पटना: लगता है हर्यक वंश के शासक अजातशत्रु अपनी राजधानी राजगृह से बदलकर पटना लाये, शायद गलत किये, क्योंकि वे वर्तमान बिहार नरेश माननीय नितीश कुमार से राजनीतिक दक्षता में कम थे।
वैसे इतिहास तो यही कहता है कि पाटलिपुत्र राज्य के बीचो-बीच लाने का मकसद तत्कालीन वैशाली के लिच्छवियों से संघर्ष के लिए उपयुक्त था। अगर आज के परिपेक्ष में देखें तो आज उत्तर बिहार के लोग जिन-जिन प्राकृतिक, भौगोलिक, आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, बौद्धिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक, औद्योगिक यातनाओं के शिकार हो रहे हैं, दर-से-दरिद्री की ओर जा रहे हैं; ऐसी स्थिति में पटना और उसके आस-पास के इलाकों को त्यागकर माननीय मुख्य मंत्री श्री नितीश कुमार किन कारणों से अपने गाँव और जिला को इतना तबज्जो दे रहे हैं यह तो “गँगा मैय्या” ही जानती होगी !
बिहार के लाखों मतदाताएँ, वर्तमान व्यवस्था की “गलत रवैय्ये” और “नीतियों” की आलोचना करते कहते हैं: ”इससे तो अच्छा होता मुख्यमंत्री महोदय अपना सचिवालय पटना से नालंदा ही अस्थनान्तरित कर देते। न रहे बाँस और न बाजे बांसुरी।”
पिछले शुक्रवार 12 अक्टूबर को 750 करोड़ की लागत से बनने वाली प्रदेश की पहली अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट-सह-खेल परिसर का शिलान्यास राजगीर में किया। चौकिये नहीं, अगर आपको ऐसा लगता है कि आवागमन के साथ ही अन्य तमाम सुविधाओं के मद्देनजर इस स्टेडियम को पटना के आसपास बनना चाहिए था तो आप गलत हैं। ये नीतीश कुमार का बिहार है और यहां विकास नालंदा में पैदा होता है और वहीं दम तोड़ देता है। इस कहावत को मुख्यमंत्री महोदय ने इस बार भी बरकरार रखा है। लगता है नितीश कुमार “दिल्ली के लोक कल्याण मार्ग” जैसा पटना से राजगीर जोड़ने वाला एक “तथाकथित-मार्ग” बना रहे हैं जिसपर राजकीय कोष से पैसे तो खर्च होंगे, परन्तु राज में विकास “देश में होने वाला” विकास जैसा ही परिलक्षित होगा।
वैसे सरकार और उनके साथियों का मानना है की यह प्रयास प्रदेश में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खेल को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है; परन्तु पटना सचिवालय से बाहर निकलते ही लोग-बाग़ यह भी गुफ्तगू करते सुने जा रहे हैं की “जिस राज्य में गुली-डण्डा, कबड्डी खेलने के लिए खिलाडियों को भरपेट पौष्टिक भोजन और पर्याप्त प्रोटीन नहीं मिल रहा है; वह अंतर्राष्ट्रीय खेलों को “पैसे देकर, टिकट खरीदकर देखनेवाला महज एक दर्शक और मतदाता ही बना रहेगा – मूक और बधिर – ताकि इनकी राजनीतिक खेल चलता रहे।
अमूमन तौर पर किसी भी राज्य में योजनाएं उस राज्य की राजधानी को केंद्रीत कर बनाई जाती है। लेकिन बिहार इस मामले में देश में अनोखा राज्य होगा जहां योजनाएं मुख्यमंत्री की गृहजिला को केंद्रीत कर बनाई जाती है। अगर आप बिहार के हैं और आप बिहार के नहीं है कोई फर्क नहीं पड़ता, यदि आप नालंदा से होकर गुजर रहे हैं तो आपकी गाड़ी की चाल को अवश्य फर्क पड़ेगा। नालांदा में प्रवेश करते ही सड़क पर आपकी गाड़ी सरपट दौड़ने लगेगी जो कि प्रदेश के अन्य जिलो में संभव नहीं हो सकेगा।
खबर यह है कि 12 अक्टूबर को सूबे के मुख्यमंत्री महोदय ने अपने गृहजिला (नालंदा) में एक अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट सह खेल परिसर का शिलान्यास किया है। 40,000 लोगों को एक साथ बिठाने की क्षमता वाला यह परिसर अगर तय समय सीमा के साथ बनकर तैयार हुआ तो 2021 तक यह आयोजन के लिए तैयार होगा। 750 करोड़ रूपये की लागत से बनने वाला यह क्रिकेट खेल परिसर शायद देश का चुनिंदा महंगा खेल परिसर में से एक होगा।
पटना से सौ किलोमीटर दूर बनने वाले इस खेल परिसर की प्रारंभिक रूप रेखा साल 201-14 में ही तैयार हो गई थी। उस समय विवेक कुमार सिंह बिहार सरकार के युवा एवं खेल विभाग के सचिव थे। उन्होंने इस परियोजना की फाइल को बी सी सी आई को देखने और समझने के लिए भेजा था। बी सी सी आई ने परियोजना को तो हरी झंडी दे दी लेकिन कीमत को हद से ज्यादा बताया। बी सी सी आई की टिप्पणी का परिणाम यह हुआ कि जल्द ही सिंह साहब को इस विभाग से त्तकाल मुक्त कर किसी अन्य विभाग में शिफ्ट कर दिया गया।
इसके दूसरे पक्ष पर आइये। बिहार में रहने वाला हर व्यक्ति इस बात को जानता है कि बिहार में विकास रुपी सूर्य सबसे पहले नालंदा में उदित होता है फिर प्रदेश के दूसरे भू भाग में। नीतीश कुमार जी यह काम मुख्यमंत्री बनने के पूर्व से करते रहे हैं या करवाते रहे हैं। इनकी पार्टी से और इनके प्रभाव से केंद्र में रक्षा मंत्री बने जॉर्ज फर्नांडिस ने आयुध कारखाना खोला नालंदा में, रेल मंत्री सुशासन बाबू ने रेल कारखाना खोला नालंदा में, बिहार का इकलौता इंटरनेशनल कन्वेंशन हॉल बना नालंदा में, फल्गू नदी की पानी को नदी के बीच में बांध बनाकर सिर्फ इसलिए रोक दिया गया कि नालंदा की खेती लहलहा सके, सबसे अधिक वजन का आलू उपजाने वाला किसान बिहार के नालंदा से हुआ, बिहार की हर बड़ी परियोजना का सिरा नालंदा जाकर लगता है। अब क्रिकेट परिसर भी नालंदा में।
बड़ा सवाल है कि क्या नालंदा खासकर राजगीर के पास ऐसे लोगों की संख्या है क्या जो अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैच का आनंद लेने के लिए पैसा खर्च कर सकते है ? इसका जवाब नहीं है। फिर पटना से सौ किलोमीटर दूर इस खेल परिसर को बनाने का औचित्य क्या है? यहां होने वाले आयोजनों के मुख्य दर्शक पटना में रहते हैं फिर ऐसे में खेल परिसर को राजधानी के आसपास ना बनाकर सौ किलोमिटर दूर ले जाना एक संकोची क्षुद्र मानसिकता से अधिक कुछ और नहीं।
दुनिया जानती है कि परियोजनाएं नालंदा इसलिए जाती हैं कि मुख्यमंत्री के अपने लोग सरकारी राशि से उपकृत हो सकें। लेकिन पटना का मसौढ़ी क्षेत्र के लोग भी मुख्यमंत्री जी आपके ही अपने कुनबे के लोग हैं। कभी इधर भी नजरे इनायत करते !
४६० से ४४० बी सी में मगध का शासक उदायिन, जो कि हर्यक वंश का था। उसने राजधानी को राजगीर से हटाकर पाटलिपुत्र स्थापित किया था। हालांकि राजगीर पंचपहाड़ियों से घिरा उस समय के अनुसार अजेय क्षेत्र था लेकिन हर्यक वंश चुंकि अपनी सीमा का विस्तार कर रहा था ऐसे में शासके के लिए आवश्यक था कि राजधानी ऐसे क्षेत्र में स्थापित हो जहां से आवागमन सुलभ हो सके..लिहाजा गंगा और पुनपुन के दोआब में बसा पटालिपुत्र इस हिसाब से सबसे उपयुक्त प्रतीत हुआ।
अब जरा आज की हरकतों को आज की राजनीतिक चौसर पर समझिये। उदायिन राजगीर से राजधानी पाटलिपुत्र स्थानांतरित किया था क्योंकि उसे सीमा का विस्तार कर विजयी कहलाना था। आज हर योजना नालंदा जा रही है क्योंकि हुजूरेआली को लोकतंत्र के रणक्षेत्र में अपनी जमीन हिली हुई दिख रही है। जिस गणित के साथ आज राजनीति की लड़ाई लड़ी जा रही है उसमें दुर्भाग्य से नीतीश बाबू के हिस्से में 10 सीट भी न आ पाए। लिहाजा शून्य में समाने से बचने के लिए राज्य की अर्थव्यवस्था का हर शून्य नालंदा की ओर केंद्रीत हो रहा है। जनता 2400 वर्ष पहले भी मूकदर्श मेमना की भांती निरुत्साहित थी आज भी कमोबेश स्थिति वही है।
पटना से धीरेन्द्र कुमार
श्री नीतीश कुमार को अगले चुनाव में जबरदस्त हार का सामना करना है। संभवत भाजपा को भी बिहार में काफी नुकसान होना तय है।