एगो हैं राम विलास पासवान, राजनीतिक मौसम विभाग के थर्मामीटर, जे है से कि। सत्ता में बने रहने के लिए कुछ भी कर सकते हैं – कोई भी, किसी भी पार्टी का राजनीतिक विचारधारा बाधक नहीं बन सकता है। किसी पार्टी से हाथ मिला सकते हैं, किसी भी पार्टी से हाथ झटक सकते हैं, अपने और अपने परिवार, परिजनों के लिए, “दलितों के कल्याणार्थ।”
पिछले वर्ष दिल के वाल्व में रिसाव हो गया था, लन्दन के ब्राम्पटन अस्पताल में सर्जरी कराये और एक साल बाद जिस पार्टी में अभी साथ हैं, उसी पार्टी को लपेटना शुरू कर दिए, बिहार की राजनीति को लेकर ।
नजदीकी लोगों का मानना है कि वे एक बार अपने प्रदेश में मुख्य मंत्री बनना चाहते हैं क्योंकि उनका साथी-संगत के सभी नेता लोग, यहाँ तक की जीतन मांझी भी; एक बार नहीं, दो बार, तीन बार मुख्य मन्त्री बन चुके हैं।
देश की राजनीति की नब्ज और टेंटुआ दोनों पकड़ने में माहिर हैं। पहले तो अकेले थे, अब पुत्र चिराग पासवान भी पिता का कन्धा-से-कन्धा मिलाकर राजनीतिक व्यूहरचना बनाने का कार्य कर रहे हैं। चिराग पासवान बॉलीवुड में भी अपनी सुन्दरता को लेकर भविष्य आजमाए थे, लेकिन बहुत सफलता नहीं मिली। कहा जाता है कि हाजीपुर से दिल्ली के रास्ते बॉलीवुड ले जाने में बॉलीवुड के शीर्षस्थ निदेशक-अभिनेता प्रकाश झा की भूमिका अब्बल रहा। प्रकाश जा पासवान परिवार के बहुत नजदीकी माने जाते हैं।
सम्भतः राम विलास पासवान एक अकेला “दलित नेता” हैं जो अपने साढ़े-चार दसक के राजनीतिक जीवन में छः प्रधान मंत्रियों के कैबिनेट में कैबिनेट मंत्री के पद को शोभायमान बनाया। उन्होंने प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह, एच डी देवगौडा, आई के गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और मोदी की कैबिनेट में काम किया है और कभी भी किसी राजनीतिक विचारधारा को अपनी राजनीतिक जीवन के राह में नहीं आने दिया।
नजदीकियों मानना है कि बिहार के तीन नेताओं – लालू यादव, सुशिल मोदी और नितीश कुमार – में राम विलास पासवान नितीश कुमार से अधिक करीब है। नितीश-पासवान में वैचारिक भेदभाव के वावजूद, राज्य की भलाई, साम्प्रदायिक सद्भावना को लेकर एक मत है। दोनों में कोई नहीं चाहते की राज्य में किसी भी प्रकार की अशांति हो। धर्म के नाम पर समाज में किसी भी तरह का कोई मतभेद नहीं हो।
वैसे नितीश कुमार जो कभी एन डी ए का हिस्सा थे, सम्बन्ध विच्छेदकर बिहार में अपनी उपस्थिति दर्ज किये। यह अलग बात है कि फिर से बी जे पी के साथ सरकार बनाये। लेकिन यदि पिछले कुछ दिनों से चल रहे उठापटक पर विचार करें तो इस बात की संभावनाओं से इंकार नहीं कर सकते हैं कि रामविलास पासवान नीतीश कुमार के साथ ताल-मेल बैठा लें और मोदीजी को आगामी लोक सभा चुनाब से पूर्ब नमस्कार कर दें।
आठ बार लोक सभा संसद चुनाब जितने वाले राम विलास पासवान संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, लोकदल, जनता पार्टी, जनता दल, जनता दल (यूनाइटेड) में रहे और फिर 2000 में अपनी पार्टी लोजपा का गठन किया। हाजीपुर सीट से 5 लाख से अधिक मतों से जीतकर उन्होंने गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्डस में अपना नाम दर्ज कराया।
भारत को स्वतन्त्र होने से एक वर्ष और एक माह पहले बिहार के खगरिया जिले के शहरबन्नी गाँव में ५ जुलाई, १९४६ को जन्मे दलित नेता राम विलास पासवान एम ए, एल एल बी हैं और मौंटब्लैंक कलम से लिखने में दिलचस्पी रखते हैं। विश्वविद्यालय शिक्षा काल से ही राम विलास पासवान छात्र राजनीति में सक्रिय नेता के रूप में जाने जाते थे। सम्पूर्ण क्रांति के नायक जयप्रकाश नारायण के समाजवादी आंदोलन में ये अपना महत्वपूर्ण योगदान दिए थे।
१९६९ में पहली बार पासवान बिहार के विधानसभा चुनावों में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप निर्वाचित हुए और फिर कभी मुरकर नहीं देखा। पहले अकेले थे, समयान्तराल ‘सापारिवार हो गए। सन १९७४ में जब लोक दल बना तो पासवान उससे जुड़ गए और महासचिव भी बने।
आपातकाल के दौरान राम विलास पासवान कांग्रेस के साथ साथ तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इन्दिरागांधी का जबरदस्त विरोध किया था, जेल भी गए। १९७७ में छठी लोकसभा में पासवान जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में निर्वाचित हुए और फिर १९८२ में हुए लोकसभा चुनाव में पासवान दूसरी बार सफलता प्राप्त किये। पंद्रहवी लोकसभा के चुनाव में पासवान हार गए और अगस्त २०१० में बिहार से राज्यसभा के सदस्य निर्वाचित हुए।
१९८३ में रामविलास पासवान ने दलितों के उत्थान के लिए दलित सेना का गठन किया. तथा १९८९ में नवीं लोकसभा में तीसरी बार लोकसभा में चुने गए। सन १९९६ में दसवीं लोकसभा में वे निर्वाचित हुए। चार साल बाद २००० में पासवान ने जनता दल यूनाइटेड से अलग होकर गृह-निर्मित लोकजनशक्ति पार्टी का गठन किया दलितों के कल्याणार्थ। बारहवीं, तेरहवीं और चौदहवीं लोकसभा में भी पासवान विजयी रहे और केंद्र की सरकारों में मंत्री बने।
बिहार के लोगों में ही नहीं, भारत के लोगों के बीच पासवान के बारे में कहा जाता है कि केंद्र में किसी भी दल की सरकार हो रामविलास पासवान मंत्री जरूर होंगे। यहीं कारण है कि रामविलास पासवान अटल बिहारी बाजपेयी की एनडीए सरकार में भी मंत्री थे तो यूपीए-1 की सरकार में मंत्री बने और नरेन्द्र मोदी की सरकार में भी।
फरवरी २०१४ में पासवान ने राजग से जुडने का फैसला किया और नरेन्द्र मोदी को लेकर उनके मन में जो भी विरोध था, उसे दरकिनार करते हुए उन्होंने देश की नब्ज समझी और राजग में शामिल हो गये। ये स्पष्ट संकेत था कि भाजपा के नेतृत्व वाला गठबंधन सरकार में आने वाला है। ज्ञातब्य हो की पासवान ने गुजरात में २००२ में हुए दंगों को लेकर मोदी का विरोध करते हुए राजग का साथ छोड़ दिया था। २०१४ के चुनाव में पासवान फिर नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए के साथ जुड़ गए और हाजीपुर से लोकसभा चुनाव जीते। उनकी पार्टी के 6 सांसद जीतकर आए।
पासवान बार-बार दलों और राजनीतिक खेमों को बदलने के लिए जाने जाते हैं. छात्र आंदोलन के समय से नीतीश कुमार और लालू यादव के साथ जुड़े रहने वाले रामविलास पासवान ने 2009 के लोकसभा चुनावों के लिए फिर लालू के साथ गठबंधन किया और यूपीए से जुड़ गए. लेकिन पासवान को सफलता नहीं मिली. पासवान खुद हाजीपुर से लोकसभा चुनाव हार गए।
कुछ दिन पूर्व गप – शप के दौरान पासवान कहते हैं: “हम तो हतास हो गए थे। तभी चिराग निर्णय लिया की मोदी जी के साथ होना चाहिए। पहले तो मैं असमंजस में था की चिराग अभी राजनीति में बच्चा है, परन्तु एक युवक की सोच पर विस्वास करते हुए मोदीजी के साथ हो गए। मेरे अच्छे-खासे (छः) सांसद भी जीते। हम हाजीपुर से जीते, चिराग पास्वॉन (पुत्र) जमुई से जीते, रामचन्द्र पासवान (भाई) समस्तीपुर से जीते। अन्य – श्रीमती वीणा देवी (मुंगेर), चौधरी मेहबूब अली केशर (खगरिया) और रमा किशोर सिंह (वैशाली) से जीते। हम मंत्री भी बने ।”
पासवान विश्वनाथ प्रताप सिंह के समय में रेल मंत्री बने थे। केन्द्र में चाहे यूनाइटेड फ्रंट हो, राजग हो या संप्रग, पासवान को अधिकतर सभी गठबंधन का हिस्सा बनने का मौका मिला। संप्रग-2 सरकार में वह मंत्रिमंडल में शामिल नहीं रहे। वह विश्वनाथ प्रताप सिंह के समय 1989 में केन्द्रीय श्रम मंत्री बने। एच डी देवगौडा और गुजराल सरकार के समय वह जून 1996 से मार्च 1998 तक रेल मंत्री रहे। पासवान अक्टूबर 1999 से सितंबर 2001 के बीच संचार एवं आईटी मंत्री रहे। सितंबर 2001 से अप्रैल 2002 के बीच वह खान मंत्री रहे। 2004 से 2009 के बीच वह रसायन एवं उर्वरक तथा इस्पात मंत्री रहे।