‘आयुष्मान’ भवः – ‘आयुष्मति’ स्वस्थानं गच्छ: राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का “मोदीकेयर” हो जाना

​प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ​
​प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ​

नाम बदलने में उस्ताद सरकार की नई योजना, आयुष्मान भारत योजना का पूरा नाम आयुष्मान भारत – प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना है। इससे पहले राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना अखिल भारतीय स्तर पर 2008 से लागू है। यह भारतीय श्रम और रोजगार मंत्रालय की योजना है और सितंबर 2016 तक इसके तहत 41 मिलियन परिवार यानी 15 करोड़ लोगों का पंजीकरण हो चुका था। नई शुरू की गई योजना के दो प्रमुख घटक हैं – पहला, राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना और दूसरा, हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर। अब पहले से चल रही राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना और सीनियर सिटिजन हेल्थ इंश्योरेंस स्कीम इसमें शामिल हो जाएगी।

पहले से चल रही इन योजनाओं के नए और विस्तारित रूप का जो आधिकारिक या सरकारी नाम है वो तो है ही इसे “मोदीकेयर” भी कहा जा रहा है।

ब्रांडिंग और प्रचार में विश्वास रखने वाले लोग 2019 के चुनाव के मद्देनजर काम शुरू कर चुके हैं और ऐसे में देश के आम गरीबों के लिए स्वास्थ्य की योजना शुरू करना और उसे मोदीकेयर नाम देना सेवा कम असल में चुनावी रणनीति ज्यादा है। और यह नाम तब दिया गया है जब मोदीकेयर नाम की एक कंपनी पहले से पंजीकृत है और उसका मुख्यालय दिल्ली में ही है। चलता हुआ वेबसाइट भी है। कहने की जरूरत नहीं है कि चार साल तक अपनी योजनाओं और कार्यक्रमों से लोगों को परेशान करने वाली सरकार अब बीमा करवाकर लोगों को प्रभावित करना चाह रही है। और खेल योजना के नाम तक में है।

वह भी तब जब बीमा एक तरह का जुआ है। बीमा में भी आप पैसे दांव पर लगाते हैं बीमार हो जाते हैं तो एक निश्चित राशि के अंदर (कतिपय शर्तों के तरह) खर्च हुई राशि वापस मिल जाती है और नहीं बीमार हुए तो पैसा बेकार गया। इसमें भी जुए की तरह फायदा किसी एक या कुछेक को होता है। ऐसे में अगर जुआ बुरा है, गलत है तो बीमा कैसे सही है। सिर्फ इसलिए कि यह मुश्किल में आपका साथ देता है जबकि जुआ आप रोज खेल सकते हैं। इसीलिए जुआ पर पाबंदी है और बीमा पर नहीं। पर कोई सरकार आपकी तरफ से जुआ खेले तो खेल समझने की जरूरत है। वह टैक्स के पैसे से कुछ लोगों को लाभ कमाने का मौका दे रही है और लाभ दरअसल उसे नहीं होगा जो बीमार पड़ेगा और जिसे इलाज का खर्च मिल जाएगा बल्कि उसे मिलेगा जो यह धंधा करेगा। धंधा करने वाली कोई कंपनी हो सकती है – अभी तो सरकार है।

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झारखंड कांग्रेस ने कहा है कि भाजपा सरकार कुशल भारत को परेशान कर अब आयुष्मान बनाने जा रही है और यह यूं ही नहीं है। यह विदेश में रखा कालाधन वापस आ जाने पर सबको 15 लाख रुपए मिल सकते हैं, से ज्यादा प्रभावशाली जुमला है। और इसके लिए आवंटित राशि, लक्ष्य, समय, योजना आदि को ठीक से समझें तो इसका लाभ उतना नहीं है जितना बताया जा रहा है या लग रहा है। यह योजना अस्पताल में दाखिल होने वाले मरीजों के लिए है जबकि बीमारी के सर्दी-खांसी-बुखार जैसे शुरुआती संकेतों के इलाज की सुविधा हो तो अस्पताल में दाखिल होने की नौबत ही न आए और योजना के तहत अस्पताल में दाखिल हुए बगैर कराए गए इलाज का खर्च इस योजना में नहीं मिलेगा।

पबलिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के डायरेक्टर, हेल्थ इकनोमिक्स फाइनेंसिंग एंड पॉलिसी डॉ. शक्तिवेल सेलवराज ने कहा है, “इस योजना की डिजाइन गड़बड़ लगती है क्योंकि यह सिर्फ अस्पताल में दाखिल होकर कराए गए इलाज और संबद्ध खर्चों के लिए है। अध्ययन से पता चला है कि भारत में सिर्फ 4.4 प्रतिशत लोगों को अस्पताल में दाखिल होने की जरूरत होती है।” जाहिर है, अगर अस्पताल में दाखिल होने से पहले की स्थिति में सही और अच्छा इलाज मिल जाए तो यह प्रतिशत और कम होगा तथा जरूरत इसकी है कि अस्पताल में दाखिल होने की स्थिति आए ही नहीं और अगर आ जाए तो पांच लाख रुपए प्रति परिवार प्रति वर्ष की सीमा कहां मानती है? सच पूछिए तो यह पूरे परिवार के दो दिन का औसत खर्च ही होगा।

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​(लेखक अनुवाद कम्युनिकेशन के कर्ता धर्ता हैं) ​

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