“सर, नमस्कार।” दूसरे छोड़ से फोन पर आवाज आयी और फिर रुक गयी। कुछ सेकेण्ड बाद फिर साँस खींचते हुए आवाज आयी “सर, बेटी का रिजल्ट आ गया”, और फिर वह सिसकने लगा, गला अवरुद्ध हो गया था। शायद जीवन में कुछ बहुत बेहतर हुआ था आज, इसलिए वह आंसू को नियंत्रित नहीं कर सका। मैं समझ रहा था। मैं भी चिंतित था और केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की बारहवीं कक्षा का परिणाम का इंतज़ार कर रहा था।
कुछ सेकेण्ड बाद फिर आवाज आयी “सर, 91. 8% नंबर लायी हैं। सब भगवान का आशीर्वाद है, आपलोगों का आशीर्वाद है और पढ़ाई के प्रति बेटी की अभिरुचि और मेहनत का फल है। बहुत मेहनत की थी वह । आज हम पति-पत्नी का जीवन सफल हो गया। आज जीवन के सभी दर्द ख़त्म हो गए।” यह कहते वह नमस्कार कर फोन को रखा। हम भी अश्रुपूरित आँखों से उसे आशीष देते फोन रखे।
फोन करने वाला श्री शम्सुल हक़ था। शम्सुल पिछले दो दसक और अधिक समय से गाज़ियादाद जिले के इन्दिरापुरम आवासीय कॉलोनी क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की मजदूरी कर, विशेषकर रिक्शा चलाकर अपने परिवार का भरण-पोषण करता है और अपनी बेटी के पीठ पर हमेशा तत्पर रहता है, ताकि वह जीवन में अब्बल आये, खूब पढ़े और गाँव-समाज में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाये । वह अपनी बेटी को एक सरकारी अधिकारी के रूप में देखना चाहता है भारत के किसी भी कोने में।
सलिया खातून का कहना है कि “गरीबी तो महज एक आर्थिक बीमारी है, जिसे शैक्षिक दवाई से खत्म किया जा सकता है। चुकि शिक्षा पर किसी का मोनोपोली नहीं है, साथ ही, हरेक छात्र-छात्राओं की अपनी-अपनी अलग- प्रतिभाएं होती हैं; इसलिए वे भी अपनी- प्रतिभा को विकसित करने के साथ-साथ, मजबूत कर जीवन में आर्थिक तंगी को खत्म कर सामाजिक-शैक्षिक प्रतिष्ठा कायम कर सकते हैं।
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) भले 2020 वर्ष में 12 कक्षा में परीक्षा-परिणाम घोषित कर खुश हो रहा हो, लेकिन शम्सुल हक़ और उसकी बेगम श्रीमती जयगुन नेसा की बेटी सुश्री सलिया खातून सीबीएसई द्वारा संचालित 12 वीं कक्षा में 91.8 फ़ीसदी अंक प्राप्त कर अपने माता-पिता को, समाज को बहुत गौरवान्वित की है।

उसकी उत्तीर्णता न केवल इंदिरापुरम क्षेत्र में हज़ारों की संख्या में मजदूरी कर, रिक्शा चलाकर अपने और अपने परिवार का भरण-पोषण करने वालों के लिए एक उदहारण पेश की – पढ़ाई पर किसी का मोनोपोली नहीं है। सीबीएसई 12वीं की परीक्षा का परिणाम सोमवार को जारी कर दिया गया। इस बार के परीक्षाफल में नवोदय विद्यालय में लड़कियों ने बाजी मारी। साइंस और आर्ट्स दोनों की टॉपर्स लड़कियां ही रहीं। इस वर्ष करीब 12 लाख छात्र-छात्राएं परीक्षा में बैठे थे।
श्री शम्सुल हक़ कोई दो दसक से भी पहले पश्चिम बंगाल के खेमचरण गछ – गेंदा गछ से रोजीरोटी की तलास में उत्तर प्रदेश के इंदिरापुरम इलाके में आया था। उस समय इस इलाके में गाज़ियाबाद विकास प्राधिकरण के कुछ भवनों को छोड़कर और मकनपुर गाँव को छोड़कर, पूरा इलाका जंगलमय था। खेत थे जहाँ विभिन्न प्रकार के फसल हुआ करते थे।
शम्सुल हक़ स्थानीय स्तर पर मजदूरी करने लगा। चुकि यातायात के कोई भी साधन उन दिनों इंदिरापुरम इलाके में नहीं थी, सड़कें भी टूटी-फूटी थी, इसलिए कुछ साल बाद वह रिक्शा चलना शुरू किया। बाद में शिप्रा रिवेरा आवासीय कालोनी बनने साथ यहाँ मजदूरी तो करता ही था, रिक्शा भी चलाता था। आज इस इलाके से न केवल वह परिचित है, बल्कि बहुत लोग उसे जानते हैं और सम्मान करते हैं।
सुश्री सलिया खातून का कहना है की किसी भी बच्चे को जीवन में अब्बल आने मेहनत करना तो महत्वपूर्ण है ही, उसके माता-पिता और परिवार के सदस्यों का मनोवैज्ञानिक सहयोग सबसे महत्वपूर्ण है। सुश्री सलिया खातून का कहता है कि जिस तरह मेरे माता-पिता का विस्वास हम पर अटूट रहा, वे हमेशा कदम से कदम मिलाये, कभी उदास नहीं होने दिए, कभी पढाई के मामले में कोई कमी नहीं होने दिए। मैं भी उनके विस्वास को टूटने नहीं दी।