’92 का हिसाब ’92’ में बराबर;  ‘भगवान् राम’ आडवाणीजी को ‘अयोध्या’ आने पर रोक लगा दिए 

भूमिपूजन करते प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी 
भूमिपूजन करते प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी 

मैं समय हूँ। मैं ही भूत हूँ, मैं ही वर्तमान हूँ और भविष्य हूँ। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  ”श्री राम जन्मभूमि मंदिर” का शिलान्यास किये और कहे कि राम मंदिर राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रीय भावना का प्रतीक है। समय का खेल देखिये। यही बात सन 1992 से पूर्व और 1992 में भी सम्पूर्ण राष्ट्र की एकता और अखंडता को सूत्रबद्ध करने भाजपा के तत्कालीन ”युवा-नेता” लालकृष्ण आडवाणी कहे थे जब वे “मन्दिर वहीँ बनाएंगे” की गगन-भेदी नारों के बीच रथ-यात्रा निकाले थे। 

साल 1992 में बाबरी मस्जिद “ध्वस्त” हुआ। विगत 28 वर्षों में अनेकानेक क़ानूनी अड़चन आये, रास्ता प्रसस्त होता गया, राजनीतिक माहौल बदलाता गया, वुजुर्ग और वुजूर्ग हुए, नौजवान वुजुर्गियत की ओर अग्रसर हुए, काला केश सफ़ेद हुआ, साथ ही, माननीय आडवाणीजी भी “92” वर्ष के हो गए। कोरोना वायरस भारत ही नहीं, विश्व को दबोचा – व्यवस्था और प्रशासन “आडवाणी जी की स्वास्थ के प्रति चिन्तित हई” और आज राम मन्दिर बनने के शुरूआती प्रथम ईंट रखने, भूमि पूजन करने के समय “भगवान् राम” आडवाणी जी को “अयोध्या” आने पर पूर्णविराम लगा दिए। यानि 92 = 92 क्योंकि मैं समय हूँ। मैं ही भूत हूँ, मैं ही वर्तमान हूँ और  भविष्य हूँ।

मोदी ने कहा कि जिस प्रकार स्वतंत्रता दिवस लाखों बलिदानों और स्वतंत्रता की भावना का प्रतीक है, उसी तरह राम मंदिर का निर्माण कई पीढ़ियों के अखंड तप, त्याग और संकल्प का प्रतीक है। यह मंदिर राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रीय भावना का प्रतीक बनेगा तथा करोड़ों लोगों की सामूहिक शक्ति का भी प्रतीक बनेगा। यह आने वाली पीढ़ियों को आस्था और संकल्प की प्रेरणा देता रहेगा। इससे समूचे अयोध्या क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में सुधार होगा।

प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी 

‘श्री राम जन्मभूमि मंदिर’ का शिलान्यास करने के बाद प्रधानमंत्री ने एक समारोह को संबोधित किया और इसकी शुरुआत ‘‘सियावर रामचंद्र की जय’’ के उद्घोष से की। यह उद्घोष सिर्फ राम की नगरी में ही नहीं, बल्कि इसकी गूंज पूरे विश्व में सुनाई दे रही है। उन्होंने सभी देशवासियों को और विश्व में फैले करोड़ों राम भक्तों को इस ‘‘पवित्र’’ अवसर पर ‘‘कोटि कोटि’’ बधाई दी।

प्रधानमंत्री ने कहा कि बरसों से टाट और टेंट के नीचे रह रहे ‘‘हमारे रामलला’’ के लिए अब एक भव्य मंदिर का निर्माण होगा। उन्होंने कहा, ‘‘टूटना और फिर उठ खड़ा होना, सदियों से चल रहे इस व्यतिक्रम से राम जन्मभूमि आज मुक्त हो गई है।’’

प्रधानमंत्री ने कहा कि देश की स्वतंत्रता के लिए चले आंदोलन के समय कई-कई पीढ़ियों ने अपना सब कुछ समर्पित कर दिया था। गुलामी के कालखंड में कोई ऐसा समय नहीं था जब आजादी के लिए आंदोलन न चला हो, देश का कोई भूभाग ऐसा नहीं था जहां आजादी के लिए बलिदान न दिया गया हो।

ये भी पढ़े   Narendra Modi: Kalki is the initiator of change in the kaal chakra and is also a source of inspiration

मोदी ने कहा, ‘‘15 अगस्त का दिन लाखों बलिदानों का प्रतीक है, स्वतंत्रता की भावना का प्रतीक है। ठीक उसी तरह राम मंदिर के लिए कई सदियों तक कई पीढ़ियों ने लगातार प्रयास किया और आज का यह दिन उसी तप, त्याग और संकल्प का प्रतीक है।’’ राम मंदिर के लिए चले आंदोलन में अर्पण भी था, तर्पण भी था, संघर्ष भी था, संकल्प भी था।

प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी 

‘‘जिनके त्याग, बलिदान और संघर्ष से आज ये स्वप्न साकार हो रहा है, जिनकी तपस्या राम मंदिर में नींव की तरह जुड़ी हुई है, मैं उन सबको आज 130 करोड़ देशवासियों की तरफ से नमन करता हूं।’’ मोदी ने कहा कि राम का मंदिर भारतीय संस्कृति का आधुनिक प्रतीक बनेगा, हमारी शाश्वत आस्था का प्रतीक बनेगा, राष्ट्रीय भावना का प्रतीक बनेगा। उन्होंने कहा, ‘‘ये मंदिर करोड़ों-करोड़ों लोगों की सामूहिक शक्ति का भी प्रतीक बनेगा।’’

अपने संबोधन से पहले, प्रधानमंत्री ने मंदिर निर्माण की आधारशिला से संबंधित एक पट्टिका का अनावरण किया और इस मौके पर ‘श्री राम जन्मभूमि मंदिर’ से संबंधित विशेष डाक टिकट भी जारी किया। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन के अंत में ‘सियापति रामचंद्र’ का जयकारा लगाया। पारंपरिक धोती-कुर्ता पहने प्रधानमंत्री ने इससे पहले भूमि पूजन कर राम मंदिर निर्माण की आधारशिला रखी।

अयोध्या पहुंचने के बाद उन्होंने सबसे पहले हनुमानगढ़ी पहुंचकर हनुमान जी की पूजा-अर्चना की और फिर राम जन्मभूमि क्षेत्र पहुंचकर भगवान राम को दंडवत प्रणाम किया और पारिजात का पौधा लगाया। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास सहित बड़ी संख्या में साधु-संत मौजूद थे।

बहरहाल, देश के संवेदनशील मुकदमों में शामिल यहां के रामजन्मभूमि/बाबरी मस्जिद विवाद का मसला २२/२३ दिसम्बर १९४९ की रात से ही शुरु हो गया था। विवादित ढांचे के बीच वाले गुम्बद में ‘रामलला’ की मूर्ति रख दी गयी थी। हिन्दुओं का कहना है कि ‘रामलला’ प्रकट हुए थे, जबकि मुस्लिम मानते हैं कि मूर्ति जबरदस्ती रख दी गयी थी। मूर्ति रखे जाने के बाद दोनों समुदायों में विवाद को देखते हुए तत्कालीन सरकार ने ढांचे के मुख्य गेट पर ताला लगवा दिया था। वर्ष १९५० में दिगम्बर अखाडे के तत्कालीन महन्त रामचन्द्रपरमहंस ने फैजाबाद की जिला अदालत में याचिका दाखिल कर ‘रामलला’ के दर्शन पूजन की अनुमति मांगी। मुकदमा चलता रहा। इसी बीच १९६१ में विवादित ढांचे में जबरन मूर्ति रखे जाने का आरोप लगाते हुए मुस्लिम पक्ष ने मुकदमा दायर कर दिया। मुस्लिम पक्ष का कहना था कि विवादित ढांचा बाबरी मस्जिद है। मूर्ति जबरन रखी गयी हैं। उसे हटवाकर संपत्ति मुसलमानों को सौंपी जाये। सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से दायर इस मुकदमें के मुद्दई मोहम्मद हाशिम अंसारी बने। बोर्ड की ओर से मुकदमा दाखिल होते ही यह विवाद संपत्ति का मान लिया गया। ‘रामलला’ विराजमान स्थल प्लाट संख्या ५८३ के मालिकाना हक का मुकदमा शुरु हो गया।

ये भी पढ़े   कपिल सिब्बल तो 16 साल पहले ही उत्तर प्रदेश के हो गए थे ...... चुनाव भले नहीं लड़े थे, करोड़ों लोगों का दिल जीते थे

वर्ष १९८४ में विवादित धर्मस्थल पर भव्य राम मंदिर निर्माण के लिये विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) ने श्री रामजन्मभूमि मुक्त यज्ञ समिति बनाकर नये सिरे से संघर्ष शुरु किया। समिति के अध्यक्ष उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु महन्थ अवैद्यनाथ बनाये गये। संघर्ष आगे बढ़ ही रहा था कि एक फरवरी १९८६ को अधिवक्ता उमेश चन्द्र पाण्डेय की याचिका पर फैजाबाद के जिला न्यायाधीश कृष्ण मोहन पाण्डेय ने विवादित ढांचे के गेट पर लगे ताले को खोलने का आदेश दे दिया। ताला खुलते ही वहां दर्शनार्थियों का तांता लगना शुरु हो गया। देश-विदेश से लोग वहां पहुंचने लगे।

नवम्बर १९८९ में मंदिर निर्माण के लिये शिलान्यास हुआ लेकिन अगले ही दिन काम रुकवा दिया गया। इसी बीच विश्व हिन्दू परिषद ने पूरे देश में ‘शिला पूजन’ का कार्यक्रम करवाया। इसी कार्यक्रम के दबाव में तत्कालीन गृहमंत्री बूटा सिंह और मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के सुझाव पर राजीव गांधी सरकार ने शिलान्यास का निर्णय लिया था।

वर्ष १९९१ में उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार बनी। श्री सिंह ने विवादित धर्मस्थल के आसपास ७० एकड़ से अधिक जमीन अधिग्रहीत कर श्रीरामजन्मभूमि न्यास को सौंप दी, हालांकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस पर पक्के निर्माण पर रोक लगा दी। इससे पहले जुलाई १९८९ में न्यायमूर्ति (अवकाशप्राप्त) देवकी नंदन अग्रवाल ने उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर ‘रामलला नेक्स्ट फ्रेंड’ के रुप में अपने को पार्टी बनाने का आग्रह किया। न्यायालय ने उनकी याचिका मंजूर कर ली।

इस मामले में छह दिसम्बर १९९२ को उस समय नया मोड़ आया जब कारसेवकों ने विवादित ढांचे को ध्वस्त कर दिया। ढांचा ध्वस्त होने के बाद १६ दिसम्बर १९९२ को नरसिम्हाराव सरकार ने लिब्राहन आयोग का गठन करने की अधिसूचना जारी की। ढांचा गिराने की साजिश के आरोप में लाल कृष्ण आडवानी और अशोक सिंहल समेत भाजपा तथा विहिप के कई नेताओं के खिलाफ थाना रामजन्मभूमि में मुकदमा दर्ज हो गया।

ये भी पढ़े   'अविवाहित' पुप्रीचौ की ‘प्लूरल्स पार्टी’ ने चुनाव प्रचार के लिये अपनायी मिथिला की ‘खोंयछा’ परंपरा

३० सितम्बर २०१० को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय न्यायमूर्ति एस यू खान, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और न्यायमूर्ति डी़ वी़ शर्मा की विशेष पूर्णपीठ ने विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बराबर बांट कर अपना फैसला सुना दिया। जिस स्थल पर ‘रामलला’ विराजमान हैं उसे रामलला के पक्ष में। बाकी दो हिस्सों में एक सुन्नी वक्फ बोर्ड अौर दूसरा निर्मोही अखाड़ा को देने का आदेश दिया। निर्मोही अखाडा विवादित ढांचे के बाहर चबूतरे (राम चबूतरा) पर लगातार रामधुन करवा रहा था। निर्माेही अखाडे के दिवंगत महन्थ भास्कर दास कहते थे कि ताला लगने के पहले ढांचे पर उनका कब्जा था। इसलिये मालिकाना हक उन्हें मिलना चाहिये। हाल ही में श्री दास की मृत्यु हुई है।

दिसम्बर २०१० में उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ हिन्दू महासभा और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल की। नाै मई २०११ को उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के निर्णय पर रोक लगा दी। उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस़ अब्दुल नजीर की पीठ में पांच दिसम्बर २०१७ से सुनवाई शुरु हुई। इस ऐतिहासिक विवाद की आज भी सुनवाई हुई है। न्यायालय अब इस पर १४ मार्च को फिर सुनवाई करेगा।

आजाद भारत के पहले इस मुद्दे को लेकर हिन्दुओं और मुसलमानों में विवाद हुए थे। अंग्रेजों ने मामले को अपने ढंग से दबाया था लेकिन देश स्वतंत्र होने के बाद इस मसले का विवाद अपने ढंग से आगे बढ़ा। वर्ष १९५० में इसमें स्वामित्व को लेकर गोपाल सिंह विशारद ने भी याचिका दाखिल की थी। विवाद का कारण बाबर को माना जाता है। हिन्दू पक्ष का कहना है कि रामलला विराजमान स्थल राम जन्मभूमि है जबकि मुस्लिम पक्ष कहता है कि वह स्थल बाबरी मस्जिद है। जिसे बाबर के प्रतिनिधि मीरबांकी ने अयोध्या में रुक कर बनवाया था। हिन्दू पक्ष का कहना है कि रामजन्मभूमि मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण करवाया गया था।

इसकी सच्चाई जानने के लिये इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने विवादित धर्मस्थल के आसपास मार्च २००३ में पुरातात्विक खुदाई करवायी थी। इन घटनाक्रमों के बीच उत्तर प्रदेश शिया सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी ने अगस्त २०१७ में उच्चतम न्यायालय में शपथपत्र दाखिल कर विवादित धर्मस्थल को हिन्दुओं को सौंपने का आग्रह किया और लखनऊ में मुस्लिम बाहुल्य इलाके में ‘मस्जिद-ए-अमन’ तामीर करवाने का आग्रह किया। (भाषा  के सहयोग से) 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here