वाले मिलेंगे।
केंद्र सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि 2014 में सांसदों द्वारा 2004 और 2009 में चयनित सांसदों की तुलना में राशि का उपयोग बहुत कम किया गया। सांख्यिकी अनुसार 2004 – 2009 में 176 करोड़ रूपये का उपयोग नहीं हुआ था जो बढ़कर 213 . 13 करोड़ हो गया और फिर पंद्रहवी लोक सभा में यह राशि 551 . 25 करोड़ हो गया। सोलहवीं लोक सभा में यह राशि 1734 . 42 करोड़ (मार्च 27, 2019) हो गया। यह राशि सांसदों का अपने संसदीय-क्षेत्रों की जिम्मेदारी को बताता है।
बहरहाल, अब अगर प्रत्येक सांसद अपने कोष से एक साल की राशि यानि पांच करोड़ कोरोना त्रादसी के रोकथाम के लिए समर्पित करते हैं तो कुल राशि 788 x 50000000 = 39400000000 करोड़ रुपया राष्ट्र को मिलता है। इसी तरह अगर कुल 4542 विधायक अपनी राशि से 20000000 रुपये देते हैं तो कुल राशि 90840000000 रूपया राष्ट्र को मिलेगा। यानि कुल 1302800000000 रूपया ।
अब अगर पिछले वर्ष मार्च तक की अनुपयोग राशि में 1734 . 42 करोड़ रूपया में 1302800000000 रूपया जोड़ दिया जाय तो राशि का अनुमान स्वतः लगा लें माननीय प्रधान मंत्री महोदय।
बहरहाल, प्रधानमंत्री कार्यालय के बयान के अनुसार, ‘‘ कोविड-19 महामारी से उत्पन्न चिंताजनक हालात जैसी किसी भी प्रकार की आपात स्थिति या संकट से निपटने के लिये एक विशेष राष्ट्रीय कोष बनाने की आवश्यकता और इससे प्रभावित लोगों को राहत प्रदान करने के लिए ‘आपात स्थितियों में प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और राहत कोष (पीएम केयर्स फंड)’ के नाम से एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट बनाया गया है।’’ प्रधानमंत्री इस ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं और इसके सदस्यों में रक्षा मंत्री, गृह मंत्री एवं वित्त मंत्री शामिल हैं।
राहत कोष की जानकारी देते हुए मोदी ने अपने ट्वीट में कहा, ‘‘ प्रधानमंत्री नागरिक सहायता एवं आपात स्थिति राहत कोष स्वस्थ भारत बनाने में काफी सहायक होगा । ’’ उन्होंने कहा, ‘‘ कोविड-19 के खिलाफ भारत के युद्ध में सभी वर्गों से लोगों ने दान देने की इच्छा व्यक्त की थी । ’’ प्रधानमंत्री ने कहा कि इस कोष का गठन इसी भावना को ध्यान मे रखते हुए किया गया है ।
वहीं, प्रधानमंत्री कार्यालय के बयान में कहा गया है कि ‘कोविड-19’ की महामारी ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है और इसके साथ ही विश्व भर में करोड़ों लोगों की स्वास्थ्य और आर्थिक सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौतियां उत्पन्न कर दी हैं। भारत में भी कोरोना वायरस फैलता जा रहा है और हमारे देश के लिए भी गंभीर स्वास्थ्य एवं आर्थिक चुनौतियां उत्पन्न कर रहा है।
बयान के अनुसार, ‘‘ इस आपातकाल के मद्देनजर सरकार को आवश्यक सहयोग देने के उद्देश्य से उदारतापूर्वक दान करने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय को काफी अनुरोध प्राप्त हो रहे हैं।’’ इसमें कहा गया है कि संकट की स्थिति, चाहे प्राकृतिक हो या कोई और, में प्रभावित लोगों की पीड़ा को कम करने और बुनियादी ढांचागत सुविधाओं एवं क्षमताओं को हुए भारी नुकसान को नियंत्रित करने के लिए त्वरित और सामूहिक कदम उठाना जरूरी हो जाता है। नई प्रौद्योगिकी और आधुनिक अनुसंधान निष्कर्षों का उपयोग भी इसका एक अविभाज्य हिस्सा बन जाता है।
प्रधानमंत्री कार्यालय के बयान में कहा गया है कि किसी भी मुसीबत को कम करने के लिए सार्वजनिक भागीदारी सबसे प्रभावकारी तरीका है । इस कोष में छोटी-छोटी धनराशियां दान के रूप में दी जा सकेंगी। इसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में लोग इसमें छोटी-छोटी धनराशियों का योगदान करने में सक्षम होंगे।