सीए हर्ष मिश्रा / सीए प्रदीप भारजद्वाज द्वारा
एक प्राइवेट कंपनी ज़ेट-एयरवेज बंद हुई है और उसके 22000 कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं। लोग केंद्र सरकार से अपील कर रहे हैं की पैसे देकर कंपनी को बंद होने से बचाया जाए ताकि लोगों की नौकरी बच सके।
काहे भाई ? काहे पैसा देगी सरकार ?
यूपीए टाइम में ऐसे ही किंगफिशर एयरलाइंस दो बार घाटा में जाने के बाद बंद होने वाली थी, कॉरपोरेट एडवाइजर्स और लॉबीइंग की मदद से सरकार ने दो बार पैसा दिया। लेकिन कम्पनी तो फिर भी डूबी ही और उसके अलावे विजय माल्या भाग गए सो अलग। कम्पनी डूबती है ग़लत प्रबंधन के कारण और इसके अलावे आजकल कम्पनी का लौस में जाना भी एक बिजनेस है कम्पनी मालिकों के लिए। गौर किजिएगा, पिछले एक दशक में किसी भी डूबने वाली कम्पनी का मालिक नहीं डूबता है, भले ही आम शेयर-होल्डर्स तबाह हो जाए। ख़ैर अलगे गेम है ये, फिर कभी।
दूसरी बात आप कहिएगा की 22000 लोगों की नौकरी बचाने के लिए सरकार को पैसा देना चाहिए। हम फिर कहेंगे की काहे भाई?
ये 22000 लोग अनस्किल्ड हैं? ग़रीब और असहाय वर्ग से हैं? इन सबको महीने-छः महीने के भीतर कोई दूसरी कॉरपोरेट जॉब मिल जाएगी क्योंकि ये सब बड़े मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट से प्रोफेशनल और स्किल्ड ट्रेंड हैं। हाँ दु-चार महीना गाड़ी-घर के ईएमआई में दिक्कत होगा…हं तो ठीक है न, इसके लिए सरकार पैसा दे?
और ये आमलोगों को किसी प्राईवेट कम्पनी के डूबने से इतना कष्ट क्यों हो रहा है भाई? हमारे क्षेत्र मिथिला के दर्जनों सरकारी चीनी मील बंद हो गए, पेपर-जुट-खाद-सुत मील बंद हो गए…तब तो आपको कष्ट नहीं हुआ? उन्हें खुलवाने के लिए तो आपमें से किसी बाहरी ग़ैरमैथिल ने आवाज नहीं उठाया? उसके लिए लड़ने को आप हमारी जिम्मेदारी बताकर आगे बढ़ गए? काहे? क्योंकि ज़ेट-एयरवेज दिल्ली-बम्बई-बैंगलोर-चेन्नई-कलकत्ता जैसे महानगरों की सम्भ्रांत-मिडिल क्लास लोगों को सेवा देने वाली कम्पनी है और हमारे बन्द पड़े मील हमारे मिथिला के गांवों के किसान-मजदूर से सम्बंधित थी। उस वक्त तो आपको लाखों किसानों-मजदूरों की नौकरी और जीवन का फिक्र नहीं हुआ, फिर आज क्यों?
ज़ेट-एयरवेज बंद होने से उसके 22000 कर्मचारियों के परिवारों में लगभग डेढ़ लाख लोग डायरेक्टली-इनडायरेक्टली प्रभावित होंगे। हमारे यहाँ तो सभी मील मिलाकर सिर्फ मजदूरों की संख्या करीब 3-4 लाख थी। मील के कच्चे माल के उत्पादन करने वाले किसानों और सब डायरेक्ट-इनडायरेक्ट डिपेंडेंट को जोड़ दें तो लगभग करोड़ से अधिक लोग आश्रित थे उनपर। उनके बन्द होने से हमारे लोग दिल्ली-मुम्बई में मजदूर बन गए, क्षेत्र की अमीरी ख़त्म हो गई, किसानों के खेतों से नगदी फसल गायब हो गई, गांव सुनसान हो गए। लेकिन तब तो आपके मुंह से नहीं निकला की दस हजार करोड़ दे दीजिए मिथिला को केंद्र जी ताकि वहाँ के हालत में कुछ सुधार हो।
और आज कुछ 7 डिजिट में सैलरी कमाने वाले लोगों की नौकरी क्या गई, आपको हमारे मेहनत के टैक्स से जमा किए गए हजारों करोड़ मुफ़्त का लगने लगा ? सरकार के और पार्टी के विरोध के चक्कर मे अल-बल मत लिखिए। मैं चाहता हूँ की सरकार डूबने दे ऐसी कम्पनियों को जो सरकार और बैंक के दिए लोन-सब्सिडी के भरोशे अमीरों को सस्ता कर-करके सेवाएं देता है। ऐसे ही सरकार ने कई लाख करोड़ का टैक्स छूट और कॉरपोरेट सब्सिडी दे रक्खा है कम्पनियों को, बैंकों के कई लाखों करोड़ का कॉरपोरेट लोन एनपीए में है, देश खुद 20-25 लाख करोड़ के विदेशी कर्जे में है और आप चाहते हैं कि (फेसबुक वॉल से)