बेगूसराय (बिहार) : समय दूर नहीं है जब बेगूसराय जिला लिखने के बाद ब्रेकेट में बिहार राज्य भी लिखना पड़ेगा। संडेकहानी.कॉम इसकी शुरुआत कर दिया है। आप कहेंगे यह समाचार पोर्टल और लिखने वाला रिपोर्टर दोनों का माथा ख़राब हो गया है, शायद पगला गया है। किसको मालूम नहीं है कि बेगूसराय जिला बिहार राज्य में स्थित है।
आप पाठकगण सच कह रहे हैं। लेकिन आज ही अपने-अपने क्षेत्र के नौजवानों से, लोगों से पूछना प्रारम्भ कर दीजिये की बेगूसराय जिला का भू-क्षेत्र (1918 वर्ग किलोमीटर) कितना है?, आवादी (2,970,541) कितनी है?, शैक्षिक स्तर (59.13) कितनी है ? कितना ब्लॉक (18) है, कितने गाँव (1229) हैं और अंत में कितने नगर निगमें (5) हैं? – यकीन मानिये, सैकड़े 90 बच्चे नहीं बता पाएंगे और जो शहर में रहते हैं वे गुगुल करेंगे । पढ़कर शायद मुझे गलियांएगे, लेकिन मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।
क्योंकि यह स्थिति सिर्फ बेगूसराय जिला है, बल्कि बिहार के सभी जिलों के साथ ऐसी ही मानसिकता हैं लोगों का। अगर ऐसा नहीं होता तो प्रदेश के जिलों में, गाँव में, पंचायतों में न जाने कितनी ऐतिहासिक धरोहरें स्थानीय लोगों, जिला प्रशासनों और सरकार की उपेक्षा के कारण मिटटी में नहीं मिलती।
इतना ही नहीं, महज आज से दो दसक पहले तक बेगूसराय में अन्य उत्पादनों के अतिरिक्त, सिर्फ बिहार में ही नहीं, सम्पूर्ण भारत में यहाँ की अरहर (राहर) दाल और लाल मीर्च मशहूर था। राजस्थान के व्यापारी बेगूसराय के खेतों को / फसलों को पट्टा पर लेते थे। भू-स्वंय तो लाभान्वित होते ही थे, राजस्थान के व्यापारी सहित देश के अनेकानेक व्यापारी दाल और मिर्ची के व्यापार से लाभान्वित होता थे।
परन्तु आज?
आज स्थिति क्या है यह मुझसे बेहतर बेगूसराय जिला के लोग जानते होंगे। अयोध्या में राम मंदिर बने, सभी लोग अपने-अपने कपार पर तिलक लगाए सड़कों पर, बाज़ारों में फिर रहे हैं – परन्तु ढाई-सौ साल पुराना सलौना ठाकुरवाड़ी और उसकी मूर्तियां किन्ही को दिखती नहीं। यह भी भगवान् का महत्वपूर्ण स्थान था, एक ज़माने में और आज बेगूसराय के लोग इसे पुनर्जीवित कर सकते हैं। एक बेहतरीन पर्यटन स्थल बना सकते हैं, पक्षी विहार जैसा – लेकिन बदलते वक्त के संग बदली दुनिया और दब गई कहानी भी सलौना ठाकुरबाड़ी की अतीत की गहराई मे जिससे सियाराम जी भी ना रहें अछूते।
शायद बेगूसराय के युवकों, युवतियों को मालूम नहीं हो, परन्तु बेगूसराय का एक छोटा सा प्रांत गांव कस्बा सलौना जो बखरी प्रखंड में स्थित है। यह आज भी कई ऐतिहासिक धरोहरों को अपने दामन मे अनेकानेक कहानियाँ समेटे हुए हैं। लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। वजह भी है – इसका कोई राजनीतिक मोल नहीं है “चुनावी बाजार” में। भुत की गाथाएं, वर्तमान में उपेक्षा सहते, अतीत के गहराइयो मे धीरे-धीरे दफ़न हो रहे हैं सभी धरोहरें। जिन धरोहरों को कभी यहाँ का गौरव माना जाता था। आज अपने हालत पर आँसू बहा रहे हैं, और इस गौरवशाली इतिहास की धरोहरों को ना सरकार, ना स्थानीय लोग ही देख रेख का जिम्मा ले रहे है।
डॉ0 रमण कुमार कहते है इस मंदिर के सर्वप्रथम सेवक हुए इटावा यूपी से स्वामी मस्तराम जी महाराज। जो 3200 बीघा के स्वामी थे। इसी जमीन से हुई उपज राम लला के देख रेख मे उपयोग की जाती थी । उनके बाद क्रमशः लक्ष्मी दास जी, उनके बाद विष्णु दास जी, फिर स्वामी भागवत दास जी ,श्री महंत रामस्वरूप दास जी, जो पूरी तरह से कर्तव्यनिष्ठ होकर मंदिर के प्रांगण और राम लला की सेवा मे समर्पित होकर जीवन प्रयन्त इस धरोहर की नींव बने रहे। उसके बाद इस मंदिर के दिवारों को बचाते रहे स्वर्गीय बिपिन बिहारी दास जो पिछले ही साल दिवंगत हो गए और उसी के साथ शुरु हुआ मंदिर का बदहाल समय। स्वर्गीय बिपिन बिहारी दास जो पटना में करीब 30 साल से रहते थे।
लाल पत्थर से निर्मित यह बहुत ही अद्भुत कलाकृति शायद बिहार में कही और देखने को ना मिले या जो शायद बिहार में और कहीं है भी नहीं । स्थानीय लोग कहते है इस तरह का मंदिर एक हरिद्वार में देखा गया है। बरवस यह मंदिर पूरी के जग्गरनाथ मंदिर के जैसा भी एहसास देता है। कहते है इस मंदिर को बनाने में लगभग 16 साल लगे और यह 250 साल लगभग पुराना है।
इसमें लगभग सवा सौ मिस्त्री और आठ लोहार,जो सिर्फ छेनी बनाने का काम करते थे और उस समय ₹500000 से इसकी शुरुआत की गई और 3600 बीघा जमीन की उपज से जो भी रकम आता था, वो इस मंदिर मे ही लगाया जाता था। इस मंदिर को निर्माण में जहाँ पैसे पानी की तरह बहाये गए वही कहते है करोड़ों की मूर्ति राम सीता की मुर्ति भी यहाँ स्थापित थी।जो इस मंदिर की कभी शोभा हुआ करती थी वो भी अब नहीं है ,चोरी हो गयी। निश्चित रूप से अतीत को संजोकर ही हम वर्तमान को बेहतर कर सकते हैं।
डॉक्टर साहेब कहते हैं कि “मंदिर मे आकर और इस धरोहर को देखकर कई-कई सवाल मन मे आते है की कैसे कभी इस मंदिर के सहारे बसा यह गाँव आज अपने आराध्य और उनकी बाड़ी को भूल गया है। मंदिर का पुनरुद्धार नितान्त आवश्यक है और मंदिर के सहारे बहुत कुछ बेहतर किया जा सकता है। अगर यहां स्वास्थ्य या शिक्षा का केंद्र बनाकर विस्तार किया जाए तो एक अदभुत प्रयास होगा। जो ना सिर्फ इस ठाकुरबाड़ी की बल्कि सलौना और स्थानीय लोगो का भी भविष्य बदल देगा।”
जिस ठाकुर बाड़ी ने सलौना को एक स्वर्णिम काल दिया, आज वही ठाकुरबाड़ी अपनी बदहाली पर मौन खड़ा रास्ता देख रहा है की शायद कभी कोई भगीरथी आयेगा और इस मंदिर का भी उद्धार होगा।