नफरत की राजनीति खत्म करने के लिए वोट डालें: लेखकों की अपील

​दिल्ली का रायसीना हिल
​दिल्ली का रायसीना हिल

नयी दिल्ली​ : आगामी लोकसभा चुनावों से पहले देश के 200 से ज्यादा लेखकों ने भारतीय नागरिकों से अपील की है कि वे एक ‘‘विविधतापूर्ण और समानता वाले भारत’’ के पक्ष में अपना वोट डालें और नफरत की राजनीति को खत्म करने में मदद करें।

भारतीय सांस्कृतिक मंच पर प्रकाशित एक खुले पत्र में गिरीश कर्नाड, अरुंधति रॉय, अमिताभ घोष, नयनतारा सहगल और रोमिला थापर सहित कई अन्य लेखक-लेखिकाओं ने कहा कि देश को बांटने और लोगों में डर पैदा करने की खातिर नफरत की राजनीति का इस्तेमाल किया जा रहा है।​ बयान के मुताबिक, ‘‘लेखकों, कलाकारों, फिल्मकारों, संगीतकारों और अन्य सांस्कृतिक लोगों को डराया-धमकाया गया और उनका मुंह बंद कराने की कोशिश की गई।’’

इन लेखकों ने कहा, ‘‘सत्ताधारियों से सवाल करने वाले किसी भी शख्स को प्रताड़ित करने या गलत एवं हास्यास्पद आरोपों में गिरफ्तार किए जाने का खतरा है। हम सब चाहते हैं कि इसमें बदलाव आए…पहला कदम यह होगा, जो हम जल्द ही उठा सकते हैं, कि नफरत की राजनीति को उखाड़ फेंके और इसलिए हम सभी नागरिकों से अपील करते हैं कि वे एक विविधतापूर्ण एवं समान भारत के लिए मतदान करें।’’

पत्र के मुताबिक, मौजूदा चुनावों के मद्देनजर देश अभी ‘‘चौराहे’’ पर खड़ा है। लेखकों ने सभी भारतीयों से अपील की कि वे एक ऐसे देश के विचार का समर्थन करें जिसमें संविधान द्वारा किए गए वादों पर फिर से अमल हो। पिछले महीने आनंद पटवर्धन, सनल कुमार शशिधरण और देवाशीष मखीजा सहित 103 भारतीय फिल्मकारों के एक समूह ने 2019 के चुनावों में मिल-जुलकर फासीवाद को हटाने की अपील जारी की थी।

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गम्भीर अब ‘गम्भीर’ नहीं रहे

इधर, हाल में भाजपा में शामिल हुए पूर्व क्रिकेटर गौतम गंभीर ने मंगलवार को नेशनल कांफ्रेंस (एनसी) के नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को परोक्ष रूप से नसीहत दी कि उन्हें पाकिस्तान चले जाना चाहिए। गंभीर ने उमर के उस बयान पर यह टिप्पणी की जिसमें एनसी नेता ने कहा था कि उनकी पार्टी जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता बहाल करने की कोशिश करेगी और वहां एक बार फिर ‘वजीर-ए-आजम’ (प्रधानमंत्री) हो सकता है।

पूर्व क्रिकेटर ने ट्वीट किया, ‘‘उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के लिए एक अलग प्रधानमंत्री चाहते हैं और मैं महासागर पर चलना चाहता हूं। उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के लिए अलग प्रधानमंत्री चाहते हैं और मैं चाहता हूं कि सूअर उड़ने लगें।’’
उन्होंने कहा कि उमर को ‘‘थोड़ी नींद और एक कड़क कॉफी’’ की जरूरत है और यदि वह फिर भी नहीं समझ पाए तो उन्हें ‘‘हरे पाकिस्तानी पासपोर्ट’’ की जरूरत है।

उमर ने भाजपा नेता पर पलटवार करते हुए ट्वीट किया, ‘‘गौतम, मैंने कभी ज्यादा क्रिकेट नहीं खेली क्योंकि मुझे पता था कि मैं इस मामले में बहुत अच्छा नहीं हूं। आप जम्मू-कश्मीर, इसके इतिहास या इतिहास को आकार देने में नेशनल कांफ्रेंस की भूमिका के बारे में ज्यादा जानते नहीं…फिर भी आप अपनी अनभिज्ञता सबको दिखाने पर आमादा हैं।’’

उन्होंने कहा कि गंभीर को सिर्फ उन्हीं चीजों पर फोकस करना चाहिए जिन्हें वे जानते हैं और वे ‘‘इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के बारे में ट्वीट करें।’’

सोमवार को उत्तर कश्मीर के बांदीपुरा में एक जनसभा को संबोधित करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा था कि भारत संघ में जम्मू-कश्मीर का जुड़ना तब हो पाया था जब राज्य के लिए कई संवैधानिक उपाय किए गए और यदि उनसे कोई छेड़छाड़ हुई तो भारत से जम्मू-कश्मीर के जुड़ने की पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठ जाएंगे। उन्होंने यह भी कहा था कि उनकी पार्टी जम्मू-कश्मीर में सद्र-ए-रियासत (राष्ट्रपति) और वजीर-ए-आजम (प्रधानमंत्री) के पदों को बहाल करने की कोशिशें करेगी।

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बहुजन समाज पार्टी ​का आरोप ​

बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती ने मंगलवार को आरोप लगाया कि केंद्र की भाजपा नीत सरकार के कार्यकाल में जातिवाद, सांप्रदायिक द्वेष और कट्टरता में वृद्धि हुई है जिससे आम जनता त्रस्त है और लोग ‘नो मोर मोदी सरकार’ कह रहे हैं।

मायावती ने मंगलवार को ट्वीट किया ‘‘वर्तमान सरकार में देश में जातिवाद, साम्प्रदायिक द्वेष और कट्टरता में बहुत वृद्धि हुई है जिससे आम जनता त्रस्त है। यह अतिदुखःद और निन्दनीय है। ऐसे में देश की नामचीन हस्तियों की, जनता से नफरत फैलाने वाले तत्वों को चुनाव में हराने की अपील बहुत ही सार्थक एवं महत्वपूर्ण है।’

उन्होंने दूसरे ट्वीट में कहा ‘भाजपा की कथनी और करनी में आम जनता की सोच, समझ और मांग से पूरी तरह भिन्नता होने का ही नतीजा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 5 वर्षों का लेखा-जोखा देने का वादा निभाने के बजाए केवल बंदूक-तोप, गोली-गोला, चीन-पाकिस्तान आदि की बातें करके अपनी जवाबदेही से भागने का प्रयास कर रहे हैं। इसीलिए लोग ‘नो मोर मोदी सरकार’ कह रहे हैं।’’

उच्चतम न्यायालय ​का पटेल की याचिका पर इंकार ​

उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कांग्रेस नेता हार्दिक पटेल की गुजरात उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर तत्काल सुनवाई करने से इनकार कर दिया जिसमें 2015 के विसपुर दंगा मामले में उनकी दोषसिद्धि पर रोक लगाने को अस्वीकार कर दिया गया था।​ न्यायमूर्ति अरुण मिश्र के नेतृत्व वाली पीठ के समक्ष इस मामले का तत्काल सुनवाई के लिए उल्लेख किया गया था।

पीठ में न्यायमूर्ति एम एम शांतानागोदर और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा भी शामिल हैं। पटेल की ओर से पेश हुए वकील से पीठ ने कहा कि इस याचिका पर तत्काल सुनवाई की जरुरत नहीं है क्योंकि उच्च न्यायालय का आदेश पिछले साल अगस्त में आया था।

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पीठ ने इस याचिका पर तत्काल सुनवाई से इनकार करते हुए कहा, ‘‘आदेश अगस्त 2018 में पारित हुआ था। अब तत्काल सुनवाई की क्या जरुरत है?’’

पटेल ने उच्च न्यायालय के 29 मार्च के आदेश को चुनौती देते हुए सोमवार को उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। उच्च न्यायालय का फैसला उनके लोकसभा चुनाव लड़ने की राह में बाधा डाल रहा है। पटेल ने 12 मार्च को कांग्रेस में शामिल होने के बाद पार्टी के टिकट पर जामनगर से चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू कर दी थी। नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख चार अप्रैल है।​ (भाषा/पीटीआई ​के सहयोग से)

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